shabd-logo

भाग 5

11 जून 2022

16 बार देखा गया 16

रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औरत और दूसरा मर्द है, घूमते हुए दिखाई देते हैं। ये दोनों कमलिनी और भूतनाथ हैं जो त्रिलोचनेश्वर महादेव के पास मनोरमा के मकान पर पहुंचने की धुन में कदम बढ़ाये हुए तेजी के साथ जा रहे हैं। जब ये दोनों एक चौमुहानी के पास पहुंचे तो देखा कि दाहिनी तरफ से एक आदमी पीठ पर गट्ठर लादे आया और उसी तरफ को घूमा जिधर ये दोनों जाने वाले थे। कमलिनी ने धीरे से भूतनाथ के कान में कहा, ''इस गठरी में जरूर कोई आदमी है।''

भूतनाथ - बेशक ऐसा ही है। इस आदमी की चाल पर भी मुझे कुछ शक पड़ता है। ताज्जुब नहीं कि यह मनोरमा का नौकर श्यामलाल हो।

कमलिनी - तुम्हारा शक ठीक हो सकता है क्योंकि तुम बहुत दिनों तक मनोरमा के मकान पर रह चुके हो और वहां के हर एक आदमी को बखूबी जानते हो।

भूतनाथ - कहो तो इसे रोकूं?

कमलिनी - हां-हां रोको, जाने न पावे।

भूतनाथ लपककर उस आदमी के सामने आया और कमर से खंजर निकालकर उसके सामने चमकाया। उसकी चमक में भूतनाथ और कमलिनी ने उस आदमी को पहचान लिया, मगर वह इन दोनों को अच्छी तरह न देख सका, क्योंकि बिजली की तरह चमकने वाली रोशनी ने उसकी आंखें बन्द कर दीं और वह घबराकर बैठ गया। भूतनाथ ने खंजर उसके बदन से लगाया जिसकी तासीर से वह एक दफे कांपा और बेहोश होकर जमीन पर लम्बा हो गया। भूतनाथ ने उसे उसी तरह छोड़ दिया और गठरी का कोना खोलकर देखा तो उसमें एक कमसिन औरत बंधी पाई। कमलिनी के हुक्म से भूतनाथ ने वह गठरी अपनी पीठ पर लाद ली और मनोरमा के घर का रास्ता छोड़ दोनों आदमी गंगा-किनारे की तरफ रवाना हुए।

बात-की-बात में दोनों गंगा-किनारे जा पहुंचे। इस समय चन्द्रमा की रोशनी अच्छी तरह फैली हुई थी। एक मढ़ी के ऊपर बैठने के बाद भूतनाथ ने वह गठरी खोली। उस बेहोश औरत के चेहरे पर चन्द्रमा की रोशनी पड़ते ही भूतनाथ चौंककर बोला, ''ओफ, यह तो कमला है!''

कमला होश में लाई गई। जब उसकी निगाह भूतनाथ के ऊपर पड़ी तो वह एकदम कांप उठी। कमला को उस दिन की बात याद आ गई जिस दिन खंडहर के तहखाने में अपने चाचा शेरसिंह के पास भूतनाथ को देखा था, कमला को शक हो गया कि इस समय वह जिसके हुक्म से बेहोश करके लाई गई, वह भूतनाथ ही है। कमला की दूसरी निगाह कमलिनी पर पड़ी मगर वह कमलिनी को पहचान न सकी। यद्यपि कमला कमलिनी को रोहतासगढ़ पहाड़ी पर देख चुकी थी परन्तु इस समय कमलिनी उस भयानक राक्षसी के भेष में न थी, रंग काला जरूर था, परन्तु लम्बे-लम्बे दांत उसके मुंह में न थे, इसी से वह कमलिनी को नहीं पहचान सकी।

कमलिनी ने जब देखा कि कमला बहुत ही डरी हुई और हैरान मालूम पड़ती है तो उसने कमला का हाथ पकड़ लिया और धीरे से दबाकर कहा, ''कमला, तू डर मत। हम लोगों ने इस समय तुझे एक दुश्मन के हाथ से छुड़ाया है।''

कमला - अब मेरा जी ठिकाने हुआ। मुझे उम्मीद है कि आप लोगों की तरफ से मुझे तकलीफ न पहुंचेगी। परन्तु आप लोगों को जानने के लिए मेरा जी बेचैन हो रहा है।

कमलिनी - ठीक है, जरूर तेरा जी चाहता होगा कि हम लोगों का हाल जाने और इसी तरह मैं भी तुझसे बहुत-कुछ पूछना चाहती हूं मगर इस समय केवल चार-पांच घण्टे के लिए तुझसे जुदा होती हूं, तब तक तू (भूतनाथ की तरफ इशारा करके) इनके साथ रह। किसी तरह से डर मत, सबेरा होने के पहले ही मैं तुझसे आकर मिलूंगी और बातचीत के बाद कुंअर इन्द्रजीतसिंह के छुड़ाने का उद्योग करूंगी।

