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चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

11 जून 2022

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वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ बुराई न की थी, फिर किस कम्बख्त ने तुम्हारे साथ बदी की प्यारे कुमार, तुमने बड़ा बुरा धोखा दिया, हम लोगों को छोड़कर चले गए, क्या दोस्ती का हक इसी तरह अदा करते हैं हाय, अब हम लोग जीकर क्या करेंगे, अपना काला मुंह लेकर कहां जाएंगे हमको अपने भाई से बढ़कर मानने वाला अब दुनिया में कौन रह गया! तुम हमें किसके सुपुर्द करके चले गये'

दूसरा बोला - ''प्यारे कुमार, कुछ तो बोलो! जरा अपने दुश्मनों का नाम तो बताओ, कुछ कहो तो सही कि किस बेईमान ने तुम्हें मारकर इस सन्दूक में डाल दिया हाय, अब हम तुम्हारी मां बेचारी चन्द्रकांता के पास कौन मुंह लेकर जायेंगे किस मुंह से कहेंगे कि तुम्हारे प्यारे होनहार लड़के को किसी ने मार डाला! नहीं-नहीं, ऐसा न होगा, हम लोग जीतेजी अब लौटकर घर न जायंगे, इसी जगह जान दे देंगे। नहीं-नहीं, अभी तो हमें उससे बदला लेना है जिसने हमारा सर्वनाश कर डाला। प्यारे कुमार, जरा तो मुंह से बोलो, जरा आंखें खोलकर देखो तो सही, तुम्हारे पास कौन खड़ा रो रहा है। क्या तुम हमें भूल गए हाय, यह यकायक कहां से गजब आकर टूट पड़ा!''

अब तो पाठक समझ गए होंगे कि इस सन्दूक में कुंअर इन्द्रजीतसिंह की लाश थी और ये दोनों साधु उनके दोस्त भैरोसिंह और तारासिंह थे। इन दोनों के रोने से कामिनी असल बात समझ गई, वह झट कोठरी के बाहर निकल आई और मोमबत्ती की रोशनी में कुमार की लाश देख जोर-जोर से रोने लगी। किशोरी इस तहखाने के बगल वाली कोठरी में थी। उसने जो कुंअर इन्द्रजीतसिंह का नाम ले-लेकर रोने की आवाज सुनी तो उसकी अजब हालत हो गई। उसका पका हुआ दिल इस लायक न था कि इतनी ठेस सम्हाल सके, बस एक दफे 'हाय' की आवाज तो उसके मुंह से निकली मगर फिर तन-बदन की सुध न रही। वह ऐसी जगह न थी कि कोई उसके पास जाय या उसे सम्हाले और देखे कि उसकी क्या हालत है।

भैरोसिंह और तारासिंह ने जो कामिनी को देखा, तो वह लोग फूट-फूटकर रोने लगे। तहखाने में हाहाकर मच गया। घण्टे भर यही हालत रही। जब कामिनी ने रोकर यह कहा कि 'इसी बगल वाली कोठरी में बेचारी किशोरी भी है, हाय, हम लोगों का रोना सुनकर उस बेचारी की क्या अवस्था हुई होगी।' तब भैरोसिंह और तारासिंह चुप हुए और कामिनी का मुंह देखने लगे।

भैरोसिह - तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि यहां किशोरी भी है

कामिनी - मैं उससे बातें कर चुकी हूं।

तारासिंह - क्या तुम बड़ी देर से इस तहखाने में हो

कामिनी - देर क्या, मैं तो कई दिनों से भूखी-प्यासी इस तहखाने में कैद हूं। (उस आदमी की तरफ इशारा करके) यह मेरा पहरा देता था।

भैरोसिंह - खैर, जो होना था सो हो गया। अब हम लोग अगर रोने-धोने में लगे रहेंगे, तो इनके दुश्मन का पता न लगा सकेंगे और न उससे बदला ही ले सकेंगे। यों तो जन्म भर रोना ही है परन्तु जब इनके दुश्मन से बदला ले लेंगे तो कलेजे में कुछ ठण्डक पड़ेगी। तुम यहां कैसे आईं और इन दुष्टों के हाथ क्योंकर फंसीं, खुलासा कहो तो शायद कुछ पता लगे।

कामिनी ने अपना खुलासा हाल कहा और इसके बाद पूछा, ''तुम दोनों का आना कैसे हुआ'

भैरोसिंह - कमला ने इस तहखाने का पता देकर हम लोगों को यहां भेजा है। थोड़ी ही देर में राजा वीरेन्द्रसिंह और कुंअर आनन्दसिंह भी बहुत से आदमियों को साथ लिए आना ही चाहते हैं, कमला भी उनके साथ होगी, हम लोग कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए किसी दूसरी जगह जाने वाले थे, मगर हाय, यह क्या खबर थी कि रास्ते में ही हम लोगों पर यह पहाड़ टूट पड़ेगा। हाय, जब महाराज यहां आयेंगे तो हम किस मुंह से कहेंगे कि तुम्हारे प्यारे लड़के की लाश इस तहखाने में पाई गई।

