मोरोपंत, मनूबाई इत्यादि के ठहरने के लिए कोठी कुआँ के पास एक अच्छा भवन शीघ्र ही तय हो गया था। तात्या टोपे कुछ दिन झाँसी ठहरा रहा। निवास-स्थान की सूचना बिठूर शीघ्र भेज दी।
टोपे को बिठूर की अपेक्षा झाँसी ज्यादा पसंद आई। उसकी कल्पना गंगाधरराव की नाटकशाला में बार-बार उलझ जाती थी। इसके सिवाय झाँसी का रहन-सहन, यहाँ के स्त्री-पुरुष और यहाँ का प्राकृतिक वातावरण उसको ब्रह्म्मावर्त के गंगातट से अधिक मनोहर लगे। जब बिठूर लौटा, अवसर पाकर उन बालकों ने झाँसी के विषय में सवालों की झड़ी लगा दी।
नाना-'क्या झाँसी बिठूर से बड़ा नगर है?'
तात्या-'कुछ बड़ा ही होगा। किला बड़ा है। नगर के चारों ओर परकोटा है। बस्ती पहाड़ी की ऊँचाई-निचाई पर बसी है। इसलिए बरसात में कीचड़ नहीं मचती होगी। घर-घर कुएँ हैं। नगर के भीतर इधर-उधर फल-फूल के बगीचे। भीतर-बाहर तालाब, अच्छे-अच्छे मंदिर। किला पहाड़ी पर है। उसमें राजमहल है। महादेव और गणपति के मंदिर। एक बड़ा महल नीचे है। महल के पीछे नाटकशाला।'
मनू-'नाटकशाला! उसमें क्या होता है?'
तात्या-' अच्छे-अच्छे नाटक खेले जाते हैं। गायन-वादन होता है।'
मनू-'मैं भी देखूँगी।'
तात्या-'श्रीमंत राजा साहब तो नित्य ही नाटकशाला में जाते हैं। मुझको भी बुलवा लेते थे।'
मनू-'हाथी कितने हैं?'
तात्या-'दस या शायद ज्यादा हों।'
मनू-'घोड़े?'
तात्या-'सरकार को धोड़े की सवारी पसंद नहीं है। तामझाम में चलते हैं।' नाना-'सेना कितनी है?'
तात्या-'कई हजार है।'
मनू-'ठीक नहीं गिनी है?'
तात्या-'बिलकुल ठीक तो नहीं परंतु आठ और दस के बीच में होगी।' मनू-'लोग कैसे हैं?'
तात्या-'उनके शरीर दृढ़ और स्वस्थ हैं। व्योपार अच्छा है। शहर में चहल-पहल मची रहती है। धनधान्य खूब है। गरीबी बहुत कम देखने में आई है। स्त्री-प्रुष सुखी दिखलाई पड़ते हैं। संध्या समय लोग फूलों की माला डाले बगीचे और बाजारों में घूमते हैं। स्त्रियाँ घी के दीए थालों में सजाकर पूजन के लिए लक्ष्मीजी के मंदिर में जाती हैं।'
रावसाहब-'कुश्ती, मलखंब के अखाड़े हैं?'
मनू-'मैं भी यह पूछना चाहती थी।'
तात्या-'हैं तो, परंतु लोगों में गाने-बजाने का अधिक शौक दिखलाई पड़ता है। '
रावसाहब-' क्या रास्तों में गाते-बजाते फिरते हैं?'
तात्या-'नहीं तो।'
मनू- 'फिर क्या नाटकशाला में गाते-बजाते हैं?'
तात्या-'नहीं, घरों पर, सभाओं में, उत्सवों पर। जान पड़ता है मानो गाने का मिस डूँढ़ रहे हों। स्त्रियाँ तो गाने का कोई-न-कोई बहाना लिए रहती हैं। पीसने के समय तो सब स्त्रियाँ गाती हैं परंतु झाँसी में पानी भरने जायें तो गाएँ, पानी भरते समय गाएँ। शायद मरती भी गाते-गाते होंगी।'
मनू- 'झाँसी में तोपें कितनी हैं?'
तात्या-'बड़ी तोपें चार हैं-बहुत बड़ी हैं। छोटी तो बहुत हैं।'
मनू- 'किले के भीतर तालाब है?'
तात्या-'नहीं। एक पोखरा है। एक बड़ा कुआँ भी है, उसमें बहुत पानी रहता है। न जाने पहाड़ पर किसने खुदवाया होगा।'
नाना-'आदमियों ने खुदवाया होगा, देव-दानव तो खोदने आए न होंगे।'
तात्या को बाजीराव ने बुलवाया और पूछा, 'बच्चों में क्या बात कर रहे थे?'
तात्या ने उत्तर दिया, 'झाँसी का हाल सुना रहा था।'
बाजीराव- 'नारायण शास्त्रीवाली बात तो नहीं सुनाई?'
तात्या- 'नहीं सरकार। और न नाटकशाला की गाने-नाचनेवालियों की।
बाजीराव- 'तुम मोरोपंत के साथ कुछ दिन के लिए फिर झाँसी जाओगे?'
तात्या-'हाँ श्रीमंत।'
बाजीराव-'मुहूर्त पास का निकला है। जल्दी जाना होगा।'