कमला - मैं आपके हुक्म के खिलाफ कुछ न करूंगी। मैं आपसे हर तरह पर भलाई की आशा रखती हूं क्योंकि आपने मुझे एक ऐसे दुश्मन के हाथ से छुड़ाया है जिसका हाल मैं ही जानती हूं।

कमलिनी - अच्छा, तो अब बातों में समय नष्ट करना ठीक नहीं है। (भूतनाथ की तरफ देखकर) भूतनाथ, यहां छोटी-छोटी बहुत-सी डोंगियां बंधी हुई हैं, सन्नाटा और मौका देखकर कोई एक डोंगी खोल लो और कमला को साथ लेकर गंगा-पार चले जाओ। मैं अब मनोरमा के घर जाती हूं, वहां से अपना मतलब साधकर सबेरा होने के पहले ही तुमसे आ मिलूंगी।

कमला - (चौंककर) क्या नाम लिया, मनोरमा! हाय-हाय, वह तो बड़ी शैतान है। हम लोगों को तो उसने तबाह कर डाला। क्या तुम उसके...

कमलिनी - डर मत कमला! मनोरमा को मैंने कैद कर लिया है और अब एक जरूरी काम के लिए उसके घर पर जा रही हूं। (आसमान की तरफ देखकर) ओफ, बहुत विलम्ब हुआ, खैर, अब बिदा होती हूं, पुनः मिलने पर सब हाल कहूंगी।

कमलिनी वहां से रवाना हुई और थोड़ी ही देर में उस बाग के फाटक पर जा पहुंची जिसमें मनोरमा का मकान था। फाटक के साथ लोहे की एक जंजीर लगी हुई थी जिसे हिलाने से दरबान ने एक छोटे-से सूराख में से बाहर की तरफ देखा जो इसी काम के लिए बना हुआ था। केवल एक औरत को दरवाजे पर मौजूद पाकर दरबान ने फाटक खोल दिया और जब कमलिनी अन्दर चली आई तो फाटक उसी तरह बन्द कर दिया और तब कमलिनी से पूछा, ''तुम कौन हो और यहां किसलिए आई हो'?

कमलिनी - मुझे मनोरमाजी ने पत्र देकर अपनी सखी नागर के पास भेजा है, तुम मुझे नागर के पास बहुत चल्द ले चलो।

दरबान - वह तो यहां नहीं हैं, किसी दूसरी जगह गई हैं।

कमलिनी - कब आवेंगी?

दरबान - सो मैं ठीक नहीं कह सकता।

कमलिनी - क्या तुम यह भी नहीं कह सकते कि वे आज या कल तक लौट आवेंगी या नहीं

दरबान - हां, यह तो मैं कह सकता हूं कि चार-पांच दिन तक वे न आवेंगी; इसके बाद चाहे जब आवें।

कमलिनी - अफसोस, अब बेचारी मनोरमा नहीं बच सकती।

दरबान - (चौंककर) क्यों-क्यों उन पर क्या आफत आई

कमलिनी - यह एक गुप्त बात है जो मैं तुमसे नहीं कह सकती, हां, इतना कहने में कोई हर्ज नहीं कि यदि तीन दिन के अन्दर उन्हें बचाने का उद्योग न किया जायगा तो चौथे दिन कुछ नहीं हो सकता, वे अवश्य मार डाली जायेंगी।

दरबान - अफसोस, यदि आप एक दिन तक यहां अटकना मंजूर करें तो मैं नागरजी के पास जाकर उन्हें बुला लाऊं। आपको यहां किसी तरह की तकलीफ न होगी!

कमलिनी - (कुछ सोचकर) मुझे एक जरूरी काम है, इसलिए अटक तो नहीं सकती, परन्तु कल शाम तक अपना काम करके लौट आ सकती हूं।

दरबान - यदि आप ऐसा करें तो भी काम चल सकता है, परन्तु आप अटक न जायं। यदि आपका काम ऐसा हो जिसे हम लोग कर सकते हों तो आप कहें, उसका बन्दोबस्त कर दिया जायगा।

कमलिनी - नहीं, बिना मेरे गये वह काम नहीं हो सकता। मगर कोई चिन्ता नहीं, मैं कल शाम तक अवश्य आ जाऊंगी।

दरबान - जैसी मर्जी, आपकी मेहरबानी से यदि हमारे मालिक की जान बच जायगी तो हम लोग जन्म भर के लिए गुलाम रहेंगे।

कमलिनी - मैं अवश्य आऊंगी और उनके लिए हर तरह का उद्योग करूंगी, तुम जाती समय इसका बन्दोबस्त कर जाना कि यदि तुम्हारे लौट आने के पहले ही मैं यहां पहुंच जाऊं तो मुझे यहां रहने में किसी तरह का तरद्दुद न हो।