इसके बाद भैरोसिंह ने इस तहखाने में आने का बाकी हाल कहा तथा यह भी बताया कि ''जब खंडहर के बाहर कुएं पर हम दोनों आदमी बैठे थे, तभी तीन आदमियों की बातचीत से मालूम हो गया कि तुमको उन लोगों ने कैद कर लिया है। परन्तु यह आशा न थी कि हम तुम्हें इस अवस्था में देखेंगे। उन लोगों ने मुझे देखा तो पहचानकर डरे और भाग गये, मगर मुझे यह न मालूम हुआ कि वे लोग कौन हैं और उन्होंने मुझे कैसे पहचाना'

कामिनी - (हाथ का इशारा करके) उन्हीं लोगों में से एक यह भी है जिसे तुमने बांध रखा है।

भैरोसिंह - (उस आदमी से) बता, तू कौन है

आदमी - बताने को तो मैं सब-कुछ बता सकता हूं, परन्तु मेरी जान किसी तरह न बचेगी।

भैरोसिंह - क्या तुझे अपने मालिक का डर है

आदमी - जी हां।

भैरोसिंह - मैं वादा करता हूं कि तेरी जान बचाऊंगा, और तुझे बहुत-कुछ इनाम भी दिलाऊंगा।

आदमी - इस वादे से मेरी तबीयत नहीं भरती। क्योंकि मुझे तो आप लोगों के ही बचने की उम्मीद नहीं। हाय, क्या आफत में जान फंसी है। अगर कुछ कहें तो मालिक के हाथ से मारे जायं और न कहें तो इन लोगों के हाथ से दुःख भोगें!

भैरोसिंह - तेरी बातों से मालूम होता है कि तेरा मालिक बहुत जल्द ही यहां आना चाहता है

आदमी - बेशक ऐसा ही है।

यह सुनते ही भैरोसिंह ने तारासिंह के कान में कुछ कहा और उनका ऐयारी का बटुआ लेकर अपना बटुआ उन्हें दे दिया जिसे ले वे तुरन्त वहां से रवाना हुए और तहखाने के बाहर निकल गए। तारासिंह ने जल्दी-जल्दी खंडहर के बाहर होकर उस कुएं में से एक लुटिया पानी खींचा और बटुए में से कोई चीज निकालकर पत्थर पर रगड़ जल में घोलकर पी ली। फिर एक लुटिया जल निकालकर वही चीज पत्थर पर घिस पानी में मिलाई और बहुत जल्द तहखाने में पहुंचे। जल की लुटिया भैरोसिंह के हाथ में दी, भैरोसिंह ने बटुए से कुछ खाने की चीज निकाली और कामिनी से कहा, ''इसे खाकर तुम यह जल पी लो।''

कामिनी - भला खाने और जल पीने का यह कौन-सा मौका है यद्यपि मैं कई दिनों से भूखी हूं, परन्तु क्या कुमार की लाश के सिरहाने बैठकर मैं खा सकूंगी, क्या यह अन्न मेरे गले के नीचे उतरेगा

भैरोसिह - हाय! इस बात का मैं कुछ भी जवाब नहीं दे सकता। खैर, इस पानी में से थोड़ा तुम्हें पीना ही पड़ेगा। अगर इससे इन्कार करोगी तो हम सब लोग मारे जायंगे। (धीरे से कुछ कहकर) बस, देर न करो।

कामिनी - अगर ऐसा है तो मैं इन्कार नहीं कर सकती।

भैरोसिंह ने उस लुटिया में से आधा जल कामिनी को पिलाया और आधा आप पीकर लुटिया तारासिंह के हवाले की। तारासिंह तुरन्त तहखाने में से बाहर निकल आए और जहां तक जल्द हो सका, इधर-उधर से सूखी हुई लकड़ियां और कण्डे बटोरकर खंडहर के बीच में एक जगह रखा, तब बटुए में से चकमक पत्थर निकाला और उसमें से आग झाड़कर गोठों और लकड़ियों को सुलगाया।

तारासिंह यह सब काम बड़ी फुर्ती से कर रहे थे और घड़ी-घड़ी में खंडहर के बाहर मैदान की तरफ देखते भी जाते थे। आग सुलगाने के बाद जब तारासिंह ने मैदान की तरफ देखा तो बहुत दूर पर गर्द उड़ती हुई दिखाई दी। वह अपने काम में फिर जल्दी करने लगे। बटुए में से एक शीशी निकाली जिसमें किसी प्रकार का तेल था, वह तेल आग में डाल दिया, आग पर दो- तीन दफे पानी का छींटा दिया, फिर मैदान की तरफ देखा। मालूम हुआ कि दस-पन्द्रह आदमी घोड़ों पर सवार बड़ी तेजी से इसी तरफ आ रहे हैं। उस समय तारासिंह के मुंह से यकायक निकल पड़ा - ''ओफ, अगर जरा भी देर होती तो काम बिगड़ ही चुका था, खैर, अब ये लोग कहां जा सकते हैं!''

