इस दिल को कैसे समझाएं,
ये समझता नहीं है।
तुम्हारे दिये ज़ख्मों से,
उभरता नहीं है।
बिछड़ के भी क्या कोई,
जिंदा रह सकता है।
पर काट के भी क्या कोई,
परिंदा रह सकता है।
तुम झूठ हो, फरेब हो,
ये बताना चाहते हैं।
तुम टूटा ख्वाब हो,
ये जतलाना चाहते है।
पर इस दिल को कैसे समझाएं,
ये समझता नहीं है।