shabd-logo

भाग 12

11 जून 2022

14 बार देखा गया 14

अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां एक जरूरी बात लिख देने की इच्छा होती है जिसके जानने से आगे चलकर आपको कुछ ज्यादे आनंद मिलेगा।

इस जगह बहुत-सी अद्भुत बातों को पढ़कर आप ऐसा न समझ लें कि यह तिलिस्म है और इसमें ऐसी बातें हुआ ही करती हैं, बल्कि उसे दुरुस्त और होने वाली समझकर खूब गौर करें क्योंकि अभी यह पहला ही भाग है। इस संतति के चार भागों में तो हम तिलिस्म का नाम भी न लेंगे, आगे चलकर देखा जायगा।

आप ध्यान कर लें कि एक अच्छे रमणीक स्थान में पहुंचकर सैर कर रहे हैं। यह जमीन भी लगभग हजार गज के चौड़ी और इतनी ही लंबी होगी, चारों तरफ की चार खूबसूरत पहाड़ियों से घिरी हुई है। बीच की सब्जी और गुलबूटों की बहार देखने ही लायक है। इस कुदरती बगीचे में जंगली फूलों के पेड़ ज्यादे दिखाई देते हैं, उन्हीं में मिले-जुले गुलाबों के पौधे भी बेशुमार हैं और कोई भी ऐसा नहीं जिसमें सुंदर कलियां और फूल न दिखाई देते हों। बीच में बड़े-बड़े तीन झरने भी खूबसूरती से बह रहे हैं। बरसात का मौसम है, चारों तरफ से पहाड़ों पर से गिरता हुआ जल इन झरनों में जोश मार रहा है। पूरब तरफ पहाड़ी के नीचे पहुंचकर ये तीनों झरने एक हो गए हैं और अंदाज से ज्यादे आया हुआ जल गड्ढे में गिरकर न मालूम कहां निकल जाता है। यहां की आबोहवा ऐसी उत्तम है कि अगर वर्षों का बीमार भी आवे तो दो दिन में तंदुरुस्त हो जाय और यहां की सैर से कभी जी न घबड़ाए।

बीचोंबीच में एक आलीशान इमारत बनी हुई है, मगर चाहे उसमें हर तरह की सफाई क्यों न हो फिर भी किसी पुराने जमाने की मालूम होती है। उसी इमारत के सामने एक छोटी-सी खूबसूरत बावली बनी हुई है जिसके चारों तरफ की जमीन कुछ ज्यादा खूबसूरत मालूम पड़ती है और फूल-पत्ते भी मौके से लगाए हुए हैं।

यह इमारत सुनसान और उदास नहीं है, इसमें पंद्रह-बीस नौजवान खूबसूरत औरतों का डेरा है। देखिए इस शाम के सुहावने समय में वे सब घर से निकलकर चारों तरफ मैदान में घूम-घूमकर जिंदगी का मजा ले रही हैं। सभी खुश, सभी की मस्तानी चाल, सभी फूलों को तोड़-तोड़कर आपस में गेंदबाजी कर रही हैं। हमारे नौजवान नायक कुंअर इंद्रजीतसिंह भी एक हसीन नाजनीन के हाथ में हाथ दिये बावली के पूरब की तरफ टहल रहे हैं, बात-बात में हंसी-दिल्लगी हो रही है, दीन-दुनिया की सुध भूले हुए हें।

लीजिए वे दोनों थककर बावली के किनारे एक खूबसूरत संगमर्मर की चट्टान पर बैठ गये और बातचीत होने लगी -

इंद्र - माधवी, मेरा शक किसी तरह नहीं जाता। क्या सचमुच तुम वही हो जो उस दिन गंगा किनारे जंगल में झूला झूल रही थीं

माधवी - आप रोज मुझसे यही सवाल करते हैं और मैं कसम खाकर इसका जवाब दे चुकी हूं, मगर अफसोस कि मेरी बात पर विश्वास नहीं करते।

इंद्र - (अंगूठी की तरफ देखकर) इस तस्वीर से कुछ फर्क मालूम होता है।

माधवी - यह दोष मुसव्वर1 का है।

इंद्र - खैर जो हो फिर भी तुमने मुझे अपने वश में कर रखा है।

माधवी - जी हां ठीक है, मुझसे मिलने का उद्योग तो आप ही ने किया था।

इंद्र - अगर मैं उद्योग न करता तो क्या तुम मुझे जबर्दस्ती ले आतीं

माधवी - खैर जाने दीजिए, मैं कबूल करती हूं कि आपने मेरे ऊपर अहसान किया, बस!

