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भाग 10

11 जून 2022

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कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने खयाल में डूबी हुई किशोरी ने सिर उठाया और दरवाजे की तरफ देखने लगी। लाली ने पहुंचकर सलाम किया और कहा, ''माफ कीजियेगा, मैं बिना हुक्म के इस कमरे में आई हूं।''

किशोरी - मैंने लौंडियों को हुक्म दे रखा है कि इस कमरे में कोई न आने पावे मगर साथ ही इसके यह भी कह दिया था कि लाली आने का इरादा करे तो उसे मत रोकना।

लाली - बेशक आपने मेरे ऊपर बड़ी मेहरबानी की।

किशोरी - मगर न मालूम तुम मेरे ऊपर दया क्यों नहीं करतीं! आओ बैठो।

लाली - (बैठकर) आप ऐसा न कहें, मैं जी-जान से आपके काम आने को तैयार हूं।

किशोरी - ये सब बनावटी बातें करती हो। अगर ऐसा ही होता तो अपना और कुंदन वाला भेद मुझसे क्यों छिपातीं नारंगी वाले भेद से तो मैं पहले ही हैरान हो रही थी मगर जब से कुंदन ने अपनी बातों का असर तुम पर डाला है तब से मेरी घबराहट और भी बढ़ गई है।

लाली - बेशक आपको बहुत कुछ ताज्जुब हुआ होगा। मैं कसम खाकर कह सकती हूं कि कुंदन ने उस समय जो मुझे कहा था या कुंदन की जिन बातों को सुनकर मैं डर गई थी वह उसे पहले से मालूम न थीं, अगर मालूम होतीं तो जिस समय मैंने नारंगी दिखाकर उसे धमकाया था उसी समय वह मुझसे बदला ले लेती। अब मुझे विश्वास हो गया कि इस मकान में कोई बाहर का आदमी जरूर आया है जिसने हमारे भेद से कुंदन को होशियार कर दिया। अफसोस, अब मेरी जान मुफ्त में जाया चाहती है क्योंकि कुंदन बड़ी ही बेरहम और बदकार औरत है।

किशोरी - तुम्हारी बातें मेरी घबड़ाहट को बढ़ा रही हैं, कृपा करके कुछ कहो तो सही, क्या भेद है

लाली - मैं बिल्कुल हाल आपसे कहूंगी और आपकी चिंता दूर करूंगी मगर आज रात भर आप मुझे और माफ कीजिये और इस समय एक काम में मेरी मदद कीजिए।

किशोरी - वह क्या

लाली - यह तो मुझे विश्वास हो ही गया कि अब मेरी जान किसी तरह नहीं बच सकती, तो भी अपने बचने के लिए मैं कोई-न-कोई उद्योग जरूर करूंगी। मैं चाहती हूं कि अपने मरने के पहले ही कुंदन को इस दुनिया से उठा दूं मगर एक ऐसी अंड़स में पड़ गई हूं कि ऐसा करने का इरादा भी नहीं कर सकती, हां कुंदन का कुछ विशेष हाल जानना चाहती हूं और इसके बाद बाग के उस कोने वाले मकान में घुसा चाहती हूं जिसमें हरदम ताला बंद रहता है और दरवाजे पर नंगी तलवार लिए दो औरतें बारी-बारी से पहरा दिया करती हैं। इन्हीं दोनों कामों में मैं आपसे मदद लिया चाहती हूं।

किशोरी - उस मकान में क्या है, तुम्हें कुछ मालूम है

लाली - हां, कुछ मालूम है और बाकी भेद जानना चाहती हूं। मुझे विश्वास है कि अगर आप भी मेरे साथ उस मकान के अंदर चलेंगी और हम दोनों आदमी किसी तरह बचकर निकल आवेंगे तो फिर आपको भी इस कैद से छुट्टी मिल जायगी, मगर उसके अंदर जाना और बचकर निकल आना यही मुश्किल है।

किशोरी - यह और ताज्जुब की बात तुमने कही, खैर ऐसी जिंदगी से मैं मरना उत्तम समझती हूं। जो कुछ तुम्हें करना हो करो और जिस तरह की मदद मुझसे लिया चाहती हो लो।

