सुबह जब पहली किरण निकली
गुलाब की वह पहली कली खिली
शबनम की पहली बूँद की आहट
चिड़ियाओ की पहली चहचाहट।
कली की पंखुड़ीयों ने ली अंगड़ाई
बाग़ में कदमो की आवाज आयी
माली को देख कली मुस्करायी
आज होंगी हमारी निराई गुड़ायी।
माली ने अधखिली कली को देखा
कोमल पंखुड़ी पर हाथ लगाकर सोचा
आज यह गुलदस्ता पर अच्छी खिलेगी
मुझे इससे अच्छी आमदनी मिलेगी
जैसे ही माली ने कली को बेचने के
भाव से हाथ में पकड़कर देखा
कैंची देख नाजुक कली घबरायी।
उसकी खिलतीं पंखुड़ीया मुरझायी।
माली ने नाजुक कली को काटा
फुलवाले को उसे बेचकर आया
फूलवाले ने गुलदस्ता में सजाया
पानी और इत्र का छीटा लगाया।
गुलदस्ते को खरीदने खरीददार आया
वी आईपी को देना है उसका मोल लगाया
यह देख गुलदस्ते के फूल फूले नहीं समाये
अपनी किस्मत पर वह खिलखिलाये।
गुलदस्ते में रखी कली महफिल में आयी
टेबिल पर पड़ी वह कली खुद से बतियायी
आज तेरा भी दिन है किसी के हाथो से
दूसरे के हाथ पर जाकर तस्वीर बन जायेगी।
कार्यक्रम में जाने माने वीआईपी ने प्रवेश लिया
आयोजको ने उसे वह गुलदस्ता भेंट किया
दोनों तरफ झूठी मुस्कान खिल रही थी
गुलदस्ते में रखी कली सहम रही थी।
गुलदस्ते देते हुए खूब तस्वीरें ली गई
बनावटी मुस्कान वंहा बिखेरी गई
बेचारी गुलाब की कली हाथों में
देते हुए वह फूलों सहित मसल दी गई।
गुलदस्ता को गाड़ी के पीछे फेंक दिया गया
सुबह की खिली कली को जिन्दा मार दिया
बाकि फूलों को भी खिलने से पहले
झूठी शान के लिए उनका गला घोंट दिया।
गुलाब की मुरझायी कली दूसरे फूल से बोली
हम इससे अच्छा तो शहीदों के ऊपर बरसते
हम भी उसके साथ हमेशा अमर हो जाते।
हम पुष्प भी हमेशा अमर शहीद कहलाते।
गुलदस्ता देने से अच्छा है एक पौधा भेंट करें
खिलतीं कलियों को खूब खिलने का वक्त दे
फूलो की झूठी शान के लिए बलिदान ना दे
वह सुन्दर पुष्प है,उन्हें गुलदस्ता ना बनने दे।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से.