दरबान - इससे आप बेफिक्र रहें, मैं पूरा-पूरा इन्तजाम करके जाऊंगा और नागरजी को लेकर बहुत जल्दी लौटूंगा।

फाटक खोल दिया गया और कमलिनी बाग के बाहर हो गई। वह अभी बीस कदम भी आगे न गई होगी कि एक आदमी बदहवास और दौड़ता हुआ उसी बाग के फाटक पर पहुंचा और दरवाजा खुलवाने का उद्योग करने लगा। कमलिनी जान गई कि यह वही आदमी है जिसके हाथ से अभी थोड़ी ही देर पहले मैंने कमला को छुड़ाया है। कमलिनी उसी जगह आड़ में खड़ी होकर उसे देखने और कुछ सोचने लगी। जब बाग का फाटक खुल गया और वह आदमी अन्दर चला गया तो न मालूम क्या सोचती-विचारती कमलिनी भी वहां से रवाना हुई और थोड़ी रात बाकी थी, जब कमला और भूतनाथ के पास पहुंची जो गंगा-पार उसके आने की राह देख रहे थे। कमलिनी को बहुत जल्दी लौट आते देख भूतनाथ को ताज्जुब हुआ और उसने कहा -

भूतनाथ - मालूम होता है कि कुछ काम न हुआ और आपको खाली ही लौट आना पड़ा!

कमलिनी - हां, इस समय तो खाली ही लौटना पड़ा, मगर काम हो जायगा। नागर घर पर मौजूद न थी, उसका आदमी उसे बुलाने के लिए गया है। मैं कल शाम तक फिर वहां पहुंचने का वादा कर आई हूं। इच्छा तो यही थी कि वहां अटक जाऊं क्योंकि ऐसा करने से और भी कुछ काम निकलने की उम्मीद थी, परन्तु कमला के खयाल से लौट आना पड़ा। मैं चाहती हूं कि कमला को रोहतासगढ़ रवाना कर दूं क्योंकि उसकी जुबानी कुछ हाल सुनकर राजा वीरेन्द्रसिंह को ढाढ़स होगी और लड़कों के सोच में बहुत व्याकुल न रहेंगे। (कमला की तरफ देखकर) तेरी क्या राय है?

कमला - जो कुछ आप हुक्म दें मैं करने को तैयार हूं, परन्तु इस समय मैं बहुत-सी बातों का असल भेद जानने के लिए बेचैन हो रही हूं और सिवाय आपके कोई दूसरा मेरी दिलजमई नहीं कर सकता!

कमलिनी - कोई हर्ज नहीं, मैं हर तरह से तेरी दिलजमई कर दूंगी।

इतना सुनकर कमला भूतनाथ की तरफ देखने लगी। कमलिनी समझ गई कि यह निराले में मुझसे कुछ पूछना चाहती है। अस्तु, उसने भूतनाथ को वहां से हट जाने के लिए कहा और जब वह कुछ दूर चला गया तो कमला से बोली, ''अब निराला हो गया, जो कुछ पूछना हो पूछो।''

कमला - मुझे आपका कुछ हाल भूतनाथ की जुबानी मालूम हुआ है परन्तु उससे पूरी दिलजमई नहीं होती। मुझे पूरा-पूरा पता लग चुका था कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह आपके यहां कैद हैं, फिर न मालूम, उन पर क्या आफत आई और उनके साथ आपने क्या सलूक किया। यद्यपि उस समय हम लोग आपके नाम से डरते थे, परन्तु जब आपने कई दफे हम लोगों के साथ नेकी की जिसका हाल आज मालूम हुआ है तो वह बात अब मेरे दिल से जाती रही, फिर भी कुंअर इन्द्रजीतसिंह के बारे में शक बना ही रहा है।

कमलिनी - सुन, मैं तुझसे पूरा-पूरा हाल कहती हूं। यह तो तुझे मालूम ही हो चुका कि मैं कमलिनी हूं।

कमला - जी हां, यह तो (भूतनाथ की तरफ इशारा करके) इनकी कृपा से मालूम हो गया और इन्हीं के जुबानी यह भी जान गई कि रोहतासगढ़ में उस कब्रिस्तान के अन्दर हाथ में चमकता हुआ नेजा लेकर आप ही ने हम लोगों की मदद की थी और बेहोश करके रोहतासगढ़ किले के अन्दर पहुंचा दिया था। दूसरी दफे राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह को रोहतासगढ़ के कैदखाने से आप ही ने छुड़ाया था और तीसरी दफे उस खंडहर में यकायक विचित्र रीति से आप ही को पहुंचते हम लोगों ने देखा था।

कमलिनी - यद्यपि कुछ लोगों ने मुझे बदनाम कर रखा है, परन्तु वास्तव में मैं वैसी नहीं हूं। मैं नेकी करने के लिए हरदम तैयार रहती हूं, इसी तरह दुष्टों को मजा चखाने की भी नीयत रहती है। मैंने कुंअर इन्द्रजीतसिंह के साथ किसी तरह की बुराई नहीं की, बल्कि उनके साथ नेकी की और उन्हें एक बहुत बड़े दुश्मन के हाथ से छुड़ाया। जब वे तुम लोगों से मिलेंगे और हाल कहेंगे, तब मालूम होगा कि कमलिनी ने सच कहा था!

