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भाग 6

11 जून 2022

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मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो औरतों की आंखों में नींद का नाम-निशान भी नहीं। एक तो मायारानी की छोटी बहिन लाडिली, जो अपने सोने वाले कमरे में मसहरी के ऊपर पड़ी कुछ सोच रही है और थोड़ी-थोड़ी देर पर उठकर बाहर निकलती और सन्नाटे की तरफ ध्यान देकर लौट जाती है, मालूम होता है कि वह मकान से बाहर जाकर किसी से मिलने का मौका ढूंढ़ रही है, और दूसरी मायारानी, जो निद्रा न आने के कारण अपने कमरे में टहल रही है। उसे भी तरह-तरह के खयालों ने सता रखा है। कभी-कभी उसका सिर हिल जाता है जो उसके दिल की परेशानी को पूरी तरह से छिपा रहने नहीं देता, उसके होंठ भी कभी-कभी अलग होकर दिल का दरवाजा खोल देते हैं जिससे दिल के अन्दर कैद रहने वाले कई भेद शब्द रूप होकर धीरे से बाहर निकल पड़ते हैं।

जब चारों तरफ अच्छी तरह सन्नाटा हो गया तो लाडिली ने काले कपड़े पहने और ऐयारी का बटुआ कमर में लगाने के बाद कमरे के बाहर निकलकर इधर-उधर टहलना शुरू किया। वह उस कमरे के पास आई जिसके अन्दर मायारानी तरद्दुद और घबड़ाहट से निद्रा न आने के कारण टहल रही थी। लाडिली छिपकर देखने लगी कि मायारानी क्या कर रही है। थोड़ी देर के बाद मायारानी के मुंह से निकले हुए शब्द लाडिली ने सुने और वे शब्द ये थे - ''वह इस रास्ते को जानता है... वह भेद जिसे लाडिली नहीं जानती - आह, धनपत की मुहब्बत ने - ''

इन शब्दों को सुनकर लाडिली घबड़ा गई और बेचैनी से अपने कमरे में लौट आने के लिए तैयार हुई, मगर उसके दिल ने उसे वहां से लौटने न दिया। इच्छा हुई कि मायारानी के मुंह से और भी कोई शब्द निकलें तो सुने, परन्तु इसके बाद मायारानी कुछ ज्यादा बेचैन मालूम हुई और अपनी मसहरी पर जाकर लेट रही। आधी घड़ी से ज्यादा न बीती थी कि मायारानी की सांस ने लाडिली को उसके सो जाने की खबर दी और लाडिली वहां से लौटकर बाग में टहलने लगी। फिर घूमती-फिरती और अपने को पेड़ों की आड़ में बचाती हुई वह बाग के पिछले कोने में पहुंची जहां एक छोटा-सा मगर मजबूत बुर्ज बना था। इसके अन्दर जाने के लिए छोटा-सा लोहे का दरवाजा था जिसे उसने धीरे से खोला और अन्दर जाने के बाद फिर बन्द कर लिया। भीतर बिल्कुल अंधेरा था। बटुए में से सामान निकालकर मोमबत्ती जलाई और उस कोठरी की हालत अच्छी तरह देखने लगी। यह बुर्ज वाली कोठरी वर्षों से ही बन्द थी और इस सबब से इसके अन्दर मकड़ों ने अच्छी तरह अपना घर बना लिया था, मगर लाडिली ने इस कोठरी की गन्दी हालत पर कुछ ध्यान न दिया। इस कोठरी की जमीन चौखूंटे पत्थरों से बनी हुई थी और छत में छोटे-छोटे दो-तीन सूराख थे जिनमें से आसमान में जड़े हुए तारे दिखाई दे रहे थे। पहले तो लाडिली इस विचार में पड़ी कि बहुत दिनों से बन्द रहने के कारण इस कोठरी की हवा खराब होकर जहरीली हो गई होगी, शायद किसी तरह का नुकसान पहुंचे, मगर छत के सूराखों को देख निश्चिन्त हो गई और मोमबत्ती एक किनारे जमाकर जमीन पर बैठ गई। आधी घड़ी तक सोच-विचार में पड़ी रही, इसके बाद हलकी आवाज के साथ कोने की तरफ जमीन का एक चौखूंटा पत्थर किवाड़ के पल्ले की तरह खुलकर अलग हो गया और नीचे से अपनी असली सूरत में कमलिनी निकलकर लाडिली के सामने खड़ी हो गई। कमलिनी को देखते ही लाडिली उठ खड़ी हुई और बड़ी मुहब्बत से उसके साथ लिपटकर रोने लगी तथा कमलिनी की आंखें भी आंसू की बूंदें गिराने लगीं, कुछ देर बाद दोनों अलग हुईं और जमीन पर बैठकर बातचीत करने लगीं।

लाडिली - मेरी प्यारी बहिन, इस समय मेरी खुशी का अन्दाजा कोई भी नहीं कर सकता। मुझे तो इस बात का बड़ा ही रंज था कि तुमने मुझे अपने दिल से भुला दिया जिसकी आशा कदापि न थी, मगर आज शाम को तुम्हारे हाथ की लिखी हुई उस चीठी ने मुझमें जान डाल दी जो तेजसिंह के हाथ मुझ तक पहुंचाई गई थी।

कमलिनी - नहीं-नहीं, अभी तक मैं तुझे उतना ही प्यार करती हूं जितना यहां रहने पर करती थी परन्तु इस समय आशा कम थी कि मेरे लिखे अनुसार यहां आकर तू मुझसे मिलेगी, क्योंकि बड़ी बहिन मायारानी मेरी जान की ग्राहक हो रही है और तू पूरी तरह उसके कब्जे में है।

लाडिली - प्यारी बहिन, चाहे मायारानी का दिल तुम्हारी दुश्मनी से भरा हुआ क्यों न हो मगर मेरा दिल तुम्हारी मुहब्बत से किसी तरह खाली नहीं हो सकता। तुम्हारी चीठी पाते ही मैं बेचैन हो गई और हजारों आफतों की तरफ ध्यान न देकर बेखटके यहां चली आई। क्या अब भी तुम्हें...।

कमलिनी - हां-हां मुझे विश्वास है और मैं खूब जानती हूं कि अगर तेरे दिल में मेरी मुहब्बत न होती तो तू मेरे लिखने पर यकायक यहां न आती।

लाडिली - मुझे इस बात की शिकायत करने का मौका आज मिला कि तुमने इस घर को तिलांजलि देते समय अपने इरादे से मुझे बेखबर रखा।

कमलिनी - तो क्या मेरा इरादा जानने पर तू मेरा साथ देती

लाडिली - (जोर देकर) जरूर साथ देती! हाय, यहां रहकर जैसी तकलीफ में दिन काट रही हूं वह मेरा ही जी जान रहा है। ऐसे-ऐसे भयानक काम मुझसे लिए जाते हैं कि जिसे मैं मुख्तसर में कह नहीं सकती, लाचार होकर और झख मारकर सब-कुछ करना पड़ता है क्योंकि इस बात को मैं अच्छी तरह जानती हूं कि मायारानी के गुस्से में पड़कर मैं अपनी जान भारतवर्ष के किसी घने जंगल में छिपकर भी नहीं बचा सकती।

कमलिनी - इसका सबब यही है कि तू तिलिस्मी हाल से बिल्कुल बेखबर और भोली है, बल्कि वास्तव में रामभोली है।

लाडिली - (चौंककर) क्या तुम जानती हो कि मैं रामभोली बनने पर लाचार की गई थी?

कमलिनी - मुझे अच्छी तरह मालूम है, अभी तक नानक मेरे साथ रहकर मेरा काम कर रहा है।

लाडिली - हाय, जब वह तुम्हारे साथ है तो जरूर एक दिन सामना होगा। उस समय शर्म से मेरी आंखें ऊंची न होंगी, उस बेचारे के साथ मैंने बड़ी बुराई की।

कमलिनी - लेकिन मैं खूब जानती हूं कि इसमें तेरा कोई कसूर नहीं। खैर इस बात को जाने दे, मुझे तेरी मुहब्बत यहां तक खींच लाई है, मैं इस समय यह पूछने आई हूं कि अब तेरा क्या इरादा है क्योंकि इस तिलिस्म की उम्र अब तमाम हो गई और मायारानी अपने बुरे कर्मों का फल भोगा ही चाहती है।

लाडिली - (हाथ जोड़कर) मैं यही चाहती हूं कि तुम मुझे अपने साथ रखो जिसमें मायारानी का मुंह देखना नसीब न हो। मैं जानती हूं कि यह तिलिस्म अब टूटा ही चाहता है क्योंकि इधर थोड़े दिनों से बड़ी-बड़ी अद्भुत बातें देखने में आ रही हैं जिनसे खुद मायारानी की अक्ल चक्कर में है, मगर शक है तो इतना ही कि तिलिस्म तोड़ने वाले कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह इस समय मायारानी के कैदी हो रहे हैं और कल उन दोनों का सिर जरूर काटा जायगा।

कमलिनी - यह बात मुझे भी मालूम है मगर सवेरा होने के पहले ही मैं उन दोनों को छुड़ाकर ले जाऊंगी।

लाडिली - यदि ऐसा हो तो क्या बात है! वे दोनों कैसे नेक और खूबसूरत हैं। जिस समय मैंने आनन्दसिंह को देखा...।

इतना कह लाडिली चुप हो रही, उसकी आंखें नीची हो गईं और उसके गालों पर शर्म की सुर्खी दौड़ गई। कमलिनी समझ गई कि यह आनन्दसिंह को चाहती है।

कमलिनी - मगर उन दोनों को छुड़ाने के लिए कुछ तुमसे भी मदद चाहती हूं।

लाडिली - तुम्हारी आज्ञा मानने के लिए मैं हर तरह से तैयार हूं।

कमलिनी - तू बस कैदखाने की ताली मुझे ला दे जिसमें दोनों कुमार कैद हैं।

लाडिली - मैं उद्योग कर सकती हूं, मगर वह तो हरदम मायारानी की कमर में रहती है!

कमलिनी - उसके लेने की सहज तरकीब मैं बताती हूं।

लाडिली - क्या?

कमलिनी - (कमर से तिलिस्मी खंजर निकाल और दिखाकर) यह तिलिस्म की सौगात है, हाथ में लेकर जब इसका कब्जा दबाया जायगा तो बिजली की-सी चमक पैदा होगी जिसके सामने किसी की आंख खुली नहीं रह सकती। इसके अतिरिक्त इसमें और भी दो गुण हैं, एक तो यह कि जिसके बदन से यह लगा दिया जाय उसके बदन में बिजली दौड़ जाती है और वह तुरत बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ता है, और दूसरे यह हर एक चीज को काट डालने की ताकत रखता है।

कमलिनी ने खंजर का कब्जा दबाया। उसमें से ऐसी चमक पैदा हुई कि लाडिली ने दोनों हाथों से आंखें बन्द कर लीं और कहा, ''बस-बस इस चमक को दूर करो तो आंखें खोलूं!''

कमलिनी - (कब्जा ढीला करके) लो चमक बन्द हो गई, आंखें खोलो।

लाडिली - (आंखें खोलकर) मेरे हाथ में दो तो मैं भी कब्जा दबाकर देखूं! मगर नहीं तुम तो कह चुकी हो कि यह जिसके बदन से छुआया जायगा वह बेहोश हो जायगा, तो मैं इसे कैसे ले सकूंगी और तुम पर इसका असर क्यों नहीं होता

हम ऊपर लिख जाए हैं कि कमलिनी की कमर में दो तिलिस्मी खंजर थे और उनके जोड़ की दो अंगूठियां भी उसकी उंगलियों में थीं। उसने एक अंगूठी लाडिली की उंगली में पहिनाकर उसका गुण अच्छी तरह समझा दिया और कह दिया कि जिसके हाथ में यह अंगूठी रहेगी केवल वही इस खंजर को अपने पास रख सकेगा।

लाडिली - जब ऐसी चीज तुम्हारे पास है तो वह ताली तुम स्वयं उससे ले सकती हो।

कमलिनी - हां, मैं यह काम खुद भी कर सकती हूं मगर ताज्जुब नहीं कि मायारानी के कमरे तक जाते मुझे कोई देख ले और गुल करे तो मुश्किल होगी। यद्यपि मेरा कोई कुछ कर नहीं सकता और मैं इस खंजर की बदौलत सैकड़ों को मारकर निकल जा सकती हूं, मगर जहां तक बिना खून-खराबा किए काम निकल जाय तो उत्तम ही है।

लाडिली - हां ठीक है, तो अब विलम्ब न करना चाहिए।

कमलिनी - तो फिर जा, मैं इसी जगह बैठी तेरी राह देखूंगी!

खंजर के जोड़ की अंगूठी हाथ में पहनने बाद लाडिली ने तिलिस्मी खंजर ले लिया और बुर्ज का दरवाजा खोल यहां से रवाना हुई। कमलिनी को आधे घंटे से ज्यादे राह न देखनी पड़ी, इसके भीतर ही ताली लिए हुए लाडिली आ पहुंची और अपनी बड़ी बहिन के सामने ताली रखकर बोली, ''इस ताली के लेने में कुछ भी कठिनाई न हुई। मुझे किसी ने भी न देखा। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था, मायारानी बेखबर सो रही थी, ताली लेते समय वह जाग न उठे इससे यह तिलिस्मी खंजर एक दफे उसके बदन से लगा देना पड़ा, बस तुरत ही उसका बदन कांप उठा मगर वह आंखें न खोल सकी, मुझे विश्वास हो गया कि बेहोश हो गई। बस मैं ताली लेकर चली आई, मगर अब यहां ठहरना उचित नहीं।

कमलिनी - हां, अब यहां से चलना और उन कैदियों को छुड़ाना चाहिए।

लाडिली - मगर उन कैदियों को छुड़ाने के लिए तुमको इसी बाग की राह से कैदखाने तक जाना होगा!

कमलिनी - नहीं, वहां जाने के लिए दूसरी राह भी है जिसे मैं जानती हूं।

लाडिली - (ताज्जुब से कमलिनी का मुंह देखके) जीजाजी यहां के बहुत से रास्तों और सुरंगों तथा तहखानों को जानते थे, मालूम होता है तुमने उन्हीं से इसका हाल जाना होगा

कमलिनी - नहीं, यहां की बहुत-सी बातें किसी दूसरे ही सबब से मुझे मालूम हुईं जिसे सुनकर तू बहुत ही खुश होगी, हां यदि जीजाजी हम लोगों से जुदा न किए जाते तो यहां की अजीब बातों के देखने का आनन्द मिलता। मायारानी को भी यहां के भेद अच्छी तरह मालूम नहीं हैं।

लाडिली - जीजाजी हम लोगों से जुदा किये गये इसका मतलब मैं नहीं समझी।

कमलिनी - क्या तू समझती है कि गोपालसिंहजी (मायारानी के पति) अपनी मौत से मरे

लाडिली - (कुछ सोचकर) मुझे तो यही विश्वास है कि उन्हें जहर दिया गया, मैंने स्वयं देखा कि मरने पर उनका रंग काला हो गया था और चेहरा ऐसा बिगड़ गया कि मैं पहचान न सकी। हाय, हम दोनों बहिनों पर उनकी बड़ी कृपा रहती थी!

कमलिनी - उनकी कृपा किस पर नहीं रहती थी! (कुछ सोचकर) खैर आज मैं तुझे इस बाग के चौथे दर्जे में ले चलकर एक तमाशा दिखलाऊंगी।

लाडिली - (ताज्जुब से) क्या चौथे दर्जे में तुम जा सकती हो

कमलिनी - हां, मैं यहां के बहुत से भेदों को जान गई हूं और सब जगह घूम-फिर सकती हूं।

लाडिली - अहा, अब तो मैं जरूर चलूंगी! जीजाजी अक्सर कहा करते थे कि इस बाग के चौथे दर्जे में अगर कोई जाय तो उसे मालूम हो कि दुनिया क्या चीज है और ईश्वर की सृष्टि में कैसी विचित्रता दिखाई दे सकती है।

कमलिनी - अच्छा, अब चलकर पहले कैदियों को छुड़ाना चाहिए।

इतना कहकर कमलिनी उठी और मोमबत्ती हाथ में लिए हुए उस सुरंग के मुहाने पर गई जिसका मुंह चौखूंटे पत्थर के हट जाने से खुल गया था और जिसमें से वह कुछ ही देर पहले निकली थी। नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां मौजूद थीं, दोनों बहिनें नीचे उतर गईं। आखिरी सीढ़ी पर पहुंचने के साथ ही वह चौखूंटा पत्थर एक हलकी आवाज के साथ अपने ठिकाने पहुंच गया और उस सुरंग का मुंह बन्द हो गया।

(सातवाँ भाग समाप्त) 

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रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
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इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
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चंद्रकांता संतति भाग -1

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नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनन

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भाग 2

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इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

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भाग 3

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चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

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भाग 4

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खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

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भाग 6

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बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

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भाग 7

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अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं

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भाग 8

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अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो

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भाग 9

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भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ रात आते-आते लौट आये और उसी समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज किया कि आज शिकार खेलने के लिए कुमार जंगल में गये थे, एक बनैले सूअर के प

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भाग 10

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अब हम अपने पाठकों को फिर उसी खोह में ले चलते हैं जिसमें कुंअर आनंदसिंह को बेहोश छोड़ आये हैं अथवा जिस खोह में जान बचाने वाले सिपाही के साथ पहुंचकर उन्होंने एक औरत को छुरे से लाश काटते देखा था और योगिन

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भाग 11

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सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिय

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भाग 12

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अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां

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भाग 13

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दूसरे दिन खा-पीकर निश्चिंत होने के बाद दोपहर को जब दोनों एकांत में बैठे तो इंद्रजीतसिंह ने माधवी से कहा - ''अब मुझसे सब्र नहीं हो सकता, आज तुम्हारा ठीक-ठीक हाल सुने बिना कभी न मानूंगा और इससे बढ़कर न

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भाग 14

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इंद्रजीतसिंह ने दूसरे दिन पुनः नियत समय पर माधवी को जाने न दिया, आधी रात तक हंसी-दिल्लगी ही में काटी, इसके बाद दोनों अपने-अपने पलंग पर सो रहे। कुमार को तो खुटका लगा ही हुआ था कि आज वह काली औरत आवेगी इ

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भाग 15

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अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

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चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

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घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

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भाग 2

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किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

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भाग 3

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सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

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भाग 5

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कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

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भाग 6

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

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भाग 7

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आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

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भाग 8

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इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

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भाग 10

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जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

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भाग 11

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हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

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भाग 12

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आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

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भाग 15

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राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

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भाग 16

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भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

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भाग 17

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मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

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चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

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पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

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भाग 2

11 जून 2022
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शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

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भाग 3

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ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

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भाग 4

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आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

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भाग 5

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कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

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भाग 6

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इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

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भाग 7

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

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भाग 8

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रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

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भाग 9

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आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

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भाग 10

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कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

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भाग 11

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इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

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भाग 12

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

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भाग 13

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आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

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भाग 14

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रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

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चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

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अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

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भाग 2

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कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

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भाग 3

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तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

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भाग 4

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अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

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भाग 6

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अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

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भाग 7

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लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

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भाग 8

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अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

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भाग 9

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अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

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भाग 10

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दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

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भाग 11

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अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

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भाग 12

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दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

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चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

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बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

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भाग 2

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पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

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भाग 3

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कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

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भाग 5

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अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

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भाग 6

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आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

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भाग 7

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रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

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भाग 8

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बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

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भाग 9

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गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

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भाग 10

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वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

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भाग 11

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इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

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भाग 12

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दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

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भाग 13

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तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

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चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

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वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

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भाग 2

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इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

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भाग 3

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अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

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भाग 4

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अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

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भाग 5

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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

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भाग 6

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दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

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भाग 7

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आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

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चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

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नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

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भाग 2

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हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

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भाग 3

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

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शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

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पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

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मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

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चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

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मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

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भाग 2

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कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

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भाग 3

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मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

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भाग 4

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कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

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भाग 5

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दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

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भाग 6

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रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

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भाग 7

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राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

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भाग 8

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अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

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भाग 9

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

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भाग 10

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दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

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भाग 11

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ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

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भाग 12

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आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

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