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भाग 9

11 जून 2022

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आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें न तो जागा ही कह सकते हैं और न सोने वालों में ही गिन सकते हैं, क्योंकि ये लोग जो गिनती में एक हजार से ज्यादा न होंगे लड़ाई की पोशाक पहिरे और उम्दे हरबे बदन पर लगाये लेटे हुए हें। जाड़े का मौसम है मगर कोई ऐसा कपड़ा जो बखूबी सर्दी को दूर कर सके ओढ़े हुए नहीं हैं, इसलिए तेज हवा के साथ मिली हुई सर्दी उन्हें नीद में मस्त होने नहीं देती।

राजा वीरेंद्रसिंह के खेमे की चौकसी फतहसिंह कर रहे हैं, खुद तो दरवाजे के आगे एक चौकी पर बैठे हुए हैं मगर मातहत के सिपाही खेमे के चारों तरफ नंगी तलवारें लिए घूम रहे हैं। कुंअर इंद्रजीतसिंह के खेमे की चौकसी कंचनसिंह और आनंदसिंह के खेमे की हिफाजत नाहरसिंह सिपाहियों के साथ कर रहे हैं।

जब आधी रात से ज्यादे जा चुकी, एक आदमी कुंअर इंद्रजीतसिंह के खेमे के दरवाजे पर आया और कंचनसिंह को सलाम करके पास आ खड़ा हो गया। यह आदमी लंबे कद का और मजबूत मालूम होता था, सिर पर मुंड़ासा बांधे और ऊपर से एक काश्मीरी स्याह चौगा डाले हुए था।

कंचन - तुम कौन हो और क्यों आये हो

आदमी - मैं रोहतासगढ़ किले का रहने वाला हूं और किशोरीजी का संदेशा लेकर आया हूं।

कंचन - क्या संदेशा है

आदमी - हुक्म है कि कुमार के सिवाय और किसी से न कहूं।

कंचन - कुमार तो इस समय सोये हुए हैं!

आदमी - अगर आप मेरा आना जरूरी समझते हो तो मुझे खेमे के अंदर ले चलिए या कुमार को उठाकर खबर कर दीजिये।

कंचन - (कुछ सोचकर) बेशक ऐसी हालत में कुमार को जगाना ही पड़ेगा, कहो, तुम्हारा नाम क्या है

आदमी - मैं अपना नाम नहीं बता सकता मगर कुमार मुझे अच्छी तरह जानते हैं, आप अपने साथ मुझे खेमे के अंदर ले चलिए, आंख खुलते ही मुझे पहचान लेंगे, आपको कुछ कहने की जरूरत न पड़ेगी!

कंचनसिंह उस आदमी को लेकर खेमे के अंदर घुसा, आगे-आगे कंचनसिंह और पीछे-पीछे वह आदमी। जब दोनों खेमे के मध्य में पहुंचे तो उस आदमी ने अपने कपड़े के अंदर से एक भुजाली निकालकर धोखे में पड़े हुए बेचारे कंचनसिंह की गरदन पर पीछे से इस जोर से मारी कि खट से सिर कटकर दूर जा गिरा, बेचारे के मुंह से कोई आवाज तक न निकल पाई। इसके बाद वह भुजाली पोंछ अपनी कमर में रखी और नींद में मस्त सोए हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह के पास आकर खड़ा हो गया, कमर से एक शीशी निकाली और बहुत सम्हलकर कुमार की नाक से लगाई। इस शीशी में तेज बेहोशी की दवा थी। कुमार के बेहोश हो जाने के बाद उसने अपनी कमर से एक लोई खोली और उसमें उनकी गठरी बांध दरवाजे पर परदे के पास आकर देखने लगा कि आगे की तरफ सन्नाटा है या नहीं।

इस समय पहरे वाले गश्त लगाते हुए खेमे के पीछे की तरफ निकल गये थे। आगे सन्नाटा पाकर उसने कुमार की गठरी उठाई और खेमे के बाहर हो अपने को बचाता हुआ लश्कर से निकल गया। लश्कर से कुछ दूर पर एक रथ खड़ा था जिसमें दो मजबूत मुश्की रंग के घोड़े जुते हुए थे, कोचवान तैयार बैठा था, गठरी खोलकर कुमार को उसी पर लेटा दिया और खुद भी सवार हो रथ हांकने का हुक्म दिया।

