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भाग 7

11 जून 2022

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अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं। ये तेजी के साथ उस तरफ बढ़े और उन दोनों के पास पहुंचने की उम्मीद में दो कोस तक पीछा किए चले गए मगर उम्मीद पूरी न हुई क्योंकि पहाड़ी के नीचे पहुंचकर वे दोनों रुकीं और अपने पीछे आते हुए आनंदसिंह की तरफ देख घोड़ों को एकदम तेज कर पहाड़ी के बगल में घुसती हुई गायब हो गईं।

खूब खिली हुई चांदनी रात होने के सबब से आनंदसिंह को ये दोनों औरतें दिखाई पड़ीं और इन्होंने इतनी हिम्मत भी की, पर पहाड़ी के पास पहुंचते ही उन दोनों के भाग जाने से इनको बड़ा ही रंज हुआ। खड़े होकर सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। इनको हैरान और सोचते हुए छोड़कर निर्दयी चंद्रमा ने भी धीरे-धीरे अपने घर का रास्ता लिया और अपने दुश्मन को जाते देख मौका पाकर अंधेरे ने चारों तरफ हुकूमत जमाई। आनंदसिंह और भी दुखी हुए। क्या करें कहां जायें किससे पूछें कि इंद्रजीतसिंह को कौन ले गया

दूर से एक रोशनी दिखाई पड़ी। गौर करने से मालूम हुआ कि किसी झोंपड़ी के आगे आग जल रही है। आनंदसिंह उसी तरफ चले और थोड़ी ही देर में कुटी के पास पहुंचकर देखा कि पत्तों की बनाई हुई हरी झोंपड़ी के आगे आठ-दस आदमी जमीन पर फर्श बिछाये बैठे हैं जो कि दाढ़ी और पहिरावे से साफ मुसलमान मालूम पड़ते हैं। बीच में दो मोमी शमादान जल रहे हैं। एक आदमी फारसी के शेर पढ़कर सुना रहा है, और सब 'वाह-वाह' की धुन लड़ा रहे हैं। एक तरफ आग जल रही है और दो-तीन आदमी कुछ खाने की चीजें पका रहे हैं। आनंदसिंह फर्श के पास जाकर खड़े हो गए।

आनंदसिंह को देखते ही सबके सब उठ खड़े हुए और बड़ी इज्जत से उनको फर्श पर बैठाया। उस आदमी ने जो फारसी के शेर पढ़-पढ़कर सुना रहा था खड़े हो अपनी रंगीली भाषा में कहा, ''खुदा का शुक्र है कि शाहजादे चुनार ने इस मजलिस में पहुंचकर हम लोगों की इज्जत को फल्के हफ्तुम1 तक पहुंचाया। इस जंगल बियाबान में हम लोग क्या खातिर कर सकते हैं सिवाय इसके कि इनके कदमों को अपनी आंखों पर जगह दें और इत्र व इलायची की पेशकश करें!!''

केवल इतना ही कहकर इत्रदान और इलायची की डिब्बी उनके आगे ले गया। पढ़े-लिखे भले आदमियों की खातिर जरूरी समझकर आनंदसिंह ने इत्र सूंघा और इलायची ले ली, इसके बाद इनसे इजाजत लेकर वह फिर फारसी कविता पढ़ने लगा। दूसरे आदमियों ने दो-एक तकिए इनके अगल-बगल में रख दिए।

इत्र की विचित्र खुशबू ने इनको मस्त कर दिया, इनकी पलकें भारी हो गईं और बेहोशी ने धीरे-धीरे अपना असर जमाकर इनको फर्श पर सुला दिया। दूसरे दिन दोपहर को आंख खुलने पर इन्होंने अपने को एक दूसरे ही मकान में मसहरी पर पड़ा पाया। घबराकर उठ बैठे और इधर-उधर देखने लगे।

पांच कमसिन और खूबसूरत औरतें सामने खड़ी हुई दिखाई दीं जिनमें से एक सर्दार की तरह पर कुछ आगे बढ़ी हुई थी। उसके हुस्न और अदा को देख आनंदसिंह दंग हो गये। उसकी बड़ी-बड़ी आंखों और बांकी चितवन ने उन्हें आपे से बाहर कर दिया, उसकी जरा-सी हंसी ने इनके दिल पर बिजली गिराई, और आगे बढ़ हाथ जोड़ इस कहने ने तो और भी सितम ढाया कि - ''क्या आप मुझसे खफा हैं'

आनंदसिंह भाई की जुदाई, रात की बात, ऐयारों के धोखे में पड़ना, सब-कुछ बिल्कुल भूल गए और उसकी मुहब्बत में चूर हो बोले - ''तुम्हारी-सी परीजमाल से, और रंज!!''

