यूं चुप रहना तुम्हारा जुदा जुदा सा लगता है
ये खामोशी तुम्हारी, खफा खफा सी लगती है।
कुछ बंया कर दो, मौन तुम्हारा अच्छा नही लगता है
कुछ तो कह दो, यूं नाराज होना अच्छा नहीं लगता है।
तुम्हारा कलियों के जैसे खिलना अच्छा लगता है
यूं तुम्हारा मुरझाया चेहरा अच्छा नहीँ लगता है।
तुम्हारी पायल की झंकार का संगीत अच्छा लगता है
तुम्हारा यूँ शांत होकर बैठे रहना अच्छा नहीं लगता है।
अब तो मान भी जाओ रूठना अच्छा नही लगता है
जरा मुस्करा दो, गुमसुम रहना अच्छा नही लगता है।।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।।