अगर तुम हमसे नाराज नही
फिर खफा खफा से क्यो हो
कह दो जो भी कहना है तुमको
नही कुछ कहना तो फिर चुप क्यों हो।
हुई है गर हमसे कोई नादानियाँ
नादान समझ कर दुलार कर दो
दिल की आवाज को समझे हम कैसे
ऐसा कोई प्यार से इशारा तो करदो।
उम्र ही तो ढली है, दिल तो जवां है
बाल ही तो सफेद हुए, मन तो युवा है
जमाने ने भले हमे उम्र दराज बताया हो
मोहब्बत तो आज भी वहीं वैसे ही जिंदा है।
ये मोहब्बत भी बड़ी अजीब है
गैरों को भी अपना बना देती है
जब इश्क होता है किसी से
खुद को भी इसमे लुटा देती है।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।