आग में से बहुत ज्यादे धुआं निकला और खंडहर भर में फैल गया। इसके बाद तारासिंह खंडहर के बाहर निकले और कुएं के पास जाकर नीम के पेड़ पर चढ़ गए तथा अपने को घने पत्तों की आड़ में छिपा लिया। वह पेड़ इतना ऊंचा था कि उस पर से खंडहर के भीतर का मैदान साफ नजर पड़ता था। वे सवार, जिन्हें तारासिंह ने दूर से देखा था, अब खंडहर के पास आ पहुंचे, तारासिंह ने पेड़ पर चढ़े-चढ़े गिना तो मालूम हुआ कि बारह सवार हैं। उनमें सबके आगे एक साधु था जिसकी सफेद दाढ़ी नाभि तक पहुंच रही थी।

पाठक, यह वही बाबाजी हैं जिन्होंने रोहतासगढ़ में राजा दिग्विजयसिंह के पास रात के समय पहुंचकर उन्हें भड़काया और राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह को कैद कराया था।

खंडहर के पास पहुंचकर वे लोग रुके। घोड़ों की बागडोरें पत्थरों से अटकाकर दस आदमी तो खंडहर में अन्दर घुसे और दो आदमी घोड़ों की हिफाजत के लिए बाहर रह गये।

खंडहर के अन्दर धुआं देखकर बुड्ढे साधु ने कहा, ''यह धुआं कैसा है'

एक - किसी मुसाफिर ने आकर रसोई बनाई होगी।

दूसरा - मगर धुआं बहुत कड़वा है।

तीसरा - ओफ, आंखों से और नाक से पानी बहने लगा।

साधु - अगर किसी मुसाफिर ने यहां आकर रसोई पकाई होती तो हांडी, पत्तल और पानी का बर्तन इत्यादि कुछ और भी तो यहां दिखाई देता! (एक आदमी की तरफ देखकर) हमें इस धुएं का रंग बेढब मालूम होता है, इसकी कड़वाहट, इसकी रंगत और इसकी बू कहे देती है कि धुएं में बेहोशी का असर है। है, है, जरूर ऐसा ही है, कुछ अमल भी आ चला और सिर भी घूमने लगा! (जोर से) अरे बहादुरो, बेशक तुम लोग धोखे में डाले गए, यहां कोई ऐयार आ पहुंचा है, क्या ताज्जुब है, अगर तहखाने में से कामिनी को निकालकर ले गया हो।

नीम के पेड़ पर बैठे हुए तारासिंह उस साधु की सब बातें सुन रहे थे क्योंकि वह नीम का पेड़ खंडहर के फाटक के पास ही था। साधु की बातें अभी पूरी न होने पाई थीं कि खंडहर के पिछवाड़े की तरफ से एक आदमी दौड़ता हुआ आया। मालूम होता है कि साधु की आखिरी बात उसने सुन ली थी, क्योंकि पहुंचने के साथ ही उसने पुकारकर कहा, ''नहीं-नहीं, कामिनी को कोई निकालकर नहीं ले गया मगर इसमें भी सन्देह नहीं कि वीरेन्द्रसिंह के दो ऐयार यहां आए हैं, एक तहखाने के अन्दर है दूसरा (हाथ से इशारा करके) इस नीम के पेड़ पर चढ़ा हुआ है।''

साधु - बस, तब तो मार लिया। बेशक हम लोग आफत में फंस गए हैं परन्तु कामिनी और इन्द्रजीत, जिन्हें तुम लोग तहखाने में पहुंचा चुके हो, अब बाहर नहीं जा सकते। ताज्जुब नहीं कि इन ऐयारों ने इन्द्रजीतसिंह को मुर्दा समझ लिया हो! देखो, मैं शाहदरवाजे को अभी ऐसा बन्द करता हूं कि फिर ऐयार का बाप भी तहखाने में नहीं जा सकेगा।

इसके जवाब में उस आदमी ने, जो अभी दौड़ता हुआ आया था, कहा कि ''हमारा एक आदमी भी तहखाने में ही है।''

साधु - खैर, अब तो उसका भी उसी तहखाने में घुटकर मर जाना बेहतर है।

तारासिंह ने उस आदमी को पहचान लिया जो खंडहर के पिछवाड़े की तरफ से दौड़ता हुआ आया था। यह उन्हीं दोनों आदमियों में से एक था जो भैरोसिंह और तारासिंह को कुएं पर देख डर के मारे भाग गये थे। न मालूम कहां छिपा रहा था जो इस समय बाबाजी को देखकर बेधड़क आ पहुंचा।

साधु ने धुएं का खयाल बिल्कुल ही न किया और खंडहर के अन्दर जाकर न मालूम किस कोठरी में घुस गया।

तारासिंह को कुंअर इन्द्रजीतसिंह के मरने का जितना गम था, उसे पाठक स्वयं समझ सकते हैं परन्तु उनको उस समय बड़ा ही आश्चर्य हुआ जब साधु के मुंह से यह सुना कि ''ताज्जुब नहीं कि इन्द्रजीतसिंह को मुर्दा समझ लिया हो!'' बल्कि यों कहना चाहिए कि इस बात ने तारासिंह को खुश कर दिया। वे अपने दिल में सोचने लगे कि बेशक हम लोगों ने धोखा खाया, मगर न मालूम उन्हें कैसी दवा खिलाई गई जिसने बिल्कुल मुर्दा ही बना दिया। यदि इस समय भैरोसिंह के पास पहुंचकर यह खुशखबरी सुनाई जाती है तो क्या ही अच्छी बात थी। मगर कम्बख्त साधु तो कहता है कि मैं शाहदरवाजे को ही बन्द कर देता हूं जिसमें फिर कोई आदमी तहखाने में न जा सके। यदि ऐसा हुआ तो बड़ी ही मुश्किल होगी। इन्द्रजीतसिंह अगर जीते भी हैं तो अब मर जायेंगे! न मालूम यह शाहदरवाजा कौन-सा है और किस तरह खुलता और बन्द होता है

वे लोग तो सुन ही चुके थे कि वीरेन्द्रसिंह का एक ऐयार नीम के पेड़ पर चढ़ा हुआ है। बाबाजी शाहदरवाजा बन्द करने चले गये, मगर तारासिंह को इसकी कुछ भी चिन्ता नहीं थी, क्योंकि वे इस बात को बखूबी जानते थे कि बेहोशी का धुआं जो इस खंडहर में फैला हुआ है, अब इन लोगों को ज्यादा देर तक ठहरने न देगा, थोड़ी ही देर में बेहोशी आ जायगी और फिर किसी योग्य न रहेंगे, और आखिर वैसा ही हुआ।

यद्यपि वे लोग ज्यादा धुएं में नहीं फंसे थे, तो भी जो कुछ उन लोगों की आंखों और नाक की राह से पेट में चला गया था, वही उन लोगों को बेदम करने के लिए काफी था। वे लोग कुएं पर आ पहुंचे और चारों तरफ से उस नीम के पेड़ को घेर लिया। इस समय उन लोगों की अवस्था शराबियों की-सी हो रही थी। उसी समया तारासिंह ने पेड़ पर से चिल्लाकर कहा, ''ओ हो हो हो, क्या अच्छे वक्त पर हमारा मालिक आ पहुंचा। अब जरूर इन कम्बख्तों की जान जायगी!''

तारासिंह की बात सुनते ही वे लोग ताज्जुब में आ गये और मैदान की तरफ देखने लगे। वास्तव में पूरब की तरफ गर्द उठ रही थी और मालूम होता था कि किसी राजा की सवारी इस तरफ आ रही है। उन लोगों के दिमाग पर अब बेहोशी का असर अच्छी तरह हो चुका था। वे लोग बैठ गए और फिर जमीन पर लेटकर दीन-दुनिया से बेखबर हो गये।

तारासिंह की निगाह उसी गर्द की तरफ थी। धीरे-धीरे आदमी और घोड़े दिखाई देने लगे और जब थोड़ी दूर रह गये तो साफ मालूम हो गया कि कई सवारों को साथ लिये राजा वीरेन्द्रसिंह आ पहुंचे। ऐयारों में तेजसिंह और पंडित बद्रीनाथ उनके साथ थे और मुश्की घोड़े पर सवार कमला आगे-आगे आ रही थी। जब तक वे लोग खंडहर के पास आवें, तब तक तारासिंह पेड़ के नीचे उतरे, कुएं में से एक लुटिया जल निकालकर मुंह-हाथ धोया और कुछ आगे बढ़कर उन लोगों से मिले। वीरेन्द्रसिंह ने तारासिंह से पूछा, ''कहो, क्या हाल है'?

तारासिंह - विचित्र हाल है।

वीरेन्द्रसिंह - सो क्यों, भैरो कहां है?

तारासिंह - भैरोसिंह इसी खंडहर के तहखाने में हैं, और किशोरी, कामिनी तथा कुंअर इन्द्रजीतसिंह भी उसी तहखाने में कैद हैं।

तारासिंह ने कुंअर इन्द्रजीतसिंह का जो कुछ हाल तहखाने में देखा था, वह किसी से कहना मुनासिब न समझा, क्योंकि सुनते ही वे लोग अधमरे हो जाते और किसी काम लायक न रहते और वीरेन्द्रसिंह की तो न मालूम क्या हालत होती, सिवाय इसके यह भी मालूम हो ही चुका था कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह मरे नहीं हैं। ऐसी अवस्था में उन लोगों को बुरी खबर सुनाना बुद्धिमानी के बाहर था, इसलिए तारासिंह ने इन्द्रजीतसिंह के बारे में बहुत-सी बातें बनाकर कहीं, जैसा कि आगे चलकर मालूम होगा।

कुंअर आनन्दसिंह ने जब तारासिंह की जुबानी यह सुना कि कामिनी भी इसी तहखाने में कैद है तो बहुत ही खुश हुए और सोचने लगे कि अब थोड़ी देर में माशूका से मुलाकात हुआ ही चाहती है। ईश्वर ने बड़ी कृपा की कि ढूंढ़ने और पता लगाने की नौबत न पहुंची। उन्होंने सोचा कि बस, अब हमारा दुःखान्त नाटक सुखान्त हुआ ही चाहता है।

वीरेन्द्रसिंह ने फिर तारासिंह से पूछा, ''क्या तुमने अपनी आंखों से उन लोगों को इस तहखाने में कैद देखा है'?