वह औरत पलंग पर बैठ गई और आनंदसिंह के गले में हाथ डाल के बोली, ''खुदा की कसम खाकर कहती हूं कि साल भर से आपके इश्क ने मुझे बेकार कर दिया! सिवाय आपके ध्यान के खाने-पीने की बिल्कुल सुध न रही, मगर मौका न मिलने से लाचार थी।''

आनंद - (चौंककर) हैं! क्या तुम मुसलमान हो जो खुदा की कसम खाती हो

औरत - (हंसकर) हां, क्या मुसलमान बुरे होते हैं

आनंदसिंह यह कहकर उठ खड़े हुए - ''अफसोस! अगर तुम मुसलमान न होतीं तो मैं तुम्हें जी जान से प्यार करता, मगर एक औरत के लिए अपना मजहब नहीं बिगाड़ सकता।''

औरत - (हाथ थामकर) देखो बेमुरौवती मत करो! मैं सच कहती हूं कि अब तुम्हारी जुदाई मुझसे न सही जायेगी!''

आनंद - मैं भी सच कहता हूं कि मुझसे किसी तरह की उम्मीद मत रखना।

औरत - (भौं सिकोड़कर) क्या यह बात दिल से कहते हो?

आनंद - हां, बल्कि कसम खाकर!

औरत - पछताओगे और मुझ-सी चाहने वाली कभी न पाओगे।

आनंद - (अपना हाथ छुड़ाकर) लानत है ऐसी चाहत पर!

औरत - तो तुम यहां से चले जाओगे

आनंद - जरूर!

औरत - मुमकिन नहीं।

आनंद - क्या मजाल कि तुम मुझको रोको!

औरत - ऐसा खयाल भी न करना।

''देखें मुझे कौन रोकता है!'' कहकर आनंदसिंह उस कमरे के बाहर हुए और उसी कमरे की एक खिड़की जो दीवार में लगी हुई थी खोल वे औरतें वहां से निकल गईं।

आनंदसिंह इस उम्मीद में चारों तरफ घूमने लगे कि कहीं रास्ता मिले तो बाहर हो जायं मगर उनकी उम्मीद किसी तरह पूरी न हुई।

यह मकान बहुत लंबा-चौड़ा न था। सिवाय इस कमरे और एक सहन के और कोई जगह इसमें न थी। चारों तरफ ऊंची-ऊंची दीवारों के सिवाय बाहर जाने के लिए कहीं कोई दरवाजा न था। हर तरह से लाचार और दुखी हो फिर उसी पलंग पर आ लेटे और सोचने लगे -

''अब क्या करना चाहिए! इस कम्बख्त से किस तरह जान बचे यह तो हो ही नहीं सकता कि मैं इसे चाहूं या प्यार करूं। राम-राम, मुसलमानिन से और इश्क! यह तो सपने में भी नहीं होने का। तब फिर क्या करूं लाचारी है, जब किसी तरह छुट्टी न देखूंगा तो इस खंजर से जो मेरी कमर में है, अपनी जान दे दूंगा।''

कमर से खंजर निकालना चाहा, देखा तो कमर खाली है। फिर सोचने लगे -

''गजब हो गया! इस हरामजादी ने तो मुझे किसी लायक न रखा। अगर कोई दुश्मन आ जाय तो मैं क्या कर सकूंगा बेहया अगर मेरे पास आ जावे तो गला दबाकर मार डालूं। नहीं, नहीं, वीरपुत्र होकर स्त्री पर हाथ उठाना! यह मुझसे न होगा, तब क्या भूखे-प्यासे जान दे देनी पड़ेगी मुसलमानिन के घर में अन्न-जल कैसे ग्रहण करूंगा! हां ठीक है, एक सूरत निकल सकती है। (दीवार की तरफ देखकर) इसी खिड़की से वे लोग बाहर निकल गई हैं। अबकी अगर यह खिड़की खुले और वह कमरे में आवे तो मैं जबर्दस्ती इसी राह से बाहर हो जाऊंगा।''

भूखे-प्यासे दिन गुजर गया, अंधेरा हुआ चाहता था कि वही छोटी-सी खिड़की खुली और चारों औरतों को साथ लिए वह पिशाची आ मौजूद हुई। एक औरत हाथ में रोशनी, दूसरी पानी, तीसरी तरह-तरह की मिठाइयों से भरा चांदी का थाल उठाए हुए और चौथी पान का जड़ाऊ डब्बा लिए साथ मौजूद थी।

आनंदसिंह पलंग से उठ खड़े हुए और बाहर निकल जाने की उम्मीद में उस खिड़की के अंदर घुसे। उन औरतों ने इन्हें बिल्कुल न रोका क्योंकि वे जानती थीं कि सिर्फ इस खिड़की ही के पार चले जाने से उनका काम न चलेगा।

खिड़की के पार तो हो गए मगर आगे अंधेरा था। इस छोटी-सी कोठरी में चारों तरफ घूमे मगर रास्ता न मिला, हां एक तरफ बंद दरवाजा मालूम हुआ जो किसी तरह खुल न सकता था, लाचार फिर उसी कमरे में लौट आए।

उस औरत ने हंसकर कहा, ''मैं पहले ही कह चुकी हूं कि आप मुझसे अलग नहीं हो सकते। खुदा ने मेरे ही लिए आपको पैदा किया है। अफसोस कि आप मेरी तरफ खयाल नहीं करते और मुफ्त में अपनी जान गंवाते हैं! बैठिए, खाइए, पीजिए, आनंद कीजिए; किस सोच में पड़े हैं!''

