यूं तो बहुत कुछ मिला है तुमसे
फिर भी मुझको गिला है तुमसे
ख्वाब आंखों में तुम्हारे हैं अहसास बातो में तुम्हारे है
फिर भी मेरा प्यार मेरा करार अछूता है तुमसे।
इस डूबती कश्ती को पार लगाया तुमने
मंजिलों के रास्तो का दीदार कराया तुमने।
अब तुम खुद मंजिल बन गये हो मेरी
मगर मंजिल से दूर हूँ, ये गिला है तुमसे।
तुम्हारी झील सी नैनो की घटाओ में
डूब नही पाया हूँ ये गिला है तुमसे।
हाय चाँदनी का नसीब कैसे बदला
ये जंहा का चांद अब बिन चाँदनी का रोशन है।
आज साज के बिन सुरों के सरगम हैं
ये वक्त का करम है तकदीर का सितम है।
यूं तो हर पल चाहा है तुमने हमको
फिर भी मुझको गिला है तुमसे।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।