भोजनोपरांत तात्या दीक्षित से बाजीराव और मोरोपंत मिले। तात्या दीक्षित झाँसी से बिठूर आए हुए थे। वह ज्योतिष और तंत्र के शास्त्री थे। काशी, नागपुर, पूना इत्यादि घूमे हुए थे। महाराष्ट्र समाज से काफी परिचित थे। बिठूर (ब्रह्मावर्त) में बाजीराव के साथ दक्षिणी ब्राह्मणों का एक बड़ा परिवार आ बसा था। उस काल में मलखंब और मल्लयुद्ध के आचार्य बाला गुरु का अखाड़ा दक्षिणियों और हिंदुस्तानियों से भरा रहता था और गुरु बल, यौवन और स्वाभिमान को वितरित-सा करते रहते थे। वह स्वयं इतने दृढ़, बलिष्ठ और स्वाभिमानी थे कि लेटा करते थे।
मोरोपंत ने अवसर निकालकर तात्या दीक्षित से प्रार्थना की, ‘दीक्षितजी, मुझे अपनी कन्या मनूबाई के विवाह की बड़ी चिंता लग रही है। मैंने बहुत खोज की है, परंतु कोई योग्य वर नहीं मिला। अब भी खोज कर रहा हूँ। आपका संसार में बहुत परिचय है। आप इस कन्या के लिए योग्य वर ढूँढ़ दीजिए। बड़ा अनुग्रह होगा।’
बाजीराव ने भी कहा, ‘कन्या बहुत सुंदर है, बड़ी कुशाग्र बुद्धि और होनहार। उसके लिए अच्छा वर ढूँढ़ना ही चाहिए।’
मोरोपंत बोले, ‘सब हथियार चलाना बहुत अच्छी तरह जानती है, घोड़े की सवारी में पुरुषों के कान पकड़ती है। जब चार वर्ष की थी, इसकी माँ का देहांत हो गया था। इसलिए मैंने स्वयं उसकी दिन-रात देखभाल की है, लालन-पालन किया है। मराठी, संस्कृत और हिंदी पढ़ाई है। शास्त्रों में उसकी रुचि है।’
बाजीराव ने कहा, ‘बालिका है, इसलिए इस आयु में जितना पढ़ सकती थी, उतना ही पढ़ा है; परंतु तेज बहुत है। पूजा-पाठ मन लगाकर करती है।’
मोरोपंत फूल गए। बाजीराव को भी संतोष हुआ। बोले, ‘जब आप जाएँ तो साथ में जन्मपत्री लेते जाएँ। योग्य वर से मेल खाने पर हमको सूचित करें।’
दीक्षित ने स्वीकार किया।
उसी समय रावसाहब के साथ मनू वहाँ आ गई।
बाजीराव ने दीक्षित से कहा, ‘यही वह कन्या है।’
दीक्षित ने मनूबाई के विशाल नेत्र, भौंरे को लजानेवाले चमकीले बाल, स्वर्ण-सा रंग और संपूर्ण चेहरे का अतीव सुंदर बनाव देखकर प्रसन्नता प्रकट की।
दीक्षित ने ममता प्रदर्शित करते हुए कहा, ‘आ बेटी, आ! तूने शास्त्र पढ़े हैं, उच्च कुल की ब्राह्मण कन्या के लिए यह उपयुक्त ही है।’
मनू और रावसाहब बाजीराव के पास मसनद पर बैठ गए।
मनू बिना किसी संकोच के बोली, ‘मैंने शास्त्र आँखों से भाँजना, घोड़े की सवारी—ये उससे भी बढ़कर भाते हैं।’
बाजीराव ने हँसकर टोका, ‘और बात बनाना, चबड़-चबड़ करना, इन सबसे बढ़कर अच्छा लगता है।’
मोरोपंत के मन में क्षणिक रोष आया। वह चाहते थे कि लड़की तात्या दीक्षित के सामने ऐसी बातें करे कि शील-संकोच का अवतार जान पड़े।
पूजा-पाठ संबंधी रुचि पर बाजीराव ने ज्यादा जोर दिया। अश्वारोहण इत्यादि पर बहुत कम।
तात्या दीक्षित ने जन्मपत्री माँगी। मोरोपंत ने ला दी। दीक्षित ने उसकी परीक्षा करके कहा, ‘ऐसी जन्मपत्री मैंने कदाचित् ही पहले कभी देखी हो। इसको कहीं की रानी होना चाहिए।’
परंतु, दीक्षित ने हँसकर कहा, ‘बालिका है। अभी संसार का उसने देखा ही क्या है?’
‘बिलकुल अबोध है’, मोरोपंत बोले, ‘सयानी होने पर अपने घर-द्वार का खूब प्रबंध करेगी।’
तात्या दीक्षित ने उत्साहित होकर भविष्यवाणी-सी की, ‘यह किसी राज्य की रानी होगी।’
रावसाहब अभी तक मनू के पीछे चुप बैठा था। बोला, ‘राज्य तो सब अंग्रेजों ने ले लिये हैं। नए राज्य कहाँ से बनेंगे?’
‘राज्यों की और राज्य बनानेवालों की, न कमी रही है और न रहेगी।’ तात्या दीक्षित ने हँसकर कहा।
मनूबाई मुसकराकर बोली, ‘पर कुछ लोग कहते हैं कि अंग्रेजों ने ऐसा जोर बाँध दिया है कि कोई सिर ही नहीं उठा सकता।’
बाजीराव विषयांतर करना चाहते थे। बोले, ‘झाँसी में बाग-बगीचे कितने हैं?’
तात्या दीक्षित—‘बहुत हैं। राजा के बगीचे हैं। सरदारों और सेठ-साहूकारों के हैं! नगर के भीतर ही अनेक हैं।’
मनू—‘सेना बड़ी है?’
दीक्षित—‘खासी है।’
मनू—‘घोड़े अच्छे हैं?’
रावसाहब—‘हाथी?’
दीक्षित—‘बहुत से हैं।’
मनू—‘कितने?’
इतने में वहाँ सुगठित शरीर का एक युवक आया। बाजीराव ने पूछा, ‘क्या है, तात्या?’
अपने नाम के एक और मनुष्य को संबोधित होते देखकर दीक्षित चौंका।
मनू ने बेधड़क कहा, ‘यह हमारे गुरु के अखाड़े के प्रधान हैं, आपके नामधारी।’
तात्या दीक्षित ने मन में चाहा कि लड़की और अधिक बात न करे।
युवक तात्या ने पेशवा से विनय की, ‘महाराज, गुरुजी ने कहलवाया है कि झाँसी से जो आचार्य आए हैं वे हमारे अखाड़े को देखने की कृपा करें।’
दीक्षित ने हामी भरी। तीसरे पहर सब लोग बाला गुरु के अखाड़े पर गए। मलखंब और मल्लयुद्ध का प्रदर्शन हुआ।