आनंद - मैं तेरा छुआ खाऊं

औरत - क्यों क्या हर्ज है खुदा सबका है, उसी ने हमको भी पैदा किया, आपको भी पैदा किया, जब एक ही बाप के सब लड़के हैं तो आपस में छूत कैसी!

आनंद - (चिढ़कर) खुदा ने हाथी भी पैदा किया, गदहा भी पैदा किया, कुत्ता भी पैदा किया, सूअर भी पैदा किया, मुर्गा भी पैदा किया - जब एक ही बाप के सब लड़के हैं तो परहेज काहे का!

औरत - खैर खुशी आपकी, न मानिएगा पछताइएगा, अफसोस कीजिएगा और आखिर झख मारकर फिर वही कीजिएगा जो मैं कहती हूं। भूखे-प्यासे जान देना मुश्किल बात है - लो मैं जाती हूं।

खाने - पीने का सामान और रोशनी वहीं छोड़ चारों लौंडियें उस खिड़की के अंदर घुस गईं। आनंदसिंह ने चाहा कि जब वह शैतान खिड़की के अंदर जाय तो मैं भी जबर्दस्ती साथ हो लूं - या तो पार ही हो जाऊंगा या इसे भी न जाने दूंगा, मगर उनका यह ढंग भी न लगा।

वह मदमाती औरत खिड़की में अंदर की तरफ पैर लटकाकर बैठ गई और इनसे बात करने लगी।

औरत - अच्छा आप मुझसे शादी न करें इसी तरह मुहब्बत रखें।

आनंद - कभी नहीं चाहे जो हो!

औरत - (हाथ का इशारा करके) अच्छा उस औरत से शादी करेंगे जो आपके पीछे खड़ी है वह तो हिंदुआनी है!

''मेरे पीछे दूसरी औरत कहां से आई!'' ताज्जुब से पीछे फिर आनंदसिंह ने देखा। उस नालायक को मौका मिला, खिड़की के अंदर हो झट किवाड़ बंद कर दिया।

आनंदसिंह पूरा धोखा खा गए, हर तरह से हिम्मत टूट गई - लाचार फिर उसी पलंग पर लेट गये। भूख से आंखें निकली आती थीं, खाने-पीने का सामान मौजूद था मगर वह जहर से भी कई दर्जे बढ़कर था, दिल में समझ लिया कि अब जान गई। कभी उठते, कभी बैठते, कभी दालान के बाहर निकलकर टहलते, आधी रात जाते-जाते भूख की कमजोरी ने उन्हें चलने-फिरने लायक न रखा, फिर पलंग पर आकर लेट गये और ईश्वर को याद करने लगे।

यकायक बाहर धमाके की आवाज आई, जैसे कोई कमरे की छत पर से कूदा हो। आनंदसिंह उठ बैठे और दरवाजे की तरफ देखने लगे।

सामने से एक आदमी आता दिखाई पड़ा जिसकी उम्र लगभग चालीस वर्ष की होगी। सिपाहियाना पोशाक पहिरे, ललाट में त्रिपुण्ड लगाये, कमर में नीमचा खंजर और ऊपर से कमंद लपेटे, बगल में मुसाफिरी का झोला, हाथ में दूध से भरा लोटा लिए आनंदसिंह के सामने आ खड़ा हुआ और बोला -

''अफसोस, आप राजकुमार होकर वह काम करना चाहते हैं जो ऐयारों-जासूसों या अदने सिपाहियों के करने लायक हों! नतीजा यह निकला कि इस चाण्डालिन के यहां फंसना पड़ा। इस मकान में आए आपको कै दिन हुए! घबराइये मत, मैं आपका दोस्त हूं, दुश्मन नहीं!''

इस सिपाही को देख आनंदसिंह ताज्जुब में आ गए और सोचने लगे कि यह कौन है जो ऐसे वक्त में मेरी मदद को पहुंचा। खैर जो भी हो, बेशक यह हमारा खैरख्वाह है, बदख्वाह नहीं।

आनंद - जहां तक खयाल करता हूं यहां आये दूसरा दिन है।

सिपाही - कुछ अन्न-जल तो न किया होगा!

आनंद - कुछ नहीं।

सिपाही - हाय! राजा वीरेंद्रसिंह के प्यारे लड़के की यह दशा!! लीजिए मैं आपको खाने-पीने के लिए देता हूं!

आनंद - पहले मुझे मालूम होना चाहिए कि आपकी जाति उत्तम है और मुझे धोखा देकर अधर्मी करने की नीयत नहीं है।

सिपाही - (दांत के नीचे जुबान दबाकर) राम-राम, ऐसा स्वप्न में भी खयाल न कीजिएगा कि मैं धोखा देकर आपको अजाति करूंगा। मैंने पहले ही सोचा था कि आप शक करेंगे इसीलिए ऐसी चीजें लाया हूं जिनके खाने-पीने से आप उज्र न करें। पलंग से पर उठिए, बाहर आइए।

आनंदसिंह उसके साथ बाहर गए। सिपाही ने लोटा जमीन पर रख दिया और झोले में से कुछ मेवा निकाल उनके हाथ में देकर बोला, ''लीजिए, इसे खाइये और (लोटे की तरफ इशारा करके) यह दूध है पीजिए।''

