shabd-logo

(भाग 12)

16 मई 2022

72 बार देखा गया 72

जनेऊ का प्रश्न समाप्त नहीं हुआ था कि यह विकट रोरा खड़ा हो गया। जिन थोड़े से लोगों का जीवन विविध समस्याओं के काँटों पर होकर सफलतापूर्वक गुजर रहा था, वे तो नारायण शास्त्री के कृत्य की निंदा करते ही थे, परंतु जिनका भीतरी जीवन बाहरी छल से भिन्‍ने था-जो जीवन के काँटों पर, गूलाब की सेजों पर, अंगूरी की या महुए की-मोझक सिंचाई से मीठा बना-बनाकर हर घड़ी को मौजों में बाँट-बाँटकर चल रहे थे-उन्होंने नारायण शास्त्री की सबसे ज्यादा बुराई की। पाखंडी है, पाजी है, धर्मद्रोही, राक्षस है, इत्यादि और उसको कम-से-कम प्राणदंड मिलना चाहिए। और छोटी को? उसके टुकड़े -टुकड़े करके सियारों को खिला देना चाहिए, क्योंकि उसी ने तो एक विद्वान्‌ ब्राह्मण को पतित किया! इतनी बड़ी बात विलंब से राजा के पास पहुँचे, यह असंभव था। राजा ने जब सुना, कभी हँसी आती थी और कभी उनको क्षोभ-संताप होता था।

छोटी और नारायण शास्त्री बुलाए गए। मालूम होता था जैसे शास्त्री कुछ घंटों में ही बूढ़े हो गए हों। छोटी चिंतित थी परंतु उसके पैर जम-जमकर किले की ओर गए थे। जब वह गंगाधरराव के सामने पहुँची, तब उसको पसीना जरूर आ गया था।

इस मामले का निर्धार सुनने के लिए भी तात्या टोपे गया।

नारायण शास्त्री को उस वीभत्स में डूबा देखकर राजा को बड़े जोर की हँसी आने को हुई। उन्होंने कठोरता के साथ अपना दुस्‍सह संयम किया। पूछताछ शुरू की।

राजा-'यह क्‍या हुआ शास्त्री?'

शास्त्री-'जो होना था हो गया सरकार।'

राजा-'कैसे हुआ?'

शास्त्री- 'क्या कहूँ श्रीमंत।'

राजा-'बतलाना तो पड़ेगा। न बतलाने से ज्यादा नुकसान होगा।'

शास्त्री-'क्या बतलाऊँ महाराज?'

राजा-'यह कैसे हुआ?'

शास्त्री-'तप और संयम के अतिरेक से। जब शरीर ने ताड़ना न सह पाई तब जो- जो कुछ उसके सामने आया, ग्रहण कर लिया।'

राजा-'तुमको तो लोग बहुत दिन से शृंगार शास्त्री कहते हैं।'

शास्त्री-'वह तो उपकरण मात्र था।'

राजा-'सुनता हूँ, कोकशास्त्र का भी अध्ययन किया है।'

शास्त्री-'हाँ सरकार।'

राजा-'क्यों?'

शास्त्री-'उस शास्त्र में अपने संबंध के प्रसंग ढुँढ़ने के लिए और यह जानने के लिए कि इसमें ऐसा क्या है, जिसने महर्षि वात्स्यायन से कामसूत्र की रचना करवाई।'

राजा-'क्या पाया?'

शास्त्री-'प्रकृति के साथ जीवन की टक्‍कर।'

राजा-'आगे क्‍या पाओगे?'

शास्त्री-'यह मेरे हाथ में नहीं है, सरकार।'

राजा-'तब किसके हाथ में है?'

