आओ अब छोड़ो झगड़ना समझौता कर लेते है
हम तुम एक है मिलकर इस बात को समझ लेते है।।
क्या रखा है बहस करने में आओ बैठकर बात करते है
चार दिन की है ये ज़िन्दगी,आओ हँसकर जी लेते है।।
एक दूसरे को गले मिलकर गिले शिकवे मिटा लेते है
आओ छोड़ो अब रूठना, एक दूसरे को मना लेते है।।
फिक्रो से दूर हो कुछ पल के लिए बेफिक्र हो जाते है
आओ मिलकर उन यादों के हसीन पलो में खो जाते है।
मन मे उपजे अनचाहे घास फूस को बीन लेते है
आओ मिलकर हम दिल में प्यार के बीज बो लेते है।।
बहुत हो गया बंधन, अब खुले आसमा में जीते हैं
आओ मिलकर हम, फिर से नये सपने संजोते है।।
चाँद से मुखड़े पर जो अमावस की परछाई है
आओ मिलकर फिर से शरद का चांद बनाते हैं।।
छोड़ो अब सब रुसवाइया, आओ समझौता करते है
चुप रहने में क्या रखा है,आओ खिलखिलाकर हंसते है।।
मनखी की कलम से।।