shabd-logo

भाग 2

11 जून 2022

13 बार देखा गया 13

कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश करने लगे। राजा वीरेंद्रसिंह से इजाजत लेकर तेजसिंह भी रवाना हुए और भेष बदलकर रोहतासगढ़ किले के अंदर चले गये। किले के सदर दरवाजे पर पहरे का पूरा इंतजाम था मगर तेजसिंह की फकीरी सूरत पर किसी ने शक न किया।

साधू की सूरत बने हुए तेजसिंह सात दिन तक रोहतासगढ़ किले के अंदर घूमते रहे। इस बीच में उन्होंने हर एक मोहल्ला, बाजार, गली, रास्ता, देवल, धर्मशाला इत्यादि को अच्छी तरह देख और समझ लिया, कई बार दरबार में भी जाकर राजा दिग्विजयसिंह और उसके दीवान तथा ऐयारों की चाल और बातचीत के ढंग पर ध्यान दिया और यह भी मालूम किया कि राजा दिग्विजयसिंह किस-किस को चाहता है, किस-किस की खातिर करता है, और किस-किस को अपना विश्वासपात्र समझता है। इन सात दिन के बीच में तेजसिंह को कई बार चोबदार और औरत बनने की जरूरत पड़ी और अच्छे-अच्छे घरों में घुसकर वहां की कैफियत और हालत को भी देख-सुन आये। एक दफे तेजसिंह उस शिवालय में भी गये जिसमें भैरोसिंह और बद्रीनाथ ने ऐयारी की थी या जहां से कुंअर कल्याणसिंह को पकड़ ले गये थे।

तेजसिंह ने उस शिवालय के रहने वालों तथा पुजारियों की अजब हालत देखी। जब से कुंअर कल्याणसिंह गिरफ्तार हुए थे तब से उन लोगों के दिल में ऐसा डर समा गया था कि वे बात-बात में चौंकते और डरते थे, रात में एक पत्ती के खड़कने से भी किसी ऐयार के आने का गुमान होता था, साधू-ब्राह्मणों की सूरत से उन्हें घृणा हो गई थी, किसी संन्यासी, ब्राह्मण, साधू को देखा और चट बोल उठे कि ऐयार है, किसी मजदूर को भी अगर मंदिर के आगे खड़ा पाते तो चट उसे ऐयार समझ लेते और जब तक गर्दन में हाथ दे हाते के बाहर न कर देते चैन न लेते! इत्तिफाक से आज तेजसिंह भी साधू की सूरत बने शिवालय में जा डटे। पुजारियों ने देखते ही गुल करना शुरू किया कि 'ऐयार है, ऐयार है, धरो, पकड़ो, जाने न पाए!' बेचारे तेजसिंह बड़ा घबराए और ताज्जुब करने लगे कि इन लोगों को कैसे मालूम हो गया कि हम ऐयार हैं क्योंकि तेजसिंह को इस बात का गुमान भी न था कि यहां के रहने वाले कुत्ते, बिल्ली को भी ऐयार समझते हैं, मगर यकायक वहां से भाग निकलना भी मुनासिब न समझाकर रुके और बोले -

तेज - तुम कैसे जानते हो कि हम ऐयार हैं

एक पुजारी - अजी हम खूब जानते हैं कि सिवाय ऐयार के कोई दूसरा हमारे सामने आ नहीं सकता है! अजी तुम्हीं लोग तो हमारे कुंअर साहब को पकड़ ले गये हो या कोई दूसरा बस-बस यहां से चले जाओ, नहीं तो कान पकड़ के खा जाएंगे।

'बस - बस, यहां से चले जाओ' इत्यादि सुनते ही तेजसिंह समझ गये कि ये लोग बेवकूफ हैं, अगर हमारे ऐयार होने का इन्हें विश्वास होता तो ये लोग 'चले जाओ' कभी न कहते बल्कि हमें गिरफ्तार करने का उद्योग करते, बस इन्हें भैरोसिंह और बद्रीनाथ डरा गये और कुछ नहीं।

तेजसिंह खड़े सोच ही रहे थे कि इतने में एक लंगड़ा भिखमंगा हाथ में ठीकरा लिये लाठी टेकता वहां आ पहुंचा और पुजारीजी की जयजयकार करने लगा। सूरत देखते ही पुजारी चिल्ला उठा और बोला, ''लो देखो, एक दूसरा ऐयार भी आ पहुंचा, अबकी शैतान लंगड़ा बनकर आया है, जानता नहीं कि हम लोग बिना पहचाने नहीं रहेंगे, भाग नहीं तो सिर तोड़ डालूंगा।''

अब तेजसिंह को पूरा विश्वास हो गया कि ये लोग सिड़ी हो गये हैं, जिसे देखते हैं उसे ही ऐयार समझ लेते हैं। तेजसिंह वहां से लौटे और सोचते हुए खिड़की की राह1 दीवार के पार हो जंगल में चले गए कि अब यहां के ऐयारों से मिलना चाहिए और देखना चाहिए कि वे कैसे हैं और ऐयारी के फन में कितने तेज हैं।

इस किले के अंदर गांजा पिलाने वालों की कई दुकानें थीं जिन्हें यहां वाले 'अड्डा' कहा करते थे। चिराग जलने के बाद ही से गंजेड़ी लोग वहां जमा होते जिन्हें अड्डे का मालिक गांजा बनाकर पिलाता और उनसे एवज में पैसे वसूल करता। वहां तरह-तरह की गप्पें उड़ा करती थीं जिनसे शहर भर का हाल झूठ-सच मिला-जुला लोगों को मालूम हो जाया करता था।

शाम होने के पहले ही तेजसिंह जंगल से लौटे, लकड़हारों के साथ-साथ बैरागी के भेष में किले के अंदर दाखिल हुए और सीधे अड्डे पर चले गये जहां गंजेड़ी दम पर दम लगाकर धुएं का गुब्बार बांध रहे थे। यहां तेजसिंह का बहुत कुछ काम निकला

1. रोहतासगढ़ किले की बड़ी चारदीवारी में चारों तरफ छोटी - छोटी बहुत - सी खिड़कियां थीं जिनमें लोहे के मजबूत दरवाजे लगे रहते थे और दो सिपाही बराबर पहिरा दिया करते थे। फकीर, मोहताज और गरीब रियाया अक्सर उन खिड़कियों (छोटे दरवाजों) की राह जंगल में से सूखी लकड़ियां चुनने या जंगली फल तोड़ने या जरूरी काम के लिए बाहर जाया करते थे, मगर चिराग जलते हुए ये खिड़कियां बंद कर दी जाती थीं।

और उन्हें मालूम हो गया कि महाराज के यहां केवल दो ऐयार हैं, एक का नाम रामानंद, दूसरे का नाम गोविंदसिंह है। गोविंदसिंह तो कुंअर कल्याणसिंह को छुड़ाने के लिए चुनार गया हुआ है, बाकी रामानंद यहां मौजूद है। दूसरे दिन तेजसिंह ने दरबार में जाकर रामानंद को अच्छी तरह देख लिया और निश्चय कर लिया कि आज रात को इसी के साथ ऐयारी करेंगे क्योंकि रामानंद का ढांचा तेजसिंह से बहुत कुछ मिलता था और यह भी जाना गया था कि महाराज सबसे ज्यादा रामानंद को मानते हैं और अपना विश्वासपात्र समझते हैं।

आधी रात के समय तेजसिंह सन्नाटा देख रामानंद के मकान में कमंद लगाकर चढ़ गये। देखा कि धुर ऊपर वाले बंगले में रामानंद मसहरी के ऊपर पड़ा खर्राटे ले रहा है, दरवाजे पर पर्दे की जगह पर जाल लटक रहा है जिसमें छोटी-छोटी घंटियां बंधी हुई हैं। पहले तो तेजसिंह ने उसे एक मामूली पर्दा समझा मगर ये तो बड़े ही चालाक और होशियार थे, यकायक पर्दे पर हाथ डालना मुनासिब न समझकर उसे गौर से देखने लगे। जब मालूम हुआ कि नालायक ने इस जालदार पर्दे में बहुत-सी घंटिया लटका रखी हैं तो समझ गए कि यह बड़ा ही बेवकूफ है, समझता है कि इन घंटियों के लटकाने से हम बचे रहेंगे। इस घर में जब कोई पर्दा हटाकर आवेगा तो घंटियों की आवाज से हमारी आंख खुल जायगी, मगर यह नहीं समझता कि ऐयार लोग बुरे होते हैं।

तेजसिंह ने अपने बटुए में से कैंची निकाली और बहुत सम्हालकर पर्दे से एक-एक करके घंटी काटने लगे। थोड़ी ही देर में सब घंटियों को काट के किनारे कर दिया और पर्दा हटाकर अंदर चले गए। रामानंद अभी तक खर्राटे ले रहा था। तेजसिंह ने बेहोशी की दवा उसके नाक के आगे की, हलका धूरा सांस लेते ही दिमाग में चढ़ गया, रामानंद को एक छींक आई जिससे मालूम हुआ कि अब इसे घंटों तक होश में न आने देगी।

तेजसिंह ने बटुए में से एक अस्तुरा निकालकर रामानंद की दाढ़ी और मूंछ मूंड़ ली और उसके बाल हिफाजत से अपने बटुए में रखकर उसी रंग की दूसरी दाढ़ी और मूंछ उसके लगा दी जो उन्होंने दिन ही में किले के बाहर जंगल में तैयार की थी। तेजसिंह इतने ही काम के लिए रामानंद के मकार पर गए थे और इसे पूरा कर कमंद के सहारे नीचे उतर आए तथा धर्मशाला की तरफ रवाना हुए।

तेजसिंह जब बैरागी साधू के भेष में रोहतासगढ़ किले के अंदर आए थे तो उन्होंने धर्मशाला1 के पास एक बैठक वाले के मकान में छोटी-सी कोठरी किराये पर ले ली थी और उसी में रहकर अपना काम करते थे। उस कोठरी का एक दरवाजा सड़क की तरफ था जिसमें ताला लगाकर उसकी ताली ये अपने पास रखते थे, इसलिए उस कोठरी में आने-जाने के लिए उनको दिन और रात एक समान था।

रामानंद के मकान से जब तेजसिंह अपना काम करके उतरे उस वक्त पहर भर रात बाकी थी। धर्मशाला के पास अपनी कोठरी में गए और सबेरा होने के पहले ही अपनी सूरत रामानंद की-सी बना और वही दाढ़ी और मूंछ जो मूंड लाये थे दुरुस्त करके खुद लगा कोठरी से बाहर निकले और शहर में गश्त लगाने लगे, सबेरा होते तक राजमहल की तरफ रवाना हुए और इत्तिला कराकर महाराज के पास पहुंचे।

हम ऊपर लिख आए हैं कि रोहतासगढ़ में रामानंद और गोविंदसिंह केवल दो ही ऐयार थे। इन दोनों के बारे में इतना लिख देना जरूरी है कि इन दोनों में से गोविंदसिंह तो ऐयारी के फन में बहुत ही तेज और होशियार था और वह दिन-रात वही काम किया करता था। रामानंद भी ऐयारी का फन अच्छी तरह जानता था मगर उसे अपनी दाढ़ी और मूंछ बहुत प्यारी थी इसलिए वह ऐयारी के वे ही काम करता था जिसमें दाढ़ी और मूंछ मुंड़ाने की जरूरत न पड़े और इसलिए महाराज ने भी उसे दीवान का काम दे रखा था। इसमें भी कोई शक नहीं कि रामानंद बहुत ही खुशदिल, मसखरा और बुद्धिमान था और उसने अपनी तदबीर से महाराज का दिल अपनी मुट्ठी में कर लिया था।

रामानंद की सूरत बने हुए तेजसिंह महाराज के पास पहुंचे, मामूल से बहुत पहले रामानंद को आते देख महाराज ने समझा कि कोई नई खबर लाया है।

महाराज - आज तुम बहुत सबेरे आये! क्या कोई नई खबर है?

रामा - (खांसकर) महाराज, हमारे यहां कल तीन मेहमान आये हैं।

महा - कौन-कौन?

रामा - एक तो खांसी जिसने मुझे बहुत ही तंग कर रखा है, दूसरे कुंअर आनंदसिंह, तीसरे उनके चार ऐयार जो आज ही कल में किशोरी को यहां से निकाल ले जाने का दावा रखते हें।

महा - (हंसकर) मेहमान तो बड़े नाजुक हैं। इनकी खातिर का भी कोई इंतजाम किया गया है या नहीं

रामा - इसीलिए तो सरकार मैं आया हूं। कल दरबार में उनके ऐयार मौजूद थे। सबके पहले किशोरी का बंदोबस्त करना चाहिए, उनकी हिफाजत में किसी तरह की कमी न होनी चाहिए।

महा - जहां तक मैं समझता हूं वे लोग किशोरी को तो किसी तरह नहीं ले जा सकते, हां वीरेंद्रसिंह के ऐयारों को जिस तरह भी हो सके गिरफ्तार करना चाहिए।

रामा - वीरेंद्रसिंह के ऐयार तो अब मेरे पंजे से बच नहीं सकते, वे लोग सूरत बदलकर दरबार में जरूर आयेंगे, और ईश्वर चाहे तो आज ही किसी को गिरफ्तार करूंगा मगर वे लोग बड़े ही धूर्त और चालबाज हैं, प्रायः कैदखाने से भी निकल जाया करते हैं।

महा - खैर हमारे तहखाने से निकल जायेंगे तो समझेंगे कि चालाक और धूर्त हैं।

महाराज की इतनी ही बातचीत से तेजसिंह को मालूम हो गया कि यहां कोई तहखाना हे जिसमें कैदी लोग रखे जाते हैं, अब उन्हें यह फिक्र हुई कि जहां तक हो सके इस तहखाने का ठीक-ठीक हाल मालूम करना चाहिए। यह सोच तेजसिंह ने अपनी लच्छेदार बातचीत से महाराज को ऐसा उलझाया कि मामूली समय से भी आधे घंटे की

1. रोहतासगढ़ में एक ही धर्मशाला थी।

देर हो गई। ऐसा करने से तेजसिंह का अभिप्राय यह था कि देर होने से असली रामानंद अवश्य महाराज के पास आवेगा और मुझे देख चौंकेगा, उसी समय मैं अपना काम निकाल लूंगा जिसके लिए उसकी दाढ़ी-मूंछ लाया हूं, और आखिर तेजसिंह का सोचना ठीक भी निकला।

तेजसिंह रामानंद की सूरत में जिस समय महाराज के पास आये थे उस समय ड्योढ़ी पर जितने सिपाही पहरा दे रहे थे सब बदल गए और दूसरे सिपाही अपनी बारी के अनुसार ड्योढ़ी के पहरे पर मुस्तैद हुए जो इस बात से बिल्कुल ही बेखबर थे कि रामानंद महाराज से मिलने के लिए महल में गये हैं।

ठीक समय पर दरबार लग गया। बड़े-बड़े ओहदेदार, नायब, दीवान, तहसीलदार, मुंशी, मुत्सद्दी इत्यादि और मुसाहब लोग दरबार में आकर जमा हो गये। असली रामानंद अपनी दीवान की गद्दी पर आकर बैठ गया मगर अपनी दाढ़ी की तरफ से बिल्कुल ही बेखबर था। उसे तेजसिंह का मामला कुछ भी मालूम न था, तो भी यह जानने के लिए वह बड़ी उलझन में पड़ा हुआ था कि उस दरवाजे के जालीदार पर्दे में की घंटियां किसने काट डाली थीं। घर भर के आदमियों से उसने पूछा और पता लगाया मगर पता न लगा, इससे उसके दिल में शक हुआ कि इस मकान में जरूर कोई ऐयार आया मगर उसने आकर क्या किया सो नहीं जाना जाता, हां मेरे इस खयाल को उसने जरूर मटियामेट कर दिया कि घंटियां लगे हुए जालीदार पर्दे के अंदर मेरे कमरे में चुपके से कोई नहीं आ सकता, उसने बता दिया कि यों आ सकता है। बेशक मेरी भूल थी कि उस पर्दे पर इतना भरोसा रखता था, पर तो क्या खाली यही बताने के लिये वह ऐयार आया था।

इन्हीं सब बातों को सोचता हुआ रामानंद अपने जरूरी कामों से छुट्टी पा दरबारी कपड़े पहन बन-ठनकर दरबार की ओर रवाना हुआ। बेशक आज उसे कुछ देरी हो गई थी और वह सोच रहा था कि महाराज दरबार में जरूर आ गये होंगे, मगर वहां पहुंचकर उसने गद्दी खाली देखी और पूछने से मालूम हुआ कि अभी तक महाराज के आने की कोई खबर नहीं। रामानंद क्या सभी दरबारी ताज्जुब कर रहे थे कि आज महाराज को देर क्यों हुई।

रामानंद को महाराज बहुत मानते थे, यह उनका मुंहलगा था, इसीलिए सभों ने वहां जाकर हाल मालूम करने के लिए इसको ही कहा। रामानंद खुद भी घबराया हुआ था और महाराज का हाल मालूम किया चाहता था, अस्तु थोड़ी देर बैठकर वहां से रवाना हुआ और ड्योढ़ी पर पहुंचकर इत्तिला करवार्ई।

रामानंद रूपी तेजसिंह बैठे महाराज से बातें कर रहे थे कि एक खिदमतगार आया और हाथ जोड़कर सामने खड़ा हो गया। उसकी सूरत से मालूम होता था कि वह घबराया हुआ है और कुछ कहना चाहता है मगर आवाज मुंह से नहीं निकलती। तेजसिंह समझ गये कि अब कुछ गुल लिखा चाहता है, आखिर खिदमतगार की तरफ देखकर बोले -

तेज - क्यों क्या कहना चाहता है

खिद - मैं ताज्जुब के साथ यह इत्तिला करते डरता हूं कि दीवान साहब (रामानंद) ड्योढ़ी पर हाजिर हैं।

महा - रामानंद!

खिद - जी हां।

महा - (तेजसिंह की तरफ देखकर) यह क्या मामला है

तेज - (मुस्कुराकर) महाराज, बस अब काम निकला ही चाहता है। मैं जो कुछ अर्ज कर चुका वही बात है। कोई ऐयार मेरी सूरत बना आया है और आपको धोखा दिया चाहता है, लीजिये इस कम्बख्त को तो मैं अभी गिरफ्तार करता हूं फिर देखा जायगा। सरकार उसे हाजिर होने का हुक्म दें फिर देखें मैं क्या तमाशा करता हूं। मुझे जरा छिप जाने दें, वह आकर बैठ जाय तो मैं उसका पर्दा खोलूं।

महा - तुम्हारा कहना ठीक है, बेशक कोई ऐयार है, अच्छा तुम छिप जाओ, मैं उसे बुलाता हूं।

तेज - बहुत खूब, मैं छिप जाता हूं, मगर ऐसा है कि सरकार उसकी दाढ़ी-मूंछ पर खूब ध्यान दें, मैं यकायक पर्दे से निकलकर उसकी दाढ़ी उखाड़ लूंगा क्योंकि नकली दाढ़ी जरा ही-सा झटका चाहती है।

महा - (हंसकर) अच्छा-अच्छा, (खिदमतगार की तरफ देखकर) देख उससे और कुछ मत कहियो, केवल हाजिर होने का हुक्म सुना दे।

तेजसिंह दूसरे कमरे में जाकर छिप रहे और असली रामानंद धीरे-धीरे वहां पहुंचे जहां महाराज विराज रहे थे। रामानंद को ताज्जुब था कि आज महाराज ने देर क्यों लगाई, इससे उसका चेहरा भी कुछ उदास-सा हो रहा था। दाढ़ी तो वही थी जो तेजसिंह ने लगा दी थी। तेजसिंह ने दाढ़ी बनाते समय जान-बूझकर कुछ फर्क डाल दिया था, जिस पर रामानंद ने तो कुछ ध्यान न दिया मगर वही फर्क अब महाराज की आंखों में खटकने लगा। जिस निगाह से कोई किसी बहरूपिये को देखता है उसी निगाह से बिना कुछ बोले-चाले महाराज अपने दीवान साहब को देखने लगे। रामानंद यह देखकर और भी उदास हुआ कि इस समय महाराज की निगाह में अंतर क्यों पड़ गया है।

तरद्दुद और ताज्जुब के सबब रामानंद के चेहरे का रंग जैसे-जैसे बदलता गया तैसे-तैसे उसके ऐयार होने का शक भी महाराज के दिल में बैठ गया। कई सायत बीतने पर भी न तो रामानंद ही कुछ पूछ सका और न महाराज ही ने उसे बैठने का हुक्म दिया। तेजसिंह ने अपने लिए यह मौका बहुत अच्छा समझा, झट बाहर निकल आये और हंसते हुए एक फर्शी सलाम उन्होंने रामानंद को किया। ताज्जुब और डर से रामानंद के चेहरे का रंग उड़ गया और वह एकटक तेजसिंह की तरफ देखने लगा।

ऐयारी भी कठिन है। इस फन में सबसे भारी हिस्सा जीवट का है। जो ऐयार जितना डरपोक होगा उतना ही जल्द फंसेगा। तेजसिंह को देखिए, किस जीवट का ऐयार है कि दुश्मन के घर में घुसकर भी जरा नहीं डरता और दिन दोपहर सच्चे को झूठा बना रहा है! ऐसे समय अगर जरा भी उसके चेहरे पर खौफ या तरद्दुद की निशानी आ जाय तो ताज्जुब नहीं कि वह खुद फंस जाय।

तेजसिंह ने रामानंद को बात करने की भी मोहलत न दी, हंसकर उसकी तरफ देखा और कहा, ''क्यों बे! क्या महाराज दिग्विजयसिंह के दरबार को तैंने ऐसा-वैसा समझ रखा है! क्या तू यहां भी ऐयारी से काम निकालना चाहता है यहां तेरी कारीगरी न लगेगी, देख तेरी गदहे की-सी मुटाई मैं पिचकाता हूं।''

तेजसिंह ने फुर्ती से रामानंद की दाढ़ी पर हाथ डाल दिया और महाराज को दिखाकर एक झटका दिया। झटका तो जोर से दिया मगर इस ढंग से कि महाराज को बहुत हल्का झटका मालूम हो। रामानंद की नकली दाढ़ी अलग हो गई।

इस तमाशे ने रामानंद को पागल-सा बना दिया। उसके दिल में तरह-तरह की बातें पैदा होने लगीं। यह समझकर कि यह ऐयार मुझ सच्चे को झूठा किया चाहता है उसे क्रोध चढ़ आया और वह खंजर निकालकर तेजसिंह पर झपटा, पर तेजसिंह वार बचा गए। महाराज को रामानंद पर और भी शक बैठ गया। उन्होंने उठकर रामानंद की कलाई जिसमें खंजर लिए था मजबूती से पकड़ ली और एक घूंसा उसके मुंह पर दिया। ताकतवर महाराज के हाथ का घूंसा खाते ही रामानंद का सिर घूम गया और वह जमीन पर बैठ गया। तेजसिंह ने जेब से बेहोशी की दवा निकाली और जबर्दस्ती रामानंद को सुंघा दी।

महा - क्यों इसे बेहोश क्यों कर दिया?