शास्त्री-'सरकार के।'

राजा ने थोड़ी देर सोचा। उपस्थित लोगों पर दृष्टि घुमाई। छोटी की विनम्र आँखों को देखा। बड़े पलक और बड़ी बरौनियाँ। फिर अपने ब्राह्मणत्व का ध्यान किया। बोले, 'इस लड़की को तुरंत झाँसी का राज्य छोड़ना पड़ेगा। इसके लिए देश-निकाले का दंड काफी है। तुमको...'

छोटी ने तुरंत दृढ़ स्वर में टोका, 'श्रीमंत सरकार, शास्त्री महाराज का कोई कसूर नहीं है। मैं इनके पीछे पड़ गई, इसलिए इनका पतन हुआ। मेरे दंड को बढ़ाकर इनके दंड की कमी को पूरा कर लीजिए। मैं सिर कटवाने के लिए तैयार हूँ।'

राजा को रत्नावली नाटक का एक दृश्य प्रासंगिक न होने पर भी याद आ गया, रत्नावली को भगवान्‌ ने आत्मवध से बचाया था।

राजा बोले, ठहर जा लड़की। शास्त्री! तुमको विधिवत्‌ प्रायश्चित करना पड़ेगा। पंचगव्य इत्यादि। '

शास्त्री-'और इसको देश-निकाला होगा?'

राजा-'हाँ।'

नतमस्तक अपराधी का सिर ऊँचा हुआ। जैसे कीचड़ में से कमल फूट पड़ा हो। बोला, सरकार, मैं प्रायश्चित नहीं करूँगा। मैंने कोई पाप नहीं किया है। यदि मुझको प्रायश्चित की आज्ञा दी जाती है तो पहले लगभग आधे शहर को पंचगव्य लेना पड़ेगा।'

'क्यों?' राजा ने विस्मय के साथ पूछा।

शास्त्री ने छोटी से आग्रह किया, 'बतला दे सरकार को।'

छोटी ने अपने वस्त्रों में से मिट्टी की दो डबुलियाँ निकालीं और उनमें से जनेऊ।

राजा ने उत्सुक होकर प्रश्न किया, 'यह क्या है छोकरी?'

नीची गरदन किए, बिना आँख मिलाए छोटी ने उत्तर दिया, 'बड़ी जातों के जिन-जिन लोगों ने मुझको फाँसने की कोशिश की, उन सबके मैंने जनेऊ उतरवाए और इन डबुलियों में इकट्ठे किए।'

सुननेवाले सन्‍नाटे में आ गए। राजा जरा असमंजस में पड़े। फिर यकायक हँसकर शास्त्री से बोले, 'तुमने इस स्त्री को केवल अपना तन ही दिया या मन भी ?'

शास्त्री ने कोई उत्तर नहीं दिया। छोटी कुछ कहना चाहती थी परंतु राजा ने उसको हाथ के संकेत से वर्जित करके शास्त्री से फिर प्रश्न किया, 'तुम इस स्त्री को भ्रष्ट समझते हो या नहीं?'

शास्त्री के मुँह से यकायक निकला, 'नहीं सरकार।'

गंगाधरराव कुछ क्षण विचार-विमरन रहे। फिर गंभीर स्वर में बोले, 'इस स्त्री के साथ और किसी का भी संसर्ग नहीं है, मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ। इन यज्ञोपवीतों की कहानी तुम्हारी ही गढ़ंत जान पड़ती है। मैं सूत के इन डोरों को छूना नहीं चाहता। यदि परीक्षा करूँ तो पुरानों में ब्रह्मगाँठ लगी होगी और नए बिना किसी गाँठ के होंगे। ये सब तुम्हीं ने इसको दिए होंगे।'

शास्त्री पसीने में तर हो गए।

राजा कहते गए, 'तुम समझते होगे कि तुम्हारे सिवाय सब मूर्ख हैं। तुमको अवश्य कठोर दंड देता, परंतु तुमको दंड देने से इस अभागिन का दंडभार बढ़ जाएगा।'

छोटी रोने लगी। 'मैं भुगतने को तैयार हूँ।'

राजा ने रुखे स्वर में शास्त्री से कहा, तुम प्रायश्चित पंचगव्य के लिए तैयार नहीं हो, इसलिए तुमको भी झाँसी तुरंत छोड़नी पड़ेगी।'

शास्त्री प्रसन्‍न हुए। बोले 'बड़ा अनुग्रह हुआ। मैं इसी के साथ झाँसी छोड़ देने को तैयार हूँ।'

वे दोनों चले गए।

राजा ने तात्या टोपे की ओर देखा। वह बिलकल संतुष्ट जान पड़ता था।

राजा ने सोचा, बहुत सस्ता छूटा यह। वह लड़की छोटी जाति की होने पर भी इस ब्राह्मण से बड़ी है। देश-निकाला दे दिया, काफी है। बिठूर के लोग भी इसी निर्धार से संतुष्ट होंगे। अधिक कड़ा दंड देने से झाँसी के बाहर बदनामी ज्यादा होती। फिर अंग्रेज-अंग्रेज-।

फिर और आगे उन्होंने नहीं सोच पाया।

छोटी और शास्त्री दूसरे दिन झाँसी छोड़कर चले गए।

28
रचनाएँ
झाँसी की रानी-लक्ष्मीबाई (उपन्यास भाग 1)
0.0
वृन्दावनलाल वर्मा (०९ जनवरी, १८८९ - २३ फरवरी, १९६९) हिन्दी नाटककार तथा उपन्यासकार थे। हिन्दी उपन्यास के विकास में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने एक तरफ प्रेमचंद की सामाजिक परंपरा को आगे बढ़ाया है तो दूसरी तरफ हिन्दी में ऐतिहासिक उपन्यास की धारा को उत्कर्ष तक पहुँचाया है। वृंदावनलाल वर्मा के उपन्यासों में नारी पात्र प्रबल और प्रधान है। वर्मा जी की अपने आदर्श नारी पात्रों के विषय में एक धारणा है , स्त्री के भौतिक सौन्दर्य और बाह्य आकर्षण तक वह सीमित नहीं रह जाते , उसमें दैवी गुणों को देखना उन्हें भला लगता है। नारी के बाह्य सौन्दर्य और लावण्य के परे उसमें निहित आंतरिक तेज की खोज तथा उसके बाह्य और आंतरिक गुणों में सामंजस्य स्थापित करना उनका लक्ष्य रहता है। उनकी यह नारी पुरुष से कहीं ऊँची है। उनकी दृष्टि में पुरुष शक्ति है तो नारी उसकी संचालक प्रेरणा। प्रारम्भ के उपन्यासों में नारी विषयक उनकी धारणा अधिक कल्पनामय तथा रोमांटिक रही है। वह प्रेयसी के रूप में आती है , पे्रमी के जीवन लक्ष्य की केन्द्र और उसकी पूजा - अर्चना की पावन प्रतिमा बनकर। तारा ( गढ़ कुंडार ) तथा कुमुद ( विराटा की पद्मिनी ) उपन्यासकार की इसी प्रारम्भिक प्रवृत्ति की देन है। अगले उपन्यासों में लेखक की प्रौढ़ धारणा कल्पनाकाश की उड़ानों से भर कर संघर्षमयी इस कठोर पर उतर आती है। ये नारी पात्र पुरुष पात्रों को प्रेरणा ही नहीं देते , संसार के संघर्षों में स्वयं जूझते हुए अपनी शक्ति का भी परिचय देते हैं। कचनार ( कचनार ) , मृगनयनी तथा लाखी ( मृगनयनी ) , रूपा ( सोना ) और नूरबाई ( टूटे काँटे ) ऐसे ही पात्र है। लक्ष्मीबाई ( लक्ष्मीबाई ) तथा अहिल्याबाई ( अहिल्याबाई ) में ये गुण अपने चरम पर दीख पड़ते हैं।
1

झाँसी की रानी-लक्ष्मीबाई (भाग 1)

16 मई 2022
7
0
0

उदय वर्षा का अंत हो गया। क्वार उतर रहा था। कभी-कभी झीनी-झीनी बदली हो जाती थी। परंतु उस संध्या के समय आकाश बिलकुल स्वच्छ था। सूर्यास्त होने में थोड़ा विलम्ब था। बिठूर के बाहर गंगा के किनारे तीन अश्वार

2

(भाग 2)

16 मई 2022
3
0
0

मनूबाई सवेरे नाना को देखने पहुँच गई। वह जाग उठा था, पर लेटा हुआ था। मनू ने उसके सिर पर हाथ फेरा। स्निग्ध स्वर में पूछा, ‘नींद कैसी आई ?’ ‘सोया तो हूँ, पर नींद आई-गई बनी रही। कुछ दर्द है।’ नाना ने उ

3

(भाग 3)

16 मई 2022
1
0
0

थोड़ी देर में घंटा बजाता हुआ हाथी लौट आया। मनू दौड़कर बाहर आई। एक क्षण ठहरी और आह खींचकर भीतर चली गई। नाना और राव, दोनों बालक, अपनी जगह चले गए। बाजीराव ने नाना को पुचकारकर पूछा, ‘दर्द बढ़ा तो नहीं ?’

4

(भाग 4)

16 मई 2022
1
0
0

भोजनोपरांत तात्या दीक्षित से बाजीराव और मोरोपंत मिले। तात्या दीक्षित झाँसी से बिठूर आए हुए थे। वह ज्योतिष और तंत्र के शास्त्री थे। काशी, नागपुर, पूना इत्यादि घूमे हुए थे। महाराष्ट्र समाज से काफी परिचि

5

(भाग 5)

16 मई 2022
1
0
0

महाराष्ट्र में सतारा के निकट वाई नाम का एक गाँव है। पेशवा के राज्यकाल में वहाँ कृष्णराव ताँबे को एक ऊँचा पद प्राप्त था। कृष्णराव ताँबे का पुत्र बलवंतराव पराक्रमी था। उसको पेशवा की सेना में उच्च पद मिल

6

(भाग 6)

16 मई 2022
1
0
0

तात्या दीक्षित आदर और भेंट सहित बिठूर से झाँसी लौट आए। उन्हें मालूम था कि मन्‌बाई के लिए जितना अच्छा वर ढुँढ़कर दूँगा, उतना ही अधिक बाजीराव संतुष्ट होंगे। और उस संतोष का फल उनकी जेब के लिए उतना ही महत

7

(भाग 7)

16 मई 2022
1
0
0

राजा के अन्य कर्मचारियों के साथ तात्या दीक्षित बिठूर गए। मोरोपंत और बाजीराव को संवाद सुनाया। उन्होंने स्वीकार कर लिया। गंगाधरराव की आयु का कोई लिहाज नहीं किया गया। मनूबाई का श्रृंगार कराया गया। रंगीन

8

(भाग 8)

16 मई 2022
1
0
0

झाँसी में उस समय मंत्रशास्त्री, तंत्रशास्त्री वैद्य, रणविद् इत्यादि अनेक प्रकार के विशेषज्ञ थे । शाक्त, शैव, वाममार्गी, वैष्णव सभी काफी तादाद में । अधिकांश वैष्णव और शैव। और ऐसे लोगों की तो बहुतायत ही

9

(भाग 9)

16 मई 2022
1
0
0

एक दिन जरा सवेरे ही पजनेश नारायण शास्त्री के घर पहुँचे। शास्त्री अपनी पौर में बैठे थे, जैसे किसी की बाट देख रहे हों। पजनेश को कई बार आओ-आओ कहकर बैठाया: परंतु पजनेश ने यदि शास्त्री की आँख की कोर को बार

10

(भाग 10)

