जब कभी उहापोह की स्थिति हो
अंदर मन में कुछ उलझन सी हो
क्या करूँ क्या न करूं की सोच हो
हाथ मसलते हुए चहलकदमी हो।
चेहरे पर अजीब सी शिकन हो
खुद से सवाल और जबाब हो
अच्छा क्या बुरा क्या ये पता न हो
परिणाम का कुछ अंदेशा ना हो।
लाख कोशिश करने के बाद भी
मन मस्तिष्क एक साथ न हो
सोचने के बाद भी कुछ हल न हो
हर तरफ समस्या ही समस्या हो।
ऐसे में जब कोई रास्ता नहीं मिले
आँखे बंद कर ईश्वर को याद करके
तब अन्तर्मन से जो तुमको महसूस हो
वही ऊपर वाले कि आवाज होती है।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।