इसके बाद कमलिनी ने इन्द्रजीतसिंह का अपने लश्कर से गायब होना और उन्हें दुश्मन के हाथ से छुड़ाना, कई दिनों तक अपने मकान में रखना, माधवी को गिरफ्तार करना, किशोरी का रोहतासगढ़ के तहखाने से निकलना और धनपत के कब्जे में पड़ना, तारा के खबर पहुंचाने पर इन्द्रजीतसिंह को साथ लेकर किशोरी को छुड़ाने के लिए जाना, रास्ते में शेरसिंह और देवीसिंह से मिलना, अग्निदत्त का हाल और अन्त में उस तिलिस्मी मकान के अन्दर सभी लोगों का कूद जाना आदि कमला से पूरा-पूरा बयान किया। कमला ताज्जुब से सब बातें सुनती रही और अब कमलिनी पर उसे पूरा-पूरा विश्वास हो गया।

कमला - फिर किशोरी और कुंअर इन्द्रजीतसिंह उस खंडहर वाले तहखाने में क्योंकर पहुंचे

कमलिनी - वह खंडहर एक छोटे से तिलिस्म से सम्बन्ध रखता है। एक औरत जो मायारानी के नाम से पुकारी जाती है और जिसका हाल कुछ दिन बाद तुम लोगों को मालूम होगा, उस तिलिस्म पर राज्य करती है। मैं उसकी सगी बहिन हूं। हमारी तिलिस्मी किताब से साबित होता है कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह उस तिलिस्म को तोड़ेंगे क्योंकि तिलिस्म तोड़ने वालों के जो-जो लक्षण उस किताब में लिखे हैं, वे सब इन दोनों भाइयों में पाये जाते हैं, परन्तु मायारानी चाहती है कि तिलिस्म टूटने न पावे और इसीलिए वह दोनों कुमारों को अपनी कैद में रखने अथवा मार डालने का उद्योग कर रही है। मैंने उसे बहुत-कुछ समझाया और कहा कि तिलिस्म बनाने वालों के खिलाफ चलने और इन दोनों भाइयों से दुश्मनी रखने का नतीजा अच्छा न होगा परन्तु उसने न माना बल्कि वह मेरी भी दुश्मन बन बैठी। अन्त में लाचार मुझे उसका साथ छोड़ देना पड़ा। मैंने उस तालाब वाले मकान पर अपना कब्जा कर लिया और उसी में रहने लगी। उस मकान में मैं बेफिक्र रहती हूं। मायारानी के कई आदमियों ने, जो नेक और ईमानदार थे, मेरा साथ दिया। तिलिस्म का जितना हाल उसे मालूम है, उतना ही मुझे भी मालूम है। यही सबब है कि वह अर्थात् तिलिस्मी महारानी (मायारानी) वीरेन्द्रसिंह और उनके खानदान के साथ दुश्मनी कर रही है और मैं हर तरह से उनकी मदद कर रही हूं। उस तिलिस्मी मकान के अन्दर इन्द्रजीसिंह और उनके साथियों तथा मेरे नौकरों का हंसते-हंसते कूद जाना उसी तिलिस्मी महारानी की कार्रवाई थी और उस खंडहर वाले तहखाने में जो कुछ तुम लोगों ने देखा, वह सब भी उसी की बदौलत थी। अफसोस, गुप्त राह से महारानी के बहुत से आदमियों के पहुंच जाने के कारण मैं कुछ कर न सकी। खैर, कोई हर्ज नहीं। कुंअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह और किशोरी तथा कामिनी वगैरह का मायारानी कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती, क्योंकि उसकी असल जमा-पूंजी जो थी, वह मेरे हाथ लग चुकी है जिसका खुलासा हाल इस समय मैं नहीं कह सकती। हां, इतना प्रतिज्ञापूर्वक कहती हूं कि उन लोगों को मैं बहुत जल्द कैद से छुड़ाऊंगी।

कमला - मैं समझती हूं कि वह मकान भी तिलिस्मी होगा जिसके अन्दर कुंअर इन्द्रजीतसिंह वगैरह हंसते-हंसते कूद पड़े थे।

कमलिनी - नहीं; उस मकान का तिलिस्म से कोई सम्बन्ध नहीं, वह नया बनाया गया है। मुझे उसकी खबर न थी इसी से मैं धोखे में आ गई, पीछे पता लगाने से मालूम हुआ कि वह भी मायारानी की कार्रवाई थी।

कमला - अब मेरा जी ठिकाने हुआ और आपकी बदौलत अपनी प्यारी सखी किशोरी और कुंअर इन्द्रजीतसिंह वगैरह के छूटने की उम्मीद हुई। अब आशा है कि आपकी कृपा से एक दफे मायारानी को भी देखूंगी।

कमलिनी - इसके लिए जल्दी करना मुनासिब नहीं, मैं आज ही कल में तुझे अपने साथ मायारानी के घर ले चलती, क्योंकि मुझे वहां जाने की बहुत जल्दी है परन्तु इस समय तेरा रोहतासगढ़ लौट जाना ही ठीक है क्योंकि राजा वीरेन्द्रसिंह लड़कों की जुदाई में हद्द से ज्यादे दुःखी होंगे, तेरे लौट जाने से उन्हें ढाढ़स होगा और मेरी जुबानी जो कुछ तूने सुना है जब उनसे बयान करेगी तो उन्हें एक प्रकार की आशा हो जायगी। हां, एक बात तुझसे पूछना मैं भूल गई।

कमला - वह क्या?

कमलिनी - तू कहती है कि मैं मायारानी को देखा चाहती हूं, तो क्या तूने उसे नहीं देखा उसी के आदमी तो तुझे गिरफ्तार करके ले गए थे, जहां तक मैं समझती हूं, तू उसके पास जरूर पहुंचाई गई होगी।

कमला - हां-हां, मैं एक जनाने दरबार में पहुंचाई गई थी मगर यह नहीं कह सकती कि वह मायारानी का ही दरबार था या कोई दूसरा, और यदि मायारानी का ही दरबार था तो...

कमलिनी - पहले तू अपना हाल कह जा कि जब खंडहर के अन्दर तहखाने में घुसी तो क्या हुआ और क्योंकर गिरफ्तार होकर कहां गई?

कमला - जब हम लोग राजा वीरेन्द्रसिंह के साथ कुमार को निकालने के लिए उस खंडहर वाले तहखाने में गये तो वहां किसी को न पाया। सीढ़ी के नीचे एक छोटी कोठरी थी, मैं उसमें घुस गई। देखा कि पत्थर की एक सिल्ली दीवार से अलग होकर जमीन पर पड़ी हुई और उस जगह एक आदमी के जाने लायक रास्ता है। उस दरवाजे के दूसरी तरफ एक और कोठरी नजर आई जिसमें चिराग जल रहा था। मैंने आनन्दसिंह और तारासिंह को पुकारा, जब वे आ गए तो तीनों आदमी उस कोठरी के अन्दर घुसे। जब दो-तीन कदम आगे गये तो यकायक पीछे से खटके की आवाज आई, घूमकर देखा तो वह रास्ता बन्द पाया जिधर से आये थे। ताज्जुब में आकर हम लोग सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। यकायक कई आदमी एक तरफ से निकलकर आये और उन लोगों ने फुर्ती के साथ एक-एक चादर हम लोगों के ऊपर डाल दी। मुझे उस चादर की तेज महक कभी न भूलेगी। सिर पर पड़ते ही अजब हालत हो गई, एक प्रकार की तेज महक नाक के अन्दर घुसी और उसने तन-बदन की सुध भुला दी। न मालूम उसी दिन या दूसरे या कई दिन के बाद जब मैं होश में आई तो अपने को रात के समय एक जनाने दरबार में पाया।

कमलिनी - वह दरबार कैसा था?

कमला - वह दरबार एक बारहदरी में था। जड़ाऊ सिंहासन पर एक नौजवान औरत दक्षिणी ढंग की पोशाक पहने बैठी थी। मैं कह सकती हूं कि सिवाय किशोरी के उसके मुकाबले की खूबसूरत औरत आज तक किसी ने न देखी होगी।

कमलिनी - बस-बस, मैं समझ गई, वही मायारानी थी। हां, और क्या देखा?

कमला - उसके दाहिनी तरफ सोने की एक चौकी पर मृगछाला बिछा हुआ था मगर उस पर कोई बैठा न था।

कमलिनी - वह तिलिस्म के दारोगा की जगह थी जो वृद्ध साधु के वेश में रहता है, मगर आजकल उसे राजा वीरेन्द्रसिंह ने कैद कर लिया है।

कमला - (ताज्जुब से) राजा वीरेन्द्रसिंह ने कब और किस दारोगा को कैद किया है?

कमलिनी - उस तिलिस्मी खंडहर में जब तुम लोग गये तो किसी साधु को बेहोश पाया था या नहीं?