तारासिंह - जी हां, कुंअर इन्द्रजीतसिंह और कामिनी से तो हम दोनों आदमी मिल चुके हैं और भैरोसिंह उन दोनों के पास ही हैं, मगर किशोरी को हम लोग न देख सके, कामिनी की जुबानी मालूम हुआ कि जिस तहखाने में वह है उसी के बगल वाली कोठरी में किशोरी भी कैद है। पर कोई तरकीब ऐसी न निकली जिससे हम लोग किशोरी तक पहुंच सकते।

वीरेन्द्रसिंह - क्या यहां की कोठरियों और दरवाजों में किसी तरह का भेद है?

तारासिंह - भेद क्या, मुझे तो यह एक छोटा तिलिस्म ही मालूम होता है!

वीरेन्द्रसिंह - भला तुम और भैरोसिंह इन्द्रजीतसिंह के पास तक पहुंच गए तो उसे तहखाने के बाहर क्यों न ले आए?

तारासिंह - (कुछ अटककर) मुलाकात होने पर हम लोग उसी तहखाने में बैठकर बातें करने लगे। दुश्मन का एक आदमी उस तहखाने में कैदियों की निगहबानी कर रहा था। कैदी हथकड़ी और बेड़ी के सबब बेबस थे। जब हम दोनों ने उस आदमी को गिरफ्तार किया और हाल जानने के लिए बहुत-कुछ मारा-पीटा, तब वह राह पर आया। उसकी जुबानी मालूम हुआ कि हम लोगों का दुश्मन अर्थात् उसका मालिक बहुत से आदमियों को साथ ले यहां आया ही चाहता है। तब भैरोसिंह ने मुझे कहा कि इस समय हम लोगों को इस तहखाने से बाहर निकलना मुनासिब नहीं है, कौन ठिकाना बाहर निकलकर दुश्मनों से मुलाकात हो जाय। वे लोग बहुत होंगे और हम लोग केवल तीन आदमी हैं ताज्जुब नहीं कि तकलीफ उठानी पड़े, इससे यही बेहतर है कि तुम बाहर जाओ और जब दुश्मन लोग इस खंडहर में आ जायें, तो उन्हें किसी तरह गिरफ्तार करो। उन्हीं की आज्ञा पाकर मैं अकेला तहखाने के बाहर निकल आया और मैंने दुश्मनों को गिरफ्तार भी कर लिया।

तेजसिंह - (खुश होकर और हाथ का इशारा करके) मालूम होता है कि वे लोग जो उस पेड़ के नीचे पड़े हैं और कुछ खंडहर के दरवाजे पर दिखाई देते हैं, सब तुम्हारी ही कारीगरी से बेहोश हुए हैं। उन्हें किस तरह बेहोश किया?

तारासिंह - खंडहर के अन्दर आग सुलगाई और उसमें बेहोशी की दवा डाली, जब तक वे लोग आवें तब तक धुआं अच्छी तरह फैल गया। ऐसी कड़ी दवा से वे लोग क्योंकर बच सकते थे, जरा-सा धुआं आंख में लगना बहुत था। दुश्मन के केवल दो आदमी बच गये हैं, (घोड़ों की तरफ देखकर) मालूम होता है, आपको आते देख वे लोग भाग गए, यह क्या हुआ!

तेजसिंह - (चारों तरफ देखकर) जाने दो, क्या हर्ज है। हां तो अब हम लोगों को तहखाने में चलना चाहिए।

तारासिंह - शायद अब हम लोग तहखाने में न जा सकें।

कमला - सो क्यों

तारासिंह - उन लोगों में एक साधु भी था, वह बड़ा ही चालाक और होशियार था। आंख में धुआं लगते ही समझ गया कि इसमें बेहोशी का असर है, अब दम के दम में हम लोग बेहोश हो जायेंगे। उसी समय एक आदमी ने जो पहले हम लोगों को देखकर भाग गया था और छिपकर मेरी कार्रवाई देख रहा था, पहुंचकर उसे हम लोगों के आने की खबर दे दी और यह भी कह दिया कि अभी तक कामिनी, किशोरी और इन्द्रजीतसिंह तहखाने में हैं बल्कि राजा वीरेन्द्रसिंह का एक ऐयार भी तहखाने में है। यह सुनते ही वह कुछ खुश हुआ और बोला, ''अब हम लोग तो बेहोश हुआ ही चाहते हैं, धोखे में पड़ ही चुके हैं, मगर अब हम यहां के शाहदरवाजे को बन्द कर देते हैं, फिर किसी की मजाल नहीं कि तहखाने में जा सके और उन लोगों को निकाल सके जो तहखाने के अन्दर अभी तक बैठे हुए हैं।'' इस बात को सुनकर उस जासूस ने कहा कि ''हम लोगों का एक आदमी भी उसी तहखाने में है।'' साधु ने जवाब दिया कि ''अब उसका भी उसी में घुटकर मर जाना बेहतर होगा।'' फिर न मालूम क्या हुआ और उस साधु ने क्या किया अथवा शाहदरवाजा कौन है और किस तरह खुलता या बन्द होता है!

