अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो गई थी, पर लड़की किशोरी की उम्र अभी पंद्रह वर्ष से ज्यादे न होगी। इस समय बेचारी किशोरी शिवदत्तगढ़ में मौजूद नहीं है क्योंकि महाराज शिवदत्त ने रंज होकर उसे उसके ननिहाल भेज दिया है। रंज होने का कारण हम यहां पर नहीं लिखते क्योंकि यह बहुत पेचीदी बात है, खुलते-खुलते खुल जाएगी।
भीमसेन शिवदत्तगढ़ में मौजूद है। उसे सिपाहगिरी का बहुत शौक है, बदन में ताकत भी अच्छी है। तलवार, खंजर, नेजा, तीर, गदा इत्यादि चलाने में होशियार और राज-काज के मामले में भी तेज है मगर अपने पिता महाराज शिवदत्त की चाल को पसंद नहीं करता, पर फिर भी महाराज शिवदत्त को उससे बहुत ही ज्यादा प्रेम है।
एक दिन भीमसेन मामूली तौर पर बीस हमजोलियों को साथ ले घोड़े पर सवार होकर शिकार खेलने के लिए शिवदत्तगढ़ के बाहर निकला और एक ऐसे जंगल में गया जिसमें बनैले सूअर बहुत रहते थे। उसका इरादा भी यही था कि घोड़ा दौड़ाकर बरछे से सूअर को मारे।
जंगल में घूमने-फिरने लगे। एक ताकतवर और मजबूत सूअर भीमसेन की बगल से होता हुआ पूरब की तरफ भागा। भीमसेन ने भी उसके पीछे घोड़ा दौड़ाया, मगर वह बहुत तेजी के साथ भागा जा रहा था। इसलिए बहुत दूर निकल गया, उसके संगी - साथी सब पीछे छूट गये। यकायक भीमसेन ने देखा कि सामने की तरफ जिधर सूअर भागा जाता है एक औरत घोड़े पर सवार हाथ में बरछी लिए इस ताक में खड़ी है कि सूअर पास आवे तो बरछी से मार ले।
जब सूअर ऐसे ठिकाने पहुंचा जहां से वह औरत इतनी दूर रह गई जितनी दूर उसके पीछे भीमसेन था, वह बाईं तरफ को मुड़ा और पहले से ज्यादा तेजी के साथ भागा। भीमसेन और वह औरत दोनों ही ने उसके पीछे घोड़ा फेंका मगर भीमसेन से पहले उस औरत ने पहुंचकर बरछी मारी जिसके लगते ही वह सूअर गिरा।
अपना शिकार एक औरत के हाथ से मरते देख भीमसेन को क्रोध चढ़ आया और आंखें लाल हो गईं। ललकारकर औरत से बोला - ''तूने मेरे शिकार पर क्यों बरछी चलाई!''
औरत - क्या शिकार पर तुम्हारा नाम खुदा हुआ था
भीम - क्यों नहीं! मेरा जंगल, मेरा शिकार, इतनी देर से मैं इसके पीछे चला आ रहा हूं!
औरत - वाह रे तेरा जंगल और वाह रे तेरा शिकार! तीन कोस से दौड़े चले आते हैं, एक सूअर न मारा गया! शर्म तो आती नहीं उल्टे लाल आंखें कर मर्दानगी दिखा रहे हैं!!
भीम - क्या कहूं, तेरी खूबसूरती पर रहम आता है, औरत समझकर छोड़ देता हूं नहीं तो जरूर मजा चखा देता।
औरत - मैं भी छोकरा समझकर छोड़ देती हूं नहीं तो दोनों कान पकड़कर उखाड़ लेती!
भीम - (दांत पीसकर) बस अब सहा नहीं जाता। जुबान सम्हाल!
औरत - नहीं सहा जाता तो अपने हाथ से अपना मुंह पीट! यहां तो जुबान हमेशा यों ही चलती रही है और चलती रहेगी!
इस औरत की खूबसूरती, सवारी का ढंग, बदन की सुडौलता और फुर्ती यहां तक चढ़ी - बढ़ी थी कि आदमी घंटों देखा करे और जी न भरे मगर इसकी जली-कटी बातों ने भीमसेन को आपे से बाहर कर दिया। आंखों के आगे अंधेरा छा गया, बिना कुछ सोचे-विचारे उस औरत पर बरछी का वार किया। औरत ने बड़ी फुर्ती से बर्छी को ढाल पर रोका और हंसकर कहा, ''और जो कुछ हौसला रखता हो ला!''
घंटे भर तक दोनों में बरछी की लड़ाई हुई। इस समय अगर कोई इस फन का उस्ताद होता तो उस औरत की फुर्ती देख बेशक खुश हो जाता और 'वाह-वाह' या 'शाबाश' कहे बिना न रहता। आखिर उस औरत की बरछी जिसका फल जहर से बुझाया हुआ था भीमसेन की जांघ में लगा जिसके लगते ही तमाम बदन में जहर फैल गया और वह बदहवास होकर जमीन पर गिर पड़ा।