एक जाना अनजाना से चेहरा
मेरे ख्वाबों में आता है
मैं तो सिर्फ सोचता हूँ उसको
वो धड़कन बन प्यार की
मेरी सांसो में समा जाता है।
जाने कौन है वो,हकीकत है
या कोई ख्वाब है वो,
धुंधला सा उसका अक्ष
मुझे परेशान कर जाता है।
कभी परिचित्र बनकर
उभरता कर आता है मेरे सामने
कभी साया बनकर छिप जाया करता है
कभी मिल जाया करता है मुझको
तो कभी खो जाया करता है।
ये लुका छिपी का खेल
वो मुझसे खेला करता है
कभी रातो के अंधेरे में
कभी चाँद तारों के मेले में
अक्सर खोजती हूँ मैं उसको।
वह तो है चाँद मेरा, हर पल मेरे पास
अपने पास अपनी चांदनी
को बुलाया करता है,
सिर्फ वह ख्वाब नहीं हकीकत है
जो हर रोज आकर मेरे नैनों की गलियों को
दस्तक देकर चला जाया करता है.।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।