हमें नये शहर नहीं, वहीं पुराने गाँव चाहिए
हमें स्मार्ट सिटी नहीं, पीपल की छाँव चाहिए
हमें शहर का शोर शराबा नहीं, शांति चाहिए
हमें बड़े मॉल नहीं, चौबारे की दुकान चाहिए।
हमें बस पहाड़ के सब गाँव विकसित चाहिए
हुनर मंद युवाओ को गाँव में ही रोजगार चाहिए
शिक्षा, स्वास्थ्य, की बेहतरीन सुविधाएं चाहिए
हमें शहर नहीं साहब, वही आबाद गाँव चाहिए।
हमें स्मार्ट शहर का पिज्जा बर्गर नहीं चाहिए
हमें गाँव का मंडुवा झंगोरा, लाल चावल चाहिए
हमें शहर का इंजेक्शन वाली तोरी, लौकी नहीं
खेत और ठंकरे पर लगी ताजी भाजी चाहिए।
गाँव से अपने शहर के पिंजरो में जानवर ले जाइये
वंही आप खूब उनके साथ पिकनिक मनाइये
हमें तुम्हारे नरबक्षी बाघ से अब मुक्ति चाहिए
हमें एयर पोर्ट नहीं साहब, खुला आसमान चाहिए।
हमें तुम्हारी अब मुफ्त की सड़ी राशन नहीं चाहिए
किसान पेंशन योजना नहीं, जानवरो से छुटकारा चाहिए
बस हमारे मतदान के बदले, आवश्यक सुविधा चाहिए
हम गाँव के लोग हैं, हमें मेहनत की कमाई चाहिए।
मत बनाओ तुम चार नये शहर, गाँव को ही सुन्दर बनाइये
हमारी जमीन हमसे मत छीनिये, हमें लुटेरों से सुरक्षा चाहिए
गाँव हमारे हैं, आपस में मत लड़ाईये, हमें भाईचारा चाहिए
नये शहर का कोलाहल नहीं , हमें वहीँ पुराने गाँव चाहिए।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।