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भाग 2

11 जून 2022

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इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन हो गया है। शिवदत्त के आदमियों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया और उसे निश्चय हो गया कि अब हम पुनः चुनार की गद्दी पावेंगे, और इसके साथ ही नौगढ़, विजयगढ़, गयाजी और रोहतासगढ़ की हुकूमत भी बिना परिश्रम हाथ लगेगी।

एक घने वटवृक्ष के नीचे अपने दोस्तों और ऐयारों को साथ लिये शिवदत्त गप्पें उड़ा रहा है। ऊपर एक सफेद चंदोवा तना हुआ है। बिछावन और गद्दी उसी प्रकार की है जैसी मामूली सरदार अथवा डाकुओं के भारी गिरोह के अफसर की होनी चाहिए। दो मशालची हाथ में मशालें लिए सामने खड़े हैं, और इधर-उधर कई जगह आग सुलग रही है। बाकरअली, खुदाबक्श, यारअली और अजायबसिंह ऐयार शिवदत्त के दोनों तरफ बैठे हैं, और सभी की निगाह उन शराब की बोतलों और प्यालों पर बराबर पड़ रही है जो शिवदत्त के सामने काठ की चौकी पर रखे हुए हैं। धीरे-धीरे शराब पीने के साथ-साथ सब कोई शेखी बघार रहे हैं। कोई अपनी बहादुरी की तारीफ कर रहा है, तो कोई वीरेन्द्रसिंह को सहज ही गिरफ्तार करने की तरकीब बता रहा है। शिवदत्त ने सिर उठाया और बाकरअली ऐयार की तरफ देखकर कुछ कहना चाहा, परन्तु उसी समय उसकी निगाह सामने मैदान की तरफ जा पड़ी, और वह चौंक उठा। ऐयारों ने भी पीछे फिरकर देखा और देर तक उसी तरफ देखते रहे।

दो मशालों की रोशनी, जो कुछ दूर पर थी, इसी तरफ आती दिखाई पड़ी। वे दोनों मशाल मामूली न थे, बल्कि मालूम होता था कि लम्बे नेजे या छोटे-से बांस के सिरे पर बहुत-सा कपड़ा लपेटकर मशाल का काम लिया गया है और उसे हाथ में लिए बल्कि ऊंचा किए हुए दो सवार घोड़ा दौड़ाते इसी तरफ आ रहे हैं। उन्हीं मशालों को देखकर शिवदत्त चौंका था।

बाकरअली ऐयार पेड़ के ऊपर चढ़ गया और थोड़ी देर में नीचे उतरकर बोला, ''मशाल लेकर केवल दो सवार ही नहीं हैं, बल्कि और भी कई सवार उनके साथ मालूम होते हैं।''

थोड़ी देर में शिवदत्त के कई आदमी उन सवारों को अपने साथ लिये हुए वहीं आ पहुंचे, जहां शिवदत्त बैठा हुआ था। उन सवारों में से एक ने घोड़े पर से उतरने में शीघ्रता की। शिवदत्त ने पहचान लिया कि उसका लड़का भीमसेन है। भीमसेन दौड़कर शिवदत्त के कदमों पर गिर पड़ा। शिवदत्त ने प्रेम के साथ उठाकर गले लगा लिया। दोनों की आंखों में आंसू भर आये और देर तक मुहब्बत-भरी निगाहों से एक-दूसरे को देखता रह गया। इसके बाद लड़के का हाथ थामे हुए शिवदत्त अपनी गद्दी पर जा बैठा, और भीमसेन से बातचीत करने लगा। उन सवारों ने भी कमर खोली जो भीमसेन के साथ आये थे।

भीमसेन - (गद्गद स्वर से) इन चरणों के दर्शन की कदापि आशा न थी।

शिवदत्त - ठीक है, केवल मेरी ही भूल ने यह सब किया, परन्तु आज मुझ पर ईश्वर की दया हुई है, जिसका सबूत इससे बढ़कर और क्या हो सकता है कि वीरेन्द्रसिंह को मैंने फांस लिया और मेरा प्यारा लड़का भी मुझसे आ मिला। हां, यह कहो, तुम्हें छुट्टी क्योंकर मिली

भीमसेन - (अपने साथियों में से एक की तरफ इशारा करके) केवल इनकी बदौलत मेरी जान बची।

भीमसेन ने उस आदमी को जिसकी तरफ इशारा किया था अपने पास बुलाया और बैठने का इशारा किया, वह अदब के साथ सलाम करने के बाद बैठ गया। उसकी उम्र लगभग चालीस वर्ष के होगी, शरीर दुबला और कमजोर था। रंग यद्यपि गोरा और आंखें बड़ी थीं परन्तु चेहरे से उदासी और लाचारी पाई जाती थी और यह भी मालूम होता था कि कमजोर होने पर भी क्रोध ने उसे अपना सेवक बना रखा है।

भीमसेन - इसी ने मेरी जान बचाई है। यद्यपि यह बहुत दुबला और कमजोर मालूम होता है परन्तु परले सिरे का दिलावर और बात का धनी है और मैं दृढ़तापूर्वक कह सकता हूं कि इसके ऐसा चतुर और बुद्धिमान होना आजकल के जमाने में कठिन है। यह ऐयार नहीं है मगर ऐयारों को कोई चीज नहीं समझता! यह रोहतासगढ़ का रहने वाला है, वीरेन्द्रसिंह के कारिन्दों के हाथ से दुःखी होकर भागा और इसने कसम खा ली है कि जब तक वीरेन्द्रसिंह और उनके खानदान का नाम-निशान न मिटा लूंगा अन्न न खाऊंगा, केवल कन्दमूल खाकर जान बचाऊंगा। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह जो कुछ चाहे कर सकता है। रोहतासगढ़ के तहखाने और (हाथ का इशारा करके) इस खंडहर का भेद भी यह बखूबी जानता है जिसमें वीरेन्द्रसिंह वगैरह लाचार और आपके सिपाहियों से घिरे पड़े हैं। इसने मुझे जिस चालाकी से निकाला उसका हाल इस समय कहकर समय नष्ट करना उचित नहीं जान पड़ता क्योंकि आज ही इस थोड़ी-सी बची हुई रात में इसकी मदद से एक भारी काम निकलने की उम्मीद है। अब आप स्वयं इससे बातचीत कर लें।

भीमसेन की बात, जो उस आदमी की तारीफ से भरी हुई थी, सुनकर शिवदत्त खुशी के मारे फूल उठा और उससे स्वयं बातचीत करने लगा।

शिवदत्त - सबके पहले मैं आपका नाम सुनना चाहता हूं।

रूहा - (धीरे से कान की तरफ झुककर) मुझे लोग बांकेसिंह कहकर पुकारते थे, परन्तु अब कुछ दिनों के लिए मैंने अपना नाम बदल दिया है। आप मुझे 'रूहा' कहकर पुकारा कीजिए जिससे किसी को मेरा असल नाम मालूम न हो।

शिवदत्त - जैसा आपने कहा वैसा ही होगा। इस समय तो हमने वीरेन्द्रसिंह को अच्छी तरह घेर लिया है, उनके साथ सिपाही भी बहुत कम हैं जिन्हें हम लोग सहज ही गिरफ्तार कर लेंगे। आपका प्रण भी अब पूरा हुआ ही चाहता है।

रूहा - (मुस्कुराकर) इस बन्दोबस्त से आप वीरेन्द्रसिंह का कुछ भी नहीं कर सकते।

शिवदत्त - सो क्यों?

रूहा - क्या आप इस बात को नहीं जानते कि इस खंडहर की दीवार बड़ी मजबूत है

शिवदत्त - बेशक मजबूत है मगर इससे क्या हो सकता है?

रूहा - क्या इस खंडहर के भीतर घुसकर आप उनका मुकाबला कर सकेंगे?

शिवदत्त - क्यों नहीं!

रूहा - कभी नहीं। इसके अन्दर सौ आदमियों से ज्यादे के जाने की जगह नहीं है और इतने आदमियों को वीरेन्द्रसिंह के साथी सहज ही में काट गिरावेंगे।

शिव - हमारे आदमी दीवारों पर चढ़कर हमला करेंगे और सबसे भारी बात यह है कि वे लोग दो ही तीन दिन में भूख-प्यास से तंग होकर लाचार बाहर निकलेंगे, उस समय उनको मार लेना कोई बड़ी बात नहीं है।

रूहा - सो भी नहीं हो सकता, क्योंकि यह खंडहर एक छोटा-सा तिलिस्म है जिसका रोहतासगढ़ के तहखाने वाले तिलिस्म से सम्बन्ध है। इसके अन्दर घुसना और दीवारों पर चढ़ना खेल नहीं है। वीरेन्द्रसिंह और उनके लड़कों को इस खंडहर का बहुत कुछ भेद मालूम है और आप कुछ भी नहीं जानते इसी से समझ लीजिए कि आपमें और उनमें क्या फर्क है, इसके अतिरिक्त इस खंडहर में बहुत से तहखाने और सुरंगें भी हैं, जिनसे वे लोग बहुत फायदा उठा सकते हैं।

शिवदत्त - (कुछ सोचकर) आप बड़े बुद्धिमान हैं और इस खंडहर का हाल अच्छी तरह जानते हैं। अब मैं अपना बिल्कुल काम आप ही की राय पर छोड़ता हूं, जो आप कहेंगे मैं वही करूंगा, अब आप ही कहिये क्या किया जाय

रूहा - अच्छा मैं आपकी मदद करूंगा और राय दूंगा। पहले आप बतावें कि क्या वीरेन्द्रसिंह के यहां आने का सबब आप जानते हैं

शिवदत्त - नहीं।

रूहा - इसका असल हाल मुझे मालूम हो चुका है। (भीमसेन की तरफ देखकर) उस आदमी का कहना बहुत ठीक है।

भीमसेन - बेशक ऐसा ही है, वह आपका शागिर्द होकर आपसे झूठ कभी नहीं बोलेगा।

शिवदत्त - क्या बात है

रूहा - हम लोग यहां आ रहे थे तो रास्ते में मेरा एक चेला मिला था जिसकी जुबानी वीरेन्द्रसिंह के यहां आने का सबब हम लोगों को मालूम हो गया।

शिवदत्त - क्या मालूम हुआ

रूहा - इस खंडहर के तहखाने में कुंअर इन्द्रजीतसिंह न मालूम क्योंकर जा फंसे हैं जो किसी तरह निकल नहीं सकते, उन्हीं को छुड़ाने के लिए ये लोग आये हैं। मैं खंडहर के हर एक तहखाने और उसके रास्ते को जानता हूं, अगर चाहूं तो कुंअर इन्द्रजीतसिंह को सहज ही निकाल लाऊं।

शिवदत्त - ओ हो, यदि ऐसा हो तो क्या बात है। परन्तु आपको इस खंडहर में कोई जाने क्यों देगा और बिना खंडहर में गये आप तहखाने के अन्दर पहुंच नहीं सकते।

रूहा - नहीं-नहीं, खंडहर में जाने की कोई जरूरत नहीं है, मैं बाहर ही बाहर अपना काम कर सकता हूं।

शिवदत्त - तो फिर ऐसे काम में क्यों न जल्दी की जाय?

रूहा - मेरी राय है कि आप या आपके लड़के भीमसेन पांच सौ बहादुरों को साथ लेकर मेरे साथ चलें, यहां से लगभग दो कोस जाने के बाद एक छोटा-सा टूटा-फूटा मकान मिलेगा, पहले उसे घेर लेना चाहिए।

शिवदत्त - उसके घेरने से क्या फायदा होगा?

रूहा - इस खंडहर में से एक सुरंग गई है जो उसी मकान में निकली है, ताज्जुब नहीं है कि वीरेन्द्रसिंह वगैरह उस राह से भाग जायं इसलिए उस पर कब्जा कर लेना चाहिए। सिवाय इसके एक बात और है!

शिवदत्त - वह क्या?

रूहा - उसी मकान में से एक दूसरी सुरंग उस तहखाने में गई है जिसमें कुंअर इन्द्रजीतसिंह हैं। यद्यपि उस सुरंग की राह से इस तहखाने तक पहुंचते-पहुंचते पांच दरवाजे लोहे के मिलते हैं जिनको खोलना अति कठिन है परन्तु खोलने की तरकीब मुझे मालूम है। वहां पहुंचकर मैं और भी कई काम करूंगा।

शिवदत्त - (खुश होकर) तब तो सबके पहले हमें वहां ही पहुंचना चाहिए।

रूहा - बेशक ऐसा ही होना चाहिए, पांच सौ सिपाही लेकर आप मेरे साथ चलिये या भीमसेन चलें, फिर देखिये मैं क्या करता हूं।

शिवदत्त - अब भीमसेन को तकलीफ देना तो मैं पसन्द नहीं करता।

रूहा - यह बहुत थक गये हैं और कैद की मुसीबत उठाकर कमजोर भी हो गये हैं, यहां का इन्तजाम इन्हें सुपुर्द कीजिए और आप मेरे साथ चलिये।

इसके कुछ ही देर बाद शिवदत्त पांच सौ फौज को लेकर रूहा के साथ उत्तर की तरफ रवाना हुआ। इस समय पहर भर रात बाकी थी, चांद ने भी अपना चेहरा छिपा लिया था मगर नरमदिल तारे डबडबाई हुई आंखों से दुष्ट शिवदत्त और उसके साथियों की तरफ देख-देख अफसोस कर रहे थे।

ये पांच सौ लड़ाके घोड़ों पर सवार थे, रूहा और शिवदत्त अरबी घोड़ों पर सवार सबके आगे-आगे जा रहे थे। रूहा केवल एक तलवार कमर से लगाये हुए था मगर शिवदत्त पूरे ठाठ से था। कमर में कटार और तलवार तथा हाथ में नेजा लिये हुए बड़ी खुशी से घुल-घुलकर बातें करता जाता था। सड़क पथरीली और ऊंची-नीची थी इसलिए ये लोग पूरी तेजी के साथ नहीं जा सकते थे तिस पर भी घंटे भर चलने के बाद एक छोटे से टूटे-फूटे मकान की दीवार पर रूहा की नजर पड़ी और उसने हाथ का इशारा करके शिवदत्त से कहा, ''बस अब हम लोग ठिकाने पर आ पहुंचे, यही मकान है।''

शिवदत्त के साथी सवारों ने उस मकान को चारों तरफ से घेर लिया।

रूहा - इस मकान में कुछ खजाना भी है जिसका हाल मुझे अच्छी तरह मालूम है।

शिवदत्त - (खुश होकर) आजकल मुझे रुपये की जरूरत भी है।

रूहा - मैं चाहता हूं कि पहले केवल आपको इस मकान में ले चलकर दो-एक जगह निशान और वहां का कुछ भेद बता दूं फिर आगे जैसा मुनासिब होगा वैसा किया जायगा। आप मेरे साथ अकेले चलने के लिए तैयार हैं, डरते तो नहीं

शिवदत्त - (घमंड के साथ) क्या तुमने मुझे डरपोक समझ लिया है और फिर ऐसी अवस्था में जबकि हमारे पांच सौ सवारों से यह मकान घिरा हुआ है

रूहा - (हंसकर) नहीं-नहीं, मैंने इसलिए टोका कि शायद इस पुराने मकान में आपको भूत-प्रेत का गुमान पैदा हो।

शिवदत्त - छिः, मैं ऐसे खयाल का आदमी नहीं हूं, बस देर न कीजिये, चलिये।

रूहा ने पथरी से आग झाड़कर मोमबत्ती जलाई जो उसके पास थी और शिवदत्त को साथ लेकर मकान में अन्दर घुसा। इस समय उस मकान की अवस्था बिल्कुल खराब थी, केवल तीन कोठरियां बची हुई थीं जिनकी तरफ इशारा करके रूहा ने शिवदत्त से कहा, ''यद्यपि यह मकान बिल्कुल टूट-फूट गया है मगर इन तीनों कोठरियों को अभी तक किसी तरह का सदमा नहीं पहुंचा है, मुझे केवल इन्हीं कोठरियों से मतलब है। इस मकान की मजबूत दीवारें अभी दो-तीन और बरसातें सम्हालने की हिम्मत रखती हैं।

शिवदत्त - मैं देखता हूं कि वे तीनों कोठरियां एक के साथ एक सटी हुई हैं और इसका भी कोई सबब जरूर होगा।

रूहा - जी हां, मगर इन तीन कोठरियों से इस समय तीन काम निकलेंगे।

इसके बाद रूहा एक कोठरी के अन्दर घुसा। इसमें एक तहखाना था और नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां नजर आती थीं। शिवदत्त ने पूछा, ''मालूम होता है इसी सुरंग की राह आप मुझे ले चलेंगे' इसके जवाब में रूहा ने कहा, ''हां इन्द्रजीतसिंह को गिरफ्तार करने के लिए इसी सुरंग में चलना होगा, मगर अभी नहीं, मैं पहले आपको दूसरी कोठरी में ले चलता हूं जिसमें खजाना है, मेरी तो यही राय है कि पहले खजाना निकाल लेना चाहिए, आपकी क्या राय है'

शिवदत्त - (खुश होकर) हां - हां, पहले खजाना अपने कब्जे में लेना चाहिए। कहिये, तो कुछ आदमियों को अन्दर बुलाऊं

रूहा - अभी नहीं, पहले आप स्वयं चलकर उस खजाने को देख तो लीजिए।

शिवदत्त - अच्छा चलिये।

अब ये दोनों दूसरी कोठरी में पहुंचे। इसमें भी एक वैसा ही तहखाना नजर आया जिसमें उतरने के लिए सीढ़ियां मौजूद थीं। शिवदत्त को साथ लिए हुए रूहा उस तहखाने में उतर गया। यह ऐसी जगह थी कि यदि सौ आदमी एक साथ मिलकर चिल्लाएं तो भी मकान के बाहर आवाज न जाय। शिवदत्त को उम्मीद थी कि अब रुपये और अशर्फियों से भरे हुए देग दिखाई देंगे मगर उसके बदले यहां दस सिपाही ढाल-तलवार लिए मुंह पर नकाब डाले दिखाई पड़े और साथ ही इसके एक सुरंग पर भी नजर पड़ी जो मालूम होता था कि अभी खोदकर तैयार की गई है। शिवदत्त एकदम कांप उठा, उसे निश्चय हो गया कि रूहा ने मेरे साथ दगा की, और ये लोग मुझे मारकर इसी गड़हे में दबा देंगे। उसने एक लाचारी की निगाह रूहा पर डाली और कुछ कहना चाहा मगर खौफ ने उसका गला ऐसा दबा दिया कि एक शब्द भी मुंह से न निकल सका।

उन दसों ने शिवदत्त को गिरफ्तार कर लिया और मुश्कें बांध लीं। रूहा ने कहा, ''बस अब आप चुपचाप इन लोगों के साथ इस सुरंग में चले चलिए नहीं तो इसी जगह आपका सिर काट लिया जायगा।''

इस समय शिवदत्त रूहा और उसके साथियों का हुक्म मानने के सिवाय और कुछ भी न कर सकता था। सुरंग में उतरने के बाद लगभग आधा कोस के चलना पड़ा, इसके बाद सब लोग बाहर निकले और शिवदत्त ने अपने को एक सुनसान मैदान में पाया। यहां पर कई साईसों की हिफाजत में बारह घोड़े कसे-कसाये तैयार थे। एक पर शिवदत्त को सवार कराया गया और नीचे से उसके दोनों पैर बांध दिए गए, बाकी पर रूहा और वे दसों नकाबपोश सवार हुए और शिवदत्त को लेकर एक तरफ को चलते हुए।

कुंअर इन्द्रजीतसिंह पर आफत आने से वीरेन्द्रसिंह दुखी होकर उनको छुड़ाने का उद्योग कर ही रहे थे परन्तु बीच में शिवदत्त का आ जाना बड़ा ही दुखदाई हुआ। ऐसे समय में जबकि यह अपनी फौज से बहुत ही दूर पड़े हैं सौ-दो सौ आदमियों को लेकर शिवदत्त की दो हजार फौज से मुकाबला करना बहुत ही कठिन मालूम पड़ता था, साथ ही इसके यह सोचकर कि जब तक शिवदत्त यहां है कुंअर इन्द्रजीतसिंह के छुड़ाने की कार्रवाई किसी तरह नहीं हो सकती, वे और भी उदास हो रहे थे। यदि उन्हें कुंअर इन्द्रजीतसिंह का खयाल न होता तो शिवदत्त का आना उन्हें न गड़ता और वे लड़ने से बाज न आते मगर इस समय राजा वीरेन्द्रसिंह बड़ी फिक्र में पड़ गए और सोचने लगे कि क्या करना चाहिए। सबसे ज्यादा फिक्र तारासिंह को थी क्योंकि वह कुंअर इन्द्रजीतसिंह का मृत शरीर अपनी आंखों से देख चुका था। राजा वीरेन्द्रसिंह और उनके साथी लोग तो अपनी फिक्र में लगे हुए थे और खंडहर के दरवाजे पर तथा दीवारों पर से लड़ने का इन्तजाम कर रहे थे, परन्तु तारासिंह उस छोटी-सी बावली के किनारे, जो अभी जमीन खोदने से निकली थी, बैठा अपने खयाल में ऐसा डूबा था कि उसे दीन-दुनिया की खबर न थी। वह नहीं जानता था कि हमारे संगी-साथी इस समय क्या कर रहे हैं। आधी रात से ज्यादे जा चुकी थी मगर वह अपने ध्यान में डूबा हुआ बावली के किनारे बैठा है। राजा वीरेन्द्रसिंह ने भी यह सोचकर कि शायद वह इसी बावली के विषय में कुछ सोच रहा है तारासिंह को कुछ न टोका और न कोई काम उसके सुपुर्द किया।

हम ऊपर लिख आये हैं कि इस बावली में से कुछ मिट्टी निकल जाने पर बावली के बीचोंबीच में पीतल की मूरत दिखाई पड़ी। उस मूरत का भाव यह था कि एक हिरन का शेर ने शिकार किया है और हिरन की गर्दन का आधा भाग शेर के मुंह में है। मूरत बहुत ही खूबसूरत बनी हुई थी।

जिस समय का हाल हम लिख रहे हैं अर्थात् आधी रात गुजर जाने के बाद यकायक उस मूरत में एक प्रकार की चमक पैदा हुई और धीरे-धीरे वह चमक यहां तक बढ़ी कि तमाम बावली बल्कि तमाम खंडहर में उजियाला हो गया, जिसे देख सब-के-सब घबड़ा गए। वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह और कमला ये तीनों आदमी फुर्ती के साथ उस जगह पहुंचे जहां तारासिंह बैठा हुआ ताज्जुब में आकर उस मूरत को देख रहा था।

घण्टा भर बीतते-बीतते मालूम हुआ कि वह मूरत हिल रही है। उस समय शेर की दोनों आंखें ऐसी चमक रही थीं कि निगाह नहीं ठहरती। मूरत को हिलते देख सभी को बड़ा ताज्जुब हुआ और निश्चय हो गया कि अब तिलिस्म की कोई-न-कोई कार्रवाई हम लोग जरूर देखेंगे।

यकायक मूरत बड़े जोर से हिली और तब एक भारी आवाज के साथ जमीन के अन्दर धंस गई। खंडहर में चारों तरफ अंधेरा हो गया। कायदे की बात है कि आंखों के सामने जब थोड़ी देर तक कोई तेज रोशनी रहे और वह यकायक गायब हो जाय या बुझा दी जाय तो आंखों में मामूली से ज्यादे अंधेरा छा जाता है, वही हालत इस समय खंडहर वालों की हुई। थोड़ी देर तक उन लोगों को कुछ भी नहीं सूझता था। आधी घड़ी गुजर जाने के बाद वह गड़हा दिखाई देने लगा जिसके अन्दर मूरत धंस गई थी। अब उस गड़हे के अन्दर भी एक प्रकार की चमक मालूम होने लगी और देखते-देखते हाथ में चमकता हुआ नेजा लिए वही राक्षसी उस गड़हे में से बाहर निकली जिसका जिक्र ऊपर कई दफे किया जा चुका है।

हमारे वीरेन्द्रसिंह और उनके ऐयार लोग उस औरत को कई दफे देख चुके थे और वह औरत इनके साथ अहसान भी कर चुकी थी, इसलिए उसे यकायक देखकर वे लोग कुछ प्रसन्न हुए और उन्हें विश्वास हो गया कि इस समय यह औरत जरूर हमारी कुछ-न-कुछ मदद करेगी और थोड़ा-बहुत यहां का हाल भी हम लोगों को जरूर मालूम होगा।

उस औरत ने नेजे को हिलाया। हिलने के साथ ही बिजली-सी चमक उसमें पैदा हुई और तमाम खंडहर में उजाला हो गया। वह वीरेन्द्रसिंह के पास आई और बोली, ''आपको पहर भर की मोहलत दी जाती है। इसके अन्दर इस खंडहर के हर एक तहखाने में यदि रास्ता मालूम है तो आप घूम सकते हैं। शाहदरवाजा जो बन्द हो गया था, उसे आपके खातिर से पहर भर के लिए मैंने खोल दिया है। इससे विशेष समय लगाना अनर्थ करना है।''

इतना कह वह राक्षसी उसी गड़हे में घुस गई और वह पीतल वाली मूरत जो जमीन के अन्दर धंस गई थी फिर अपने स्थान पर आकर बैठ गई। इस समय उसमें किसी तरह की चमक न थी।

अब वीरेन्द्रसिंह और आनन्दसिंह वगैरह को कुंअर इन्द्रजीतसिंह से मिलने की उम्मीद हुई।

वीरेन्द्रसिंह - कुछ मालूम नहीं होता कि यह औरत कौन है और समय-समय पर हम लोगों की सहायता क्यों करती है।

तारासिंह - जब तक वह स्वयं अपना हाल न कहे हम लोग उसे किसी तरह नहीं जान सकते। परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह औरत तिलिस्मी है और कोई भारी सामर्थ्य रखती है।

कमला - परन्तु सूरत इसकी भयानक है।

तेजसिंह - यदि यह सूरत बनावटी हो तो भी कोई आश्चर्य नहीं।

वीरेन्द्रसिंह - हो सकता है, खैर, अब हमको तहखाने के अन्दर चलना और इन्द्रजीत को छुड़ाना चाहिए, पहर भर का समय हम लोगों के लिए कम नहीं है, मगर शिवदत्त के लिए क्या किया जाय यदि वह इस खंडहर में घुस आने और लड़ने का उद्योग करेगा तो यह अमूल्य पहर भर समय यों ही नष्ट हो जायगा।

तेजसिंह - इसमें क्या सन्देह है ऐसे समय में इस कम्बख्त का चढ़ आना बड़ा ही दुःखदायी हुआ।

इतना कहकर तेजसिंह गौर में पड़ गये और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। इसी बीच में खंडहर के फाटक की तरफ से सिपाहियों के चिल्लाने की आवाज आई और यह भी मालूम हुआ कि वहां लड़ाई हो रही है।

जिस समय शिवदत्त के चढ़ आने की खबर मिली थी उसी समय राजा वीरेन्द्रसिंह के हुक्म से पचास सिपाही खंडहर के फाटक पर मुस्तैद कर दिये गये थे और उन सिपाहियों ने आपस में निश्चय कर लिया था कि जब तक पचास में से एक भी जीता रहेगा, फाटक के अन्दर कोई घुसने न पावेगा।

फाटक पर कोलाहल सुनकर तेजसिंह और तारासिंह दौड़े गये और थोड़ी देर में वापस आकर खुशी-भरी आवाज में तेजसिंह ने वीरेन्द्रसिंह से कहा, ''बेशक फाटक पर लड़ाई हो रही है। न मालूम हमारे किस दोस्त ने किस ऐयारी से शिवदत्त को गिरफ्तार कर लिया जिससे उसकी फौज हताश हो गई। थोड़े आदमी तो फाटक पर आकर लड़ रहे हैं और बहुत लोग भागे जा रहे हैं। मैंने एक सिपाही से पूछा तो उसने कहा कि मैं अपने साथियों के साथ फाटक पर पहरा दे रहा था कि यकायक कुछ सवार इसी तरफ से मैदान की ओर भागे जाते देखे। वे लोग चिल्ला-चिल्लाकर यह कहते जाते थे कि 'तुम लोग भागो और अपनी जान बचाओ। शिवदत्त गिरफ्तार हो गया, अब तुम उसे किसी तरह से नहीं छुड़ा सकते!' इसके बाद बहुत-से तो भाग गये और भाग रहे हैं, मगर थोड़े आदमी यहां आ गये जो लड़ रहे हैं।

तेजसिंह की बात सुनकर वीरेन्द्रसिंह वीर भाव से यह कहते हुए फाटक की तरफ लपके कि ''तब तो पहले उन्हीं लोगों को भगाना चाहिए जो भागने से बच रहे हैं, जब तक दुश्मन का कोई आदमी गिरफ्तार न होगा, खुलासा हाल मालूम न होगा।''

खंडहर के फाटक पर से लौटकर तेजसिंह ने जो कुछ हाल राजा वीरेन्द्रसिंह से कहा वह बहुत ठीक था। जब रूहा अपनी बातों में फंसाकर शिवदत्त को ले गया, उसके दो घण्टे बाद भीमसेन ने अपने साथियों को तैयार होने और घोड़े कसने की आज्ञा दी। शिवदत्त के ऐयारों को ताज्जुत हुआ, उन्होंने भीमसेन से इसका सबब पूछा जिसके जवाब में भीमसेन ने केवल इतना ही कहा कि ''हम क्या करते हैं सो अभी मालूम हो जायगा।'' जब घोड़े तैयार हो गये तो साथियों को कुछ इशारा करके भीमसेन घोड़े पर सवार हो गया और म्यान से तलवार निकाल शिवदत्त के आदमियों को जख्मी करता और यह कहता हुआ कि ''तुम लोग भागो और अपनी जान बचाओ, तुम्हारा शिवदत्त गिरफ्तार हो गया और तुम उसे किसी तरह नहीं छुड़ा सकते'' मैदान की तरफ भागा। उस समय शिवदत्त के ऐयारों की आंखें खुलीं और वे समझ गये कि हम लोगों के साथ ऐयारी की गई तथा यह भीमसेन नहीं है, बल्कि कोई ऐयार है! उस समय शिवदत्त की फौज हर तरह से गाफिल और बेफिक्र थी। शिवदत्त के ऐयारों के हुक्म से यद्यपि कई आदमियों ने घोड़ों की नंगी पीठ पर सवार होकर नकली भीमसेन का पीछा किया मगर अब क्या हो सकता था, बल्कि उसका नतीजा यह हुआ कि फौजी आदमी अपने साथियों को भागता हुआ समझ खुद भी भागने लगे। ऐयारों ने रोकने के लिए बहुत उद्योग किया, परन्तु बिना मालिक की फौज कब तक रुक सकती थी, बड़ी मुश्किल से थोड़े आदमी रुके और खंडहर के फाटक पर आकर हुल्लड़ मचाने लगे, परन्तु उस समय उन लोगों की हिम्मत भी जाती रही जब बहादुर वीरेन्द्रसिंह, आनन्दसिंह, उनके ऐयार तथा शेरदिल साथी और सिपाही हाथों में नंगी तलवारें लिए उन लोगों पर आ टूटे। राजा वीरेन्द्रसिंह और कुंअर आनन्दसिंह शेर की तरह जिस तरफ झपटते थे, सफाई हो जाती थी। जिसे देख शिवदत्त के आदमियों में से बहुतों की तो यह अवस्था हो गई कि खड़े होकर उन दोनों की बहादुरी देखने के सिवाय कुछ भी न कर सकते थे। आखिर यहां तक नौबत पहुंची कि सभी ने पीठ दिखा दी और मैदान का रास्ता लिया।

इस लड़ाई में जो घण्टे भर से ज्यादा तक होती रही, राजा वीरेन्द्रसिंह के दस आदमी मारे गए और बीस जख्मी हुए। शिवदत्त के चालीस मारे गए और साठ जख्मी हुए जिनसे दरियाफ्त करने पर राजा वीरेन्द्रसिंह को भीमसेन और शिवदत्त का खुलासा हाल जैसा कि हम ऊपर लिख आए हैं मालूम हो गया, मगर इसका पता न लगा कि शिवदत्त को किसने किस रीति से गिरफ्तार कर लिया।

वीरेन्द्रसिंह ने अपने कई आदमी लाशों को हटाने और जख्मियों की हिफाजत के लिए तैनात किये और इसके बाद कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए खंडहर के तहखाने में जाने का इरादा किया।

जिस तहखाने में कुंअर इन्द्रजीतसिंह थे, उसके रास्ते का हाल कई दफे लिखा जा चुका है, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं, इसलिए केवल इतना ही लिखा जाता है कि वे दरवाजे जिनका खुलना शाहदरवाजा बन्द हो जाने के कारण कठिन हो गया था अब सुगमता से खुल गए जिससे सभी को खुशी हुई और केवल वीरेन्द्र, तेजसिंह, कमला और तारासिंह मशाल लेकर उस तहखाने के अन्दर उतर आये।

इस समय तारासिंह की अजब हालत थी। उसका कलेजा कांपता और उछलता था। वह सोचता था कि देखें कुंअर इन्द्रजीतसिंह, भैरोसिंह और कामिनी को किस अवस्था में पाते हैं। ताज्जुब नहीं कि हमारे पाठकों की भी इस समय वही अवस्था हो और वे इसी सोच-विचार में हों, मगर वहां तहखाने में तो मामला ही दूसरे ढंग का था।

तहखाने में उतर जाने के बाद राजा वीरेन्द्रसिंह, आनन्दसिंह और ऐयारों ने चारों तरफ देखना शुरू किया मगर कोई आदमी दिखाई न पड़ा और न कोई ऐसी चीज नजर पड़ी जिससे उन लोगों का पता लगता, जिनकी खोज में वे लोग तहखाने के अन्दर गए थे। न तो वह सन्दूक था जिसमें इन्द्रजीतसिंह की लाश थी और न भैरोसिंह, कामिनी या उस सिपाही की सूरत नजर आई, जो उस संदूक के साथ तहखाने में आया था, जिसमें कुंअर इन्द्रजीतसिंह की लाश थी।

वीरेन्द्रसिंह - (तारासिंह की तरफ देखकर) यहां तो कोई भी नहीं है! क्या तुमने उन लोगों को किसी दूसरे तहखाने में छोड़ा था

तारासिंह - जी नहीं, मैंने उन सभी को इसी जगह छोड़ा। (हाथ से इशारा करके) इसी कोठरी में कामिनी ने अपने को बन्द कर रखा था!

वीरेन्द्रसिंह - कोठरी का दरवाजा खुला हुआ है, उसके अन्दर जाकर देखो तो शायद कोई हो।

कमला ने कोठरी का दरवाजा खोला और झांककर देखा इसके बाद कोठरी के अन्दर घुसकर उसने आनन्दसिंह और तारासिंह को पुकारा और उन दोनों ने भी कोठरी के अन्दर पैर रखा।

कमला, तारासिंह और आनन्दसिंह को कोठरी के अन्दर घुसे आधी घड़ी से ज्यादा गुजर गई, मगर उन तीनों में से एक भी बाहर न निकला। आखिर तेजसिंह ने पुकारा परन्तु जवाब न मिलने पर लाचार हो हाथ में मशाल लेकर तेजसिंह खुद कोठरी के अन्दर गए और इधर-उधर ढूंढ़ने लगे।

वह कोठरी बहुत छोटी और संगीन थी। चारों तरफ पत्थर की दीवारों पर खूब ध्यान देने से कोई खिड़की या दरवाजे का निशान नहीं पाया जाता था, हां ऊपर की तरफ एक छोटा-सा छेद दीवार में था मगर वह भी इतना छोटा था कि आदमी का सिर किसी तरह उसके अन्दर नहीं जा सकता था और दीवार में कोई ऐसी रुकावट भी न थी जिस पर चढ़कर या पैर रखकर कोई आदमी अपना हाथ उस मोखे (छेद) तक पहुंचा सके। ऐसी कोठरी में से यकायक कमला, तारासिंह और आनन्दसिंह का गायब हो जाना बड़े ही आश्चर्य की बात थी। तेजसिंह ने इसका सबब बहुत कुछ सोचा मगर अक्ल ने कुछ मदद न थी। वीरेन्द्रसिंह भी कोठरी के अन्दर गये और तलवार के कब्जे से हर एक दीवार को ठोंक-ठोंक देखने लगे जिससे मालूम हो जाय कि किसी जगह से दीवार पोली तो नहीं है मगर इससे भी कोई काम न चला। थोड़ी देर तक दोनों आदमी हैरान हो चारों तरफ देखते रहे। आखिर किसी आवाज ने उन्हें चौकन्ना कर दिया और वे दोनों ध्यान देकर उस छेद की तरफ देखने लगे जो उस कोठरी के अन्दर ऊंची दीवार में था और जिसमें से आवाज आ रही थी। वह आवाज यह थी -

''बस, जहां तक जल्द हो सके तुम दोनों आदमी इस तहखाने से बाहर निकल जाओ, नहीं तो व्यर्थ तुम दोनों की जान चली जायेगी। अगर बचे रहोगे तो दोनों कुमारों को छुड़ाने का उद्योग करोगे और पता लगा ही लोगे। मैं वही बिजली की तरह चमकने वाला नेजा हाथ में रखने वाली औरत हूं, पर लाचार, इस समय मैं किसी तरह तुम्हारी मदद नहीं कर सकती। अब तुम लोग बहुत जल्द रोहतासगढ़ चले जाओ, उसी जगह आकर मैं तुमसे मिलूंगी और सब हाल खुलासा कहूंगी। अब मैं जाती हूं क्योंकि इस समय मुझे भी अपनी जान की पड़ी है।''

इस बात को सुनकर दोनों आदमी ताज्जुब में आ गए और कुछ देर तक सोचने के बाद तहखाने के बाहर निकल आए।

डबडबाई आंखों के साथ उसांसें लेते हुए राजा वीरेन्द्रसिंह रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए। कैदियों और अपने कुल आदमियों को साथ लेते गए, मगर तेजसिंह ने न मालूम क्या कह-सुनकर और क्यों छुट्टी ले ली और राजा वीरेन्द्रसिंह के साथ रोहतासगढ़ न गये।

राजा वीरेन्द्रसिंह रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए और तेजसिंह ने दक्खिन का रास्ता लिया। इस वारदात को कई महीने गुजर गये और इस बीच में कोई बात ऐसी नहीं हुई जो लिखने योग्य हो। 

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रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
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इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
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चंद्रकांता संतति भाग -1

11 जून 2022
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नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनन

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भाग 2

11 जून 2022
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इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

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भाग 3

11 जून 2022
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चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

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भाग 4

11 जून 2022
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खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

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भाग 6

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बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

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भाग 7

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अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं

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भाग 8

11 जून 2022
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अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो

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भाग 9

11 जून 2022
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भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ रात आते-आते लौट आये और उसी समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज किया कि आज शिकार खेलने के लिए कुमार जंगल में गये थे, एक बनैले सूअर के प

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भाग 10

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अब हम अपने पाठकों को फिर उसी खोह में ले चलते हैं जिसमें कुंअर आनंदसिंह को बेहोश छोड़ आये हैं अथवा जिस खोह में जान बचाने वाले सिपाही के साथ पहुंचकर उन्होंने एक औरत को छुरे से लाश काटते देखा था और योगिन

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भाग 11

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सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिय

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भाग 12

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अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां

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भाग 13

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दूसरे दिन खा-पीकर निश्चिंत होने के बाद दोपहर को जब दोनों एकांत में बैठे तो इंद्रजीतसिंह ने माधवी से कहा - ''अब मुझसे सब्र नहीं हो सकता, आज तुम्हारा ठीक-ठीक हाल सुने बिना कभी न मानूंगा और इससे बढ़कर न

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भाग 14

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इंद्रजीतसिंह ने दूसरे दिन पुनः नियत समय पर माधवी को जाने न दिया, आधी रात तक हंसी-दिल्लगी ही में काटी, इसके बाद दोनों अपने-अपने पलंग पर सो रहे। कुमार को तो खुटका लगा ही हुआ था कि आज वह काली औरत आवेगी इ

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भाग 15

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अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

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चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

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घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

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भाग 2

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किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

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भाग 3

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सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

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भाग 5

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कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

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भाग 6

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

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भाग 7

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आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

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भाग 8

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इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

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भाग 9

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

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भाग 10

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जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

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भाग 11

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हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

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भाग 12

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आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

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भाग 13

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

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भाग 14

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

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भाग 15

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राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

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भाग 16

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भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

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भाग 17

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मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

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चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

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पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

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भाग 2

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शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

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ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

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भाग 4

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आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

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कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

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भाग 6

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इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

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भाग 7

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

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भाग 8

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रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

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भाग 9

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आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

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भाग 10

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कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

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भाग 11

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इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

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भाग 12

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

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भाग 13

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आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

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भाग 14

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रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

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चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

11 जून 2022
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अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

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भाग 2

11 जून 2022
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कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

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भाग 3

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तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

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भाग 4

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अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

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भाग 6

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अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

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भाग 7

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लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

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भाग 8

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अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

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भाग 9

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अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

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भाग 10

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दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

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भाग 11

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अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

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भाग 12

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दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

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चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

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बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

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भाग 2

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पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

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भाग 3

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कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

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भाग 5

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अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

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भाग 6

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आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

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भाग 7

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रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

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भाग 8

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बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

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भाग 9

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गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

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भाग 10

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वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

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भाग 11

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इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

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भाग 12

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दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

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भाग 13

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तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

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चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

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वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

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भाग 2

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इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

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भाग 3

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अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

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भाग 4

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अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

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भाग 5

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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

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भाग 6

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दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

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भाग 7

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आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

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चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

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नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

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भाग 2

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हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

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भाग 3

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

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भाग 4

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शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

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पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

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मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

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चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

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मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

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कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

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भाग 3

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मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

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भाग 4

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कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

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दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

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भाग 6

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रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

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राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

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अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

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भाग 9

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

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भाग 10

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दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

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भाग 11

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ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

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आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

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