आनंदसिंह की जान में जान आ गई, प्यास और भूख से दम निकला जाता था, ऐसे समय में थोड़े मेवे और दूध मिल जाना क्या थोड़ी खुशी की बात है मेवा खाया, दूध पिया, जी ठिकाने हुआ, इसके बाद उस सिपाही को धन्यवाद देकर बोले, ''अब मुझे किसी तरह इस मकान के बाहर कीजिए।''

सिपाही - मैं आपको इस मकान के बाहर ले चलूंगा मगर इसकी मजदूरी भी तो मुझे मिलनी चाहिए।

आनंद - जो कहिए दूंगा।

सिपाही - आपके पास क्या है जो मुझे देंगे

आनंद - इस वक्त भी हजारों रुपये का माल मेरे बदन पर है।

सिपाही - मैं यह सब-कुछ नहीं चाहता।

आनंद - फिर

सिपाही - उसी कम्बख्त के बदन पर जो कुछ जेवर हैं मुझे दीजिए और एक हजार अशर्फी।

आनंद - यह कैसे हो सकेगा वह तो यहां मौजूद नहीं है और हजार अशर्फी भी कहां से आवें

सिपाही - उसी से लेकर दीजिए।

आनंद - क्या वह मेरे कहने से देगी?

सिपाही - (हंसकर) वह तो आपके लिए जान देने को तैयार है, इतनी रकम की क्या बिसात है।

आनंद - तो क्या आप मुझे यहां से न छुड़ावेंगे!

सिपाही - नहीं, मगर आप कोई चिंता न करें, आपका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता, कल जब वह रांड़ आवे तो उससे कहिए कि तुमसे मुहब्बत तब करूंगा जब अपने बदन का कुल जेवर और एक हजार अशर्फी यहां रख दो, उसके दूसरे दिन आओ तो जो कहोगी मैं मानूंगा। तुरंत अशर्फी मंगा देगी और कुल जेवर भी उतार देगी। नालायक बड़ी मालदार है, उसे कम न समझिये।

आनंद - खैर जो कहोगे करूंगा।

सिपाही - जब तक आप यह न करेंगे मैं आपको इस कैद से न छुड़ाऊंगा। आप यह न सोचिये कि उसे धोखा देकर या जबर्दस्ती उस राह से चले जायंगे जिधर से वह आती-जाती है। यह कभी नहीं हो सकेगा, उसके आने-जाने के लिए कई रास्ते हैं।

आनंद - अगर वह तीन-चार दिन न आवे तब?

सिपाही - क्या हर्ज है, मैं आपकी बराबर ही सुध लेता रहूंगा और खाने-पीने को पहुंचाया करूंगा।

आनंद - अच्छा ऐसा ही सही।

वह सिपाही कमंद लगाकर छत पर चढ़ा और दीवार फांद मकान के बाहर हो गया।

थोड़ी रात बच गई थी जो आनंदसिंह ने इसी सोच-विचार में काटी कि यह कौन है जो ऐसे वक्त में मेरी मदद को पहुंचा। इसे लालच बहुत है, कोई ऐयार मालूम पड़ता है। ऐयारों का जितना ज्यादे खर्च होता है उतना ही लालच भी करते हैं। खैर कोई हो, अब तो जो कुछ उसने कहा है करना ही पड़ेगा।

रात बीत गई, सबेरा हुआ। वह औरत फिर उन्हीं चारों लौंडियों को लिए आ पहुंची। देखा कि आनंदसिंह पलंग पर पड़े हैं और खाने-पीने का सामान ज्यों-का-त्यों उसी जगह रखा है जहां वह रख गई थी।

औरत - आप क्यों जिद करके भूखे-प्यासे अपनी जान देते हैं!

आनंद - इसी तरह मर जाऊंगा मगर तुमसे मुहब्बत न करूंगा, हां अगर एक बात मेरी मानो तो तुम्हारा कहा करूं।

औरत - (खुश होकर और उनके पास बैठकर) जो कहो मैं करने को तैयार हूं मगर मुझसे जिद न करो।

आनंद - अपने बदन पर से कुल जेवर उतार दो और एक हजार अशर्फी मंगा दो।

औरत - (आनंदसिंह के गले में हाथ डालकर) बस इतने ही के लिए। लो मैं अभी देती हूं!!

एक हजार अशर्फी लाने के लिए उसने दो लौंडियों को कहा और अपने बदन से कुल जेवर उतार दिए। थोड़ी ही देर में वे दोनों लौंडियां अशर्फियों का तोड़ा लिए आ मौजूद हुईं।

औरत - लीजिये, अब आप खुश हुए! अब तो उज्र नहीं

आनंद - नहीं, मगर एक दिन की और मोहलत मांगता हूं! कल इसी वक्त तुम आओ, बस मैं तुम्हारा हो जाऊंगा।

औरत - अब यह ढकोसला क्या निकाला आज भी भूखे-प्यासे काटोगे तो तुम्हारी क्या दशा होगी!

आनंद - इसकी फिक्र न करो, मुझे कई दिनों तक भूखे-प्यासे रहने की आदत है।

औरत - लाचार, खैर यह भी सही, ठहरिये मैं आती हूं।

इतना कहकर आनंदसिंह को उसी जगह छोड़ चारों लौंडियों को साथ ले वह कमरे के बाहर चली गई। घंटा भर बीतने पर भी वह न लौटी तो आनंदसिंह उठे और कमरे के बाहर जा उसे ढूंढ़ने लगे मगर कहीं पता न लगा। बाहर की दीवार में छोटी-छोटी दो आलमारियां लगी हुई दिखाई दीं। अंदाज कर लिया कि शायद उस खिड़की की तरह यह भी बाहर जाने का कोई रास्ता हो और इधर ही से वे लोग निकल गई हों।

सोच और फिक्र में तमाम दिन बिताया, पहर रात जाते-जाते कल की तरह वही सिपाही फिर पहुंचा और मेवा-दूध आनंदसिंह को दिया।

आनंद - लीजिए आपकी फर्माइश तैयार है।

सिपाही - तो बस अब आप भी इस मकान के बाहर चलिए। एक रोज के कष्ट में इतनी रकम हाथ आई क्या बुरा हुआ।

सब - कुछ सामान अपने कब्जे में करने के बाद सिपाही कमरे के बाहर निकला और सहन में पहुंच कमंद के जरिये से आनंदसिंह को मकान के बाहर निकालने के बाद आप भी बाहर हो गया। मैदान की हवा लगने से आनंदसिंह का जी ठिकाने हुआ। समझे कि अब जान बची। बाहर से देखने पर मालूम हुआ कि यह मकान एक पहाड़ी के अंदर है, कारीगरों ने पत्थर तोड़कर इसे तैयार किया है। इस मकान के अगल-बगल में कई सुरंगें भी दिखाई पड़ीं।

आनंदसिंह को लिये हुए वह सिपाही कुछ दूर चला गया जहां कसे-कसाये दो घोड़े पेड़ से बंधे थे। बोला, ''लीजिये, एक पर आप सवार होइये, दूसरे पर मैं चढ़ता हूं, चलिए आपको घर तक पहुंचा आऊं।''

आनंद - चुनार यहां से कितनी दूर और किस तरफ है

सिपाही - चुनार यहां से बीस कोस है चलिये मैं आपके साथ चलता हूं, इन घोड़ों में इतनी ताकत है कि सबेरा होते-होते हम लोगों को चुनार पहुंचा दें। आप घर चलिये, इंद्रजीतसिंह के लिए कुछ फिक्र न कीजिये, उनका पता भी बहुत जल्द लग जायगा, आपके ऐयार लोग उनकी खोज में निकले हुए हैं।

आनंद - ये घोड़े कहां से लाये?

सिपाही - कहीं से चुरा लाए, इसका कौन ठिकाना है।

आनंद - खैर यह तो बताओ तुम कौन हो और तुम्हारा नाम क्या है।

सिपाही - यह मैं नहीं बता सकता और न आपको इसके बारे में कुछ पूछना मुनासिब ही है!

आनंद - खैर अगर कहने में कुछ हर्ज हो तो...

आनंदसिंह अपना पूरा मतलब कहने भी न पाये थे कि कोई चौंकाने वाली चीज इन्हें नजर आई। स्याह कपड़ा पहिरे हुए किसी को अपनी तरफ आते देखा। सिपाही और आनंदसिंह दोनों एक पेड़ की आड़ में हो गये, और वह आदमी इनके पास ही से कुछ बड़बड़ाता हुआ निकल गया जिसे यह गुमान भी न था कि इस जगह पर कोई छिपा हुआ मुझे देख रहा है।

उसकी बड़बड़ाहट इन दोनों ने सुनी, वह कहता जाता था - ''अब मेरा कलेजा ठण्डा हुआ, अब मैं घर जाकर बेशक सुख की नींद सोऊंगी और उस हरामजादे की लाश को गीदड़ और कौवे कल दिन भर में खा जायंगे जिसने मुझे औरत जानकर दबाना चाहा था और यह न समझा था कि इस औरत का दिल हजार मर्दों से भी बढ़कर है!''

आनंदसिंह और सिपाही दोनों उसकी तरफ टकटकी लगाये देखते रहे जिसकी बकवाद से मालूम हो गया था कि कोई औरत है, वह देखते-देखते नजरों से गायब हो गई।

सिपाही - बेशक इसने कोई खून किया है।

आनंद - और वह भी इसी जगह कहीं पास में, खोजने से जरूर पता लगेगा।

दोनों आदमी इधर-उधर ढूंढ़ने लगे, बहुत तकलीफ करने की नौबत न आई और दस ही कदम पर एक तड़पती हुई लाश पर इन दोनों की नजर पड़ी।

सिपाही ने अपने बगल से एक थैली निकाली और चकमक पत्थर से आग झाड़ मोमबत्ती जलाकर उस तड़पती लाश को देखा। मालूम हुआ कि किसी ने कटार या खंजर इसके कलेजे के पार कर दिया है, खून बराबर बह रहा है, जख्मी पैर पटकता और बोलने की कोशिश करता है मगर बोला नहीं जाता।

सिपाही ने अपनी थैली से एक छोटी बोतल निकाली जिसमें किसी तरह का अर्क भरा हुआ था। उसमें से थोड़ा अर्क जख्मी के मुंह में डाला। गले के नीचे उतरते ही उसमें कुछ बोलने की ताकत आई और बहुत ही धीमी आवाज में उसने नीचे लिखे हुए कई टूटे-फूटे शब्द अपने मुंह से निकालने के साथ ही दम तोड़ दिया।

''अफ...सोस, यह खूबसूरत पिशाची...तेजसिंह...की...जान...मेरी तरह...उसके फंदे में हाय! ...इंद्रजीतसिंह को...!!''