16 मई 2022
1
0
0

पजनेश जिस पक्ष का अभी तक जोरदार समर्थन करते चले आए थे उसको उन्होंने छोड़ दिया। नारायण शास्त्री लगभग खामोश हो गए। नए उपनीतों ने लड़ाई स्वयं अपने हाथ में ले ली और एकाध जगह वह लड़ाई जीभ से खिसककर हाथ और

11

(भाग 11)

16 मई 2022
1
0
0

जनेऊ विरोधी पक्षवाले किले से परम प्रसन्‍न लौटे। अपने पक्ष की विजय का समाचार बहुत गंभीरता के साथ सुनाना शुरू करते थे और फिर पर-पक्ष की मिट्टी पलीद होने की बात खिलखिलाकर हँसते हुए समाप्त करते थे। शहर-भर

12

(भाग 12)

16 मई 2022
1
0
0

जनेऊ का प्रश्न समाप्त नहीं हुआ था कि यह विकट रोरा खड़ा हो गया। जिन थोड़े से लोगों का जीवन विविध समस्याओं के काँटों पर होकर सफलतापूर्वक गुजर रहा था, वे तो नारायण शास्त्री के कृत्य की निंदा करते ही थे,

13

(भाग 13)

16 मई 2022
1
0
0

मोरोपंत, मनूबाई इत्यादि के ठहरने के लिए कोठी कुआँ के पास एक अच्छा भवन शीघ्र ही तय हो गया था। तात्या टोपे कुछ दिन झाँसी ठहरा रहा। निवास-स्थान की सूचना बिठूर शीघ्र भेज दी। टोपे को बिठूर की अपेक्षा झाँस

14

(भाग 14)

16 मई 2022
1
0
0

यथासमय मोरोपंत मनूबाई को लेकर झाँसी आ गए। तात्या टोपे भी साथ आया। विवाह का मुहूर्त शोधा जा चुका था। धूमधाम के साथ तैयारियाँ होने लगीं। नगरवाले गणेश मंदिर में सीमंती, वर-पूजा इत्यादि रीतियाँ पूरी की गई

15

(भाग 15)

16 मई 2022
1
0
0

सीमंती इत्यादि की प्रथाएँ पूरी होने के उपरांत गणेश मंदिर में गायन-वादन और नृत्य हुए और एक दिन विवाह का भी मुहूर्त आया। विवाह के उत्सव पर आसपास के राजा भी आए। उनमें दतिया के राजा विजय बहादुरसिह खासतौर

16

(भाग 16)

16 मई 2022
1
0
0

विवाह होने के पहले गंगाधरराव को शासन का अधिकार न था। उन दिनों झाँसी का नायब पॉलिटिकल एजेंट कप्तान डनलप था। वह राजा के पास आया-जाया करता था। लोग कहते थे कि दोनों में मैत्री है। गंगाधरराव अधिकार प्राप्

17

(भाग 17)

16 मई 2022
1
0
0

राजा गंगाधरराव और रानी लक्ष्मीबाई का कुछ समय लगभग इसी प्रकार कटता रहा। १८५० में (माघ सुदी सप्तमी संवत्‌ १९०७) वे सजधज के साथ (कंपनी सरकार की इजाजत लेकर!) प्रयाग, काशी, गया इत्यादि की यात्रा के लिए गए।

18

(भाग 18)

16 मई 2022
1
0
0

राजा गंगाधरराव पुरातन पंथी थे। वे स्त्रियों की उस स्वाधीनता के हामी न थे जो उनको महाराष्ट्र में प्राप्त रही है। दिल्‍ली, लखनऊ के परदे के बंधेजों को वे जानते थे। उतने बंधेज वे अपने रनवास में उत्पन्न नह

19

(भाग 19)

16 मई 2022
1
0
0

कप्तान गार्डन झाँसी-स्थित अंग्रेजी सेना का एक अफसर था। हिंदी खूब सीख ली थी। राजा गंगाधरराव के पास कभी-कभी आया करता था। राजा उसको अपना मित्र समझते थे। वह पूरा अंग्रेज था। साहित्यिक, व्यापार-कुशल, स्वदे