तारासिंह की इस बात ने सभी को तरद्दुद में डाल दिया और थोड़ी देर तक वे लोग सोच-विचार में पड़े रहे इसके बाद कमला ने कहा, ''पहले खंडहर में चलकर तहखाने का दरवाजा खोलना चाहिए, देखें खुलता है या नहीं, अगर खुल गया तो सोच-विचार की कुछ जरूरत नहीं, यदि न खुल सका तो देखा जायगा।''

इस बात को सभी ने पसन्द किया और राजा वीरेन्द्रसिंह ने कमला को आगे चलने और तहखाने का दरवाजा खोलने के लिए कहा। खंडहर में इस समय धुआं कुछ भी न था, सब साफ हो चुका था। कमला सभी को साथ लिए हुए उस दालान में पहुंची जहां से तहखाने में जाने का रास्ता था। मोमबत्ती जलाकर हाथ में ली और बगल वाली कोठरी में जाकर मोमबत्ती तारासिंह के हाथ में दे दी। इस कोठरी में एक आलमारी थी जिसके पल्लों में दो मुट्ठे लगे हुए थे। इन्हीं मुट्ठों के घुमाने से दरवाजा खुल जाता था और फिर एक कोठरी में पहुंच जाने से तहखाने में उतरने के लिए सीढ़ियां मिलती थीं। इस समय कमला ने इन्हीं दोनों मुट्ठों को कई बार घुमाया, वे घूम तो गए मगर दरवाजा न खुला। इसके बाद तारासिंह ने और फिर तेजसिंह ने भी उद्योग किया मगर कोई काम न चला। तब तो सभी का जी बेचैन हो गया और विश्वास हो गया कि उस बेईमान साधु ने जो कुछ कहा, सो किया। इस खंडहर में कोई शाहदरवाजा जरूर है जिसे साधु ने बन्द कर दिया और जिसके सबब से यह दरवाजा अब नहीं खुलता।

सब लोग उस कोठरी से बाहर निकले और उस साधु को ढूंढ़ने लगे। खंडहर में और नीम के पेड़ के नीचे आठ आदमी बेहोश पड़े हुए थे जो सब इकट्ठे किए गए। दो आदमी जो घोड़ों की हिफाजत करने के लिए रह गये थे और बेहोश नहीं हुए थे वे तो न मालूम कहां भाग ही गए थे, अब साधु रह गए सो उनके शरीर का कहीं पता न लगा। चारों तरफ खोज होने लगी।

राजा वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह और तारासिंह को साथ लिए हुए कमला उस कोठरी में पहुंची जिसमें दीवार के साथ लगी हुई पत्थर की मूरत थी, जिसमें एक दफे रात के समय कामिनी जा चुकी थी, और जिसका हाल ऊपर के किसी बयान में लिखा जा चुका है। इसी कोठरी में पत्थर की मूरत के पास ही साधु महाशय बेहोश पड़े हुए थे।

तेजसिंह - (मूरत को अच्छी तरह देखकर) मालूम होता है कि शाहदरवाजे से इस मूरत का कोई सम्बन्ध है।

वीरेन्द्रसिंह - शायद ऐसा ही हो, क्योंकि मुझे यह खंडहर तिलिस्मी मालूम होता है। हाय, बेचारा लड़का इस समय कैसी मुसीबत में पड़ा है। अब दरवाजा खुलने की तरकीब किससे पूछी जाय और उसका कैसे पता लगे मेरी राय तो यह है कि इस खंडहर में जो कुछ मिट्टी-चूना पड़ा है, सब बाहर फिंकवाकर जगह साफ करा दी जाय और दीवार तथा जमीन भी खोदी जाय।

तेजसिंह - मेरी भी यही राय है।

तारासिंह - जमीन और दीवार खुदने से जरूर काम चल जायगा। तहखाने की दीवार खोदकर हम लोग अपना रास्ता निकाल लेंगे, बल्कि और भी बहुत - सी बातों का पता लग जायगा।

वीरेन्द्रसिंह - (तेजसिंह की तरफ देखकर) बहुत जल्द बन्दोबस्त करो और दो आदमी रोहतासगढ़ भेजकर एक हजार आदमी की फौज बहुत जल्द मंगवाओ। वह फौज ऐसी हो कि सब काम कर सके, अर्थात् जमीन खोदने, सेंध लगाने, सड़क बनाने इत्यादि का काम बखूबी जानती हो।

तेजसिंह - बहुत खूब।

राजा वीरेन्द्रसिंह के साथ-साथ सौ आदमी आये हुए थे। वे सब-के-सब काम में लग गये। बेहोश दुश्मनों के हाथ-पैर बांध दिये गये और उन्हें उठाकर एक दालान में रख देने के बाद सब लोग खंडहर की मिट्टी उठा-उठाकर बाहर फेंकने लगे। जल्दी के मारे मालिकों ने भी काम में हाथ लगाया।

रात हो गई। कई मशाल भी जलाये गये, मिट्टी की सफाई बराबर जारी रही, मगर तारासिंह का विचित्र हाल था, उन्हें घड़ी-घड़ी रुलाई आती थी, और उसे वे बड़ी मुश्किल से रोकते थे। यद्यपि तारासिंह ने कुंअर इन्द्रजीतसिंह का हाल बहुत-कुछ झूठ-सच मिलाकर राजा वीरेन्द्रसिंह से कहा था, मगर वे बखूबी जानते थे कि इन्द्रजीतसिंह की अवस्था अच्छी नहीं है, उनकी लाश तो अपनी आंखों से देख ही चुके थे, परन्तु साधु की बातों ने उनकी कुछ तसल्ली कर दी थी। वे समझ गये थे कि इन्द्रजीतसिंह मरे नहीं, बल्कि बेहोश हैं, मगर अफसोस तो यह है कि यह बात केवल तारासिंह को ही मालूम है, भैरोसिंह को भी यदि इस बात की खबर होती, तो तहखाने में बैठे-बैठे कुमार को होश में लाने का कुछ उद्योग करते। कहीं ऐसा न हो कि बेहोशी में ही कुमार की जान निकल जाय, ऐसी कड़ी बेहोशी का नतीजा अच्छा नहीं होता है, इसके अतिरिक्त कई दिनों से कुमार बेहोशी की अवस्था में पड़े हैं, बेहोशी भी ऐसी कि जिसने बिल्कुल ही मुर्दा बना दिया, क्या जाने, जीते भी हैं या वास्तव में मर ही गये।

ऐसी - ऐसी बातों के विचार से तारासिंह बहुत ही बेचैन थे, मगर अपने दिल का हाल किसी से कहते नहीं थे।

यहां से थोड़ी दूर पर एक गांव था। कई आदमी दौड़ गये और कुदाल-फावड़ा इत्यादि जमीन खोदने का सामान वहां से ले आये और बहुत से मजदूरों को साथ लिवाते आये। रात-भर काम लगा रहा, और सवेरा होते-होते तक खंडहर साफ हो गया।

अब उस दालान की खुदाई शुरू हुई, जिसके बगल वाली कोठरी के अन्दर से तहखाने में जाने का रास्ता था। हाथ-भर तक जमीन खुदने के बाद लोहे की सतह निकल आई, जिसमें छेद होना भी मुश्किल था। यह देखकर वीरेन्द्रसिंह को भी बहुत रंज हुआ और उन्होंने खंडहर के बीच की जमीन अर्थात् चौक को खोदने का हुक्म दिया।

दूसरे दिन चौक की खुदाई से छुट्टी मिली। खुद जाने पर वहां एक छोटी-सी खूबसूरत बावली निकली, जिसके चारों तरफ छोटी-छोटी संगमरमर की सीढ़ियां थीं। यह बावली दस गज से ज्यादा गहरी न थी, और इसके नीचे की सतह तीन गज चौड़ी और इतनी ही लम्बी होगी। दो पहर दिन चढ़ते-चढ़ते उस बावली की मिट्टी निकल गई और नीचे की सतह में पीतल की एक मूरत दिखाई पड़ी। मूरत बहुत बड़ी न थी, एक हिरन का शेर ने शिकार किया था, हिरन की गर्दन का आधा हिस्सा शेर के मुंह में था। मूरत बहुत ही खूबसूरत और कीमती थी, मगर मिट्टी के अन्दर बहुत दिनों तक दबे रहने से मैली और खराब हो रही थी। वीरेन्द्रसिंह ने उसे अच्छी तरह झाड़पोंछकर साफ करने का हुक्म दिया।

वीरेन्द्रसिंह ने तेजसिंह से कहा, ''इस खुदाई में समय भी नष्ट हुआ, और कुछ काम भी न निकला।''

तेजसिंह - मैं इस मूरत पर अच्छी तरह गौर कर रहा हूं, मुझे आशा है कि कोई अनूठी बात जरूर दिखाई पड़ेगी।

वीरेन्द्रसिंह - (ताज्जुब में आकर) देखो - देखो, शेर की आंखें इस तरह घूम रही हैं जैसे वह इधर-उधर देख रहा हो!

आनन्दसिंह - (अच्छी तरह देखकर) हां, ठीक तो है!

इसी समय एक आदमी दौड़ता हुआ आया, और हाथ जोड़कर बोला, ''महाराज, चारों तरफ से दुश्मन की फौज ने आकर हम लोगों को घेर लिया है। दो हजार सवारों के साथ शिवदत्त आ पहुंचा, जरा मैदान की तरफ देखिए।''

न मालूम शिवदत्त इतने दिनों तक कहां छिपा हुआ था, और वह क्या कर रहा था। इस समय दो हजार फौज के साथ उसका यकायक आ पहुंचना और चारों तरफ से खंडहर को घेर लेना बड़ा ही दुखदायी हुआ, क्योंकि वीरेन्द्रसिंह के पास इस समय केवल सौ सिपाही थे।