तेज - महाराज, गुस्से में आया हुआ और अपने को फंसा जान यह ऐयार न मालूम कैसी-कैसी बेहूदी बातें बकता, इसलिए इसे बेहोश कर दिया। कैदखाने में ले जाने के बाद फिर देखा जायगा।

महा - खैर यह भी अच्छा ही किया, अब मुझसे ताली लो और तहखाने में ले जाकर इसे दारोगा के सुपुर्द करो।

महाराज की बात सुन तेजसिंह घबराये और सोचने लगे कि अब बुरी हुई। महाराज से तहखाने की ताली लेकर कहां जाऊं मैं क्या जानूं तहखाना कहां है और दारोगा कौन है! बड़ी मुश्किल हुई! अगर जरा भी नाहीं-नुकर करता हूं तो उल्टी आंतें गले पड़ती हैं। आखिर कुछ सोच-विचारकर तेजसिंह ने कहा -

तेज - महाराज भी साथ चलें तो ठीक है।

महा - क्यों?

तेज - दारोगा साहब इस ऐयार को और मुझे देखकर घबरायेंगे और उन्हें न जाने क्या-क्या शक पैदा हो। यह पाजी अगर होश में आ जायेगा तो जरूर कुछ बात बनावेगा, आप रहेंगे तो दारोगा को किसी तरह का शक न होगा।

महा - (हंसकर) अच्छा चलो हम भी चलते हैं।

तेज - हां महाराज, फिर मुझे पीठ पर यह भारी लाश लादे ताला खोलने और बंद करने में भी मुश्किल होगी।

महाराज ने अपने कलमदान में से ताली निकाली और खिदमतगार से एक लालटेन मंगवाकर साथ ले ली। तेजसिंह ने रामानंद की गठरी बांध पीठ पर लादी। तेजसिंह को साथ लिए हुए महाराज अपने सोने वाले कमरे में गये और दीवार में जड़ी हुई एक अलमारी का ताला खोला। तेजसिंह ने देखा कि दीवार पोली है और उस जगह से नीचे उतरने का एक रास्ता है। रामानंद की गठरी लिए हुए महाराज के पीछे-पीछे तेजसिंह नीचे उतरे, एक दालान में पहुंचने के बाद छोटी-सी कोठरी में जाकर दरवाजा खोला और बहुत बड़ी बारहदरी में पहुंचे। तेजसिंह ने देखा कि बारहदरी के बीचोंबीच में छोटी-सी गद्दी लगाए एक बूढ़ा बैठा कुछ लिख रहा है जो महाराज को देखते ही उठ खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर सामने आया।

महा - दारोगा साहब, देखिए आज रामानंद ने दुश्मन के एक ऐयार को फांसा है, इसे अपनी हिफाजत में रखिए।

तेज - (पीठ से गठरी उतार और उसे खोलकर) लीजिए, इसे सम्हालिए, अब आप जानिए।

दारोगा - (ताज्जुब से) क्या यह दीवान साहब की सूरत बनाकर आया था

तेज - जी हां, इसने मुझी को फजूल समझा।

महा - (हंसकर) खैर चलो, अब दारोगा साहब इसका बंदोबस्त कर लेंगे।

तेज - महाराज, यदि आज्ञा हो तो मैं ठहर जाऊं और इस नालायक को होश में लाकर अपने मतलब की बातों का कुछ पता लगाऊं, सरकार को भी अटकने के लिए मैं कहता परंतु दरबार का समय बिल्कुल निकल जाने और दरबार न करने से रियाया के दिल में तरह-तरह के शक पैदा होंगे और आजकल ऐसा न होना चाहिए।

महा - तुम ठीक कहते हो, अच्छा मैं जाता हूं, अपनी ताली साथ लिए जाता हूं और ताला बंद करता जाता हूं, तुम दूसरी राह से दारोगा के साथ आना। (दारोगा की तरफ देखकर) आप भी आइएगा और अपना रोजनामचा लेते आइएगा।

तेजसिंह को उसी जगह छोड़ महाराज चले गए। रामानंद रूपी तेजसिंह को लिए दारोगा साहब अपनी गद्दी पर आये और अपनी जगह तेजसिंह को बैठाकर आप नीचे बैठे। तेजसिंह ने आधे घंटे तक दारोगा को अपनी बातों में खूब ही उलझाया इसके बाद यह कहते हुए उठे, ''अच्छा अब इस ऐयार को होश में लाकर मालूम करना चाहिए कि यह कौन है'' और ऐयार के पास आए। अपनी जेब में हाथ डाल लखलखे की डिबिया खोजने लगे, आखिर बोले, ''ओफओह, लखलखे की डिबिया तो दीवानखाने में ही भूल आये, अब क्या किया जाय।'

दारोगा - मेरे पास लखलखे की डिबिया है, हुक्म हो तो लाऊं

तेज - लाइए मगर आपके लखलखे से यह होश में न आयेगा क्योंकि जो बेहोशी की दवा इसे दी गई वह मैंने नये ढंग से बनाई है और उसके लिए लखलखे का नुस्खा भी दूसरा है, खैर लाइये तो सही शायद काम चल जाय।

''बहुत अच्छा'' कहकर दारोगा साहब लखलखा लेने चले गये, इधर निराला पाकर तेजसिंह ने दूसरी डिबिया जेब से निकाली जिसमें लाल रंग की कोई बुकनी थी, एक चुटकी रामानंद के नाक में सांस के साथ चढ़ा दी और निश्चिंत होकर बैठे। अब सिवा तेजसिंह के दूसरे का बनाया लखलखा उसे कब होश में ला सकता है, हां दो-एक रोज तक पड़े रहने पर वह आप से आप चाहे भले ही होश में आ जाए।

दमभर में दारोगा साहब लखलखे की डिबिया ले आ पहुंचे, तेजसिंह ने कहा, ''बस आप ही सुंघाइये और देखिये इस लखलखे से कुछ काम निकलता है या नहीं।''

दारोगा साहब ने लखलखे की डिबिया बेहोश रामानंद के नाक से लगाई पर क्या असर होना था, लाचार तेजसिंह का मुंह देखने लगे।

तेज - क्यों व्यर्थ मेहनत करते हैं, मैं पहले ही कह चुका हूं कि लखलखे से काम नहीं चलेगा। चलिये महाराज के पास चलें, इसे यों ही रहने दीजिये, अपना लखलखा लेकर फिर लौटेंगे तो काम चलेगा।

दारोगा - जैसी मर्जी, इस लखलखे से तो काम नहीं चलता।

दारोगा साहब ने रोजनामचे की किताब बगल में दाबी और तालियों का झब्बा और लालटेन हाथ में लेकर रवाना हुए। एक कोठरी में घुसकर दारोगा साहब ने दूसरा दरवाजा खोला, ऊपर चढ़ने के लिए सीढ़ियां नजर आईं। ये दोनों ऊपर चढ़ गये और दो-तीन कोठरियों से घुसते हुए एक सुरंग में पहुंचे। दूर तक चले जाने के बाद इनका सिर छत से अड़ा। दारोगा ने एक सुराख में ताली लगाई और खटका दबाया, एक पत्थर का टुकड़ा अलग हो गया और ये दोनों बाहर निकले। यहां तेजसिंह ने अपने को एक कब्रिस्तान में पाया।

इस संतति के तीसरे भाग के चौदहवें बयान में हम इस कब्रिस्तान का हाल लिख चुके हैं। इसी राह से कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह उस तहखाने में गये थे। इस समय हम जो हाल लिख रहे हैं वह कुंअर आनंदसिंह के तहखाने में जाने के पहले का है, सिलसिला मिलाने के लिए फिर पीछे की तरफ लौटना पड़ा। तहखाने के हर एक दरवाजे में पहले ताला लगा रहता था मगर जब से तेजसिंह ने इसे अपने कब्जे में कर लिया (जिसका हाल आगे चलकर मालूम होगा) तब से ताला लगाना बंद हो गया, केवल खटकों पर ही कार्रवाई रह गई।

तेजसिंह ने चारों तरफ निगाह दौड़ाकर देखा और मालूम किया कि इस जंगल में जासूसी करते हुए कई दफे आ चुके हैं और इस कब्रिस्तान में भी पहुंच चुके हैं मगर जानते नहीं थे कि यह कब्रिस्तान क्या है और किस मतलब से बना हुआ है। अब तेजसिंह ने सोच लिया कि हमारा काम चल गया, दारोगा साहब को इसी जगह फंसाना चाहिए जाने न पावें।

तेज - दारोगा साहब, हकीकत में तुम बड़े ही जूतीखोर हो।

दारोगा - (ताज्जुब से तेजसिंह का मुंह देख के) मैंने क्या कसूर किया है जो आप गाली दे रहे हैं ऐसा तो कभी नहीं हुआ था!

तेज - फिर मेरे सामने गुर्राता है! कान पकड़ के उखाड़ लूंगा!

दारोगा - आज तक महाराज ने भी कभी मेरी ऐसी बेइज्जती नहीं की थी।

तेजसिंह ने दारोगा को एक लात ऐसी मारी कि बेचारा धम्म से जमीन पर गिर पड़ा। तेजसिंह उसकी छाती पर चढ़ बैठे और बेहोशी की दवा जबर्दस्ती नाक में ठूंस दी। बेचारा दारोगा बेहोश हो गया। तेजसिंह ने दारोगा की कमर से और अपनी कमर से भी चादर खोली और उसी में दारोगा की गठरी बांध ताली का गुच्छा और रोजनामचे की किताब भी उसी में रख पीठ पर लाद तेजी के साथ अपने लश्कर की तरफ रवाना हुए तथा दोपहर दिन चढ़ते-चढ़ते राजा वीरेंद्रसिंह के खेमे में जा पहुंचे। पहले तो रामानंद की सूरत देख वीरेंद्रसिंह चौंके मगर जब बंधे हुए इशारे से तेजसिंह ने अपने को जाहिर किया तो वे बहुत ही खुश हुए। 

96
रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
0.0
इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
1

चंद्रकांता संतति भाग -1

11 जून 2022
1
0
0

नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनन

2

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

3

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

4

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

5

भाग 5

11 जून 2022
1
0
0

पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

6

भाग 6

11 जून 2022
1
0
0

बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

7

भाग 7

11 जून 2022
1
0
0

अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं

8

भाग 8

11 जून 2022
1
0
0

अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो

9

भाग 9

11 जून 2022
1
0
0

भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ रात आते-आते लौट आये और उसी समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज किया कि आज शिकार खेलने के लिए कुमार जंगल में गये थे, एक बनैले सूअर के प

10

भाग 10

11 जून 2022
1
0
0

अब हम अपने पाठकों को फिर उसी खोह में ले चलते हैं जिसमें कुंअर आनंदसिंह को बेहोश छोड़ आये हैं अथवा जिस खोह में जान बचाने वाले सिपाही के साथ पहुंचकर उन्होंने एक औरत को छुरे से लाश काटते देखा था और योगिन

11

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिय

12

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां

13

भाग 13

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन खा-पीकर निश्चिंत होने के बाद दोपहर को जब दोनों एकांत में बैठे तो इंद्रजीतसिंह ने माधवी से कहा - ''अब मुझसे सब्र नहीं हो सकता, आज तुम्हारा ठीक-ठीक हाल सुने बिना कभी न मानूंगा और इससे बढ़कर न

14

भाग 14

11 जून 2022
0
0
0

इंद्रजीतसिंह ने दूसरे दिन पुनः नियत समय पर माधवी को जाने न दिया, आधी रात तक हंसी-दिल्लगी ही में काटी, इसके बाद दोनों अपने-अपने पलंग पर सो रहे। कुमार को तो खुटका लगा ही हुआ था कि आज वह काली औरत आवेगी इ

15

भाग 15

11 जून 2022
0
0
0

अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

16

चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

11 जून 2022
0
0
0

घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

17

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

18

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

19

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

20

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

21

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

22

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

23

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

24

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

25

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

26

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

27

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

28

भाग 13

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

29

भाग 14

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

30

भाग 15

11 जून 2022
0
0
0

राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

31

भाग 16

11 जून 2022
0
0
0

भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

32

भाग 17

11 जून 2022
0
0
0

मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

33

चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

11 जून 2022
0
0
0

पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

34

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

35

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

36

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

37

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

38

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

39

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

40

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

41

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

42

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

43

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

44

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

45

भाग 13

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

46

भाग 14

11 जून 2022
0
0
0

रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

47

चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

11 जून 2022
0
0
0

अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

48

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

49

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

50

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

51

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

52

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

53

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

54

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

55

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

56

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

57

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

58

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

59

चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

11 जून 2022
0
0
0

बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

60

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

61

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

62

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

63

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

64

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

65

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

66

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

67

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

68

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

69

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

70

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

71

भाग 13

11 जून 2022
1
0
0

तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

72

चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

11 जून 2022
1
0
0

वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

73

भाग 2

11 जून 2022
1
0
0

इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

74

भाग 3

11 जून 2022
1
0
0

अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

75

भाग 4

11 जून 2022
1
0
0

अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

76

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

77

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

78

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

79

चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

11 जून 2022
0
0
0

नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

80

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

81

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

82

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

83

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

84

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

85

चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

11 जून 2022
1
0
0

मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

86

भाग 2

11 जून 2022
1
0
0

कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

87

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

88

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

89

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

90

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

91

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

92

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

93

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

94

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

95

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

96

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए