गुरु
पूर्णिमा
डॉ शोभा
भारद्वाज
गुरु
पूर्णिमा के अवसर पर बचपन की स्मृतियाँ मन पर छाने लगती हैं | जिन्हें भूलना आसान नहीं हैं हमारा
बचपन प्रयागराज (इलाहाबाद) में बीता हमारे घर के साथ
चार मंजिल का मकान था उस समय के हिसाब से बहुत आलिशान था यहाँ महाजन परिवार रहता था वह आढ़ती थे
घर का मालिक गंगा महाजन सम्मानित व्यक्ति था उनकी पत्नी को हम ताई जी कहते थे
प्यार में हमने जी हटा दिया वह हमारी अपनी ताई बन गयी | ताऊ जी की पहली पत्नी बेटी को जन्म देने के कुछ दिन बाद स्वर्ग सिधार गयी
ताई उनकी दूसरी पत्नी थी वह निसंतान
थीं बच्चों से उन्हें बेहद प्यार था बच्चों
भी उन्हें भरपूर स्नेह देते थे हमारे घर से दो किलोमीटर दूर गंगा बहती थी जबकि त्रिवेणी संगम से दूर था वह इतवार
के दिन हमें गंगा जी ले जाती थी बड़ी अच्छी तैराक थी मुझे भी उन्होंने तैरना सिखाया |
यह तो
परिचय था हमारे घर से कुछ दूरी पर धर्मशाला थी वहां गुरु पूर्णिमा के दिन एक
सन्यासी अपने चार शिष्यों सहित पधारे सन्यासी का व्यक्तित्व मुझे आज भी याद
है कद में बहुत लम्बे काले घने बाल सिर पर बालों का जूड़ा कुछ छोटे घुंघराले बाल माथे एवं गर्दन पर बिखरे हुए थे गरुआ
वस्त्र धारी पैरों में लकड़ी की खड़ाऊँ पहने हुए बहुत तेज चलते थे उनके लिए तख्त बिछा हुआ था दूर - दूर से सम्मानित लोग उनका प्रवचन सुनने
आये थे |उनके प्रवचन में ऐसा प्रवाह था लोग मंत्रमुग्ध सुन रहे थे सरल भाषा में वह
प्रसंगों सहित गीता का ज्ञान दे रहे थे हम बच्चों की समझ में अधिक नहीं आया फिर भी
उनकी भव्यता के आगे हम बच्चे शांत बैठे थे | प्रवचन
समाप्त हुआ एक - एक कर श्रोता उनके चरण स्पर्श करने लगे वह किसी से कुछ नहीं
स्वीकार कर रहे थे उनके विषय में सुना था बहुत
धनवान के इकलौते पुत्र हैं प्रतिभावान इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से शिक्षा ग्रहण की और सन्यास धारण किया उनके साथ उनके शिष्य साये की तरह रहते थे वह भी
अच्छे घरों से थे|
अब ताई
की बारी आई मैं उनके साथ थी वह उनके पैर छूने के लिए झुकी उन्होंने मना कर दिया ‘नहीं माँ ‘ ताई फूट
- फूट कर रोने लगीं उन्होंने कहा मुझे
माँ कहने वाला कोई नहीं है मैं निसंतान हूँ सन्यासी ने कहा माता यशोदा के एक कन्या संतान हुई नंद बाबा ने उसे भी श्री बसुदेव की झोली
में डाल दिया था तुम कान्हा से नेह लगाओ | जिस तखत पर वह बैठे थे वहाँ चौकी पर श्री कृष्ण भगवान की उनकी अपनी
प्रतिमा विराजमान थी नीले रंग की अति सुंदर दो फुट की मूर्ती ताई की
झोली में ड़ाल दी लेकिन बांसुरी रख ली ताई बिलखने लगी उसने माथे से मूरत लगा ली
उनके मुहँ से इतना ही निकला गुरुदेव | उसने गुरुदेव से विनती की उसके घर चल कर मूर्ति की स्वयं स्थापना कर दें | सन्यासी हँसे जहाँ कन्हैया
की इच्छा होगी वहीं विराजमान हो जाएंगे | सन्यासी
अपने शिष्यों सहित प्रस्थान कर गए | कई वर्ष बाद वह अर्द्ध कुम्भ स्नान करने प्रयाग राज पधारे थे |
ताई की
समझ में नहीं आ रहा था वह मूर्ति को कहाँ स्थापित
करे उसने पहली मंजिल के बड़े कमरे में मूर्ति एक मेज पर सजा दी पति पत्नी बाजार से चंदन की चौकी ले आये
कान्हा के हाथो में चांदी की बासुरी सजा दी दो दिन तक उनके श्रृंगार का सामान लाने में व्यस्त रहे बड़ी मुश्किल से मोर मुकुट पसंद आया | ताई कान्हा की मूर्ति से बातें कर रही थे अभी इतने से काम चला लो तुम्हारे
किये चंदन की बांसुरी आऊँगी अभी चांदी के मुकुट से सबर कर लो देखना सोने का बनवा कर पहनाऊँगी |
मैने एक सादा घरेलू ताई को बदलते देखा वह भोर से पहले गंगा नहाने जाती वहां से
जल लाती गा -गा कर कान्हा को जगाती ताई का स्वर सादा था पर गाती
“माता यशोदा हरि को जगावे जागो उठो मोहन नींद खोलो --
बच्चे
की तरह दुलारती उन्हें नहलाती धुलाती घर की गाय के मक्खन का
भोग लगाती भोग के बाद आरती दुपहर को कान्हा का खाने का समय है शाम को फिर भोजन उनको सुलाने से पहले दूध का भोग लगा कर आरती करती | ताई का
भाव समझ नहीं आता था ताई ने हफ्ते का एक दिन कीर्तन के लिए नियत कर दिया
कीर्तन में वह भजन गा - गा कर
नाचती | बाद में वह खड़ताल भी ले आयीं | ताई का काम बढ़ गया गर्मी में भगवान का परिधान
हल्के सूती कपड़े का बनाती सर्दियों
में गोपाल स्वेटर पहने नजर आते | वर्ष में एक दिन अखंड कीर्तन होता
उनमें कृष्ण धुन गई जाती तब ताई एक
क्षण के लिए भी आँख नहीं झपकती थी | धीरे धीरे ताई के मन के भाव अलग - अलग हो गए कभी माँ का भाव कभी मीरा का
भाव |
उन
दिनों झुण्ड बनाकर लोग चार धाम की यात्रा के लिए जाते थे ताई ने कान्हा को साथ लिया सबके मना करने पर भी नहीं मानी यात्रा के लिए चली गयीं वह
चाहती थीं ताऊ भी साथ चले लेकिन व्यापार किसके भरोसे छोड़ें बेटी के बेटे पर ताऊ को
विश्वास नहीं था | यात्रा आसान नहीं थी सूचना का माध्यम टैली फोन या चिठ्ठी थी | ताऊ रोज अखबार लेकर पढ़ने बैठ जाते पहाड़ों पर लैंड स्लाइड होता डर जाते ,एक बार खबर आई नैना देवी
में टूरिस्टों की बस खड्ड में गिर गयी ताऊ जी की रोते -रोते हिचकियाँ बंध गयी जल्दी ही ताई का
पोस्ट कार्ड आया उनकी यात्रा गंगासागर की और जा रही हैं | ताई लौट कर आई वह कान्हा के लिए उन्हीं
की कद काठी की राधा लाई थीं इस बीच ताऊ जी की बेटी और उसके बेटे को ताऊ को भड़काने का मौका मिल गया वह सब कुछ अपना समझते थे उन्हें ताई
ताऊ की जरूरत भी नहीं थी | लोग जब तीर्थ यात्रा से सकुशल लौटते थे दावत ( भंडारा ) देते थे
ताई ने भी दावत दी भगवान का भोग लग गया था ताई उस दिन बहुत खुश थी जोश में उसे भूख
नहीं लग रही थी सबसे बाद में भगवान को शयन करवा कर उसी कमरे में खाना खाने बैठी
ताऊ उनकी बेटी और बेटा दनदनाते ऊपर आये वह अनापशनाप कुछ भी बोल रहे थे ताऊ
ने ताई को बालों से घसीट कर फर्श पर पटक दिया
उनकी बेटी ने हाथ में डंडा दे दिया वह भड़काते जा रहे थे ताऊ के हाथ चल रहे थे ताई फर्श पर गिर पड़ी |
उसे समझ
नहीं आ रहा था इतना प्यार करने वाला उसकी हर बात मानने वाले उसे लक्ष्मी नाम देने
वाले पति को क्या हो गया| ताई जिन दिनों तीर्थ यात्रा पर थी उन्होंने ताऊ
की पहली पत्नी की बेटी को बुला लिया वह पिता का ध्यान रखेंगी . वह अकेली जायदात की
वारिस थीं उन्हें भय था दोनों आलिशान घर मन्दिर बना कर घर को धर्मशाला न बना दें
अत :वह पिता के दिमाग में जहर भरती रहीं , शरीर से अधिक आत्मा पर चोट लगी वह वहीं पड़ी रह गयी बेटी ने जब ताई की हालत
देखी वह डर गयी उसे लगा शायद मर गयीं या सिसक रही है वह अपने लड़के को ले कर रातो रात गायब हो गयी | तीन दिन तक ताई बेहाल पड़ी रही न भगवान
को जगाया , न
नहलाया न धुलाया न भोजन कराया भूखी
प्यासी ताई के साथ कान्हा भी भूखे राधा जी भी भूखी उनका ऐसा स्वागत किसी ने सोचा
नहीं था दो चम्मच गंगा जल ताऊ उनको अर्पित कर
देते ताई का मुझे पता नहीं | तीन दिन बाद सुबह ताऊ हमारे घर आये वह
मेरी माँ और पिता जी को अपने घर ले गए
ताई की हालत देख कर समझ में आया इतना सन्नाटा क्यों था घर का दरवाजा अंदर से बंद
रहा | मेरी माँ ने ताई को उठाया वह मुश्किल
से उठीं नहाई जब बालों में कंघी फेरी बालों का बड़ा गुच्छा निकता उन्होंने सुबह के
दूध से कान्हा का भोग लगाया मेरी अम्मा ने उनकी रसोई में खाना बना कर भगवान का भोग
लगाकर ताई को खाना खिलाया ताऊ भी लगभग भूखे थे | ताई अब
इतनी सहनशील हो गयी थी उन्होंने कोई शिकायत नहीं की | ताऊ जी पर हैरानी हो रही थी वह जन्माष्टमी के दिन विशेष रूप से कान्हा के
लिए पालना सजवाते , प्रयागराज में भगवान के जन्म के छठे
दिन झांकियां निकलती उनके घर की झांकी का विशेष आकर्षण होता था फूलों से सजा रथ ,रथ पर भगवान विराजमान ताऊ सारथि के स्थान पर स्वयं बैठते पूरे रास्ते लड्डू
का प्रसाद अपने हाथों से सबको देते थे | रथवान
रथ चलाता |
मेरे
पिता का ट्रांसफर हो गया ताऊ एवं ताई ने रो - रो कर हमें विदा किया परन्तु दिल में
वह परिवार सदैव बसा रहा संबंध भी बना रहा |
कुछ
वर्ष बीते शायद 18 वर्ष बाद प्रयागराज से फोन आया ताई नहीं रही | तुरंत मेरे पिताजी जो पहली गाड़ी मिली उससे प्रयाग राज पहुंचे बाजार में सन्नाटा था घर में ताई का पार्थिव शरीर बर्फ में रखा गया
था निरंतर कीर्तन चल रहा था सुबह उन्हें संगम पर अंतेष्टि के लिए ले जाना था पिता
जी चिंतित थे ताऊ बहुत वृद्ध हो गए थे उनका एवम् भगवान का ध्यान कौन रखेगा लेकिन
भगवान की दया से बेटी के बेटे की बहू बहुत अच्छी आई थी उसने ताई की जगह ले ली थी
उनका बेटी की तरह ध्यान रखती थी | ताई को सुपारी खाने की आदत थी घर में पानदान था ,उनके जबड़े में घाव हो गया मुहँ खोलने
में कठिनाई हुई तो उन्हें डाक्टर को दिखाया पता चला कैंसर की पहली स्टेज है ताई घर
आई राधा कृष्ण की मूर्ति के सामने लेट गयीं केवल गंगा जल पिया दो दिन बाद ही उनकी
बिना कष्ट के मृत्यु हो गयी |
हर
जानकार को उनकी मृत्यु के उपरान्त सूचित
किया गया था धीरे - धीरे प्रयागराज और दूर दराज की भजन मंडलिया इक्क्ठी हो रही थी
पूरे बाजार बंद थे ताई का विमान सजाया गया
हरि धुन के साथ उनकी शव यात्रा निकली
कीर्तन मंडलियां कीर्तन कर रहीं थी पूरे रास्ते को लोग बुहार रहे थे लोगों ने पीने
के पानी का इंतजाम किया छोटे पैकेट में
मेवा दे रहे थे | हैरानी की बात थी जिन सन्यासी ने ताई को मार्ग दिखाया था जबकि उन्होंने ताई को दीक्षा भी नहीं दी
थी ताई की शव यात्रा में साथ चल रहे थे | ताई भक्ति भाव से बहुत ऊँचे उठ
गयी थी हर गुरु पूर्णिमा के दिन मुझे ताई एवं उनके गुरु की याद आती है |