दिल के अरमान
फोन की रिंग टोन बजते ही
एसएमएस की वाइब्रेट होते ही
व्हाटसअप स्टेटस चैक करते ही
अक्सर दिल धडकने सा लगता है।
अगर उनसे बात नहीं होती है
दिल बेचैन सा हो जाता है
चाहे अनचाहे एक अहसास होता है
मानों अपना कोई आस पास रहता है।
बहुत बार दिल को समझाने का
नाकाम प्रयास करता रहता हॅू
फिर पता नहीं क्यों बिछुड़न का
अनचाहा डर मन में बैठ जाता है।
हर पल उनका चेहरा नयनों में
आकर अपना प्रतिबिंब बना देता है
उनके साथ बिताये अनमोल लम्हें
मुझे पुनः उनमें मिला देता है।
जानता हॅू कि मैं मुसाफिर नहीं हूॅ
प्रेम की अनसुलझी राहों का
फिर भी ना जाने क्यों यह दिल
अक्सर उनको ही क्यों याद करता है।
कभी कभी सोचता हॅू खुद के बारे में
किंतु हर सोच में उनका ख्याल आता है
खुद को अलग करता हॅू मैं उनसे जैसे ही
खुद ही मैं उनके सवालों में उलझ जाता हॅू।
अक्सर मैं खुद से ही उनके बारे में पूछता हॅू
जज्बातों को खुद से रोकने का प्रयास करता हॅू
मगर हर बार उनका चेहरा सामने आ जाता है
मेरा दिल फिर से बेचैन सा हो जाता है।
कैसे समझाऊॅ उनको, मैं अब अपना नहीं रहा
कैसें बताऊॅ उनको, यह सच है, सपना नहीं रहा
यदि मोहब्बत है यह तो उनको मालूम क्यों नहीं
दिल धड़कता है, उनके लिए, उन्हें यकीन क्यों नहीं।
डरता हॅू, अक्सर उनसे अपने जज्बातों को कहने से
बचता हॅू, अक्सर उनसे अपने अरमानों को बताने से
यह दिल कहता है मुझसे, यही प्रेम है, यही समर्पण
फिर चुप क्यों रह जाता हॅूं, मैं इजहार करने से।
हरीष कंडवाल मनखी की कलम से