बेटी जब खिलखिलाती हैं तो पूरा घर खिलता हैं
बेटी जब मुस्कराती हैं तो, दिल क़ो सुकून मिलता हैं।
बेटी बड़ी होती हैं, उसे सँवरना और संवारना आता है
बेटी जब समझदार होती है, उसे संभालना आता है।
बेटी जब सुसंस्कृत होती है, दो परिवार संस्कारवाँन होते है
बेटी पापा कि परी होती है, वह पापा का अभिमान होती है।
बेटी क़ो बोझ समझने वाले, बेटी है तो तब बेटा जन्मता है
बेटी से तो ही घर, परिवार, समाज और राष्ट्र, आगे बढ़ता है।
बेटी अब बेटी नहीं वह बेटे के समान अपना फर्ज निभाती है
वह ससुराल ही नहीं बल्कि, मायका क़ो भी संभालती हैं।
बेटी क़ो भी बेटी बनकर, लक्ष्मी स्वरुप ही गुण अपनाना होगा
मान मर्यादा में गलत क़ो गलत सही क़ो सही समझना होगा।
अहम भाव क़ो त्याग कर, अपना फ़र्ज हर जगह निभाना होगा
तुम दुनिया कि आदि शक्ति हों, इस बात क़ो भी याद रखना होगा।
हरीश कंडवाल मनखी कि कलम से।