20

(भाग 20)

16 मई 2022
1
0
0

वसंत आ गया। प्रकृति ने पुष्पांजलियाँ चढ़ाईं। महकें बरसाईं। लोगों को अपनी श्वास तक में परिमल का आभास हुआ। किले के महल में रानी ने चैत की नवरात्रि में गौरी की प्रतिमा की स्थापना की। पूजन होने लगा। गौरी

21

(भाग 21)

16 मई 2022
1
0
0

नाटकशाला की ओर से गंगाधरराव की रूचि कम हो गई। वे महलों में अधिक रहने लगे। परंतु कचहरी-दरबार करना बंद नहीं किया। न्याय वे तत्काल करते थे- उलटा-सीधा जैसा समझ में आया, मनमाना। दंड उनके कठोर और अत्याचारपू

22

(भाग 22)

16 मई 2022
1
0
0

जिस दिन गंगाधरराव के पुत्र हुआ उस दिन संवत् १९०८ (सन् १८५१) की अगहन सुदी एकादशी थी। यों ही एकादशी के रोज मंदिरों में काफी चहल-पहल रहती थी, उस एकादशी को तो आमोद-प्रमोद ने उन्माद का रूप धारण कर लिया। अप

23

(भाग 23)

16 मई 2022
1
0
0

लक्ष्मीबाई का बच्चा लगभग दो महीने का हो गया। परंतु वे सिवाय किले के उद्यान में टहलने के और कोई व्यायाम नहीं कर पाती थीं। शरीर अभी पूरी तौर पर स्वस्थ नहीं हुआ था। मन उनका सुखी था, लगभग सारा समय बच्चे क

24

(भाग 24)

16 मई 2022
1
0
0

गंगाधरराव का यह बच्चा तीन महीने की आयु पाकर मर गया। इसका सभी के लिए दुःखद परिणाम हुआ। राजा के मन और तन पर इस दुर्घटना का स्थायी कुप्रभाव पड़ा। वे बराबर अस्वस्थ रहने लगे। लगभग दो वर्ष राजा-रानी के काफ

25

(भाग 25)

16 मई 2022
1
0
0

झाँसी की जनता के पंचों, सरदारों और सेठ-साहूकारों को, जो इस उत्सव पर निमंत्रित किए गए थे, इत्र, पान, भेंट इत्यादि से सम्मानित करके बिदा किया गया। केवल मेजर एलिस, कप्तान मार्टिन, मोरोपंत और प्रधानमंत्री

26

(भाग 26)

16 मई 2022
1
0
0

जिस इमारत में आजकल डिस्ट्रिक्ट बोर्ड का दफ्तर है, वह उस समय डाकबंगले के काम आता था। पास ही झाँसी प्रवासी अंग्रेजों का क्लब घर था। एलिस और मार्टिन राजा के पास से आकर सीधे क्लब गए। वहाँ और कई अंग्रेज आम

27

(भाग 27)

16 मई 2022
2
0
0

एलिस का भेजा हुआ राजा गंगाधरराव का १९ नवंबर का खरीता और उनके देहांत का समाचार मालकम के पास जैसे ही कैथा पहुँचा, उसने गवर्नर जनरल को अपनी चिट्ठी अविलंब (२५ नवंबर के दिन) भेज दी। चिट्ठी के साथ एलिस का भ

28

(भाग 28)

16 मई 2022
3
0
0

जिस दिन गंगाधरराव का देहांत हुआ, लक्ष्मीबाई १८ वर्ष की थीं। इस दुर्घटना का उनके मन और तन पर जो आघात हआ वह ऐसा था. जैसे कमल को तुषार मार गया हो। परंतु रानी के मन में एक भावना थी, एक लगन थी जो उनको जीवि

---

किताब पढ़िए