लाली - (एक छोटी-सी तस्वीर कमर से निकाल और किशोरी के हाथ में देकर) थोड़ी देर बाद मामूली तौर पर कुंदन जरूर आपके पास आवेगी, उस समय यह तस्वीर ऐसे ढंग से उसे दिखाइए जिससे उसे यह न मालूम हो कि आप जान-बूझकर दिखा रही हैं, फिर उसके चेहरे की जैसी रंगत हो या जो कुछ वह कहे मुझसे कहिए। इस समय तो यही एक काम है।

किशोरी - यह काम मैं बखूबी कर सकूंगी।

किशोरी ने लाली के हाथ से तस्वीर लेकर पहले खुद देखी। इस तस्वीर में एक खोह की हालत दिखाई गई थी जिसमें एक आदमी उलटा लटक रहा था और एक औरत हाथ में छुरा लिए उसके बदन में घाव लगा रही थी, पास में एक कमसिन औरत खड़ी थी और कोने की तरफ कब्र खोदी जा रही थी।

पाठक, यह तस्वीर ठीक उस समय की थी जिसका हाल हम पहले भाग के आठवें बयान में लिख आये हैं, मगर यह हाल किशोरी को अभी तक मालूम नहीं हुआ था। किशोरी उस तस्वीर को देखकर बहुत ही हैरान हुई और उसके बारे में लाली से कुछ पूछना चाहा। मगर लाली तस्वीर देने के बाद वहां न ठहरी, तुरंत बाहर चली गई।

लाली के जाने के थोड़ी ही देर बाद कुंदन आ पहुंची मगर उस समय किशोरी उस तस्वीर को देखने में अपने को यहां तक भूली हुई थी कि कुंदन का आना उसे तब मालूम हुआ जब उसने पास आकर कुछ देर तक खड़े रहकर पूछा, ''कहो बहिन, क्या देख रही हो'

किशोरी - (चौंककर) हैं! तुम यहां कब से खड़ी हो

कुंदन - कुछ देर से। इस तस्वीर में कौन-सी ऐसी बात है जिसे तुम बड़े गौर से देख रही हो।

किशोरी - तुमने इस तस्वीर को देखा है

कुंदन - सैकड़ों दफे। मैं समझती हूं कि यह तस्वीर तुम्हें लाली ने खास मुझे दिखाने के लिए दी है। आप लाली से कह दीजिएगा कि मैं इस तस्वीर को देखकर नहीं डर सकती। मैं बिना बदला लिए कभी न छोडूंगी क्योंकि जिस दिन पहले-पहल रात को आपसे मुलाकात हुई थी उस दिन यहां से मेरे निकल जाने का सामान बिल्कुल ठीक था, इसी लाली ने मेरे उद्योग को मिट्टी कर दिया और मेरे मददगारों को भी फंसा दिया, खैर देखा जायगा। मैं आपके मिलने से प्रसन्न थी मगर अफसोस, उसने झूठी बात गढ़कर आपका दिल भी मेरी तरफ से फेर दिया। तो भी मैं आपके साथ बुराई न करूंगी और जहां तक हो सकेगा उसकी चालबाजियों से आपको होशियार कर दूंगी, मानने-न-मानने का आपको अख्तियार है।

किशोरी - मेरी समझ में कुछ नहीं आता कि क्या हो रहा है। हे ईश्वर, मैंने क्या अपराध किया था कि चारों तरफ से संकट ने आकर घेर लिया! हाय, मैं बिल्कुल नहीं जान सकती कि कौन मेरा दोस्त हे और कौन दुश्मन!

इतना कह किशोरी रोने लगी, उसने अपने को बहुत संभालना चाहा मगर न हो सका, हिचकियों ने उसका गला दबा दिया। कुंदन किशोरी के पास बैठ गई और उसका हाथ अपने दोनों हाथों में दबाकर बोली -

''प्यारी किशोरी, यह समझना तो बहुत मुश्किल है कि यहां आपका दोस्त कौन है। बात बनाकर दोस्ती साबित करना भूल है तिसमें दुश्मन के घर में, हां, यह मैं जरूर साबित कर दूंगी कि लाली आपसे दुश्मनी रखती है। लाली ने आपसे जरूर कहा होगा कि आपकी तरह मैं भी कुमार के साथ ब्याह करने के लिए लाई गई हूं मगर नहीं, यह बात बिल्कुल झूठ है। असल तो यह है कि लाली मुझको बिल्कुल नहीं जानती और न मैं जानती हूं, कि लाली कौन है मगर आजकल लाली जिस फिक्र में पड़ी है उससे मैं समझती हूं कि वह आपके साथ दुश्मनी कर रही है। ताज्जुब नहीं कि वह आपको एक दिन उस मकान में ले जाय जिसका ताला बराबर बंद रहता है और जिसके दरवाजे पर नंगी तलवार का पहरा पड़ा रहता है क्योंकि आजकल वह वहां पहरा देने वाली औरतों से दोस्ती बढ़ा रही है और ताला खोलने के लिए एक ताली तैयार कर रही है। उसकी दुश्मनी का अंत उसी दिन होगा जिस दिन वह आपको उस मकान के अंदर कर देगी, फिर आपकी जान किसी तरह नहीं बच सकती। उसका ऐसा करना केवल आप ही के साथ दुश्मनी करना नहीं बल्कि यहां के राजा और इस राज्य के साथ भी दुश्मनी करना है। बेशक वह आपको उस मकान के अंदर भेजेगी और आप उस चौखट के अंदर पैर भी न रखेंगी।''

किशोरी - उस मकान के अंदर क्या है?

कुंदन - सो मैं नहीं जानती।

किशोरी - यहां का कोई आदमी जानता है?

कुंदन - कोई नहीं, बल्कि जहां तक मैं खयाल करती हूं, यहां का राजा भी उसके अंदर का हाल नहीं जानता।

किशोरी - क्या मकान कभी खोला नहीं जाता?

कुंदन - मेरे सामने तो कभी खोला नहीं गया।

किशोरी - फिर कैसे कह सकती हो कि उसके अंदरन जाकर कोई बच नहीं सकता?

कुंदन - इसका जानना तो कोई मुश्किल नहीं है। पहले तो यही सोचिए कि वहां हरदम ताला बंद रहता है, अगर कोई चोरी से भीतर गया भी तो निकलने का मौका मुश्किल से मिलेगा, फिर हम लोगों को उसके अंदर जाकर फायदा ही क्या होगा आपने देखा होगा, उस दरवाजे के ऊपर लिखा है कि - 'इसके अंदर जो जायगा उसका सिर आपसे आप कटकर गिर पड़ेगा'! जो हो मगर यह सब होते हुए भी लाली आपको उस मकान के अंदर जरूर भेजना चाहेगी।

किशोरी - खैर, इस तस्वीर का हाल अगर तुम जानती हो तो कहो।

कुंदन - कहती हूं सुनो-जब कुंअर इंद्रजीतसिंह को धोखा देकर माधवी ले गई तो उनके छोटे भाई आनंदसिंह उनकी खोज में निकले। एक मुसलमानी ने उन्हें धोखा देकर गिरफ्तार कर लिया और उनके साथ शादी करनी चाही मगर उन्होंने मंजूर न किया और तीन दिन भूखे उसके यहां कैद रह गये। आखिर उन्हीं के ऐयार देवीसिंह ने उस कैद से उनको छुड़ाया मगर उन्हें अभी तक मालूम नहीं है कि उन्हें देवीसिंह ने छुड़ाया था।

इसके बाद उस तस्वीर के बारे में जो कुछ आनंदसिंह ने देखा - सुना था कुंदन ने वहां तक कह सुनाया जब आनंदसिंह बेहोश करके उस खोह के बाहर निकाल दिये गये बल्कि घर पहुंचा दिये गये।

किशोरी - यह सब हाल तुम्हें कैसे मालूम हुआ

कुंदन - मुझसे देवीसिंह ने कहा था।

किशोरी - देवीसिंह से तुमसे क्या संबंध

कुंदन - जान-पहचान है। आपने इस तस्वीर के बारे में लाली से कुछ सुना है या नहीं

किशोरी - कुछ नहीं।

कुंदन - पूछिये, देखें क्या कहती है! अच्छा, अब मैं जाती हूं, फिर मिलूंगी।

किशोरी - जरा ठहरो तो।

कुंदन - अब मत रोको, बेमौका हो जायगा। मैं फिर बहुत जल्द मिलूंगी।

कुंदन चली गई मगर किशोरी पहले से भी ज्यादे सोच में पड़ गई। कभी तो उसका दिल लाली की तरफ झुकता और उसको अपने दुख का साथी समझती, कभी सोचते-सोचते लाली की बातों में शक पड़ जाने पर कुदंन ही को सच्ची समझती। उसका दिल दोनों तरफ के खिंचाव में पड़कर बेबस हो रहा था, वह ठीक निश्चय नहीं कर सकती थी कि अपना हमदर्द लाली को बनावे या कुंदन को क्योंकि लाली और कुंदन दोनों अपने असली भेदों को किशोरी से छिपा रही थीं।

उस दिन लाली ने फिर मिलकर किशोरी से पूछा, ''उस तस्वीर को देखकर कुंदन की क्या दशा हुई' जिसके जवाब में किशोरी ने कहा, ''कुंदन ने उस तस्वीर की तरफ ध्यान भी न दिया और मेरे खुद पूछने पर कहा, मैं नहीं जानती यह तस्वीर कैसी है और न इसे कभी मैंने पहले देखा ही था।''

यह सुनकर लाली का चेहरा कुछ उदास हो गया और वह किशोरी के पास से उठकर चली गई। किशोरी ने कहा, ''भला तुम ही बताती जाओ कि यह तस्वीर कैसी है' मगर लाली ने इसका कुछ जवाब न दिया और चली गई।

इस बात को कई दिन बीत गये। लश्कर से कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल भी चारों तरफ फैल गया जिसे सुन धीरे-धीरे किशोरी की उदासी और भी ज्यादे बढ़ गई।

एक दिन रात को अपनी पलंगड़ी पर लेटी हुई किशोरी तरह-तरह की बातें सोच रही थी, लाली और कुंदन के बारे में भी गौर कर रही थी। यकायक वह उठ बैठी और धीरे-से आप ही बोली, 'अब मुझे खुद कुछ करना चाहिए, इस तरह पड़े रहने से काम नहीं चलता। मगर अफसोस, मेरे पास कोई हरबा भी तो नहीं है।'

किशोरी पलंग के नीचे उतरी और कमरे में इधर-उधर टहलने लगी, आखिर कमरे के बाहर निकली। देखा कि पहरेदार लौंडियां गहरी नींद में सो रही हैं। आधी रात से ज्यादे जा चुकी थी, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था। धीरे-धीरे कदम बढ़ाती हुई कुंदन के मकान की तरफ बढ़ी। जब पास पहुंची तो देखा कि एक आदमी काले कपड़े पहने उसी तरफ लपका हुआ जा रहा है बल्कि उस कमरे के दालान में पहुंच गया जिसमें कुंदन रहती है। किशोरी एक पेड़ की आड़ में खड़ी हो गई, शायद इसलिए कि वह आदमी लौटकर चला जाय तो आगे बढ़ूं।

थोड़ी देर बाद कुंदन भी उसी आदमी के साथ बाहर निकली और धीरे-धीरे बाग के उस तरफ रवाना हुई जिधर घने दरख्त लगे हुए थे। जब दोनों उस पेड़ के पास पहुंचे जिसकी आड़ में किशोरी छिपी हुई थी तब वह आदमी रुका और धीरे से बोला -

आदमी - अब तुम जाओ, ज्यादे दूर तक पहुंचाने की कोई जरूरत नहीं।

कुंदन - फिर भी मैं कहे देती हूं कि अब पांच-सात दिन 'नारंगी' की कोई जरूरत नहीं।

आदमी - खैर, मगर किशोरी पर दया बनाये रखना।

कुंदन - इसके कहने की कोई जरूरत नहीं।

वह आदमी पेड़ों के झुंड की तरफ चला गया और कुंदन लौटकर अपने कमरे में चली गई। किशोरी भी फिर वहां न ठहरी और अपने कमरे में आकर पलंग पर लेट रही क्योंकि उन दोनों की बातों ने जिसे किशोरी ने अच्छी तरह सुना था उसे परेशान कर दिया और वह तरह-तरह की बातें सोचने लगी, मगर अपने दिल का हाल किससे कहे इस लायक वहां कोई भी न था।

पहले तो किशोरी बनिस्बत कुंदन के लाली को सच्ची और नेक समझती थी मगर अब वह बात न रही। किशोरी उस आदमी के मुंह से निकली हुई उस बात को फिर याद करने लगी कि 'किशोरी पर दया बनाये रखना।'

वह आदमी कौन था इस बाग में आना और यहां से निकलकर जाना तो बड़ा ही मुश्किल है, फिर वह क्योंकर आया! उस आदमी की आवाज पहचानी हुई-सी मालूम होती है, बेशक मैं उससे कई दफे बातें कर चुकी हूं, मगर कब और कहां, सो याद नहीं पड़ता और न उसकी सूरत का ध्यान बनता है। कुंदन ने कहा था, 'पांच-सात दिन तक नारंगी की कोई जरूरत नहीं।' इससे मालूम होता है कि नारंगी वाली बात कुछ उस आदमी से संबंध रखती है और लाली उस भेद को जानती है। इस समय तो यह निश्चय हो गया कि कुंदन मेरी खैरख्वाह है और लाली मुझसे दुश्मनी किया चाहती है मगर इसका भी विश्वास नहीं होता। कुछ भेद खुला मगर इससे तो और भी उलझन हो गई। खैर कोशिश करूंगी तो कुछ और भी पता लगेगा मगर अबकी लाली का हाल मालूम करना चाहिए।

थोड़ी देर तक इन सब बातों को किशोरी सोचती रही, आखिर फिर अपने पलंग से उठी और कमरे के बाहर आई। उसकी हिफाजत करने वाली लौंडियां उसी तरह गहरी नींद में सो रही थीं। जरा रुककर बाग के उस कोने की तरफ बढ़ी जिधर लाली का मकान था। पेड़ों की आड़ में अपने को छिपाती और रुक-रुककर चारों तरफ की आहट लेती हुई चली जाती थी, जब लाली के मकान के पास पहुंची तो धीरे-धीरे किसी की बातचीत की आहट पा एक अंगूर की झाड़ी में रुक रही और कान लगाकर सुनने लगी, केवल इतना ही सुना, ''आप बेफिक्र रहिये, जब तक मैं जीती हूं कुंदन किशोरी का कुछ बिगाड़ नहीं सकती ओैर न उसे कोई दूसरा ले जा सकता है। किशोरी इंद्रजीतसिंह की है और बेशक उन तक पहुंचाई जायेगी।''

किशोरी ने पहचान लिया कि यह लाली की आवाज है। लाली ने यह बात बहुत धीरे से कही थी मगर किशोरी बहुत पास पहुंच चुकी थी इसलिए बखूबी सुनकर पहचान सकी कि लाली की आवाज है मगर यह न मालूम हुआ कि दूसरा आदमी कौन है। लाली अपने कमरे के पास ही थी बात कहकर तुरंत दो-चार सीढ़ियां चढ़ अपने कमरे में घुस गई और उसी जगह से एक आदमी निकलकर पेड़ों की आड़ में छिपता हुआ बाग के पिछली तरफ जिधर दरवाजे में बराबर ताला बंद रहने वाला मकान था चला गया, मगर उसी समय जोर-जोर से ''चोर-चोर'' की आवाज आई। किशोरी ने आवाज को भी पहचानकर मालूम कर लिया कि कुंदन है जो उस आदमी को फंसाया चाहती है। किशोरी फौरन लपकती हुई अपने कमरे में चली आई और चोर-चोर की आवाज बढ़ती ही गई।

किशोरी अपने कमरे में आकर पलंग पर लेट रही और उन बातों पर गौर करने लगी जो अभी दो-तीन घंटे के हेर-फेर में देख-सुन चुकी थी। वह मन ही मन में कहने लगी, 'कुंदन की तरफ भी गई और लाली की तरफ भी गई जिससे मालूम हो गया कि वे दोनों ही एक-एक आदमी से जान-पहचान रखती हैं जो बहुत छिपकर इस मकान में आता है। कुंदन के साथ जो आदमी मिलने आया था उसकी जुबानी जो कुछ मैंने सुना उससे जाना जाता था कि कुंदन मुझसे दुश्मनी नहीं रखती बल्कि मेहरबानी का बर्ताव किया चाहती है, इसके बाद जब लाली की तरफ गई तो वहां की बातचीत से मालूम हुआ कि लाली सच्चे दिल से मेरी मददगार है और कुंदन शायद दुश्मनी की निगाह से मुझे देखती है। हां ठीक है, अब समझी बेशक ऐसा ही होगा। नहीं-नहीं मुझे कुंदन की बातों पर विश्वास न करना चाहिए! अच्छा देखा जायेगा। कुंदन ने बेमौके चोर-चोर का शोर मचाया, कहीं ऐसा न हो कि बेचारी लाली पर कोई आफत आवे।'

इन्हीं सब बातों को सोचती हुई किशोरी ने बची हुई थोड़ी-सी रात जागकर ही बिता दी और सुबह की सफेदी फैलने के साथ ही अपने कमरे के बाहर निकली क्योंकि रात की बातों का पता लगाने के लिए उसका जी बेचैन हो रहा था।

किशोरी जैसे ही दालान में पहुंची, सामने से कुंदन को आते हुए देखा। कुंदन ने पास आकर सलाम किया और कहा, ''रात का कुछ हाल मालूम है या नहीं'

किशोरी - सब-कुछ मालूम है! तुम्हीं ने तो गुल मचाया था!

कुंदन - (ताज्जुब से) यह कैसी बात कहती हो

किशोरी - तुम्हारी आवाज साफ मालूम होती थी।

कुंदन - मैं तो चोर-चोर का गुल सुनकर वहां पहुंची थी और उन्हीं की तरह खुद भी चिल्लाने लगी थी।

किशोरी - (हंसकर) शायद ऐसा ही हो।

कुंदन - क्या इसमें आपको कोई शक है

किशोरी - बेशक।  लो यह लाली भी आ रही है।

कुंदन - (कुछ घबड़ाकर) जो कुछ किया उन्होंने किया।

इतने में लाली भी आकर खड़ी हो गई और कुंदन की तरफ देखकर बोली, ''आपका वार खाली गया।''

कुंदन - (घबड़ाकर) मैंने क्या...

लाली - बस रहने दीजिये, आपने मेरी कार्रवाई कम देखी होगी मगर दो घंटे पहले मैं आपकी पूरी कार्रवाई मालूम कर चुकी थी।

कुंदन - (बदहवास होकर) आप तो कसम खा...

लाली - हां-हां, मुझे खूब याद है, मैं उसे नहीं भूलती।

किशोरी - जो हो, मुझे अब पांच-सात दिन तक नारंगी की कोई जरूरत नहीं।

किशोरी की इस बात ने लाली और कुंदन दोनों को चौंका दिया। लाली के चेहरे पर कुछ हंसी थी मगर कुंदन के चेहरे का रंग बिल्कुल ही उड़ गया था क्योंकि उसे विश्वास हो गया कि किशोरी ने भी रात की कुल बातें सुन लीं। कुंदन की घबराहट और परेशानी यहां तक बढ़ गई कि किसी तरह अपने को सम्हाल न सकी और बिना कुछ कहे वहां से उठकर अपने कमरे की तरफ चली गई। अब लाली और किशोरी में बातचीत होने लगी -

लाली - मालूम होता है तुमने भी रात भर ऐयारी की!

किशोरी - हां, मैं कुंदन की तरफ छिपकर गई थी।

लाली - तब तो तुम्हें मालूम हो गया होगा कि कुंदन तुम्हें धोखा दिया चाहती है।

किशोरी - पहले तो यह साफ नहीं जान पड़ता था मगर जब तुम्हारी तरफ गई और तुमको किसी से बातें करते सुना तो विश्वास हो गया कि इस महल में केवल तुम्हीं से मैं कुछ भलाई की उम्मीद कर सकती हूं।

लाली - ठीक है, कुंदन की कुल बातें तुमने नहीं सुनीं, क्या मुझसे भी...(रुककर) खैर जाने दीजिये। हां, अब वह समय आ गया कि तुम और हम दोनों यहां से निकल जायें। क्या तुम मुझ पर विश्वास रखती हो

किशोरी - बेशक, तुमसे मुझे नेकी की उम्मीद है, मगर कुंदन बहुत बिगड़ी हुई मालूम होती है।

लाली - वह मेरा कुछ नहीं कर सकती।

किशोरी - अगर तुम्हारा हाल किसी से कह दे तो

लाली - अपनी जुबान से वह नहीं कह सकती, क्योंकि वह मेरे पंजे में उतना ही फंसी हुई है जितना मैं उसके पंजे में।

किशोरी - अफसोस! इतनी मेहरबानी रहने पर भी तुम वह भेद मुझसे नहीं कहतीं

लाली - घबड़ाओ मत, धीरे-धीरे सब-कुछ मालूम हो जाएगा। 

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रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
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इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
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चंद्रकांता संतति भाग -1

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भाग 2

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इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

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भाग 3

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चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

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भाग 4

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खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

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भाग 6

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बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

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भाग 7

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अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं

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भाग 8

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अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो

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भाग 9

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भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ रात आते-आते लौट आये और उसी समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज किया कि आज शिकार खेलने के लिए कुमार जंगल में गये थे, एक बनैले सूअर के प

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भाग 10

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भाग 11

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सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिय

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भाग 12

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अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां

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भाग 13

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दूसरे दिन खा-पीकर निश्चिंत होने के बाद दोपहर को जब दोनों एकांत में बैठे तो इंद्रजीतसिंह ने माधवी से कहा - ''अब मुझसे सब्र नहीं हो सकता, आज तुम्हारा ठीक-ठीक हाल सुने बिना कभी न मानूंगा और इससे बढ़कर न

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भाग 14

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भाग 15

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अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

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चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

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घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

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भाग 2

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किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

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भाग 3

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सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

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भाग 5

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कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

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भाग 6

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

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भाग 7

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आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

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भाग 8

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इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

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भाग 9

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

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भाग 10

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जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

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भाग 11

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हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

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भाग 12

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आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

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भाग 13

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

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भाग 14

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

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भाग 15

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राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

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भाग 16

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भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

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भाग 17

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मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

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चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

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पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

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भाग 2

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शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

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भाग 3

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ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

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भाग 4

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आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

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भाग 5

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कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

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भाग 6

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इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

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भाग 7

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

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भाग 8

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रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

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भाग 9

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आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

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भाग 10

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कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

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भाग 11

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इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

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भाग 12

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

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भाग 13

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आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

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भाग 14

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रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

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चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

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अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

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भाग 2

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कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

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भाग 3

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तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

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अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

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भाग 6

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अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

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भाग 7

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लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

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भाग 8

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अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

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अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

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भाग 10

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दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

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भाग 11

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अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

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भाग 12

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दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

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चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

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बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

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भाग 2

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पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

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भाग 3

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कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

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भाग 5

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अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

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आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

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भाग 7

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रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

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बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

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भाग 9

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गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

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भाग 10

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वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

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भाग 11

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इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

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भाग 12

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दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

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भाग 13

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तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

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चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

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वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

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भाग 2

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इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

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भाग 3

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अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

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भाग 4

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अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

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भाग 5

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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

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भाग 6

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दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

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भाग 7

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आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

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चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

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नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

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भाग 2

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हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

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भाग 3

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

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भाग 4

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शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

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भाग 5

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पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

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भाग 6

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मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

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चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

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मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

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भाग 2

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कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

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भाग 3

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मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

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भाग 4

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कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

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भाग 5

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दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

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भाग 6

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रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

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भाग 7

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राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

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भाग 8

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अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

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भाग 9

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

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भाग 10

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दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

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भाग 11

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ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

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भाग 12

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आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

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