सूर्य अस्त हो चुका था, चारों तरफ से अंधेरी घिरी चली आती थी। फौज सहित राजा शिवदत्त जब तक खंडहर के पास पहुंचे, तब तक रात हो गई। राजा शिवदत्त को तो यह मालूम ही हो चुका था कि केवल सौ सिपाहियों के साथ राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग इसी खंडहर में हैं, परन्तु राजा वीरेन्द्रसिंह, कुमार और उनके ऐयारों की वीरता और साहस को भी वह अच्छी तरह जानता था, इसलिए रात के समय खंडहर के अन्दर डेढ़ दो सौ सिपाहियों से ज्यादा नहीं जा सकते थे, क्योंकि उसके अन्दर ज्यादा जमीन न थी, और वीरेन्द्रसिंह तथा उनके साथी इतने आदमियों को कुछ भी न समझते, इसलिए शिवदत्त ने सोचा कि रात भर इस खंडहर को घेरकर चुपचाप पड़े रहना ही उत्तम होगा। वास्तव में शिवदत्त का विचार बहुत ठीक था और उसने ऐसा ही किया भी। राजा वीरेन्द्रसिंह को भी रात भर सोचने-विचारने की मोहलत मिली। उन्होंने कई सिपाहियों को फाटक पर मुस्तैद कर दिया और उसके बाद अपने बचाव का ढंग सोचने लगे। 

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रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
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इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
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चंद्रकांता संतति भाग -1

11 जून 2022
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नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनन

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भाग 2

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इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

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भाग 3

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चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

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भाग 4

11 जून 2022
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खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

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भाग 6

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बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

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भाग 7

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अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं

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भाग 8

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अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो

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भाग 9

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भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ रात आते-आते लौट आये और उसी समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज किया कि आज शिकार खेलने के लिए कुमार जंगल में गये थे, एक बनैले सूअर के प

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भाग 10

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अब हम अपने पाठकों को फिर उसी खोह में ले चलते हैं जिसमें कुंअर आनंदसिंह को बेहोश छोड़ आये हैं अथवा जिस खोह में जान बचाने वाले सिपाही के साथ पहुंचकर उन्होंने एक औरत को छुरे से लाश काटते देखा था और योगिन

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भाग 11

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सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिय

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भाग 12

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अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां

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भाग 13

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दूसरे दिन खा-पीकर निश्चिंत होने के बाद दोपहर को जब दोनों एकांत में बैठे तो इंद्रजीतसिंह ने माधवी से कहा - ''अब मुझसे सब्र नहीं हो सकता, आज तुम्हारा ठीक-ठीक हाल सुने बिना कभी न मानूंगा और इससे बढ़कर न

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भाग 14

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इंद्रजीतसिंह ने दूसरे दिन पुनः नियत समय पर माधवी को जाने न दिया, आधी रात तक हंसी-दिल्लगी ही में काटी, इसके बाद दोनों अपने-अपने पलंग पर सो रहे। कुमार को तो खुटका लगा ही हुआ था कि आज वह काली औरत आवेगी इ

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भाग 15

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अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

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चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

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घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

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भाग 2

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किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

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भाग 3

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सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

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भाग 5

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कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

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भाग 6

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

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भाग 7

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आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

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भाग 8

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इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

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भाग 9

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

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भाग 10

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जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

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भाग 11

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हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

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भाग 12

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आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

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भाग 13

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

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भाग 14

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

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भाग 15

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राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

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भाग 16

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भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

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भाग 17

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मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

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चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

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पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

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भाग 2

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शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

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भाग 3

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ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

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भाग 4

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आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

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भाग 5

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कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

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भाग 6

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इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

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भाग 7

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

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भाग 8

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रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

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आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

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भाग 10

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कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

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भाग 11

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इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

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भाग 12

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

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भाग 13

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आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

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रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

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चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

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अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

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भाग 2

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कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

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भाग 3

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तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

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भाग 4

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अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

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भाग 6

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अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

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भाग 7

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लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

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भाग 8

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अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

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भाग 9

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अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

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भाग 10

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दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

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भाग 11

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अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

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भाग 12

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दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

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चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

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बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

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भाग 2

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पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

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भाग 3

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कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

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हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

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भाग 5

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अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

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भाग 6

11 जून 2022
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आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

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भाग 7

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रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

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भाग 8

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बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

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भाग 9

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गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

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भाग 10

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वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

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भाग 11

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इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

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भाग 12

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दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

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भाग 13

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तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

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चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

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वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

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भाग 2

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इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

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भाग 3

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अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

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भाग 4

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अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

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भाग 5

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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

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भाग 6

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दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

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भाग 7

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आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

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चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

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नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

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भाग 2

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हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

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भाग 3

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

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भाग 4

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शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

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पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

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भाग 6

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मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

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चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

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मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

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भाग 2

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कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

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भाग 3

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मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

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भाग 4

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कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

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दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

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भाग 6

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रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

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राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

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अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

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भाग 9

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

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भाग 10

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दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

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भाग 11

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ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

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भाग 12

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आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

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