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भाग 2

11 जून 2022

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पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं जानते थे मगर पहचानते जरूर थे, क्योंकि उन्हें राजगृह में माधवी के यहां देख चुके थे और जानते थे कि ये दोनों माधवी की लौंडियां हैं। परन्तु यह जानने के लिए कुमार व्याकुल हो रहे थे कि ये दोनों यहां कैसे आईं क्या इस औरत से, जो इस मकान की मालिक है, और उस माधवी से कोई सम्बन्ध है इसी समय उन दोनों औरतों के पीछे-पीछे वह औरत भी आ पहुंची जिसने इन्द्रजीतसिंह के ऊपर अहसान किया था और जो उस मकान की मालिक थी। अभी तक इस औरत का नाम मालूम नहीं हुआ, मगर आगे इससे काम बहुत पड़ेगा, इसलिए जब तक इसका असल नाम मालूम न हो कोई बनावटी नाम रख दिया जाय तो उत्तम होगा, मेरी समझ में तो कमलिनी नाम कुछ बुरा न होगा।

जिस समय कुंअर इन्द्रजीतसिंह की निगाह उन दोनों औरतों पर पड़ी, वे हैरान होकर उनकी तरफ देखने लगे। उसी समय दौड़ती हुई कमलिनी भी आई और दूर ही से बोली -

कमलिनी - कुमार, इन दोनों हरामजादियों का कोई मुलाहिजा न कीजिएगा और न किसी तरह की जुबान ही दीजिएगा। अपनी जान बचाने के लिए ही दोनों आपके पास आई हैं।

इन्द्रजीतसिंह - क्या मामला है ये दोनों कौन हैं?

कमलिनी - ये दोनों माधवी की लौंडियां हैं और आपकी जान लेने आई थीं। मेरे आदमियों के हाथ गिरफ्तार हो गईं।

इन्द्रजीतसिंह - तुम्हारे आदमी कहां हैं मैंने तो इस मकान में सिवाय तुम्हारे किसी को भी नहीं देखा!

कमलिनी - बाहर निकलकर देखिये, मेरे वे सिपाही यहीं मौजूद हैं जिन्होंने इन्हें गिरफ्तार किया।

इन्द्रजीतसिंह - अगर ये गिरफ्तार होकर आई हैं तो इनके हाथ-पैर खुले क्यों हैं?

कमलिनी - इसके लिए कोई हर्ज नहीं। ये मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं, जब तक कि मैं जागती हूं या अपने होश में हूं।

इन्द्रजीतसिंह - (उन दोनों की तरफ देखकर) तुम क्या कहती हो?

एक - (कमलिनी की तरफ इशारा करके) ये जो कुछ कहती हैं, ठीक है। परन्तु आप वीर पुरुष हैं, आशा है कि हम लोगों का अपराध क्षमा करेंगे!

कुंअर इन्द्रजीतसिंह इन बातों को सुनकर सोच में पड़ गये। उन्हें उन दोनों औरतों की और कमलिनी की बातों का विश्वास न हुआ, बल्कि यकीन हो गया कि ये लोग किसी तरह का धोखा देना चाहती हैं। आधी घड़ी तक सोचने के बाद कुमार बंगले के बाहर निकले तो देखा कि तालाब के बाहर लगभग बीस सिपाही खड़े आपस में कुछ बातें कर रहे और घड़ी-घड़ी इसी तरफ देख रहे हैं। कुमार वहां से लौट आये और कमलिनी की तरफ देखकर बोले -

इन्द्रजीतसिंह - खैर, जो तुम्हारे जी में आये करो, हम इस बारे में कुछ नहीं कह सकते।

कमलिनी - करना क्या है, इन दोनों का सिर काटा जायगा।

इन्द्रजीतसिंह - खुशी तुम्हारी। मैं जरा इस तालाब के बाहर जाना चाहता हूं।

कमलिनी - क्यों?

इन्द्रजीतसिंह - यह समय मजेदार है। जरा मैदान की हवा खाऊंगा और उस घोड़े की भी खबर लूंगा जिस पर सवार होकर आया था।

कमलिनी - इस मकान की छत पर चढ़ने से अच्छी और साफ हवा आपको मिल सकती है। घोड़े के लिए चिन्ता न करें, या फिर ऐसा ही है तो सबेरे जाइयेगा!

न मालूम, क्या सोचकर इन्द्रजीतसिंह चुप हो रहे। कमलिनी ने उन दोनों औरतों का हाथ पकड़ा और धमकाती हुई न जाने कहां ले गई, इसका हाल कुमार को न मालूम हुआ और न उन्होंने जानने का उद्योग ही किया।

यद्यपि इस औरत अर्थात् कमलिनी ने कुमार की जान बचाई थी, तथापि उन्हें विश्वास हो गया कि कमलिनी ने दोस्ती की राह पर यह काम नहीं किया, बल्कि किसी मतलब से किया है। उस मकान में गुलदस्ते के नीचे से जो चीठी कुमार ने पाई थी, उसके पढ़ने से कुमार होशियार हो गये थे तथा समझ गये थे कि यह मुझे किसी फरेब में फंसाना चाहती है और किशोरी के साथ भी किसी तरह की बुराई किया चाहती है। इसमें कोई शक नहीं कि कुमार इसे चाहने लगे थे और जान बचाने का बदला चुकाने की फिक्र में थे, मगर उस चीठी के पढ़ते ही उनका रंग बदल गया और वे किसी दूसरी ही धुन में लग गए।

कुमार चाहते तो शायद यहां से निकल भागते, क्योंकि उस औरत की तरफ से होशियार हो चुके थे, मगर इस काम में उन्होंने यह समझकर जल्दी न की कि इस औरत का कुछ हाल मालूम करना चाहिए और जानना चाहिए कि यह कौन है। पर कमलिनी को कुमार के दिल की क्या खबर थी, उसने तो सोच रखा था कि मैंने कुमार पर अहसान किया है और वे किसी तौर पर मुझसे बदगुमान न होंगे।

कुमार के पास इस समय सिवाय कपड़ों के कोई चीज ऐसी न थी जिससे वे अपनी हिफाजत करते या समय पड़ने पर मतलब निकाल सकते।

कुछ दिन बाकी था जब कुमार उस मकान की छत पर चढ़ गए और चारों तरफ के पहाड़, जंगल तथा मैदान के बाहर देखने लगे। कुमार को यह जगह बहुत ही पसन्द आई और उन्होंने दिल में कहा कि ईश्वर की इच्छा हुई तो सब बखेड़ों से छुट्टी पाकर किशोरी के साथ कुछ दिनों तक इस मकान में जरूर रहेंगे। थोड़ी देर तक प्रकृति की शोभा देखकर दिल बहलाते रहे, जब सूर्य अस्त हो गया तो कमलिनी भी वहां पहुंची और कुमार के पास खड़ी होकर बातचीत करने लगी।

कमलिनी - यहां से अच्छी बहार दिखाई देती है।

कुमार - ठीक है मगर यह छटा मेरे दिल को किसी तरह नहीं बहला सकती।

कमलिनी - सो क्यों?

कुमार - तरह-तरह की फिक्रों और तरद्दुदों ने मुझे दुखी कर रखा है, बल्कि यहां आने और तुम्हारे मिलने से तरद्दुद और भी ज्यादा हो गया।

कमलिनी - यहां आकर कौन-सी फिक्र बढ़ गई?

कुमार - यह तो तब कह सकता हूं जब कुछ तुम्हारा हाल मुझे मालूम हो। अभी तो मैं यह भी नहीं जानता कि तुम कौन हो और कहां की रहने वाली हो और इस मकान में आके रहने का सबब क्या है?

कमलिनी - कुमार, मुझे आपसे बहुत बातें कहनी हैं। इसमें कोई शक नहीं कि मेरे बारे में आप तरह - तरह की बातें सोचते होंगे, कभी मुझे खैरख्वाह तो कभी बद-ख्वाह समझते होंगे, बल्कि बदख्वाह समझने का मौका ही ज्यादा मिलता होगा। अक्सर उन लोगों ने जो मुझे जानते हैं, मुझे शैतान और खूनी समझ रखा है, और इसमें उनका कोई कसूर भी नहीं। मैं उन लोगों का जिक्र इस समय केवल इसीलिए करती हूं कि शायद उन लोगों ने, जो केवल दो-तीन ऐयार लोग हैं, कुछ चर्चा आपसे की हो।

कुमार - नहीं, मैंने किसी से कभी तुम्हारा जिक्र नहीं सुना।

कमलिनी - खैर, ऐसा मौका न पड़ा होगा। पर मेरा मतलब यह है कि जब तक मैं अपने मुंह से कुछ न कहूंगी, मेरे बारे में कोई भी अपनी राय ठीक नहीं कह सकता और...

इतने ही में सीढ़ियों पर किसी के पैरों की आवाज मालूम हुई जिसे सुनकर दोनों चौंके और उसी तरफ देखने लगे।

कुमार - इस मकान में तो केवल तुम्हीं रहती हो?

कमलिनी - नहीं, और भी कई आदमी रहते हैं, मगर वे लोग उस समय नहीं थे जब आप आए थे।

दो लौंडियां आती हुई दिखाई पड़ीं। एक के हाथ में छोटा-सा गलीचा था, दूसरी के हाथ में शमादान और इनके पीछे तीसरी पानदान लिये हुए थी। गलीचा बिछा दिया गया, शमादान और पानदान रखकर लौंडियां हाथ जोड़े सामने खड़ी हो गईं। कमलिनी के कहने से कुमार गलीचे पर बैठ गए और कमलिनी भी पास बैठ गई। इस समय इन तीनों लौंडियों का वहां पहुंचकर बातचीत में बाधा डालना कुमार को बहुत बुरा मालूम हुआ, क्योंकि वे बड़े ही गौर से कमलिनी की बातें सुन रहे थे और इस बीच में उनके दिल की अजीब हालत थी। कुमार ने कमलिनी की तरफ देख के कहा, ''हां, तुम अपनी बातों का सिलसिला मत तोड़ो।''

कमलिनी - (लौंडियों की तरफ देखकर) अच्छा, तुम लोग जाओ! बहुत जल्दी खाने का बन्दोबस्त करो।

कुमार - अभी खाने के लिए जल्दी न करो।

कमलिनी - खैर, ये लोग अपना काम पूरा कर रखें, आप जब चाहें, भोजन करें।

कुमार - अच्छा हां, तब?

कमलिनी - (डिब्बे से पान निकालकर) लीजिए, पान खाइए।

कुमार ने पान हाथ में रख लिया और पूछा, ''हां, तब'?

कमलिनी - पान खाइए, आप डरिए मत, इसमें बेहोशी की दवा नहीं मिली है। हां, अगर आप ऐसा खयाल करें भी तो कोई बेमौका नहीं!

कुमार - (हंसकर) इसमें कोई शक नहीं कि इतनी खैरख्वाही करने पर भी मैं तुम्हारी तरफ से बदगुमान हूं। मगर तुम्हारी बातें अजब ढंग पर चल रही हैं। (पान खाकर) अब जो हो, जब तुमने मेरी जान बचाई है तो कब हो सकता है कि तुम अपने हाथ से मुझे जहर दो।

कमलिनी - (हंसकर) कुमार, यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि आप मुझ पर शक करें। माधवी की दोनों लौंडियों का मामला, जो अभी थोड़ी देर पहले हुआ, आप देख चुके हैं, मुझ पर शक करने का मौका आपको देगा। मगर नहीं, आप पूरा विश्वास रखिए कि मैं आपके साथ कभी बुराई न करूंगी। कई आदमी मेरी शिकायत आपसे करेंगे, आप ही के कई ऐयार असल हाल न जानने के कारण मेरे दुश्मन हो जायंगे, मगर सिवाय कसम खाकर कहने के और किस तरह आपको विश्वास दिलाऊं कि मैं आपकी खैरख्वाह हूं। आप यह भी सोच सकते हैं कि मैं आपके साथ इतनी खैरख्वाह क्यों हो रही हूं! दुनिया का कायदा है कि बिना मतलब कोई किसी का काम नहीं करता और मैं भी दुनिया के बाहर नहीं हूं, अस्तु मैं भी आपसे बहुत-कुछ उम्मीद करती हूं मगर उसे जुबान से कह नहीं सकती। अभी आपको मुझसे वर्षों तक काम पड़ेगा, जब आप हर तरह से निश्चिन्त हो जायंगे, आपकी किशोरी, जो इस समय रोहतासगढ़ में कैद है, आपको मिल जायगी। इसके अतिरिक्त एक और भी भारी काम आपके हाथ से हो लेगा, तब कहीं मेरी मुराद पुरी होगी, अर्थात् उस समय मुझे जो कुछ आपसे मांगना होगा, मांगूंगी। आप मेरी बात याद रखिएगा कि आप ही के ऐयार मेरे दुश्मन होंगे और अन्त में झख मारके मुझ ही से दोस्ती के तौर पर सलाह लेनी पड़ेगी। आप यह भी न समझिए कि मैं आज या कल से आपकी तरफदार बनी हूं, नहीं, बल्कि मैं महीनों से आपका काम कर रही हूं और इस सबब से सैकड़ों आदमी मेरे दुश्मन हो रहे हैं। दुश्मनों ही के डर से मैं इस तालाब में छिपकर बैठी रहती हूं क्योंकि जिन्हें इसका भेद मालूम नहीं है वे इस मकान के अन्दर पैर नहीं रख सकते। आप मुझे अकेली समझते होंगे, मगर मैं अकेली नहीं हूं, लौंडियां, सिपाही और ऐयार मिलाकर इस गई-गुजरी हालत में भी पचास आदमी मेरी ताबेदारी कर रहे हैं।

कुमार - वे लोग कहां हैं?

कमलिनी - उनमें से कई आदमियों को तो आप इसी जगह बैठे देखेंगे, बाकी सबको मैंने काम पर भेजा है। जब मैं आपकी खैरख्वाह हूं तो किशोरी की मदद भी जरूर ही करनी पड़ेगी, इसलिए मेरी एक ऐयार रोहतासगढ़ किले के अन्दर भी घुसकर बैठी है और किशोरी के हाल-चाल की खबर दिया करती है। अभी कल ही उसने एक चीठी भेजी थी, (कमर से चीठी निकालकर और कुमार के हाथ में देकर) लीजिए यही चीठी है, पहले आप इसे पढ़ लीजिए फिर और कुछ कहूंगी।

कुमार हाथ में चीठी लेकर गौर से पढ़ने लगे। यह वही चीठी थी जिस पर पहले कुमार की निगाह पड़ चुकी थी और जिसे एक गुलदस्ते के नीचे से निकालकर कुमार पढ़ चुके थे। कुमार ने चोरी से उस चीठी को पढ़ने का हाल कमलिनी से कहना मुनासिब न समझा और उसे इस तौर पर पढ़ गए जैसे पहली दफे वह चीठी उनके हाथ में पड़ी हो। परन्तु इस समय इस तरह कमलिनी उनकी दुश्मन नहीं है इस बात को वे अच्छी तरह समझ गए। मगर साथ-ही-साथ उनके दिल में एक दूसरी ही तरह की उत्कण्ठा बढ़ गई और वे यह जानने के लिए व्याकुल हो गए कि कमलिनी और इसकी ऐयारा ने रोहतासगढ़ किले में पहुंचकर क्या किया!

पाठक, शायद आप इस चीठी का मजमून भूल गए होंगे, मगर आप उसे याद करें या पुनः पढ़ जायं, क्योंकि उसके एक-एक शब्द का मतलब इस समय कमलिनी से कुमार पूछना चाहते हैं।

कुमार - मैं नहीं कह सकता और न मुझे मालूम ही है कि तुम इतनी भलाई मेरे साथ क्यों कर रही हो, तो भी मैं उम्मीद करता हूं कि तुम इस समय मुझे चिन्ता में डालकर दुःख न दोगी, बल्कि जो मैं पूछूंगा उसका ठीक-ठीक जवाब दोगी।

कमलिनी - आप मेरी तरफ से किसी तरह का बुरा खयाल न रखें। आज मैं इस बात पर मुस्तैद हूं कि अगर आपको कष्ट न हो तो रात भर जाग के बहुत कुछ हाल जो अब तक आपको मालूम नहीं है और आपके मतलब का है, आपसे कहूं और जो-जो सवाल आप करें, उनका जवाब दूं।

कुमार - मुझे तुम्हारे इस कहने से बड़ी खुशी हुई। अच्छा पहले इस बात का जवाब दो कि तुम्हारी वह ऐयारा, जो रोहतासगढ़ में है और इस चीठी के पढ़ने से जिसका नाम तारा मालूम होता है, रोहतासगढ़ में किस तौर पर है जहां तक मैं सोचता हूं वह भेष बदलकर नौकरी करती होगी।

कमलिनी - नहीं, उसने नौकरी नहीं की, बल्कि वहां इस तरह छिपकर रहती है कि वहां के किसी आदमी को उसका पता लग जाना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव है।

कुमार - अच्छा, तो उसने यह क्या लिखा है कि - 'किशोरी का आशिक भी यहां मौजूद है!'

कमलिनी - यह कटाक्ष माधवी के दीवान अग्निदत्त पर है, क्योंकि हम लोगों के हिसाब से वह किशोरी पर आशिक है! वह आपकी तरह सच्चा आशिक नहीं है, मगर बेईमान ऐयारों की तरह जरूर आशिक है।

कुमार - नहीं-नहीं, उसे तो हमारे आदमियों ने गिरफ्तार करके चुनार भेज दिया है!

कमलिनी - आपका यह खयाल गलत है। वह चुनार नहीं पहुंचा, न मालूम किस तरह उसने अपनी जान बचा ली है। इसका हाल आपको लश्कर में जाने या किसी को चुनारगढ़ भेजने से मालूम होगा।

कुमार - तो क्या वह भी रोहतासगढ़ पहुंच गया?

कमलिनी - पहुंच ही गया तभी तो तारा ने लिखा है।

कुमार - अच्छा, तो ये लाली और कुन्दन कौन हैं?

कमलिनी - आपकी और मेरी दुश्मन, इन दोनों को मामूली दुश्मन न समझिएगा।

कुमार - इसमें किशोरी के आशिक के बारे में लिखा है कि 'उसे किशोरी से बहुत-कुछ उम्मीद भी है' - इसका मतलब क्या है?

कमलिनी - सो ठीक अभी मालूम नहीं हुआ।

कुमार - यह जवाब तुमने बड़े खुटके का दिया।

कमलिनी - (हंसकर) आप चिन्ता न करें। किशोरी तन-मन-धन आपको समर्पण कर चुकी है, वह किसी दूसरे की न होगी।

कुमार - खैर, जब खुलासा हाल मालूम ही नहीं है तो जो कुछ सोचा जाय, मुनासिब है। इसमें लिखा है कि 'किशोरी ने भी पूरा धोखा खाया' - सो क्या?

कमलिनी - इसका भी हाल अभी नहीं मालूम हुआ। शायद आज-कल में कोई दूसरी चीठी आवेगी तो मालूम होगा। बल्कि और भी कुछ लिखा है, इशारा ही भर है, असल में क्या बात है सो मैं नहीं कह सकती।

कुमार - अच्छा, अब मैं तुम्हारा पूरा हाल जानना चाहता हूं और इसी के साथ रोहतासगढ़ में रहने वाली लाली और कुन्दन का वृत्तान्त भी तुम्हारी जुबानी सुनना चाहता हूं।

कमलिनी - मैं सब हाल आपसे कहूंगी और इसके अलावा एक ऐसे भेद की खबर भी आपको दूंगी कि आप खुश हो जायंगे, मगर इसके लिए आपको तीन-चार दिन तक और सब्र करना चाहिए। इसी बीच में तारा भी रोहतासगढ़ से आ जायेगी या मैं खुद उसे बुलवा लूंगी।

कुमार - इन सब बातों को जानने के लिए मैं बहुत बेचैन हो रहा हूं, कृपा करके जो कुछ तुम्हें कहना हो, अभी कहो।

कमलिनी - नहीं-नहीं, आप जल्दी न करें, मेरा दो-चार दिन के लिए टालना भी आप ही के फायदे के लिए है। आप यह न समझें कि मैं आपको जानबूझकर यहां अटकाना चाहती हूं। आप यदि मुझ पर भरोसा रखें और मुझे अपना दुश्मन न समझें तो यहां रहें। मैं लौंडियों की तरह आपकी ताबेदारी करने को तैयार हूं, और यदि मुझ पर एतबार न हो तो अपने लश्कर चले जायें, चार-पांच दिन के बाद मैं स्वयं आपसे मिलकर सब हाल कहूंगी।

कुमार - बेशक मैं तुम्हारे बारे में तरह-तरह की बातें सोचता था और तुम पर विश्वास करना मुनासिब नहीं समझता था, मगर अब तुम्हारी तरफ से मुझे किसी तरह का खुटका नहीं है। तुम्हारी बातों का मेरे दिल पर बड़ा ही असर हुआ। इसमें कोई सन्देह नहीं कि तुम सिवाय भलाई के मेरे साथ बुराई कभी न करोगी। मैं जरूर यहां रहूंगा और जब तक अपने दिल का शक अच्छी तरह न मिटा लूंगा, न जाऊंगा।

कमलिनी - अहोभाग्य! (हंसकर) मगर ताज्जुब नहीं कि इसी बीच में आपके ऐयार लोग यहां पहुंचकर मुझे गिरफ्तार कर लें।

कुमार - क्या मजाल है! 

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रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
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इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
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चंद्रकांता संतति भाग -1

11 जून 2022
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नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनन

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भाग 2

11 जून 2022
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इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

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भाग 3

11 जून 2022
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चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

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भाग 4

11 जून 2022
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खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

11 जून 2022
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पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

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भाग 6

11 जून 2022
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बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

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भाग 7

11 जून 2022
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अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं

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भाग 8

11 जून 2022
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अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो

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भाग 9

11 जून 2022
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भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ रात आते-आते लौट आये और उसी समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज किया कि आज शिकार खेलने के लिए कुमार जंगल में गये थे, एक बनैले सूअर के प

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भाग 10

11 जून 2022
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अब हम अपने पाठकों को फिर उसी खोह में ले चलते हैं जिसमें कुंअर आनंदसिंह को बेहोश छोड़ आये हैं अथवा जिस खोह में जान बचाने वाले सिपाही के साथ पहुंचकर उन्होंने एक औरत को छुरे से लाश काटते देखा था और योगिन

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भाग 11

11 जून 2022
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सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिय

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भाग 12

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अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां

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भाग 13

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दूसरे दिन खा-पीकर निश्चिंत होने के बाद दोपहर को जब दोनों एकांत में बैठे तो इंद्रजीतसिंह ने माधवी से कहा - ''अब मुझसे सब्र नहीं हो सकता, आज तुम्हारा ठीक-ठीक हाल सुने बिना कभी न मानूंगा और इससे बढ़कर न

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भाग 14

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इंद्रजीतसिंह ने दूसरे दिन पुनः नियत समय पर माधवी को जाने न दिया, आधी रात तक हंसी-दिल्लगी ही में काटी, इसके बाद दोनों अपने-अपने पलंग पर सो रहे। कुमार को तो खुटका लगा ही हुआ था कि आज वह काली औरत आवेगी इ

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भाग 15

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अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

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चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

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घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

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भाग 2

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किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

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भाग 3

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सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

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भाग 5

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कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

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भाग 6

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

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भाग 7

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आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

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भाग 8

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इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

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भाग 9

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

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भाग 10

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जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

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भाग 11

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हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

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भाग 12

11 जून 2022
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आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

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भाग 13

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

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भाग 14

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

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भाग 15

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राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

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भाग 16

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भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

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भाग 17

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मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

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चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

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पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

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भाग 2

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शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

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भाग 3

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ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

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भाग 4

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आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

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भाग 5

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कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

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भाग 6

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इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

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भाग 7

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

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भाग 8

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रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

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भाग 9

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आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

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भाग 10

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कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

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भाग 11

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इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

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भाग 12

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

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भाग 13

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आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

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भाग 14

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रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

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चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

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अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

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भाग 2

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कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

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भाग 3

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तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

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भाग 4

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अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

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भाग 6

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अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

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भाग 7

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लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

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भाग 8

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अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

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भाग 9

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अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

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भाग 10

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दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

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भाग 11

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अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

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भाग 12

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दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

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चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

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बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

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भाग 2

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पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

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भाग 3

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कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

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भाग 5

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अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

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आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

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भाग 7

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रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

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भाग 8

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बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

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भाग 9

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गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

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भाग 10

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वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

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भाग 11

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इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

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भाग 12

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दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

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भाग 13

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तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

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चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

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वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

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भाग 2

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इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

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भाग 3

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अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

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भाग 4

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अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

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भाग 5

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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

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भाग 6

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दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

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भाग 7

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आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

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चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

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नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

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भाग 2

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हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

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भाग 3

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

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भाग 4

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शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

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भाग 5

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पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

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मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

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चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

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मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

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भाग 2

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कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

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भाग 3

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मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

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भाग 4

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कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

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भाग 5

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दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

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भाग 6

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रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

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भाग 7

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राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

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भाग 8

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अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

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भाग 9

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

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भाग 10

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दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

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भाग 11

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ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

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भाग 12

11 जून 2022
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आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

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