shabd-logo

(भाग 9)

16 मई 2022

91 बार देखा गया 91

एक दिन जरा सवेरे ही पजनेश नारायण शास्त्री के घर पहुँचे। शास्त्री अपनी पौर में बैठे थे, जैसे किसी की बाट देख रहे हों। पजनेश को कई बार आओ-आओ कहकर बैठाया: परंतु पजनेश ने यदि शास्त्री की आँख की कोर को बारीकी से परखा होता तो उनको मालूम हो जाता कि उनके आने पर शास्त्री का मन प्रसन्न नहीं हुआ था। पजनेश पौर के चबूतरे पर दरवाजे की ओर पीठ करके बैठ गए। शास्त्री दरवाजे की ओर मँह किए बैठ गए। शास्त्री ने पान खाने के लिए पानदान बढ़ाया। पजनेश के जी में एक क्षणिक झिझक उठी, उसको दबा लिया और पान लगाकर खा लिया।

शास्त्री ने पुछा, 'कोई नया समाचार?'

'अब तो आपके चरित्र पर ही लांछन लगाया जाने लगा है।' पजनेश उत्तर देकर पछताए। उस प्रसंग का प्रवेश और किसी तरह करना चाहते थे।

शास्त्री ने आँख चढ़ाकर कहा, 'मैंने भी सुन लिया है।'

पजनेश ने दम ली। शास्त्री कहते गए, 'मू्र्खों के पास जब युक्त नहीं रहती तब वे गालियों पर आ जाते हैं। मैं क्या गाली-गलौज के दबाव में शास्त्र-चर्चा को छोड़ दूँगा? बदमाशों को मुँहतोड़ जवाब दूँगा। उस पक्ष के जितने शास्त्री हैं, चाहे महाराष्ट्र के हों, चाहे एतद्देशीय, सब इन बनियों, महाजनों और सरदारों के किसी-न-किसी प्रकार आश्रित हैं। और ये आश्रयदाता हैं-पुरानी लीकों के पुजारी। 'मक्षिका स्थाने मक्षिका' वाले। ये लोग शास्त्र का पारायण नहीं करते अथवा करते हैं तो सच बात न कहकर यजमानों को संतुष्ट करने के लिए केवल उनकी मुँहदेखी कहते हैं। तंत्रशास्त्र वालों का मूल ज्ञान-विज्ञान और सत्य में है, वे अवश्य पुराणियों और कथा-वाचकों के साथ असत्य की साँझ नहीं करते।'

पजनेश-' परंतु अपवाद का दमन जरूरी है। '

शास्त्री-' व्यर्थ! बकने दो। मैं परवाह नहीं करता। अपना काम देखो।'

पजनेश-'मेरी समझ में श्रीमंत सरकार से फरियाद करनी चाहिए। वे जब कठोर दंड देंगे तब यह बदनामी खत्म होगी।'

शास्त्री-'मैं ऐसी सड़ियल बात को राजा के सामने नहीं ले जाना चाहता। राजा तो यों भी उन कथा-वाचकों की दिल्‍्लगी उड़ाया करते हैं।'

पजनेश-'तब मैं क्‍या कहूँगा?'

शास्त्री को प्रस्ताव पसंद नहीं आया। बोले, 'यह और भी बुरा होगा। राजा कहेंगे कि कुछ रहस्य अवश्य है, तभी तो स्वयं फरियाद न करके मित्र से करवाई।' फिर विषयांतर के लिए कहा, 'आज घर से इतनी जल्दी कैसे निकल पड़े?

पजनेश ने उत्तर दिया, 'कान नहीं दिया गया तो इसी चर्चा के लिए आपके...'

पजनेश का वाक्य पूरा नहीं हो पाया था कि उतरती अवस्था की एक स्त्री डलिया-झाड़ू लेकर दरवाजे पर आईं। वह बाहर ही रह गई, उसके पीछे उससे सटी हुई एक युवती थी। वह कुछ अच्छे वस्त्र पहने थी, थोड़े से आभूषण भी। साफ-सुथरी। युवती उतरती अवस्थावाली स्त्री को एक ओर करके मुसकराती हुई पौर में आ गई। प्रवेश करते समय उसने पजनेश को नहीं देखा था। परंतु भीतर घुसते ही पजनेश की झाँईं पड़ गई। ठिठकी, लौटने के लिए मुड़ी और फिर खड़ी रह गई। दूसरी स्त्री से बोली, 'कोंसा, पौर में तो कोई कूड़ा नहीं।'

कोंसा ने कहा, 'मैं आती हूँ। ठहरना।'

पजनेश ने देखा-ऊँची जाति की सुंदर स्त्रियों जैसी सुंदर है। नायिका-भेद की उपमाएँ स्मरण हो आईं, कमलगात, मृगनयन, कपोत ग्रीवा, कमलतालकटि। परंतु नायिका-भेद का साहित्य और आगे साथ न दे सका। कवि का मन आकर्षण और ग्लानि की खींचतान में पड़ गया।

शास्त्री ने अपनी घबराहट को किसी तरह नियंत्रित करके उस युवती से कहा, 'थोड़ी देर में आना, तब तुम्हारा काम कर दुँगा। समझी छोटी?'

युवती के खरे रंग पर लाली दौड़ गई। वह हाँ कहकर गजगति से नहीं, बिल्ली की तरह वहाँ से भाग गई।

शास्त्री और कवि दोनों किसी एक बड़े बोझ से मानो दब गए। पजनेश के मुँह से वाक्य फूट पड़ा, 'यह कौन है?'

शास्त्री - 'छोटी।'

पजनेश-'यह तो उसका नाम है। वह है कौन?'

शास्त्री-'स्त्री।'

पजनेश-'यह तो मैं भी देखता हूँ। कौन स्त्री?'

शास्त्री-'एक काम से आई थी।'

पजनेश-'खैर, मुभको कुछ मतलब नहीं, परंतु यदि...'

शास्त्री ने बात काटकर पूछा, 'परंतु यदि क्या? आप क्या इसके संबंध में मेरे ऊपर संदेह करते हैं?'

पजनेश ने एक क्षण सोचकर उत्तर दिया 'बस्ती के लोग क्‍या इसी स्त्री की चर्चा करते हुए आप पर लांछन लगा रहे हैं? यदि ऐसा है तो आपको सावधान हो जाना चाहिए। उस स्त्री की जातिवाले उसका सर्वनाश कर डालेंगे और राजा आपका।'

शास्त्री ने कहा, 'झूठा आरोप है। मैं किसी से नहीं डरता।'

'आप जानें।' पजनेश बोले, 'मेरा कर्तव्य था, सो कह दिया।'

पजनेश उठे। शास्त्री ने एक पान और खाने का अनुरोध किया परंतु पजनेश बिना पान खाए चले गए। बाहर निकलकर उनकी आँखों ने इधर-उधर उस युवती को ढूँढ़ा, परंतु वह न दिखाई पड़ी। उन्हें आश्चर्य था, 'इस जाति में भी पद्मनी होना संभव है!'

28
रचनाएँ
झाँसी की रानी-लक्ष्मीबाई (उपन्यास भाग 1)
0.0
वृन्दावनलाल वर्मा (०९ जनवरी, १८८९ - २३ फरवरी, १९६९) हिन्दी नाटककार तथा उपन्यासकार थे। हिन्दी उपन्यास के विकास में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने एक तरफ प्रेमचंद की सामाजिक परंपरा को आगे बढ़ाया है तो दूसरी तरफ हिन्दी में ऐतिहासिक उपन्यास की धारा को उत्कर्ष तक पहुँचाया है। वृंदावनलाल वर्मा के उपन्यासों में नारी पात्र प्रबल और प्रधान है। वर्मा जी की अपने आदर्श नारी पात्रों के विषय में एक धारणा है , स्त्री के भौतिक सौन्दर्य और बाह्य आकर्षण तक वह सीमित नहीं रह जाते , उसमें दैवी गुणों को देखना उन्हें भला लगता है। नारी के बाह्य सौन्दर्य और लावण्य के परे उसमें निहित आंतरिक तेज की खोज तथा उसके बाह्य और आंतरिक गुणों में सामंजस्य स्थापित करना उनका लक्ष्य रहता है। उनकी यह नारी पुरुष से कहीं ऊँची है। उनकी दृष्टि में पुरुष शक्ति है तो नारी उसकी संचालक प्रेरणा। प्रारम्भ के उपन्यासों में नारी विषयक उनकी धारणा अधिक कल्पनामय तथा रोमांटिक रही है। वह प्रेयसी के रूप में आती है , पे्रमी के जीवन लक्ष्य की केन्द्र और उसकी पूजा - अर्चना की पावन प्रतिमा बनकर। तारा ( गढ़ कुंडार ) तथा कुमुद ( विराटा की पद्मिनी ) उपन्यासकार की इसी प्रारम्भिक प्रवृत्ति की देन है। अगले उपन्यासों में लेखक की प्रौढ़ धारणा कल्पनाकाश की उड़ानों से भर कर संघर्षमयी इस कठोर पर उतर आती है। ये नारी पात्र पुरुष पात्रों को प्रेरणा ही नहीं देते , संसार के संघर्षों में स्वयं जूझते हुए अपनी शक्ति का भी परिचय देते हैं। कचनार ( कचनार ) , मृगनयनी तथा लाखी ( मृगनयनी ) , रूपा ( सोना ) और नूरबाई ( टूटे काँटे ) ऐसे ही पात्र है। लक्ष्मीबाई ( लक्ष्मीबाई ) तथा अहिल्याबाई ( अहिल्याबाई ) में ये गुण अपने चरम पर दीख पड़ते हैं।
1

झाँसी की रानी-लक्ष्मीबाई (भाग 1)

16 मई 2022
6
0
0

उदय वर्षा का अंत हो गया। क्वार उतर रहा था। कभी-कभी झीनी-झीनी बदली हो जाती थी। परंतु उस संध्या के समय आकाश बिलकुल स्वच्छ था। सूर्यास्त होने में थोड़ा विलम्ब था। बिठूर के बाहर गंगा के किनारे तीन अश्वार

2

(भाग 2)

16 मई 2022
3
0
0

मनूबाई सवेरे नाना को देखने पहुँच गई। वह जाग उठा था, पर लेटा हुआ था। मनू ने उसके सिर पर हाथ फेरा। स्निग्ध स्वर में पूछा, ‘नींद कैसी आई ?’ ‘सोया तो हूँ, पर नींद आई-गई बनी रही। कुछ दर्द है।’ नाना ने उ

3

(भाग 3)

16 मई 2022
1
0
0

थोड़ी देर में घंटा बजाता हुआ हाथी लौट आया। मनू दौड़कर बाहर आई। एक क्षण ठहरी और आह खींचकर भीतर चली गई। नाना और राव, दोनों बालक, अपनी जगह चले गए। बाजीराव ने नाना को पुचकारकर पूछा, ‘दर्द बढ़ा तो नहीं ?’

4

(भाग 4)

16 मई 2022
1
0
0

भोजनोपरांत तात्या दीक्षित से बाजीराव और मोरोपंत मिले। तात्या दीक्षित झाँसी से बिठूर आए हुए थे। वह ज्योतिष और तंत्र के शास्त्री थे। काशी, नागपुर, पूना इत्यादि घूमे हुए थे। महाराष्ट्र समाज से काफी परिचि

5

(भाग 5)

16 मई 2022
1
0
0

महाराष्ट्र में सतारा के निकट वाई नाम का एक गाँव है। पेशवा के राज्यकाल में वहाँ कृष्णराव ताँबे को एक ऊँचा पद प्राप्त था। कृष्णराव ताँबे का पुत्र बलवंतराव पराक्रमी था। उसको पेशवा की सेना में उच्च पद मिल

6

(भाग 6)

16 मई 2022
1
0
0

तात्या दीक्षित आदर और भेंट सहित बिठूर से झाँसी लौट आए। उन्हें मालूम था कि मन्‌बाई के लिए जितना अच्छा वर ढुँढ़कर दूँगा, उतना ही अधिक बाजीराव संतुष्ट होंगे। और उस संतोष का फल उनकी जेब के लिए उतना ही महत

7

(भाग 7)

16 मई 2022
1
0
0

राजा के अन्य कर्मचारियों के साथ तात्या दीक्षित बिठूर गए। मोरोपंत और बाजीराव को संवाद सुनाया। उन्होंने स्वीकार कर लिया। गंगाधरराव की आयु का कोई लिहाज नहीं किया गया। मनूबाई का श्रृंगार कराया गया। रंगीन

8

(भाग 8)

16 मई 2022
1
0
0

झाँसी में उस समय मंत्रशास्त्री, तंत्रशास्त्री वैद्य, रणविद् इत्यादि अनेक प्रकार के विशेषज्ञ थे । शाक्त, शैव, वाममार्गी, वैष्णव सभी काफी तादाद में । अधिकांश वैष्णव और शैव। और ऐसे लोगों की तो बहुतायत ही

9

(भाग 9)

16 मई 2022
1
0
0

एक दिन जरा सवेरे ही पजनेश नारायण शास्त्री के घर पहुँचे। शास्त्री अपनी पौर में बैठे थे, जैसे किसी की बाट देख रहे हों। पजनेश को कई बार आओ-आओ कहकर बैठाया: परंतु पजनेश ने यदि शास्त्री की आँख की कोर को बार

10

(भाग 10)

16 मई 2022
1
0
0

पजनेश जिस पक्ष का अभी तक जोरदार समर्थन करते चले आए थे उसको उन्होंने छोड़ दिया। नारायण शास्त्री लगभग खामोश हो गए। नए उपनीतों ने लड़ाई स्वयं अपने हाथ में ले ली और एकाध जगह वह लड़ाई जीभ से खिसककर हाथ और

11

(भाग 11)

16 मई 2022
1
0
0

जनेऊ विरोधी पक्षवाले किले से परम प्रसन्‍न लौटे। अपने पक्ष की विजय का समाचार बहुत गंभीरता के साथ सुनाना शुरू करते थे और फिर पर-पक्ष की मिट्टी पलीद होने की बात खिलखिलाकर हँसते हुए समाप्त करते थे। शहर-भर

12

(भाग 12)

16 मई 2022
1
0
0

जनेऊ का प्रश्न समाप्त नहीं हुआ था कि यह विकट रोरा खड़ा हो गया। जिन थोड़े से लोगों का जीवन विविध समस्याओं के काँटों पर होकर सफलतापूर्वक गुजर रहा था, वे तो नारायण शास्त्री के कृत्य की निंदा करते ही थे,

13

(भाग 13)

16 मई 2022
1
0
0

मोरोपंत, मनूबाई इत्यादि के ठहरने के लिए कोठी कुआँ के पास एक अच्छा भवन शीघ्र ही तय हो गया था। तात्या टोपे कुछ दिन झाँसी ठहरा रहा। निवास-स्थान की सूचना बिठूर शीघ्र भेज दी। टोपे को बिठूर की अपेक्षा झाँस

14

(भाग 14)

16 मई 2022
1
0
0

यथासमय मोरोपंत मनूबाई को लेकर झाँसी आ गए। तात्या टोपे भी साथ आया। विवाह का मुहूर्त शोधा जा चुका था। धूमधाम के साथ तैयारियाँ होने लगीं। नगरवाले गणेश मंदिर में सीमंती, वर-पूजा इत्यादि रीतियाँ पूरी की गई

15

(भाग 15)

16 मई 2022
1
0
0

सीमंती इत्यादि की प्रथाएँ पूरी होने के उपरांत गणेश मंदिर में गायन-वादन और नृत्य हुए और एक दिन विवाह का भी मुहूर्त आया। विवाह के उत्सव पर आसपास के राजा भी आए। उनमें दतिया के राजा विजय बहादुरसिह खासतौर

16

(भाग 16)

16 मई 2022
1
0
0

विवाह होने के पहले गंगाधरराव को शासन का अधिकार न था। उन दिनों झाँसी का नायब पॉलिटिकल एजेंट कप्तान डनलप था। वह राजा के पास आया-जाया करता था। लोग कहते थे कि दोनों में मैत्री है। गंगाधरराव अधिकार प्राप्

17

(भाग 17)

16 मई 2022
1
0
0

राजा गंगाधरराव और रानी लक्ष्मीबाई का कुछ समय लगभग इसी प्रकार कटता रहा। १८५० में (माघ सुदी सप्तमी संवत्‌ १९०७) वे सजधज के साथ (कंपनी सरकार की इजाजत लेकर!) प्रयाग, काशी, गया इत्यादि की यात्रा के लिए गए।

18

(भाग 18)

16 मई 2022
1
0
0

राजा गंगाधरराव पुरातन पंथी थे। वे स्त्रियों की उस स्वाधीनता के हामी न थे जो उनको महाराष्ट्र में प्राप्त रही है। दिल्‍ली, लखनऊ के परदे के बंधेजों को वे जानते थे। उतने बंधेज वे अपने रनवास में उत्पन्न नह

19

(भाग 19)

16 मई 2022
1
0
0

कप्तान गार्डन झाँसी-स्थित अंग्रेजी सेना का एक अफसर था। हिंदी खूब सीख ली थी। राजा गंगाधरराव के पास कभी-कभी आया करता था। राजा उसको अपना मित्र समझते थे। वह पूरा अंग्रेज था। साहित्यिक, व्यापार-कुशल, स्वदे

20

(भाग 20)

16 मई 2022
1
0
0

वसंत आ गया। प्रकृति ने पुष्पांजलियाँ चढ़ाईं। महकें बरसाईं। लोगों को अपनी श्वास तक में परिमल का आभास हुआ। किले के महल में रानी ने चैत की नवरात्रि में गौरी की प्रतिमा की स्थापना की। पूजन होने लगा। गौरी

21

(भाग 21)

16 मई 2022
1
0
0

नाटकशाला की ओर से गंगाधरराव की रूचि कम हो गई। वे महलों में अधिक रहने लगे। परंतु कचहरी-दरबार करना बंद नहीं किया। न्याय वे तत्काल करते थे- उलटा-सीधा जैसा समझ में आया, मनमाना। दंड उनके कठोर और अत्याचारपू

22

(भाग 22)

16 मई 2022
1
0
0

जिस दिन गंगाधरराव के पुत्र हुआ उस दिन संवत् १९०८ (सन् १८५१) की अगहन सुदी एकादशी थी। यों ही एकादशी के रोज मंदिरों में काफी चहल-पहल रहती थी, उस एकादशी को तो आमोद-प्रमोद ने उन्माद का रूप धारण कर लिया। अप

23

(भाग 23)

16 मई 2022
1
0
0

लक्ष्मीबाई का बच्चा लगभग दो महीने का हो गया। परंतु वे सिवाय किले के उद्यान में टहलने के और कोई व्यायाम नहीं कर पाती थीं। शरीर अभी पूरी तौर पर स्वस्थ नहीं हुआ था। मन उनका सुखी था, लगभग सारा समय बच्चे क

24

(भाग 24)

16 मई 2022
1
0
0

गंगाधरराव का यह बच्चा तीन महीने की आयु पाकर मर गया। इसका सभी के लिए दुःखद परिणाम हुआ। राजा के मन और तन पर इस दुर्घटना का स्थायी कुप्रभाव पड़ा। वे बराबर अस्वस्थ रहने लगे। लगभग दो वर्ष राजा-रानी के काफ

25

(भाग 25)

16 मई 2022
1
0
0

झाँसी की जनता के पंचों, सरदारों और सेठ-साहूकारों को, जो इस उत्सव पर निमंत्रित किए गए थे, इत्र, पान, भेंट इत्यादि से सम्मानित करके बिदा किया गया। केवल मेजर एलिस, कप्तान मार्टिन, मोरोपंत और प्रधानमंत्री

26

(भाग 26)

16 मई 2022
1
0
0

जिस इमारत में आजकल डिस्ट्रिक्ट बोर्ड का दफ्तर है, वह उस समय डाकबंगले के काम आता था। पास ही झाँसी प्रवासी अंग्रेजों का क्लब घर था। एलिस और मार्टिन राजा के पास से आकर सीधे क्लब गए। वहाँ और कई अंग्रेज आम

27

(भाग 27)

16 मई 2022
2
0
0

एलिस का भेजा हुआ राजा गंगाधरराव का १९ नवंबर का खरीता और उनके देहांत का समाचार मालकम के पास जैसे ही कैथा पहुँचा, उसने गवर्नर जनरल को अपनी चिट्ठी अविलंब (२५ नवंबर के दिन) भेज दी। चिट्ठी के साथ एलिस का भ

28

(भाग 28)

16 मई 2022
3
0
0

जिस दिन गंगाधरराव का देहांत हुआ, लक्ष्मीबाई १८ वर्ष की थीं। इस दुर्घटना का उनके मन और तन पर जो आघात हआ वह ऐसा था. जैसे कमल को तुषार मार गया हो। परंतु रानी के मन में एक भावना थी, एक लगन थी जो उनको जीवि

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए