तकिया
तकिया भी बाहों को प्यार का कराता अहसास
ये तन्हाई में भी रहता है सदा अपने आस पास
कभी आँसूओ का सैलाब अपने मे ये समा देता
कभी छाती पर लगकर हमको गुदगुदा देता।।
गिरे जो आँसू तो ये पल भर में सोख लेता है
थकान से चूर इंसान को ये सुकून की नींद देता है
ये स्वपन में हमको कभी हँसाता तो कभी रुलाता है
ये तकिया ही तो अपनापन का अहसास कराता है।
तकिया सिर्फ ये रुई ओर कपड़े का मेल नहीँ है
ये तो अकेलेपन को दूर करने का एक साथी है
कभी सिर के नीचे तो कभी बाहों में हमें सुलाता है
ये निश्चल प्यार हम पर सदैव हर वक्त बरसाता है।
तकिया जैसे अगर घर मे हर रिश्ते बन जाए
हर कोई सुख दुख में तकिये की तरह लिपट जाए
ये हमको खुद को तकलीफ देकर प्यार से सुलाता है
जिंदगी प्यार से जीती जाती है, ये सिखाता है।।
मनखी की कलम से।।