कमला - (कुछ सोचकर) हां-हां, एक कोठरी के अन्दर जिसमें एक मूरत थी। क्या वही तिलिस्मी दारोगा है

कमलिनी - हां, वही दारोगा है, वही बहुत से आदमियों को साथ लेकर तहखाने में से कुमार को उठा लाने के लिए उस खंडहर में गया था, मगर तारासिंह की चालाकी से अपने साथियों के सहित बेहोश हो गया। उस समय वेश बदले मेरा भी एक आदमी वहां मौजूद था, मगर दूर ही से सब-कुछ देख रहा था। हां तो उस दरबार में और क्या देखा

कमला - उस मृगछाला बिछी हुई चौकी के पास अर्धगोलाकार बीस जड़ाऊ कुर्सियां और थीं और उसी तरह सिंहासन के बाईं तरफ छोटे जड़ाऊ सिंहासन पर एक खूबसूरत औरत बैठी हुई थी जिसके बाद फिर बीस या इक्कीस जड़ाऊ कुर्सियां थीं, और दोनों तरफ वाली जड़ाऊ कुर्सियों पर नौजवान और खूबसूरत औरतें बड़े ठाठ से बैठी थीं।1 मैं उस दरबार को कभी न भूलूंगी।

कमलिनी - ठीक है, तो अब तुझे मायारानी को देखने की कोई आवश्यकता नहीं, खैर, मुख्तसर में कह, फिर क्या हुआ?

कमला - पहले यह बता दीजिये कि मायारानी के बगल में छोटे जड़ाऊ सिंहासन पर कौन औरत थी, क्योंकि वह भी बड़ी ही खूबसूरत थी।

कमलिनी - वह मेरी छोटी बहिन थी। सबसे बड़ी मायारानी, उससे छोटी मैं और मुझसे छोटी वही औरत है, उसका नाम लाडिली है।

कमला - आपकी और भी कोई बहिन है

कमलिनी - नहीं, हम तीनों के सिवाय और कोई बहिन या भाई नहीं है। अब तू अपना हाल कह, फिर क्या हुआ?

कमला - मायारानी के सिंहासन के पीछे मनोरमा खड़ी थी। उन सभी की बातचीत से मुझे मालूम हुआ कि उसका नाम मनोरमा है। वह बड़ी दुष्ट थी!

कमलिनी - थी नहीं, बल्कि है। हां, तब क्या हुआ

कमला - ऐसे दरबार को देख मैं घबरा गई। जिधर निगाह पड़ती थी उधर ही एक से एक बढ़के जड़ाऊ चीजें नजर आती थीं। मैं हैरान थी कि इतनी दौलत इन लोगों के पास कहां से आई और ये लोग कौन हैं। मैं ताज्जुब में आकर चारों तरफ देखने लगी। यकायक मेरी निगाह कुंअर आनन्दसिंह और तारासिंह पर पड़ी। कुंअर आनन्दसिंह हथकड़ी और बेड़ी से लाचार मेरे पीछे की तरफ बैठे थे। उनके पास उन्हीं की तरह हथकड़ी-बेड़ी से बेबस तारासिंह भी बैठे थे। फर्क इतना था कि कुंअर आनन्दसिंह जख्मी न थे, मगर तारासिंह बहुत ही जख्मी और खून से तरबतर हो रहे थे। उनकी पोशाक खून से रंगी हुई मालूम पड़ती थी। यद्यपि उनके जख्मों पर पट्टी बंधी हुई थी मगर सूरत देखने से साफ मालूम पड़ता था कि उनके बदन से खून बहुत निकल गया है और इसी से वे सुस्त और कमजोर हो रहे हैं। कुमार की अवस्था देखकर मुझे क्रोध चढ़ आया, मगर क्या कर सकती थी, क्योंकि हथकड़ी और बेड़ी ने मुझे भी लाचार कर रखा था। हाथ में नंगी तलवारें लिए कई औरतें कुंअर आनन्दसिंह, तारासिंह और मुझको घेरे हुए थीं। यह जानने के लिए मेरा जी बेचैन हो रहा था कि जब हम लोग बेहोश करके यहां लाए गये तो तारासिंह को जख्मी करने की आवश्यकता क्यों पड़ी। मायारानी ने मनोरमा की तरफ देखा और कुछ इशारा किया, मनोरमा तुरत मेरे पास आई। उसके एक हाथ में कोई चीठी थी और दूसरे हाथ में कलम और दवात। मनोरमा ने वह चीठी मेरे आगे रख दी और उस पर हस्ताक्षर कर देने के लिए मुझे कहा, मैंने चीठी पढ़ी और क्रोध के साथ हस्ताक्षर करने से इनकार किया।

1. इसी दरबार में रामभोली का आशिक नानक गया था।

कमलिनी - उस चीठी में क्या लिखा हुआ था

कमला - वह चीठी मेरी तरफ से राजा वीरेन्द्रसिंह के नाम लिखी गई थी और उसमें यह लिखा था -

''आप चीठी देखते ही केवल एक ऐयार को लेकर इस आदमी के साथ बेखौफ चले आइए। कुंअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह और किशोरी वगैरह इसी जगह कैद हैं। उनको छुड़ाने का पूरा-पूरा उद्योग मैं कर चुकी हूं, केवल आपके आने की देर है। यदि आप तीन दिन के अन्दर यहां न पहुंचेंगे तो उन लोगों में से एक की भी जान न बचेगी।''

कमलिनी - अच्छा फिर क्या हुआ

कमला - जब मैंने दस्तखत करने से इनकार किया तो मनोरमा बहुत बिगड़ी और बोली कि ''यदि तू हस्ताक्षर न करेगी, तो तेरे सामने ही कुंअर आनन्दसिंह और तारासिंह का सिर काट लिया जायगा और उसके बाद तुझे भी सूली दे दी जायगी।'' यह सुनकर मैं घबरा गई और सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए। इतने में ही तारासिंह ने मुझे पुकारकर कहा, ''कमला, उस चीठी में जो कुछ लिखा है मैं अन्दाज से कुछ-कुछ समझ गया। खबरदार, इन लोगों की धमकी में न आना, और चाहे जो हो, उस चीठी पर दस्तखत भी न करना।'' तारासिंह की बात सुनकर मायारानी की तो केवल भौंहें ही चढ़कर रह गयीं, परन्तु मनोरमा बहुत ही उछली-कूदी और बकझक करने लगी। उसने मायारानी की तरफ देखकर कहा, ''कम्बख्त तारासिंह को अवश्य सूली देनी चाहिए, उसने अब यहां का रास्ता भी देख लिया है इसलिए उसको मारना आवश्यक हो गया है, और इस नालायक कमला को सरकार मेरे हवाले करें, मैं इसे अपने घर ले जाऊंगी।'' मायारानी ने इशारे से मनोरमा की बात मंजूर की। मनोरमा ने एक चोबदार औरत की तरफ देखकर कहा, ''कमला को ले जाकर कैद में रखो। चार-पांच दिन बाद काशीजी में हमारे घर पर भिजवा देना, क्योंकि इस समय मुझे एक जरूरी काम के लिए जाना है जहां से तीन-चार दिन के अन्दर शायद न लौट सकूंगी।'' हुक्म के साथ ही मुझ पर पुनः चादर डाल दी गई जिसकी तेज महक ने मुझको बेहोश कर दिया और फिर जब मैं होश में आई, तो अपने को एक अंधेरी कोठरी में कैद पाया। कई दिन तक मैं उसी कोठरी में कैद रही और इस बीच में जो कुछ रंज और तकलीफ उठानी पड़ी, उसका कहना व्यर्थ है। आखिर एक दिन भोजन में मुझे बेहोशी की दवा दी गई और बेहोश होने के बाद जब मैं होश में आई तो अपने को आपके कब्जे में पाया। अब न मालूम कुंअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह, किशोरी और उनके ऐयार लोगों पर क्या मुसीबत आई और वे लोग किस अवस्था में पड़े हुए हैं!

यहां तक कहकर कमला चुप हो गई मगर उसकी आंखों से आंसू की बूंदें बराबर जारी थीं। कमलिनी भी बड़े गौर और अफसोस के साथ उसकी बातें सुनती जाती थी और जब वह चुप हो गई तो बोली -

कमलिनी - कमला, सब्र कर, घबरा मत। देख, मैं उन लोगों को कैसा छकाती हूं। उन लोगों की क्या मजाल जो मेरे हाथ से बचकर निकल जायें। तिलिस्मी मकान के अन्दर जब कुंअर इन्द्रजीतसिंह वगैरह हंसते-हंसते कूद गये थे तो उन लोगों के पहले मैंने अपने कई आदमी उस मकान के अन्दर कुदाये थे जिसका हाल थोड़ी देर पहले मैं तुझसे कह चुकी हूं। उन आदमियों को बेसबब दुश्मनों के हाथ में नहीं फंसाया, कुछ समझ-बूझ के ही ऐसा किया था। वे लोग साधारण मनुष्य न थे, आशा है कि थोड़े दिन में तू सुन लेगी कि उन लोगों ने क्या-क्या कार्रवाई की।

कमला - आज आपके मिलने से और बहुत-सी बातें सुनकर मेरा जी ठिकाने हुआ। आप सरीखा मददगार पाकर मैं भी अपने जी का हौसला निकालना चाहती हूं और...

कमलिनी - नहीं-नहीं, इस समय तू और कुछ मत सोच और सीधे रोहतासगढ़ चली जा। तेरे वहां जाने से दो काम निकलेंगे, एक तो तेरी जुबानी सब हाल सुनकर राजा वीरेन्द्रसिंह को बहुत-कुछ ढांढ़स होगी, दूसरे, तू इस बात से भी होशियार रहना और सबको भी होशियार कर देना कि वह तिलिस्मी दारोगा अर्थात् बूढ़ा साधु कहीं धोखा देकर निकल न जाय। इसमें कोई शक नहीं कि मायारानी ने उसे छुड़ाने के लिए कई आदमी रोहतासगढ़ भेजे होंगे।

कमला - बहुत अच्छा! मैं रोहतासगढ़ जाती हूं और उस बुड्ढे कम्बख्त से होशियार रहूंगी। मगर एक भेद बहुत दिनों से मेरे दिल में खटक रहा है, यदि आप चाहें तो मेरे दिल से वह खुटका निकाल सकती हैं।

कमलिनी - वह क्या है?

