आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि इन दोनों को इसी समय किसी खास जगह पर पहुंचने या किसी से मिलने की ज्यादे जरूरत है। हमारे पाठक इन दोनों औरतों को बखूबी पहचानते हैं इसलिए इनकी सूरत-शक्ल के बारे में कुछ लिखने की जरूरत नहीं, क्योंकि इन दोनों में से एक तो किन्नरी है और दूसरी कमला।
किन्नरी - कमला, देखो किस्मत का हेर-फेर इसे कहते हैं। एक हिसाब से गयाजी में हम लोग अपना काम पूरा कर चुके थे मगर अफसोस!
कमला - जहां तक हो सका तुमने किशोरी की मदद जी-जान से की, बेशक किशोरी जन्म-भर याद रखेगी और तुम्हें तो अपनी बहन मानेगी। खैर कोई चिंता नहीं, हम लोगों को हिम्मत न हारनी चाहिए और न किसी समय ईश्वर को भूलना चाहिए। मुझे घड़ी-घड़ी बेचारे आनंदसिंह की याद आती है। तुम पर उनकी सच्ची मुहब्बत है मगर तुम्हारा कुछ हाल न जानने से न मालूम उनके दिल में क्या-क्या बातें होंगी, हां अगर वे जानते कि जिसको उनका दिल प्यार करता है वह फलानी है तो बेशक वे खुश होते।
किन्नरी - (ऊंची सांस लेकर) जो ईश्वर की मर्जी!!
कमला - देखो वह उस पुराने मकान की दीवार दिखाई देने लगी।
किन्नरी - हां ठीक है, अब आ पहुंचे।
इतने ही में वे दोनों एक ऐसे टूटे-फूटे मकान के पास पहुंचीं जिसकी चौड़ी-चौड़ी दीवारें और बड़े-बड़े फाटक कहे देते थे कि किसी जमाने में यह इज्जत रखता होगा। चाहे इस समय यह इमारत कैसी ही खराब हालत में क्यों न हो तो भी इसमें छोटी-छोटी कोठरियों के अलावे कई बड़े दालान और कमरे अभी तक मौजूद हैं।
ये दोनों उस मकान के अंदर चली गईं। बीच में चूने-मिट्टी-ईंटों का ढेर लगा हुआ था जिसके बगल में घूमती हुई दोनों एक दालान में पहुंचीं। इस दालान में एक तरफ एक कोठरी थी जिसमें जाकर कमला ने मोमबत्ती जलाई और चारों तरफ देखने लगी। बगल में एक अलमारी दीवार के साथ जुड़ी हुई थी जिसमें पल्ला खींचने के लिए दो मुट्ठे लगे थे। कमला ने बत्ती किन्नरी के हाथ में देकर दोनों हाथों से दोनों मुट्ठों को तीन-चार दफे घुमाया, तुरंत पल्ला खुल गया और भीतर एक छोटी-सी कोठरी नजर आई। दोनों उस कोठरी के अंदर चली गईं और उन पल्लों को फिर बंद कर लिया। उन पल्लों में भीतर की तरफ भी उसी तरह खोलने और बंद करने के लिए दो मुट्ठे लगे हुए थे।
इस कोठरी में तहखाना था जिसमें उतर जाने के लिए छोटी-छोटी सीढ़ियां बनी हुई थीं। वे दोनों नीचे उतर गईं और वहां एक आदमी को बैठे देखा जिसके सामने मोमबत्ती जल रही थी और वह कुछ लिख रहा था।
इस आदमी की उम्र लगभग साठ वर्ष के होगी। सिर और मूंछों के बाल आधे से ज्यादे सफेद हो रहे थे, तो भी उसके बदन में किसी तरह की कमजोरी नहीं मालूम होती थी। उसके हाथ-पैर गठीले और मजबूत थे तथा चौड़ी छाती उसकी बहादुरी को जाहिर कर रही थी। चाहे उसका रंग सांवला क्यों न हो मगर चेहरा खूबसूरत और रोबीला था। बड़ी-बड़ी आंखों में जवानी की चमक मौजूद थी, चुस्त मिर्जई उसके बदन पर बहुत भली मालूम होती थी, सिर नंगा था मगर पास ही जमीन पर एक सफेद मुंड़ासा रखा हुआ था जिसके देखने से मालूम होता था कि गरमी मालूम होने पर उसने उतारकर रख दिया है। उसके बायें हाथ में पंखा था जिसके जरिये वह गरमी दूर कर रहा था मगर अभी तक पसीने की नमी बदन में मालूम होती थी।
एक तरफ ठीकरे में थोड़ी-सी आग थी जिसमें कोई खुशबहार चीज जल रही थी जिससे वह तहखाना अच्छी तरह सुगंधित हो रहा था। कमला और किन्नरी के पैर की आहट पा वह पहले ही से सीढ़ियों की तरफ ध्यान लगाये था, और इन दोनों को देखते ही उसने कहा, ''तुम दोनों आ गईं'
कमला - जी हां।
आदमी - (किन्नरी की तरफ इशारा करके) इन्हीं का नाम कामिनी है
कमला - जी हां।
आदमी - कामिनी! आओ बेटी, तुम मेरे पास बैठो। मैं जिस तरह कमला को समझता हूं उसी तरह तुम्हें भी मानता हूं।
कामिनी - बेशक कमला की तरह मैं भी आपको अपना सगा चाचा मानती हूं।
आदमी - तुम किसी तरह की चिंता मत करो। जहां तक होगा मैं तुम्हारी मदद करूंगा। (कमला की तरफ देखकर ) तुझे कुछ रोहतासगढ़ की खबर भी मालूम है?
कमला - कल मैं वहां गई थी मगर अच्छी तरह मालूम न कर सकी। आपसे यहां मिलने का वादा किया था इसलिए जल्दी लौट आई।
आदमी - अभी पहर भर हुआ मैं खुद रोहतासगढ़ से चला आता हूं।
कमला - तो बेशक आपको बहुत कुछ हाल वहां का मिला होगा।
आदमी - मुझसे ज्यादे वहां का हाल कोई नहीं मालूम कर सकता। पच्चीस वर्ष तक ईमानदारी और नेकनामी के साथ वहां के राजा की नौकरी कर चुका हूं। चाहे आज दिग्विजयसिंह हमारे दुश्मन हो गये हैं। फिर भी मैं कोई काम ऐसा न करूंगा जिससे उस राज्य का नुकसान हो, हां तुम्हारे सबब से किशोरी की मदद जरूर करूंगा।
कमला - दिग्विजयसिंह नाहक ही आपसे रंज हो गये।
आदमी - नहीं, नहीं, उन्होंने अनर्थ नहीं किया। जब वे किशोरी को जबर्दस्ती अपने यहां रखा चाहते हैं और जानते हैं कि शेरसिंह ऐयार की भतीजी कमला किशोरी के यहां नौकर है और ऐयारी के फन में तेज है, वह किशोरी के छुड़ाने के लिए दाव-घात करेगी, तो उन्हें मुझसे परहेज करना बहुत मुनासिब था चाहे मैं कैसा ही खैरख्वाह और नेक क्यों न समझा जाऊं। उन्होंने कैद करने का इरादा बेजा नहीं किया। हाय! एक वह जमाना था कि रणधीरसिंह (किशोरी का नाना) और दिग्विजयसिंह में दोस्ती थी, मैं दिग्विजय के यहां नौकर था और मेरा छोटा भाई तुम्हारा बाप (ईश्वर उसे बैकुण्ठ दे) रणधीरसिंह के यहां रहता था। आज देखा कितना उलट-फेर हो गया है। मैं बेकसूर कैद होने के डर से भाग तो आया मगर लोग जरूर कहेंगे कि शेरसिंह ने धोखा दिया।
कमला - जब आप दिल से रोहतासगढ़ की बुराई नहीं करते तो लोगों के कहने से क्या होता है, वे लोग आपकी बुराई क्योंकर दिखा सकते हैं।
शेर - हां ठीक है खैर इन बातों को जाने दो, हां कुंदन बेचारी को लाली ने खूब ही छकाया, अगर मैं लाली का एक भेद न जानता होता और कुंदन को न कह देता तो लाली कुंदन को जरूर बर्बाद कर देती। कुंदन ने भी भूल की, अगर वह अपना सच्चा हाल लाली को कह देती तो बेशक दोनों में दोस्ती हो जाती।
कमला - कुछ कुंअर इंद्रजीतसिंह का भी हाल मालूम हुआ?
शेर - हां मालूम है, उन्हें उसी चुड़ैल ने फंसा रखा है जो अजायबघर में रहती है।
कमला - कौन-सा अजायबघर?
शेर - वही जो तालाब के बीच में बना है और जिसे जड़बुनियाद से खोदकर फेंक देने का मैंने इरादा किया है, यहां से थोड़ी ही दूर तो है।
कमला - जी हां मालूम हुआ, उसके बारे में बड़ी-बड़ी विचित्र बातें सुनने में आती हैं।
शेर - बेशक वहां की सभी बातें ताज्जुब से भरी हैं। अफसोस, न मालूम कितने खूबसूरत नौजवान बेचारे बेदर्दी के साथ मारे गये होंगे!
इतने ही में छत के ऊपर किसी के पैर की आहट मालूम हुई। तीनों का ध्यान सीढ़ियों पर गया।
कमला - कोई आता है।
शेर - हमें तो यहां किसी के आने की उम्मीद न थी, जरा होशियार हो जाओ।
कमला - मैं होशियार हूं, देखिए वह आया!
एक लंबे कद का आदमी सीढ़ी से नीचे उतरा और शेरसिंह के सामने आकर खड़ा हो गया। उसकी उम्र चाहे जो भी हो मगर बदन की कमजोरी, दुबलेपन और चेहरे की उदासी ने उसे पचास वर्षों से भी ज्यादे उम्र का बना रखा था। उसके खूबसूरत चेहरे पर उदासी और रंज के निशान पाये जाते थे, बड़ी-बड़ी आंखों में आंसुओं की तरी साफ मालूम होती थी, उसकी हसरत भरी निगाहें उसके दिल की हालत दिखा रही थीं कि रंज, गम, फिक्र, तरद्दुद और नाउम्मीदी ने उसके बदन में खून और मांस का नाम नहीं छोड़ा केवल हड्डी ही बच गई हैं। उसके कपड़े भी बहुत पुराने और फटे हुए थे।
इस आदमी की सूरत से भलमनसी और सूधापन झलकता था मगर शेरसिंह उसकी सूरत देखते ही कांप गया। खौफ और ताज्जुब ने उसका गला दबा दिया। वह एकदम ऐसा घबड़ा गया जैसे कोई खूनी जल्लाद की सूरत देखकर घबड़ा जाता है। शेरसिंह ने उसकी तरफ देखकर कहा, ''अहा हा...आप...हैं! आइ...ए...!'' मगर ये शब्द घबराहट के मारे बिल्कुल ही उखड़े-पुखड़े शेरसिंह के मुंह से निकले।
उस आदमी ने कमला की तरफ इशारा करते हुए कहा, ''क्या यही लड़की?''
शेर - हां... आप... (कमला और कामिनी की तरफ देखकर) तुम दोनों जरा ऊपर चली जाओ, ये बड़े नेक आदमी हैं, मुझसे मिलने आये हैं, मैं इनसे कुछ बातें किया चाहता हूं।
कमला और कामिनी दोनों तहखाने से निकलकर ऊपर चली आईं। उस आदमी के आने और अपने चाचा को विचित्र अवस्था में देखने से कमला घबड़ा गई। उसके जी में तरह-तरह की बातें पैदा होने लगीं। ऐसे कमजोर, लाचार और गरीब आदमी को देखकर उसका ऐयारी के फन में बड़ा ही तेज और शेरदिल चाचा इस तरह क्यों घबड़ा गया और इतना क्यों डरा, वह इसी सोच में परेशान थी। बेचारी कामिनी भी हैरान और डरी हुई थी यहां तक कि घंटे भर बीत जाने पर भी उन दोनों में कोई बातचीत न हुई। घंटे भर बाद वह आदमी तहखाने से निकलकर ऊपर चला आया और कामिनी की तरफ देखकर बोला, ''अब तुम लोग नीचे जाओ, मैं जाता हूं।'' इतना कहता हुआ उसी तरह किवाड़ खोलकर चला गया जिस तरह कामिनी को साथ लिये हुए कमला इस मकान में आई थी।
कमला और कामिनी तहखाने के नीचे जा शेरसिंह के सामने बैठ गईं। शेरसिंह के चेहरे से अभी तक घबड़ाहट और परेशानी गई नहीं थी। बड़ी मुश्किल से थोड़ी देर में उसने होश-हवास दुरुस्त किये और कमला की तरफ देखकर कहा -
शेर - अच्छा अब हम लोगों को क्या करना चाहिए?
कमला - जो हुक्म हो सो किया जाय। यह आदमी कौन था जिसे देख आप...?
शेर - था एक आदमी, उसका हाल जानने का उद्योग न करो और न उसका खयाल ही करो बल्कि उसे बिल्कुल भूल जाओ।
उस आदमी के बारे में कमला बहुत कुछ जानना चाहती थी मगर अपने चाचा के मुंह से साफ जवाब पाकर दम न मार सकी और दिल की दिल में रखने पर लाचार हुई।
शेर - कमला, तू रोहतासगढ़ जा और दो-तीन दिन में लौटकर वहां का जो कुछ हाल हो मुझसे कह। किशोरी से मिलकर उसे ढाढ़स दीजियो और कहियो कि घबड़ाये नहीं। उसी रास्ते से किले के अंदर बल्कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती है चली जाइयो जिस राह का हाल मैंने तुमसे कहा था, उस राह से आना-जाना कभी किसी को मालूम न होगा।
कमला - बहुत अच्छा, मगर कामिनी के लिए क्या हुक्म होता है
शेर - मैं इसे ले जाता हूं, अपने एक दोस्त के सुपुर्द कर दूंगा। वहां यह बड़े आराम से रहेगी। जब सब तरफ से फसाद मिट जायगा मैं इसे ले आऊंगा, तब यह भी अपनी मुराद को पहुंच जायगी।
कमला - जो मर्जी!
तीनों आदमी तहखाने के बाहर निकले और जैसा ऊपर लिखा जा चुका है उसी तरह कोठरियों और दालानों में से होते हुए इस मकान के बाहर निकल आये।
शेर - कमला, ले अब तू जा और कामिनी की तरफ से बेफिक्र रह। मुझसे मिलने के लिए यह ठिकाना मुनासिब है।
कमला - अच्छा मैं जाती हूं मगर यह तो कह दीजिये कि उस आदमी से मुझे कहां तक होशियार रहना चाहिए जो आपसे मिलने आया था
शेर - (कड़ी आवाज में) एक दफे तो कह दिया कि उसका ध्यान भुला दे, उससे होशियार रहने की जरूरत नहीं और न वह तुझे कभी दिखाई देगा।