क्यो उसका घर रोशन करता है ये
कश्ती को क्यों तलाश है साहिल की
क्यो उसे सहारा देकर किनारा देता है ये।
समुंदर इतना गहरा क्यो है
क्यो खुद में समा लेता है नदी को
फूल में खुशबू क्यो होती है
क्यो फूल अपनी खुशबू से
महकाता है कली को।
क्यो जलता है सूरज किरण के लिए
क्यो अपनी रोशनी देता है उसे
उजाला क्यो रात में समा जाता है
सुबह अंधेरा कहा समा जाता फिर उजाले में।
मिलन के बाद बिछुड़ना क्यो होता है
इश्क में दिल क्यो खोया खोया रहता है
समुंदर की लहरे क्यो आती है किनारे की ओर
साथ चलते हुए , क्यो नही मिलते नदी के छोर।
सागर से क्यो लहर उठती है
क्यो आसमान से बारिश बरसती है
क्यो पपीहा सावन में भी पानी को ढूंढता है
क्यो ये दिल पिया मिलन को तरसता है।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।