एलिस का भेजा हुआ राजा गंगाधरराव का १९ नवंबर का खरीता और उनके देहांत का समाचार मालकम के पास जैसे ही कैथा पहुँचा, उसने गवर्नर जनरल को अपनी चिट्ठी अविलंब (२५ नवंबर के दिन) भेज दी। चिट्ठी के साथ एलिस का भेजा हुआ खरीता और गंगाधरराव का खरीता भी, जो उन्होंने सीधा मालकम के पास पहुँचवाया था, भेज दिया। मालकम की चिट्ठी का सार यह था-
'झाँसी के राजा को बिना कंपनी सरकार की अनुमति लिए गोद लेने का अधिकार नहीं है। रानी योग्य और लोकप्रिय हैं परंतु कंपनी का शासन जनहित की दृष्टि से ज्यादा अच्छा होगा। ऐसी परिस्थिति में रानी को पाँच सहस्र मासिक वृत्ति, निजी संपत्ति और नगर का महल दे दिया जावे।' इस प्रकार की चिट्ठी भेजने के उपरांत ही मालकम ने झाँसी के बंदोबस्त का प्रयास शुरू कर दिया और अपना फौज-फाँटा बढ़ा दिया।
इधर झाँसी-दरबार के लोगों का विश्वास था कि दत्तक पुत्र के नाम पर राज्य चलेगा और वे दामोदरराव के नाम पर शासन प्रबंध करने लगे।
उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ काल में जब कंपनी का राज्य जल्दी-जल्दी बढ़ा तब वह अपनी नीति और हथियार की विजय के बोझ से लदी-सी जा रही थी और समय-समय पर कंपनी के साझीदारों ने विचार प्रकट किया था कि विजय और इलाके की सीमा बढ़ाने की योजनाएँ घृणास्पद हैं और ब्रिटिश जाति की इच्छा, प्रतिष्ठा और नीति के प्रतिकूल हैं। असल बात यह थी कि कहीं ऐसा न हो कि मुफ्त में आया हुआ माल किसी अदृश्य गड्ढे में चला जाए।
इन योजनाओं का सही रूप डलहौजी था, उसकी नीति में कुछ भी लगा-लिपटा हुआ न था। उसका वक्तव्य स्पष्ट था।
'हम किसी भी मौके को चूकने नहीं देना चाहते। हमारे इलाकों के बीच में ये जो छोटी-छोटी रियासतें हैं, काफी खिझलाहट का कारण हैं। इनको अपने हाथ में कर लेने से खजाने में रुपया बढ़ेगा और हमारी शासन-प्रणाली से इन रजवाड़ों की जनता को लाभ ही लाभ प्राप्त होगा।'
जिस समय खरीतों सहित मालकम की चिट्ठी कलकत्ता पहुँची, डलहौजी अवध की ओर दौरे पर गया हुआ था। चार-पाँच महीने तक कोई उत्तर नहीं आया।