'डॉ फारुख अब्दुल्ला का खुद को भारतीय मानने से परहेज ?’ 'कश्मीरी, चीन के शासन में रहने को तैयार हैं’?
डॉ शोभा
भारद्वाज
'आजतक तीन परिवारों एवं अलगाववादियों ने
कश्मीरियों को बरगला कर अपने ही घर भरे हैं स्वर्गीय शेख अब्दुल्ला स्वयं एवं अपने
वंशजो की कश्मीर को जायदाद मानते थे. इस परिवार में स्वर्गीय शेख अब्दुल्ला ,फारुख अब्दुल्ला एवं उमर अब्दुल्ला काफी समय तक कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे
हैं बड़ी शानशौकत पूर्ण उनका रहन सहन था सत्ता हाथ से गयी अब वह कश्मीर की राजनीति
को अपने ब्यान से भ्रमित करना चाहते हैं .डॉ फारुख अपने अटपटे बयानों के लिए जाने
जाते है दिल्ली में उनकी भाषा अलग होती है कश्मीर में अलग वह एक सांसद के समस्त
अधिकारों पर ऐश करते हैं लेकिन उनका कश्मीरियों के नाम पर ऐसा ब्यान ? डॉ फारुख का कश्मीर के कोटे से एसएमएस
मेडिकल कालेज जयपुर में एडमिशन हुआ कैसे डाक्टरी की डिग्री
मिली वही जानते हैं उनके पिता ने उन्हें मुख्यमंत्री पद पर आसीन करने की तैयारी
पहले कर ली थी .
अपनी
प्राकृतिक सुंदरता के साथ -साथ, कश्मीर अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए
भी प्रसिद्ध है,जम्मू कश्मीर और लद्दाख केवल मुस्लिम
धर्मावलम्बियों का प्रदेश नहीं है यहाँ शिया सुन्नी सूफी परम्परा को मानने वालों
के अलावा बौद्ध , हिन्दू , जैन और सिखों का भी निवास स्थान रहा है. यहाँ के कश्मीरी
पंडितों का अपना महत्व था इन्हें कश्मीर से पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया गया
था . पंडित सदैव नौकरी पेशा रहे हैं यह अधिकतर शैव
मतावलम्बी हैं हर वर्ष तीर्थ स्थान अमरनाथ की यात्रा के लिए सम्पूर्ण भारत से लोग
आते हैं .कई मुस्लिम परिवार पहले कश्मीरी पंडित थे बाद में इस्लाम धर्म अपनाया गया
. सूफी परम्परा से जुड़े प्रदेश के लोग
सहिष्णु थे यहाँ के कलाम को सूफियाना कलाम कहा जाता है , सुफ़ियाना कलाम एक तरह का मधुर संगीत है जो व्यापक रूप से जम्मू और कश्मीर
के अलावा सम्पूर्ण देश की पसंद है. इस्लाम के आगमन के बाद, ईरानी संगीत ने कश्मीर को प्रभावित
किया . संतूर एक संगीत वाद्ययंत्र है जो कश्मीर के अन्य वाद्य यंत्रों के समान
प्रचलित है . कश्मीरी धुनों के कई रागों की धुनें फ़ारसी धुनों से ली गयी हैं.
‘कश्मीरियत’ यहाँ की विशेषता रही है ‘कश्मीरी कहवा’ हरी चाय सर्दियों के मौसम में मसाले एवं बारीक कुतरे गये बादाम के साथ मिला कर तैयार किया जाता है कश्मीरियों का प्रिय कहवा है कश्मीरी
भाषा में संस्कृत और प्राचीन ईरानी भाषा अवेस्ता और फारसी भाषा के शब्द मिलते है .
जम्मू की डोगरा संस्कृति पड़ोसी राज्य पंजाब एवं हिमाचल से प्रभावित है यह कश्मीरी
संस्कृति से कुछ अलग है यहाँ जनवरी बर्फ बारी के महीने में लोहड़ी एवं अप्रैल में
बैसाखी ढोल की थाप पर धूमधाम से मनाई जाती है .
दुखद
कश्मीर में पकिस्तान ने भारत विरोध को सदैव हवा दी हैं. कश्मीर घाटी को केवल सुन्नी मुसलमानों से जोड़ दिया .