इंद्र - (हंसकर) बेशक तुम्हारे ऊपर अहसान किया कि दिल और जान तुम्हारे हवाले किये।

माधवी - (शर्माकर और सिर नीचा करके) बस रहने दीजिए, ज्यादा सफाई न दीजिए!

इंद्र - अच्छा इन बातों को छोड़ो और अपने वादे को याद करो आज कौन दिन है बस आज तुम्हारा पूरा हाल सुने बिना न मानूंगा चाहे जो हो, मगर देखो फिर उन भारी कसमों की याद दिलाता हूं जो मैं कई दफे तुम्हें दे चुका, मुझसे झूठ कभी न बोलना नहीं तो अफसोस करोगी।

माधवी - (कुछ देर तक सोचकर) अच्छा आज भर मुझे और माफ कीजिए, आपसे बढ़कर मैं दुनिया में किसी को नहीं समझती, आप ही की शपथ खाकर कहती हूं कि कल जो पूछेंगे सब ठीक-ठीक कह दूंगी, कुछ न छिपाऊंगी। (आसमान की तरफ देखकर) अब समय हो गया, मुझे दो घंटे की फुरसत दीजिए।

इंद्र - (लंबी सांस लेकर) खैर कल ही सही, जाओ मगर दो घंटे से ज्यादा न लगाना।

1. चित्रकार।

माधवी उठी और मकान के अंदर चली गई। उसके जाने के बाद इंद्रजीतसिंह अकेले रह गये और सोचने लगे कि यह माधवी कौन है इसका कोई बड़ा बुजुर्ग भी है या नहीं! यह अपना हाल क्यों छिपाती है! सुबह-शाम दो-दो तीन-तीन घंटे के लिए कहां और किससे मिलने जाती है इसमें तो कोई शक नहीं कि यह मुझसे मुहब्बत करती है मगर ताज्जुब है कि मुझे यहां क्यों कैद कर रखा है1 चाहे यह सरजमीन कैसी ही सुंदर और दिल लुभाने वाली क्यों न हो, फिर भी मेरी तबीयत यहां से उचाट हो रही है। क्या करें, कोई तरकीब नहीं सूझती, बाहर का कोई रास्ता नहीं दिखाई देता, यह तो मुमकिन ही नहीं कि पहाड़ चढ़कर कोई पार हो जाये, और यह भी दिल नहीं कबूल करता कि इसे किसी तरह रंज करूं और अपना मतलब निकालूं, क्योंकि मैं अपनी जान इस पर न्यौछावर कर चुका हूं।

ऐसी-ऐसी बहुत-सी बातों को सोचते इनका जी बेचैन हो गया, घबड़ाकर उठ खड़े हुए और इधर-उधर टहलकर दिल बहलाने लगे। चश्मे का जल निहायत साफ था, बीच की छोटी-छोटी खुशरंग कंकरियां और तेजी के साथ दौड़ती हुई मछलियां साफ दिखाई पड़ती थीं, इसी की कैफियत देखते किनारे-किनारे जाकर दूर निकल गए और वहां पहुंचे जहां तीनों चश्मों का संगम हो गया था और अंदाज से ज्यादा आया हुआ जल पहाड़ी के नीचे एक गड्ढे में गिर रहा था।

एक बारीक आवाज इनके कान में आई। सिर उठाकर पहाड़ की तरफ देखने लगे। ऊपर पंद्रह-बीस गज की दूरी पर एक औरत दिखाई पड़ी जिसे अब तक इन्होंने इस हाते के अंदर कभी नहीं देखा था। उस औरत ने हाथ के इशारे से ठहरने के लिए कहा तथा ढोकों की आड़ में जहां तक बन पड़ा अपने को छिपाती हुई नीचे उतर आयी और आड़ देकर इंद्रजीतसिंह के पास इस तरह खड़ी हो गयी जिससे उन नौजवान छोकरियों में से कोई इसे देखने न पावे जो यहां की रहने वालियां चारों तरफ घूमकर चुहलबाजी में दिल बहला रही हैं और जिनका कुछ हाल हम ऊपर लिख आये हैं।

उस औरत ने एक लपेटा हुआ कागज इंद्रजीतसिंह के हाथ में दिया। इन्होंने कुछ पूछना चाहा मगर उसने यह कहकर कुमार का मुंह बंद कर दिया कि ''बस जो कुछ है इसी चीठी से आपको मालूम हो जायगा, मैं जुबानी कुछ कहा नहीं चाहती और न यहां ठहरने का मौका है, क्योंकि कोई देख लेगा तो हम-आप दोनों ऐसी आफत में फंस जायेंगे कि जिससे छुटकारा मुश्किल होगा। मैं उसी की लौंडी हूं जिसने यह चीठी आपके पास भेजी है।''

उसकी बात का इंद्रजीतसिंह क्या जवाब देंगे इसका इंतजार न करके वह औरत पहाड़ी पर चढ़ गई और चालीस-पचास हाथ जा एक गड्ढे में घुसकर न मालूम कहां लोप हो गई। इंद्रजीतसिंह ताज्जुब में आकर खड़े आधी घड़ी तक उस तरफ देखते रहे मगर फिर वह नजर न आई। लाचार इन्होंने कागज खोला और बड़े गौर से पढ़ने लगे, यह लिखा था :

''हाय, मैंने तस्वीर बनकर अपने को आपके हाथ में सौंपा, मगर आपने मेरी कुछ भी खबर न ली, बल्कि एक दूसरी ही औरत के फंदे में फंस गये जिसने मेरी सूरत बना आपको पूरा धोखा दिया। सच है, वह परीजमाल जब आपके बगल में बैठी है तो फिर मेरी सुध क्यों आने लगी!

आपको मेरी ही कसम है, पढ़ने के बाद इस चीठी के इतने टुकड़े कर डालिये कि एक अक्षर भी दुरुस्त न बचने पावे।

आपकी दासी - किशोरी।''

इस चीठी के पढ़ते ही कुमार के कलेजे में एक धड़कन-सी पैदा हुई। घबराकर एक चट्टान पर बैठ गये और सोचने लगे - ''मैंने पहले ही कहा था कि इस तस्वीर से उसकी सूरत नहीं मिलती। चाहे यह कितनी ही हसीन और खूबसूरत क्यों न हो मगर मैंने तो अपने को उसी के हाथ बेच डाला है जिसकी तस्वीर खुशकिस्मती से अब तक मेरे हाथ में मौजूद है। तब क्या करना चाहिए यकायक इससे तमाशा करना भी मुनासिब नहीं। अगर यह इसी जगह मुझे छोड़कर चली जाय और अपनी सहेलियों को भी लेती जाय तो मैं क्या करूंगा घबड़ाकर सिवाय प्राण दे देने के और क्या कर सकता हूं, क्योंकि यहां से निकलने का रास्ता मालूम नहीं। यह भी नहीं हो सकता कि इन दोनों पहाड़ियों पर चढ़कर पार हो जाऊं, क्योंकि सिवाय ऊंची सीधी चट्टान के चढ़ने लायक रास्ता कहीं भी नहीं मालूम पड़ता। खैर जो हो, आज मैं जरूर उसके दिल में कुछ खुटका पैदा करूंगा। नहीं-नहीं, आज भर और चुप रहना चाहिए, कल उसने अपना हाल कहने का वादा किया ही है, आखिर कुछ-न-कुछ झूठ जरूर कहेगी, बस उसी समय टोकूंगा। एक बात और है। (कुछ रुककर) अच्छा देखा जायेगा। यह औरत जो मुझे चीठी दे गई है यहां किस तरह पहुंची (पहाड़ी की तरफ देखकर) जितनी दूर ऊंचे उसे मैंने देखा था वहां तक तो चढ़ जाने का रास्ता मालूम होता है, शायद इतनी दूर तक लोगों की आमदरफ्त होती होगी। खैर ऊपर चलकर देखूं तो सही कि बाहर निकल जाने के लिए कोई सुरंग तो नहीं है।''

इंद्रजीतसिंह उस पहाड़ी पर वहां तक चढ़ गये जहां वह औरत नजर पड़ी थी। ढूंढ़ने से एक सुरंग ऐसी नजर आई जिसमें आदमी बखूबी घुस सकता था। उन्हें विश्वास हो गया कि इसी राह से वह आई थी और बेशक हम भी इसी राह से बाहर हो जायेंगे। खुशी-खुशी उस सुरंग में घुसे। दस-बारह कदम अंधेरे में गये होंगे कि पैर के नीचे जल मालूम पड़ा। ज्यों-ज्यों आगे जाते थे जल ज्यादे जान पड़ता था, मगर यह भी हौसला किये बराबर चले ही गये। जब गले बराबर जल में जा पहुंचे और मालूम हुआ कि आगे ऊपर चट्टान जल के साथ मिली हुई है, तैरकर भी कोई नहीं जा सकता और रास्ता बिल्कुल नीचे की तरफ झुकता अर्थात ढलवां ही मिलता जाता है तो लाचार होकर लौट आए मगर इन्हें विश्वास हो गया कि वह औरत जरूर इसी राह से आई थी क्योंकि उसे गीले कपड़े पहिरे इन्होंने देखा भी था।

वे औरतें जो पहाड़ी के बीच वाले दिलचस्प मैदान में घूम रही थीं इंद्रजीतसिंह को कहीं न देख घबरा गईं और दौड़ती हुई उस हवेली के अंदर पहुंचीं जिसका जिक्र हम ऊपर कर आये हैं। तमाम मकान छान डाला, जब पता न लगा तो उन्हीं में से एक बोली, ''बस अब सुरंग के पास चलना चाहिए जरूर उसी जगह होंगे।'' आखिर वे सब औरतें वहां जा पहुंची जहां सुरंग के बाहर निकलकर गीले कपड़े पहिरे इंद्रजीतसिंह खड़े कुछ सोच रहे थे।

इंद्रजीतसिंह को सोच - विचार करते और सुरंग में आते - जाते दो घंटे लग गये। रात हो गई थी, चंद्रमा पहले ही से निकले हुए थे जिसकी चांदनी ने दिलचस्प जमीन में फैलकर अजीब समां जमा रखा था। दो घंटे बीत जाने पर माधवी भी लौट आयी थी मगर उस मकान में या उसके चारों तरफ अपनी किसी लौंडी या सहेली को न देख घबरा गई और उस समय तो उसका कलेजा और भी दहलने लगा जब उसने देखा कि अभी तक घर में चिराग तक नहीं जला। उसने भी इधर-उधर ढूंढ़ना नापसंद किया और सीधे उसी सुरंग के पास पहुंची। अपनी सब सखियों और लौंडियों को भी वहां पाया और यह भी देखा कि इंद्रजीतसिंह गीले कपड़े पहिरे सुरंग के मुहाने से नीचे की तरफ आ रहे हैं।

क्रोध से भरी माधवी ने अपनी सखियों की तरफ देखकर धीरे से कहा, ''लानत है तुम लोगों की गफलत पर! इसलिए तुम हरामखोरिनों को मैंने यहां रखा था!'' गुस्सा ज्यादा चढ़ आया था और होंठ कांप रहे थे इससे कुछ और ज्यादे न कह सकी, फिर भी इंद्रजीतसिंह के नीचे आने तक बड़ी कोशिश से माधवी ने अपने गुस्से को पचाया और बनावटी तौर पर हंसकर इंद्रजीतसिंह से पूछा, ''क्या आप उस नहर के अंदर गये थे'

इंद्र - हां।

माधवी - भला यह कौन-सी नादानी थी! न मालूम इसके अंदर कितने कीड़े-मकोड़े और बिच्छू होंगे। हम लोगों को तो डर के मारे कभी यहां खड़े होने का भी हौसला नहीं पड़ता।

इंद्र - घूमते-फिरते चश्मे का तमाशा देखते यहां तक आ पहुंचे, जी में आया कि देखें यह गुफा कितनी दूर तक चली गई है। जब अंदर गया तो पानी में भीगकर लौटना पड़ा।

माधवी - खैर चलिए कपड़े बदलिए।

कुंअर इंद्रजीतसिंह का खयाल और भी मजबूत हो गया। वह सोचने लगे कि इस सुरंग में जरूर कोई भेद है, तभी तो ये सब घबड़ाई हुई यहां आ जमा हुईं।

इंद्रजीतसिंह आज तमाम रात सोच-विचार में पड़े रहे। इनके रंग-ढंग से माधवी का भी माथा ठनका और वह भी रात-भर चारों तरफ दौड़ती रही। 

96
रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
0.0
इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
1

चंद्रकांता संतति भाग -1

11 जून 2022
1
0
0

नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनन

2

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

3

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

4

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

5

भाग 5

11 जून 2022
1
0
0

पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

6

भाग 6

11 जून 2022
1
0
0

बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

7

भाग 7

11 जून 2022
1
0
0

अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं

8

भाग 8

11 जून 2022
1
0
0

अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो

9

भाग 9

11 जून 2022
1
0
0

भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ रात आते-आते लौट आये और उसी समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज किया कि आज शिकार खेलने के लिए कुमार जंगल में गये थे, एक बनैले सूअर के प

10

भाग 10

11 जून 2022
1
0
0

अब हम अपने पाठकों को फिर उसी खोह में ले चलते हैं जिसमें कुंअर आनंदसिंह को बेहोश छोड़ आये हैं अथवा जिस खोह में जान बचाने वाले सिपाही के साथ पहुंचकर उन्होंने एक औरत को छुरे से लाश काटते देखा था और योगिन

11

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिय

12

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां

13

भाग 13

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन खा-पीकर निश्चिंत होने के बाद दोपहर को जब दोनों एकांत में बैठे तो इंद्रजीतसिंह ने माधवी से कहा - ''अब मुझसे सब्र नहीं हो सकता, आज तुम्हारा ठीक-ठीक हाल सुने बिना कभी न मानूंगा और इससे बढ़कर न

14

भाग 14

11 जून 2022
0
0
0

इंद्रजीतसिंह ने दूसरे दिन पुनः नियत समय पर माधवी को जाने न दिया, आधी रात तक हंसी-दिल्लगी ही में काटी, इसके बाद दोनों अपने-अपने पलंग पर सो रहे। कुमार को तो खुटका लगा ही हुआ था कि आज वह काली औरत आवेगी इ

15

भाग 15

11 जून 2022
0
0
0

अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

16

चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

11 जून 2022
0
0
0

घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

17

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

18

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

19

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

20

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

21

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

22

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

23

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

24

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

25

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

26

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

27

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

28

भाग 13

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

29

भाग 14

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

30

भाग 15

11 जून 2022
0
0
0

राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

31

भाग 16

11 जून 2022
0
0
0

भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

32

भाग 17

11 जून 2022
0
0
0

मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

33

चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

11 जून 2022
0
0
0

पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

34

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

35

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

36

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

37

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

38

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

39

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

40

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

41

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

42

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

43

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

44

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

45

भाग 13

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

46

भाग 14

11 जून 2022
0
0
0

रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

47

चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

11 जून 2022
0
0
0

अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

48

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

49

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

50

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

51

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

52

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

53

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

54

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

55

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

56

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

57

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

58

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

59

चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

11 जून 2022
0
0
0

बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

60

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

61

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

62

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

63

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

64

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

65

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

66

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

67

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

68

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

69

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

70

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

71

भाग 13

11 जून 2022
1
0
0

तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

72

चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

11 जून 2022
1
0
0

वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

73

भाग 2

11 जून 2022
1
0
0

इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

74

भाग 3

11 जून 2022
1
0
0

अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

75

भाग 4

11 जून 2022
1
0
0

अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

76

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

77

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

78

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

79

चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

11 जून 2022
0
0
0

नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

80

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

81

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

82

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

83

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

84

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

85

चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

11 जून 2022
1
0
0

मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

86

भाग 2

11 जून 2022
1
0
0

कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

87

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

88

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

89

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

90

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

91

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

92

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

93

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

94

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

95

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

96

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

---

किताब पढ़िए