धरती का दोहन ‘विश्व जल दिवस ‘
डॉ शोभा भारद्वाज
शीतल निर्मल मीठा जल मन एवं आत्मा दोनों को तृप्त कर देता है चार दिन तक पूर्वी दिल्ली ने पानी की भयंकर किल्लत देखी कारण अंडर ग्राउंड पाईप में लीकेज था आस पास के घरों के अंडरग्राउंड में सीलन आने लगी पाईप की मरम्मत का काम तेजी से चला इस बीच पानी का हा-हाकार मच गया . हम जानते हैं जल ही जीवन है फिर भी क्या हम पानी बर्बाद करने से डरते हैं? बड़े शहरों में धरती को गहरे और गहरे खोद कर पानी निकाला जा रहा है. घरों में पम्प लगा कर आसानी से पानी लिया जा सकता है कई बार एक गिलास ताजा पानी पीने के लिए मोटर चला कर गैलन पानी बर्बाद कर दिया जाता है छिडकाव के नाम पर हाथ में पाइप ले कर घर के चारो तरफ छिडकाव करना घर के सामने सड़क तक धो डालना रोज का शुगल बन गया है .यह पानी कहाँ से आएगा कही- कही पर लोग पीने का पानी कई किलोमीटर चल कर लाते हैं तब जाकर जरूरत का पानी आता है रेतीला पानी तक पीने के लिए लोग मजबूर हो जाते हैं .
‘धरती का दोहन’ नदियों के किनारे पहले गाँव बसे थे सभ्यता के विकास के साथ फिर बड़े –बड़े शहर बस गये पूरे शहर की गंदगी ,कारखानों का कूड़ा ,रसायनिक कारखानों का जहरीला कचरा कट्टी खानों की गंदगी को नदियों में बहाया जाने लगा जिससे गंगा जैसी पतित पावनी नदी भी प्रदूषित हो गयी धरती सब कुछ सह सकती है परन्तु पाप का बोझ नहीं उठा सकती ? जिस जल में कभी दुर्गन्ध नहीं थी आज उस जल में स्नान करना ,आचमन करना मुश्किल हो गया है .कितनी भी कोशिश की जाये नदियाँ स्वच्छ रहें लेकिन जनता सहयोग नहीं करती .जब पानी की कमी होती है . चौराहों पर मटका तोड़ प्रदर्शन शुरू हो जाते हैं . पहले नदी से पानी आता था फिर घरों के आसपास कुए खुद गये , घरों में सबमर्सीव से बिजली का बटन दबाते ही पाईप के रास्ते जल की मोटी धार बहने लगती है जितना चाहे पानी निकाल लो सरकार नलों से घर –घर पानी पहुंचाती है .हमारे एरिया में गंगा जल आता है .
हरियाणा में प्रवेश करते समय खेत पानी से भरे दिखाई देते हैं जबकि हाल में बारिश भी नहीं हुई थी. फिर सस्ती बिजली धरती से नल कूपों द्वारा पानी निकाल कर घान की खेती के लिए जमीन तैयार की जाती है . पानी के लिए और नीचे –नीचे उतरते गये जहाँ 10 फुट पर पानी आता था अब गहरा और गहरा नल कूप खोदना पड़ता है .पहली बारिश धरती की प्यास बुझाती है उसके बाद धरती पानी पीती है जब घनघोर वर्षा होती है रुकने का नाम नहीं लेती बाढ़ आती हैं .सब तरफ धरती जल मग्न हो जाती है .
जंगल के ठेकदार हरे भरे जंगलो में आग लगा देते हैं हरी भरी प्रकृति कई दिनों तक धधकती रहती है इसी आग की आड़ में जंगल के जंगल काट लिए जाते हैं . धधकती आग से ग्लेशियरों के पिघलने का खतरा है इन्हीं ग्लेशियरों से साल भर तक नदियों में जल आता है तीन बड़ी नदियाँ गंगा गंगोत्री के ग्लेशियर से निकलती है ,यमुना यमुनोत्री से निकल कर मैदान की तरफ आती है और दूर तक मैदानी इलाकों की प्यास बुझाती है ऐसे ही अलकनंदा पहाड़ियों से अटखेलियाँ करती हुई धरती को सीचती है. घने जंगलों के ऊपर एक नमी रहती शहरों में भी सरकार द्वारा बनाये घने उपवनों लगाये जाते है जो बादलों को आकर्षित करते है जिससे घनघोर वर्षा होती है ,वर्षा भी अब कम होती जा घर के बाहर सरकार द्वारा लगाये बरगद,नीम, जामुन, गुलमोहर ,पीपल अन्य कई तरह के वृक्ष हमे अच्छे नहीं लगते उन्ही वृक्षों को बोनसाई (छोटा कर ) गमलों में अपने घर के ड्राईंग रूम में खास जगह लगाना चाहते हैं यह छोटे-छोटे सजावटी पोधे हमें अच्छे लगते हैं हम प्रकृति से भी खिलवाड़ करने लगे हैं. .धरती का हम दोहन कर सकते है परन्तु जब वह करवट बदलती है “धरती कहती है यह नश्वर पुतले सोचते हैं इन्होने मेरे ऊपर अधिकार कर लिया ,खून की नदियाँ पार कर मुझे सीमाओं में बाट लिया ,एक –एक टूकड़े पर लड़ने वाले यह नहीं जानते मैं चाहूं तो सब कुछ उल्ट पुलट कर रख दूं मेरी छाती में धधकते ज्वालामुखियों से बहने वाले लावे में कई सभ्यतायें दब गई जहाँ फटी वहीं हजारो लोग मुझमें समा गये मेरे सागर से उठने वाली लहरें सब कुछ बहा कर ले जाती हैं ऐसी सूनामी लहरे आई जिन्होंने साऊथ ईस्ट एशिया के द्वीपों में मौत का तांडव मचा दिया कई युगों को लील कर आज भी मैं अपनी धुरी पर घूम रही हूं|” पृथ्वी को हरा भरा रख कर प्रकृति का सम्मान करने से हो मानव सभ्यता जिन्दा रह सकती है .