लद्दाख
की संस्कृति अपनी अनोखी भारत –तिब्बत संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है ,संस्कृत एवं तिब्बती भाषा में मन्त्र जाप की आवाजे लद्दाख के बौद्ध जीवन
शैली का एक अभिन्न हिस्सा हैं . वार्षिक नकाबपोश नृत्य समारोह, प्रसिद्ध गोम्पा उत्सव जून के महीने में मनाया जाता है और हेमिस उत्सव में
मुखोटा लगा कर किया जाने वाला नृत्य , कालीन की बुनाई पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है . लद्दाखी भोजन और
तिब्बती भोजन में काफी समानता हैं।
जम्मू-कश्मीर
में गुर्जर-बकरवाल एक घुमंतू जाति के लोग खानाबदोश हैं इनका व्यवसाय बकरियों, भैंसों पशुओं को चराना है .वर्ष 2011 की
जनगणना के मुताबिक राज्य में करीब 12 लाख
गुर्जर-बकरवाल समुदाय के लोग रहते हैं इन्होने इस्लाम मजहब स्वीकार किया था लेकिन इनकी
अपनी समाजिक, सांस्कृतिक
और भाषाई पहचान हैं। वे गर्मी के अधिकांश मौसम में अपना बसेरा ऊंची पीर पंजाल
पहाड़ियों के प्राकृतिक हरे-भरे सुरम्य पहाड़ी मैदानों और खूबसूरत पर्वतमालाओं के
बीच बनाते हैं लेकिन पिछड़े हुए है युद्ध
के समय कई मौकों पर बकरवाल समुदाय के लोग सेना के सहायक हैं सीमा पर घुसपैठ की
जानकारी मिलते ही फौरन सेना को अलर्ट करते हैं.
कश्मीर
का भारत में विलय – कश्मीर के महाराजा हरी
सिंह 21 अक्टूबर 5००० कबायली लड़ाको ने पाकिस्तान
के नार्थ वेस्ट फ्रंटियर के सैनिको के साथ कश्मीर
की और प्रस्थान किया वह श्री नगर से केवल 35 किलो
मीटर की दूरी पर थे कश्मीर के महाराज हरी सिंह ने भारत से जल्दी मदद की गुहार लगाई
और सैनिक सहायता मांगी, माउन्ट बेटन का तर्क था कश्मीर एक आजाद
देश है अत: पहले कश्मीर भारत में विलय के लिए अपनी सहमती दे तभी मदद सम्भव है उसी समय कृष्णा मेनन कश्मीर के लिए प्लेन से रवाना हो गये वह वहाँ के पूरे
हालत का जायजा ले कर साथ ही महाराजा का भारत के साथ विलय का पत्र जिस पर महाराज के हस्ताक्षर थे, पत्र के
साथ नेशनल कांफ्रेंस वहाँ के बड़े दल के प्रेसिडेंट शेख अब्दुल्ला की सहमती का पत्र
लेकर अगले ही दिन दिल्ली पहुंच गये तब कश्मीर को बचाया जा सका .
शेख
अब्दुल्ला की धारणा थी पाकिस्तान में धीरे –धीरे
इस्लामिक ताकते सिर उठा लेंगी उनकी राजनीति भारत में ही चल सकेगी नेहरू जी को प्रभाव में लेकर वह कश्मीर के लिए विशेषाधिकारों के लिए दबाब
डाल रहे थे जबकि संविधान निर्माता डॉ अम्बेडकर दूरदर्शी थे उन्होंने शेख अब्दुल्ला
का विरोध करते हुए विशेषाधिकार का समर्थन नहीं किया नेहरू जी ने शेख के प्रस्ताव
को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया अंत में वही हुआ जो शेख चाहते थे धारा 370 ,शेख अब्दुल्ला के प्रभाव से जोड़ी गयीं
थी जबकि यह अस्थायी विशेषाधिकार था 14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने एक आदेश पारित कर धारा 370 में एक नया आर्टिकल 35 a जोड़ दिया गया. बिना संसद से पारित हुए
ही इसे राष्ट्रपति के आदेश से संविधान में शामिल कर लिया गया था.
शेख
अब्दुल्ला इंडिपेंडेंट कश्मीर का स्वप्न देखने लगे भारत पाकिस्तान के मध्य एक
इंडिपेंडेट स्टेट उनके परिवार की जागीर होगा .अमेरिका और
ब्रिटिश अखबारों में शेख के प्रति गहरा झुकाव दिखाई देने लगा | भारत के अमेरिकन एम्बेसेडर और उनकी पत्नी के साथ उन्होंने अमरनाथ की यात्रा
भी की थी शेख अब्दुल्ला अलग बोली बोलने लगे अपने प्रिय मित्र को नेहरू जी को
गिरफ्तार करना पड़ा.
डॉ
फारुख अब्दुल्ला भूल गये या समझना नहीं चाहते चीन की ‘दोहरी नीति’ उन्हें दिखाई नहीं देती उनके यहाँ
अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है ‘उरगन
मुस्लिम तुर्की मूल के हैं’ वह शिनजिंयांग प्रदेश में रहते हैं , 10 लाख
मुस्लिमों को नजर बंद कर उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है चीन सफाई भी देता है कई आतंकियों
ने चीनी महिलाओं से शादी कर ली है उनके शौहर के चीन में प्रवेश पर रोक लगानी पड़ी. विश्व
मीडिया एवं मानवाधिकारवादियों के अनुसार उरगन मुस्लिमों की मस्जिदों में सामूहिक
नमाज ,रोजों एवं धार्मिक कार्यों पर बैन
लगाया गया है उनकी मस्जिदों को अपने हिसाब से तोड़ा जा रहा विदेशों से शिक्षा गृहण
कर लौटने वाले मुस्लिम छात्रों को कैद कर उन्हें प्रताड़ित ही नहीं कई गायब कर दिये
गये है .पवित्र कुरान या अरबी किताबें जब्त कर ली जाती हैं . ग्लोबल टाईम कहता है
उन्हें देश प्रेम सिखाया जा रहा है. उइगर लोग देखने में चीनियों- जैसे नहीं लगते
उनका रंग-रुप भारतीयों से काफी मिलता-जुलता है मुसलमान बनने के पहले वे बौद्ध धर्म
और स्थानीय धर्मों को मानते थे. वे चीन की केंद्रीय सत्ता के खिलाफ अपनी आजादी का
आंदोलन भी चलाते रहे हैं परन्तु दमन के आगे मजबूर हैं .
चीन
पाकिस्तान इकोनामिक कारिडोर पाक अधिकृत कश्मीर से गुजर रहा है जबकि कश्मीर के महाराजा ने सम्पूर्ण जम्मू कश्मीर के विलय के पत्र पर हस्ताक्षर
किये थे .कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है ऐसे में भारत की
संप्रभुता और अखंडता प्रभावित होती पाक
अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद शहर के निवासियों ने चीन के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन
किया है। इन लोगों का कहना है कि चीन अवैध तरीके से नीलम और झेलम नदियों के ऊपर
बांध बना रहा है इन बांधों से पर्यावरण को बहुत नुकसान
पहुंचा है. वाह फारुख साहब आप चीन की तरफ देख रहे हैं क्या वह शी जिंगपिंग की
विस्तारवादी नीति को नहीं जानते .चीन का सीमा विवाद अपने सभी पड़ोसी देशों से चल
रहा है वह ऐसे जतला रहा है उसकी शक्ति अपार है युद्ध द्वारा वह ताईवान एवं दबाब
में हांगकांग को पकड़ लेगा दक्षिण चीन सागर के अनेक छोटे द्वीपों पर पर मिटटी डाल
कर उनका क्षेत्र बढ़ा कर नौसैनिक अड्डे बना लिए हैं .
डॉ
फारुख सोच रहे है सम्पूर्ण कश्मीर को भारत से जीत कर शी जिंगपिंग उन्हें सौंप देंगे धारा 370 जैसी धारा के साथ चीन में कश्मीर का विलय कर उनका राज्याभिषेक हो जाएगा
स्वप्न देखने का उन्हें हक है इतनी कुर्बानियों के बाद भारत आसानी से कश्मीर को
उनकी जायदाद बनने देगा ?1959 को चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया
तिब्बत भारत एवं चीन के बीच आजाद देश था. उनका इतना दमन किया गया वह अपनी धरती छोड़
कर भारत आने के लिए मजबूर हो गये .
धारा 370 ,35 a की समाप्ति, लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित
करने से चीन बौखला गया क्योकि वह लद्दाख पर नजर गड़ाए था। चीन भी जानता है उसका
मुकाबला मजबूत भारत से है न कि 1962 के भारत से . एक बात डॉ फारुख का पाकिस्तान से
मोह भंग हो गया है वह देश बहुत कमजोर हो
चुका है .
डॉ
फारुख विपक्षी दलों के साथ मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे है लेकिन कश्मीर की जनता
अब शान्ति चाहती है अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती है उनके बच्चों को आतंकी बना कर
सत्ता का आनन्द लेने के लिए यह परिवार गुट बंदी कर रहे हैं अब वह इनके झांसे में
आने वाले नहीं हैं.