रथ थोड़ी ही दूर गया था कि सारथी को मालूम हो गया कि पीछे कोई सवार आ रहा है। उसने घबड़ाकर अंदर बैठे हुए आदमी से कहा कि कोई सवार बराबर रथ के साथ चला आ रहा है।

रथ और तेज किया गया मगर सवार ने पीछा न छोड़ा। सुबह होते-होते रथ बहुत दूर निकल गया और ऐसी जगह पहुंचा जहां सड़क के दोनों तरफ घना जंगल था। तब वह सवार घोड़ा बढ़ाकर रथ के बराबर आया और बोला, ''बस अब रथ रोक लो!''

सारथी - तुम कौन हो जो तुम्हारे कहने से रथ रोका जाय!

सवार - हम तुम्हारे बाप हैं! बस खबरदार, अब रथ आगे न बढ़ने पावे!!

इस सवार के हाथ में एक बरछी थी। जब सारथी ने उसकी बात न सुनी तो लाचार हो उसने बरछी मारी। चोट खाकर सारथी जमीन पर गिर पड़ा। रथ के घोड़े भड़ककर और तेजी के साथ भागे और पहिया सारथी के ऊपर से होकर निकल गया।

सवार ने घोड़े को बरछी मारी, एक घोड़ा जख्मी होकर गिर पड़ा, दूसरा घोड़ा भी रुक गया। वह आदमी जो रथ के अंदर बैठा था कूदकर तलवार खींचकर सवार के सामने आ खड़ा हुआ। बात की बात में सवार ने उसे भी बेजान कर दिया और घोड़े के नीचे उतर पड़ा। यह सवार नकाबपोश था।

बरछी गाड़कर सवार ने घोड़े को उसके साथ बांध दिया और बड़ी होशियारी से कुंअर इंद्रजीतसिंह को रथ से नीचे उतारा। सड़क के दोनों तरफ घना जंगल था। कुमार को उठाकर जंगल में ले गया और एक सलाई के पेड़ के नीचे रख लौट आया और अपने घोड़े पर सवार हो फिर उसी जगह पहुंचने के बाद कुमार के पास बैठ उनको होश में लाने की फिक्र करने लगा।

सुबह की ठंडी हवा लगने पर कुमार होश में आये और घबड़ाकर उठ बैठे। सवार तलवार खींच सामने खड़ा हो गया। कुमार भी संभलकर खड़े हो गये और बोले -

कुमार - क्या तुम हमें यहां लाये हो?

सवार - नहीं, कोई दूसरा ही आपको लिये जाता था, मैंने छुड़ाया है।

कुमार - (चारों तरफ देखकर) जब तुमने मुझे दुश्मन के हाथ से छुड़ाया है तो स्वयं तलवार लेकर सामने क्यों खड़े हो गये?

सवार - आपकी बहादुरी और दिलावरी की बहुत कुछ तारीफ सुनी है, लड़ने का हौसला रखता हूं।

कुमार - मेरे पास कोई हरबा न होने पर भी लड़ने को तैयार हूं, वार करो!

सवार - जो आदमी रथ पर सवार करके आपको लिए जाता था उसकी ढाल-तलवार मैं ले आया हूं, (हाथ का इशारा करके) वह देखिए, आपके बगल में मौजूद है, उठा लीजिए और मुकाबला कीजिए। मैं खाली हाथ आपसे लड़ना नहीं चाहता।

कुंअर इंद्रजीतसिंह ढाल-तलवार उठा पैंतरे के साथ उस नकाबपोश सवार के मुकाबिले में खड़े हो गए। थोड़ी देर तक लड़ाई होती रही। कुमार को मालूम हो गया कि यह दुश्मनी के तौर पर नहीं लड़ता। ललकार के बोले, ''तुम लड़ते हो या खिलवाड़ करते हो'

सवार - कोई दुश्मनी तो आपसे है नहीं!

कुमार - फिर लड़ने को तैयार क्यों हुए?

सवार - इसलिए कि आपके बदन में जरा फुर्ती आये, बहुत देर तक बेहोश पड़े रहने से रगों में सुस्ती आ गई होगी। अगर आपसे दुश्मनी रहती तो आपको दुश्मन के हाथ से ही क्यों बचाते

कुमार - तो क्या तुम हमारे दोस्त हो?

सवार - मैं यह भी नहीं कह सकता।

कुमार - जरूर तुम हमारे दोस्त हो अगर दुश्मन के हाथ से हमें बचाया।

सवार - क्या इस बारे में आपको कोई शक है कि मैंने आपकी जान बचाई!

कुमार - जरूर शक है। मैं कैसे विश्वास कर सकता हूं कि तुम मुझे यहां लाए हो या कोई दूसरा।

सवार - इसके लिए मैं तीन सबूत दूंगा। एक तो अगर मैं दुश्मन होता तो बेहोशी में आपको मार डालता।

कुमार - बेशक और दो सबूत कौन से हैं?

सवार - जरा ठहरिए, मैं अभी आता हूं तो ये दोनों सबूत भी देता हूं।

इतना कह वह नकाबपोश सवार झट अपने घोड़े पर सवार हुआ और वहां पहुंचा जहां वह रथ था जिस पर कुमार लाए गए थे। एक घोड़ा मरा हुआ पड़ा था, दूसरा बागडोर से बंधा अलग खड़ा था, उस ऐयार की लाश भी उसी जगह पड़ी हुई थी जो कुमार को बेहोश करके उठा लाया था। पीछे की तरफ थोड़ी दूर पर सारथी की लाश थी।

वह नकाबपोश सवार अपने घोड़े से उतर पड़ा और जोर लगाकर किसी तरह उस रथ को उलट दिया जो अभी तक खड़ा था। फिर सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिए उसकी निगाह सारथी की लाश पर पड़ी, वहां गया और उस लाश को घसीट लाकर रथ के पास रख दिया और फिर कुछ सोचकर धीरे से बोला, ''अब कुमार नहीं समझ सकते कि उनका लश्कर किधर है और वे किस तरफ से लाए गए, उन्हें धोखे में डालकर अपनी और उनकी किस्मत का अंदाजा लेना चाहिए।'' इसके बाद वह सवार फिर अपने घोड़े पर चढ़ा और वहां पहुंचा जहां कुमार उसकी राह देख रहे थे।

कुमार - तुम कहां गए थे

सवार - एक आदमी की खोज में गया था मगर वह नहीं मिला।

कुमार - खैर तुम अपनी सचाई के लिए और सबूत देने वाले थे!

सवार घोड़े पर से उतर पड़ा और कुमार से बोला, ''आप घोड़े पर सवार हो लीजिए और मेरे साथ चलिए।'' मगर कुमार ने मंजूर न किया। सवार ने भी घोड़े की लगाम थामी और पैदल कुमार को लिए हुए उस रथ के पास पहुंचा और सब हाल कहकर बोला, ''देखिए इसी रथ पर आप लाए गए, यही बदमाश आपको लाया है, और यह दूसरा सारथी है। मैं इत्तिफाक से आपके पास मिलने के लिए जा रहा था जो आपके काम आया। अब उस रथ का एक घोड़ा जो बचा हुआ है उसी पर आप सवार होकर लश्कर में चले जाइए!''

कुमार - बेशक तुमने मेरी जान बचाई, इसका अहसान कभी न भूलूंगा।

सवार - क्या इसका अहसान आप मानते हैं!

कुमार - जरूर।

सवार - तो आप कुछ देकर इस अहसान का बोझ अपने ऊपर से उतार दीजिए।

कुमार - बड़ी खुशी के साथ मैं ऐसा करने को तैयार हूं, जो कहो दूं।

सवार - इस समय तो मैं आपसे कुछ नहीं ले सकता, मगर आप वादा करें तो जरूरत पड़ने पर आपसे कुछ मांगूं और मदद लूं!

कुमार - मैं वादा करता हूं कि जो कुछ मांगोगे दूंगा, जब चाहे ले लो।

सवार - देखिए फिर बदल न जाइएगा।

कुमार - कभी नहीं, यह क्षत्रियों का धर्म नहीं।

सवार - अच्छा अब एक सबूत और देता हूं कि बिना आपको किसी तरह का कष्ट दिये अपने घर चला जाता हूं।

कुमार - तुम अपने चेहरे पर से नकाब तो हटाओ जिससे तुमको पहचान रखूं।

सवार - यह बात तो जरूरी है।

इतना कहकर सवार ने चेहरे पर से नकाब उलट दी और कुमार को हैरत में डाल दिया क्योंकि वह एक हसीन और नौजवान औरत थी।

बेशक सिवाय किशोरी के ऐसी हसीन औरत कुमार ने कभी नहीं देखी थी। उसने अपनी तिरछी चितवन से कुमार के दिल का शिकार कर लिया और उनकी बंधी हुई टकटकी की तरफ कुछ खयाल न कर उन्हें उसी तरह छोड़ सड़क से नीचे उतर जंगल का रास्ता लिया।

उसके चले जाने के बाद थोड़ी देर तक तो कुमार उसी तरफ देखते रहे जिधर वह घोड़े पर सवार होकर गई थी, इसके बाद रथ और सड़क की तरफ देखा फिर उस घोड़े के पास गये जो रथ के दोनों घोड़ों में से जीता मौजूद था। उसकी पीठ पर जो कुछ असबाब था खोल दिया सिर्फ लगाम रहने दी और नंगी पीठ पर सवार हो उसी तरफ का रास्ता लिया जिधर वह नकाबपोश औरत उनके देखते-देखते चली गई थी।

भूखे-प्यासे दोपहर तक घोड़ा दौड़ाते चले गये मगर उस औरत का पता न लगा कि किधर गई और क्या हुई। भूख और प्यास से परेशान हो गये और इस फिक्र में पड़े कि कहीं ठंडा पानी मिले तो प्यास बुझावें मगर इस जंगल में कहीं किसी सोते या झरने का पता न लगा, लाचार वह आगे बढ़ते ही गये और शाम होते तक एक ऐसे मैदान से पहुंचे जिसके चारों तरफ तो घना जंगल था मगर बीच में सुंदर साफ जल में लहराता हुआ एक अनूठा तालाब था।

कुंअर इंद्रजीतसिंह उस विचित्र तालाब को देख बड़े ही विस्मित हुए और एकटक उसकी तरफ देखने लगे। इस तालाब के बीचोंबीच एक खूबसूरत छोटा-सा मकान बना हुआ था जिसके चारों तरफ सहन था और चारों कोनों में चार औरतें तीर-कमान चढ़ाये मुस्तैद थीं, मालूम होता था कि ये अभी तीर छोड़ा ही चाहती हैं। मकान की छत पर एक छोटे-से चबूतरे पर भी एक औरत दिखाई पड़ी जिसका सिर नीचे और पैर आसमान की तरफ थे। बड़ी देर तक देखने के बाद मालूम हुआ कि ये औरतें जानदार नहीं हैं बल्कि बनावटी हैं जिन्हें पुतली कहना मुनासिब है। एक छोटी-सी डोंगी भी उसी चबूतरे के साथ रस्सी के सहारे बंधी हुई थी जिससे मालूम होता था कि इस मकान में जरूर कोई रहता है जिसके आने-जाने के लिए यह डोंगी मौजूद है।

कुमार घोड़े की लगाम एक पत्थर से अटकाकर तालाब के नीचे उतरे, हाथ-मुंह धो जल पिया और कुछ सुस्ताने के बाद फिर उसी मकान की तरफ देखने लगे क्योंकि कुमार का इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान तक जायं और देखें कि उसमें क्या है।

सूर्य अस्त होते-होते एक औरत उस मकान के अंदर से निकली और सहन पर खड़ी हो कुमार की तरफ देखने लगी, इसके बाद हाथ के इशारे से कहा कि यहां से चले जाओ। कुमार ने उस औरत को साफ पहचान लिया कि यह वही नकाबपोश सवार है जिसने कुमार को रथ पर ले जाते हुए ऐयार के हाथ से बचाया था। 

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रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
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इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
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चंद्रकांता संतति भाग -1

11 जून 2022
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नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनन

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भाग 2

11 जून 2022
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इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

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भाग 3

11 जून 2022
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चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

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भाग 4

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खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

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भाग 6

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बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

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भाग 7

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अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं

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भाग 8

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अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो

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भाग 9

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भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ रात आते-आते लौट आये और उसी समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज किया कि आज शिकार खेलने के लिए कुमार जंगल में गये थे, एक बनैले सूअर के प

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भाग 10

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अब हम अपने पाठकों को फिर उसी खोह में ले चलते हैं जिसमें कुंअर आनंदसिंह को बेहोश छोड़ आये हैं अथवा जिस खोह में जान बचाने वाले सिपाही के साथ पहुंचकर उन्होंने एक औरत को छुरे से लाश काटते देखा था और योगिन

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भाग 11

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सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिय

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भाग 12

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अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां

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भाग 13

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दूसरे दिन खा-पीकर निश्चिंत होने के बाद दोपहर को जब दोनों एकांत में बैठे तो इंद्रजीतसिंह ने माधवी से कहा - ''अब मुझसे सब्र नहीं हो सकता, आज तुम्हारा ठीक-ठीक हाल सुने बिना कभी न मानूंगा और इससे बढ़कर न

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भाग 14

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इंद्रजीतसिंह ने दूसरे दिन पुनः नियत समय पर माधवी को जाने न दिया, आधी रात तक हंसी-दिल्लगी ही में काटी, इसके बाद दोनों अपने-अपने पलंग पर सो रहे। कुमार को तो खुटका लगा ही हुआ था कि आज वह काली औरत आवेगी इ

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भाग 15

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अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

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चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

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घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

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भाग 2

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किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

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भाग 3

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सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

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भाग 5

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कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

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भाग 6

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

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भाग 7

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आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

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भाग 8

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इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

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भाग 9

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

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भाग 10

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जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

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भाग 11

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हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

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भाग 12

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आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

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भाग 13

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

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भाग 14

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

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भाग 15

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राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

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भाग 16

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भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

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भाग 17

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मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

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चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

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पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

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भाग 2

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शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

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भाग 3

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ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

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भाग 4

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आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

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भाग 5

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कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

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भाग 6

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इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

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भाग 7

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

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भाग 8

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रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

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भाग 9

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आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

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भाग 10

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कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

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भाग 11

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इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

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भाग 12

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

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भाग 13

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आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

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भाग 14

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रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

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चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

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अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

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भाग 2

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कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

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भाग 3

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तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

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भाग 4

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अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

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भाग 6

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अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

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भाग 7

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लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

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भाग 8

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अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

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भाग 9

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अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

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भाग 10

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दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

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भाग 11

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अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

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भाग 12

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दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

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चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

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बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

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भाग 2

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पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

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भाग 3

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कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

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भाग 5

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अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

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भाग 6

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आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

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भाग 7

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रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

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भाग 8

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बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

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भाग 9

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गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

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भाग 10

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वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

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भाग 11

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इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

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भाग 12

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दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

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भाग 13

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तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

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चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

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वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

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भाग 2

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इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

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भाग 3

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अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

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भाग 4

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अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

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भाग 5

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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

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भाग 6

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दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

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आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

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चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

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नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

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भाग 2

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हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

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भाग 3

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

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भाग 4

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शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

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पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

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मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

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चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

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मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

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कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

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भाग 3

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मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

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भाग 4

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कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

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भाग 5

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दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

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भाग 6

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रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

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भाग 7

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राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

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भाग 8

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अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

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भाग 9

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

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भाग 10

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दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

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भाग 11

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ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

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भाग 12

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आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

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