उस बेचारे मरने वाले के मुंह से निकले हुए ये दो-चार शब्द कैसे ही बेजोड़ क्यों न हों मगर इन दोनों सुनने वालों के दिलों को तड़पा देने के लिए काफी थे। आनंदसिंह से ज्यादे उस सिपाही को बेचैनी हुई जो अपने में बहुत कुछ कर गुजरने की कुव्वत रखता था और जानता था कि इस वक्त अगर कोई हाथ कुंअर इंद्रजीतसिंह और तेजसिंह की मदद को बढ़ सकता है तो वह सिर्फ मेरा ही हाथ है।

सिपाही - कुमार, अब आप घर जाइए। इन टूटी-फूटी बेजोड़ मगर मतलब से भरी बातों को जो इस मरने वाले के मुंह से अनायास निकल पड़ा है सुनकर निश्चय हो गया कि आपके बड़े भाई और ऐयारों के सिरताज तेजसिंह किसी आफत में, जो बहुत जल्द तबाह कर देने की कुव्वत रखती है, फंस गये हैं। ऐसी हालत में मैं जो बहुत कुछ कर गुजरने का हौसला रखता हूं किसी तरह नहीं अटक सकता और मेरा मतलब तभी सिद्ध होगा जब उस औरत को खोज निकालूंगा जो अभी यह आफत कर गई और आगे कई तरह के फसाद करने वाली है।

आनंद - तुम्हारा कहना बहुत सही है मगर क्या तुम कह सकते हो कि ऐसी खबर पाकर मैं चुपचाप घर चले जाना पसंद करूंगा और जान से ज्यादे प्यारों की मदद से जी चुराऊंगा

सिपाही - (कुछ सोचकर) अच्छा तो ज्यादे बात करने का मौका नहीं है, चलिए। हां सुनिये तो, आपके पास कोई हरबा तो है नहीं, काम पड़ने पर क्या कर सकेंगे मेरे पास एक खंजर और एक नीमचा है, दोनों में जो चाहें एक आप ले लें।

आनंद - बस नीमचा मेरे हवाले कीजिए और चलिये।

आनंदसिंह ने नीमचा अपनी कमर में लगाया और सिपाही के साथ पैदल ही उस तरफ को बढ़ते चले जिधर वह खूनी औरत बकती हुई चली गई थी।

ये दोनों ठीक उसी पगडण्डी के रास्ते को पकड़े हुए थे जिस पर वह औरत गई थी। थोड़ी दूर पर सांस रोककर इधर-उधर की आहट लेते, जब कुछ मालूम न होता तो फिर तेजी के साथ बढ़ते चले जाते थे।

कोस भर के बाद पहाड़ी उतरने की नौबत पहुंची, वहां ये दोनों फिर रुके और चारों तरफ देखने लगे। छोटी-सी घंटी बजने की आवाज आई। घंटी किसी खोह या गड्ढे के अंदर बजाई गई थी जो वहां से बहुत करीब था जहां ये दोनों बहादुर खड़े हो इधर-उधर देख रहे थे।

ये दोनों उसी तरफ मुड़े जिधर से घंटी की आवाज आई थी। फिर आवाज आई, अब तो ये दोनों उस खोह के मुंह पर पहुंच गये जो पहाड़ी की कुछ ढाल उतरकर पगडंडी रास्ते से बाईं तरफ हटकर थी और जिसके अंदर से घंटी की आवाज आई थी। बेधड़क दोनों आदमी खोह के अंदर घुस गये। अब फिर एक बार घंटी बजने की आवाज आई और साथ ही एक रोशनी चमकती हुई दिखाई दी जिसकी वजह से उस खोह का रास्ता साफ मालूम होने लगा, बल्कि उन दोनों ने देखा कि कुछ दूर आगे एक औरत खड़ी है जो रोशनी होते ही बाईं तरफ हटकर किसी दूसरे गड्ढे में उतर गई। जिसका रास्ता बहुत छोटा बल्कि एक ही आदमी के जाने लायक था। इन दोनों को विश्वास हो गया कि वही औरत है जिसकी खोज में हम लोग इधर आये हैं।

रोशनी गायब हो गई मगर अंदाज से टटोलते हुए ये दोनों भी उस गड्ढे के मुंह पर पहुंच गये जिसमें वह औरत उतर गई थी। उस पर एक पत्थर अटकाया हुआ था लेकिन उस अनगढ़ पत्थर के अगल-बगल छोटे-छोटे ऐसे कई सुराख थे जिनके जरिये से गड्ढे के अंदर का हाल ये दोनों बखूबी देख सकते थे।

दोनों उसी जगह बैठ गये और सुराखों की राह से अंदर का हाल देखने लगे। भीतर रोशनी बखूबी थी। सामने की तरफ चट्टान पर बैठी वही औरत दिखाई पड़ी जिसने अभी तक अपने मुंह से नकाब नहीं उतारी थी और थकावट के सबब लंबी सांस ले रही थी। उसके पास ही एक कमसिन खूबसूरत हब्शी छोकरी बड़ा-सा छुरा हाथ में लिए खड़ी थी। दूसरी तरफ एक बदसूरत हब्शी कुदाल से जमीन खोद रहा था, बीच में छत के सहारे एक उल्टी लाश लटक रही थी, एक तरफ कोने में जल से भरा हुआ मिट्टी का घड़ा, एक लोटा और कुछ खाने का सामान पड़ा हुआ था। उस गड्ढे में इतना ही कुछ था जो लिख चुके हैं।

कुछ देर बाद उस औरत ने अपने मुंह से नकाब उतारी। अहा, क्या खूबसूरत गुलाब-सा चेहरा है मगर गुस्से से आंखें ऐसी सुर्ख और भयानक हो रही हैं कि देखने से डर मालूम पड़ता है। वह औरत उठ खड़ी हुई और अपने पास वाली छोकरी के हाथ से छुरा ले उस लटकती हुई लाश के पास पहुंची और दो अंगुल गहरी एक लकीर उसकी पीठ पर खींची।

हाय-हाय, ऐसी हसीन और इतनी संगदिली! इतनी बेदर्दी! अभी-अभी एक खून किये चली आती है और यहां पहुंचकर फिर अपने राक्षसीपन का नमूना दिखला रही है! वह लाश किसकी है कहीं यह भी कोई चुनार का खैरख्वाह या हमारे उपन्यास का पात्र न हो!

पीठ पर जख्म खाते ही लाश फड़की। अब मालूम हुआ कि वह मुर्दा नहीं है कोई जीता आदमी तकलीफ देने के लिए लटकाया गया है। जख्म खाकर लटका हुआ वह आदमी तड़पा और आह भरकर बोला -

''हाय, मुझे क्यों तकलीफ देती हो, मैं कुछ नहीं जानता!''

औरत - नहीं तुझे बताना ही होगा तू खूब जानता है। (पीठ पर फिर गहरी छुरी चलाकर) बता, बता।

उल्टा आदमी - हाय, मुझे एक ही दफे क्यों नहीं मार डालती मैं किसी का हाल क्या जानूं, मुझे इंद्रजीत से क्या वास्ता।

औरत - (फिर छुरी से काटकर) मैं खूब जानती हूं, तू बड़ा पाजी है, तुझे सब-कुछ मालूम है। बता नहीं तो गोश्त काट-काटकर जमीन पर गिरा दूंगी।

उल्टा आदमी - हाय, इंद्रजीतसिंह की बदौलत मेरी यह दशा!

अभी तक कुंअर आनंदसिंह और वह सिपाही छिपे-छिपे सब - कुछ देख रहे थे, मगर जब उस उल्टे हुए आदमी के मुंह से यह निकला कि 'हाय इंद्रजीतसिंह की बदौलत मेरी यह दशा!' तब मारे गुस्से के उनकी आंखों में खून उतर आया। पत्थर हटा दोनों आदमी बेधड़क अंदर चले गए और उस बेदर्द छुरी चलाने वाली औरत के सामने पहुंच आनंदसिंह ने ललकारा - ''खबरदार! रख दे छुरा हाथ से!!''

औरत - (चौंककर) हैं, तुम यहां क्यों चले आये खैर अगर आ ही गए हो तो चुपचाप खड़े होकर तमाशा देखो। यह न समझो कि तुम्हारे धमकाने से मैं डर जाऊंगी। (सिपाही की तरफ देखकर) तुम्हारी आंखों में क्या धूल पड़ गई है अपने हाकिम को नहीं पहचानते

सिपाही - (खूब गौर से देखकर) हां ठीक है, तुम्हारी सभी बातें अनोखी होती हैं।

औरत - अच्छा तो आप दोनों आदमी यहां से जाइये और मेरे काम में हर्ज न डालिए।

सिपाही - (आनंदसिंह से) चलिए, इन्हें छोड़ दीजिए। जो चाहे सो करें आपका क्या!

आनंद - (कमर से नीमचा निकालकर) वाह, क्या कहना है! मैं बिना इस आदमी के छुड़ाए कब टलने वाला हूं!

औरत - (हंसकर) मुंह धो रखिए!

बहादुर वीरेंद्रसिंह के बहादुर लड़के आनंदसिंह को ऐसी बातों के सुनने की आदत कहां वह दो-चार आदमियों को समझते ही क्या थे 'मुंह धो रखिए' इतना सुनते ही जोश चढ़ आया। उछलकर एक हाथ नीचमे का लगाया जिससे वह रस्सी कट गई जो उस आदमी के पैर से बंधी हुई थी और जिसके सहारे वह लटक रहा था, साथ ही फुर्ती से उस आदमी को सम्हाला और जोर से जमीन पर गिरने न दिया।

अब तो वह सिपाही भी आनंदसिंह का दुश्मन बन बैठा और ललकारकर बोला, ''यह क्या लड़कपन है!''

हम ऊपर लिख चुके हैं कि इस सुरंग में दो औरतें और एक हब्शी गुलाम हैं। अब वह सिपाही भी उनके साथ मिल गया और चारों ने आनंदसिंह को पकड़ लिया, मगर वाह रे आनंदसिंह, एक झटका दिया कि चारों दूर जा गिरे। इतने में बाहर से आवाज आई -

''आनंदसिंह, खबरदार! जो किया सो ठीक किया अब आगे कुछ होसला मत करना नहीं तो सजा पाओगे!''

आनंदसिंह ने घबराकर बाहर की तरफ देखा तो एक योगिनी नजर पड़ी जो जटा बढ़ाए भस्म रमाये गेरुआ वस्त्र पहिरे दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में आग से भरा धधकता हुआ खप्पर जिसमें कोई खुशबूदार चीज जल रही थी और बहुत धुआं निकल रहा था, लिए हुए आ मौजूद हुई।

ताज्जुब में आकर सभी उसकी सूरत देखने लगे। थोड़ी देर में उस खप्पर से निकला हुआ धुआं सुरंग की कोठरी में भर गया और उसके असर से जितने वहां थे सभी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। बस अकेली वही योगिनी होश में रही जिसने सभों को बेहोश देख कोने में पड़े हुए घड़े से जल निकाल खप्पर की आग बुझा दी। 

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रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
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इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
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चंद्रकांता संतति भाग -1

11 जून 2022
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नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनन

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भाग 2

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इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

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भाग 3

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चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

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भाग 4

11 जून 2022
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खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

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भाग 6

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बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

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भाग 7

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अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं

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भाग 8

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अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो

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भाग 9

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भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ रात आते-आते लौट आये और उसी समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज किया कि आज शिकार खेलने के लिए कुमार जंगल में गये थे, एक बनैले सूअर के प

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भाग 10

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अब हम अपने पाठकों को फिर उसी खोह में ले चलते हैं जिसमें कुंअर आनंदसिंह को बेहोश छोड़ आये हैं अथवा जिस खोह में जान बचाने वाले सिपाही के साथ पहुंचकर उन्होंने एक औरत को छुरे से लाश काटते देखा था और योगिन

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भाग 11

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सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिय

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भाग 12

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अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां

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भाग 13

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दूसरे दिन खा-पीकर निश्चिंत होने के बाद दोपहर को जब दोनों एकांत में बैठे तो इंद्रजीतसिंह ने माधवी से कहा - ''अब मुझसे सब्र नहीं हो सकता, आज तुम्हारा ठीक-ठीक हाल सुने बिना कभी न मानूंगा और इससे बढ़कर न

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भाग 14

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इंद्रजीतसिंह ने दूसरे दिन पुनः नियत समय पर माधवी को जाने न दिया, आधी रात तक हंसी-दिल्लगी ही में काटी, इसके बाद दोनों अपने-अपने पलंग पर सो रहे। कुमार को तो खुटका लगा ही हुआ था कि आज वह काली औरत आवेगी इ

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भाग 15

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अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

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चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

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घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

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भाग 2

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किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

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भाग 3

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सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

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भाग 5

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कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

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भाग 6

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

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भाग 7

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आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

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भाग 8

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इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

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भाग 9

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

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भाग 10

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जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

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भाग 11

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हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

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भाग 12

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आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

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भाग 13

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

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भाग 14

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

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भाग 15

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राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

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भाग 16

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भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

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भाग 17

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मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

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चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

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पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

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भाग 2

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शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

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भाग 3

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ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

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भाग 4

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आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

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भाग 5

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कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

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भाग 6

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इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

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भाग 7

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

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भाग 8

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रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

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आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

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भाग 10

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कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

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भाग 11

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इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

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भाग 12

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

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भाग 13

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आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

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भाग 14

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रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

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चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

11 जून 2022
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अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

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भाग 2

11 जून 2022
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कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

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भाग 3

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तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

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भाग 4

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अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

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भाग 6

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अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

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भाग 7

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लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

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भाग 8

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अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

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भाग 9

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अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

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भाग 10

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दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

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अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

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भाग 12

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दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

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चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

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बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

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भाग 2

11 जून 2022
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पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

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भाग 3

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कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

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भाग 5

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अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

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भाग 6

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आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

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भाग 7

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रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

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भाग 8

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बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

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भाग 9

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गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

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भाग 10

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वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

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भाग 11

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इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

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भाग 12

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दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

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भाग 13

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तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

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चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

11 जून 2022
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वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

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भाग 2

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इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

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भाग 3

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अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

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भाग 4

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अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

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भाग 5

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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

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भाग 6

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दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

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भाग 7

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आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

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चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

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नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

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भाग 2

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हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

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भाग 3

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

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भाग 4

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शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

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पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

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मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

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चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

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मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

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कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

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भाग 3

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मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

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भाग 4

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कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

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भाग 5

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दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

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भाग 6

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रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

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भाग 7

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राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

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भाग 8

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अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

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भाग 9

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

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भाग 10

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दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

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भाग 11

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ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

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भाग 12

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आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

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