कमला - (भूतनाथ की तरफ इशारा करके) यह कौन हैं इनका असल भेद मुझको बता दीजिये।

कमलिनी - (हंसकर) इसमें सन्देह नहीं कि भूतनाथ के बारे में तरह-तरह की बातें तू सोचती होगी, परन्तु लाचार हूं कि इस समय इनका असल भेद तुझसे नहीं कह सकती। थोड़े ही दिनों में इनका हाल तुझे ही नहीं, सभी को मालूम हो जायगा। हां, इतना अवश्य कहूंगी कि तुझे अपने चाचा शेरसिंह की तरह इनसे डरने की कोई जरूरत नहीं। ये तुझे किसी तरह की तकलीफ न देंगे, बल्कि जहां तक हो सकेगा, तेरी मदद करेंगे।

कमलिनी से अपने सवाल का पूरा-पूरा जवाब न पाकर कमला चुप हो रही और कमलिनी की आज्ञानुसार उसको उसी समय रोहतासगढ़ चले जाना पड़ा। 

96
रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
0.0
इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
1

चंद्रकांता संतति भाग -1

11 जून 2022
1
0
0

नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनन

2

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

3

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

4

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

5

भाग 5

11 जून 2022
1
0
0

पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

6

भाग 6

11 जून 2022
1
0
0

बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

7

भाग 7

11 जून 2022
1
0
0

अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं

8

भाग 8

11 जून 2022
1
0
0

अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो

9

भाग 9

11 जून 2022
1
0
0

भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ रात आते-आते लौट आये और उसी समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज किया कि आज शिकार खेलने के लिए कुमार जंगल में गये थे, एक बनैले सूअर के प

10

भाग 10

11 जून 2022
1
0
0

अब हम अपने पाठकों को फिर उसी खोह में ले चलते हैं जिसमें कुंअर आनंदसिंह को बेहोश छोड़ आये हैं अथवा जिस खोह में जान बचाने वाले सिपाही के साथ पहुंचकर उन्होंने एक औरत को छुरे से लाश काटते देखा था और योगिन

11

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिय

12

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां

13

भाग 13

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन खा-पीकर निश्चिंत होने के बाद दोपहर को जब दोनों एकांत में बैठे तो इंद्रजीतसिंह ने माधवी से कहा - ''अब मुझसे सब्र नहीं हो सकता, आज तुम्हारा ठीक-ठीक हाल सुने बिना कभी न मानूंगा और इससे बढ़कर न

14

भाग 14

11 जून 2022
0
0
0

इंद्रजीतसिंह ने दूसरे दिन पुनः नियत समय पर माधवी को जाने न दिया, आधी रात तक हंसी-दिल्लगी ही में काटी, इसके बाद दोनों अपने-अपने पलंग पर सो रहे। कुमार को तो खुटका लगा ही हुआ था कि आज वह काली औरत आवेगी इ

15

भाग 15

11 जून 2022
0
0
0

अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

16

चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

11 जून 2022
0
0
0

घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

17

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

18

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

19

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

20

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

21

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

22

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

23

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

24

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

25

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

26

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

27

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

28

भाग 13

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

29

भाग 14

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

30

भाग 15

11 जून 2022
0
0
0

राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

31

भाग 16

11 जून 2022
0
0
0

भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

32

भाग 17

11 जून 2022
0
0
0

मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

33

चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

11 जून 2022
0
0
0

पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

34

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

35

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

36

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

37

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

38

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

39

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

40

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

41

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

42

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

43

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

44

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

45

भाग 13

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

46

भाग 14

11 जून 2022
0
0
0

रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

47

चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

11 जून 2022
0
0
0

अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

48

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

49

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

50

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

51

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

52

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

53

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

54

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

55

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

56

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

57

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

58

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

59

चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

11 जून 2022
0
0
0

बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

60

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

61

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

62

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

63

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

64

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

65

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

66

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

67

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

68

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

69

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

70

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

71

भाग 13

11 जून 2022
1
0
0

तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

72

चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

11 जून 2022
1
0
0

वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

73

भाग 2

11 जून 2022
1
0
0

इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

74

भाग 3

11 जून 2022
1
0
0

अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

75

भाग 4

11 जून 2022
1
0
0

अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

76

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

77

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

78

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

79

चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

11 जून 2022
0
0
0

नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

80

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

81

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

82

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

83

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

84

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

85

चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

11 जून 2022
1
0
0

मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

86

भाग 2

11 जून 2022
1
0
0

कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

87

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

88

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

89

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

90

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

91

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

92

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

93

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

94

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

95

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

96

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए