अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह के ऐयार लोग घुसे हैं या तहखाने का हाल किसी दूसरे को मालूम हो गया है, यह काम तभी हो सकता है जब कोई ताजा मुर्दा हाथ लगे।
रोहतासगढ़ से चलकर तेजसिंह अपने लश्कर में पहुंचे और सब हाल वीरेंद्रसिंह से कहने के बाद कई जासूसों को इस काम के लिए रवाना किया कि अगर कहीं कोई ताजा मुर्दा जो सड़ न गया हो या फूल न गया हो मिले तो उठा लावें और लश्कर के पास ही कहीं रखकर हमें इत्तिला दें। इत्तिफाक से लश्कर से दो-तीन कोस की दूरी पर नदी के किनारे एक लावारिस भिखमंगा उसी दिन मरा था जिसे जासूस लोग शाम होते-होते उठा लाये और लश्कर से कुछ दूर रख तेजसिंह को खबर की। भैरोसिंह को साथ लेकर तेजसिंह मुर्दे के पास गये और अपनी कार्रवाई करने लगे।
तेजसिंह ने उस मुर्दे को ठीक रामानंद की सूरत का बनाया और भैरोसिंह की मदद1 से उठाकर रोहतासगढ़ तहखाने के अंदर ले गये और तहखाने के दारोगा (ज्योतिषीजी) के सुपुर्द कर और उसके बारे में बहुत-सी बातें समझा-बुझाकर असली रामानंद को अपने लश्कर में उठा लाये।
तेजसिंह के जाने के बाद हमारे नए दारोगा साहब ने खंभे से बंधे हुए उस तार को खींचा जिसके सबब से दिग्विजयसिंह के दीवानखाने वाला घंटा बोलता था। उस समय दो घंटे रात जा चुकी थी, महाराज अपने कई मुसाहबों को साथ लिए दीवानखाने में बैठे दुश्मन पर फतह पाने के लिए बहुत-सी तरकीबें सोच रहे थे, यकायक घंटे की आवाज सुनकर चौंके और समझ गये कि तहखाने में हमारी जरूरत है। दिग्विजयसिंह उसी समय उठ खड़े हुए और उन जल्लादों को बुलाने का हुक्म दिया जो जरूरत पड़ने पर तहखाने में जाया करते थे और जान के खौफ या नमकहलाली के सबब से वहां का हाल किसी दूसरे से कभी नहीं कहते थे।
महाराज दूसरे कमरे में गए, जब तक कपड़े बदलकर तैयार हों जल्लाद लोग भी हाजिर हुए। ये जल्लाद बड़े ही मजबूत, ताकतवर और कद्दावर थे। स्याह रंग, मूंछें चढ़ी हुई, पोशाक में केवल जांघिया, मिर्जई और कंटोप पहिरे, हाथ में भारी तेगा लिए बड़े ही भयंकर मालूम होते थे। महाराज ने केवल चार जल्लादों को साथ लिया और उसी मालूमी रास्ते से तहखाने में उतर गए। महाराज को आते देख दारोगा चैतन्य हो गया और सामने हाथ जोड़कर बोला, ''लाचार महाराज को तकलीफ देनी पड़ी!''
1. मुर्दा अक्सर ऐंठ जाया करता है इसलिए गठरी में बांध नहीं सकते, लाचार हो दो आदमी मिलकर उठा ले गये।
महा - क्या मामला है
दारोगा - वह ऐयार मर गया जिसे दीवान रामानंदजी ने गिरफ्तार किया था।
महा - (चौंककर) हैं, मर गया!
दारोगा - जी हां, मर गया, न मालूम कैसी जहरीली बेहोशी दी गई थी कि जिसका असर यहां तक हुआ।
महा - यह बहुत ही बुरा हुआ, दुश्मन समझेगा कि दिग्विजयसिंह ने जान-बूझकर हमारे ऐयार को मार डाला जो कायदे के बाहर की बात है। दुश्मनों को अब हमसे जिद्द हो जायगी और वे भी कायदे के खिलाफ बेहोशी की जगह जहर का बर्ताव करने लगेंगे तो हमारा बड़ा नुकसान होगा और बहुत आदमी जान से मारे जायेंगे।
दारोगा - लाचारी है, फिर क्या किया जाय भूल तो दीवान साहब की है।
महा - (कुछ जोश में आकर) रामानंद तो पूरा उजड्ड है! झक मारने के लिए उसने अपने को ऐयार मशहूर कर रखा है, तभी तो वीरेंद्रसिंह का एक अदना ऐयार आया और उसे पकड़कर ले गया, चलो छुट्टी हुई!
महाराज की बातें सुनकर मन-ही-मन ज्योतिषीजी हंसते और कहते थे कि देखो कितना होशियार और बहादुर राजा क्या जरा-सी बात में बेवकूफ बना है। वाह रे तेजसिंह, तू जो चाहे कर सकता है।
महाराज ने रामानंद की लाश को खुद देखा और दूसरी जगह ले जाकर जमीन में गाड़ देने के लिए जल्लादों को हुक्म दिया। जल्लादों ने उसी तहखाने में एक जगह जहां मुर्दे गाड़े जाते थे ले जाकर उस लाश को दबा दिया, महाराज अफसोस करते हुए तहखाने के बाहर निकल आए और इस सोच में पड़े कि देखें वीरेंद्रसिंह के ऐयार लोग इसका क्या बदला लेते हैं।