अचानक वो मेरे पास आए,
ओर कहने लगे,
क्या तुम्हें भी चाहत है, उस एक पल की,
जो मेरी चाहत है।
मैंने मुस्कुराकर पूछा, कौन सा एक पल,
जिसके बीत जाने का डर ना हो
या जिसके आने की खुशी हो।
वो सकपकाए, जैसे दोनों पलों की उम्मीद ,
संभावनाओं में बह गई,
ओर खामोशियों में सिमटकर,
हमारी बात रह गई।
वो कुछ सोचकर फिर बोले,
क्या आशा भी ना करें, उस एक पल के आने की,
मैंने कहा, चाहते तो हमें भी बहुत थी उस एक पल की,
पर जीवन की उलझनों में सब ढह गई,
पल तो आना जाना है,
यही सोचकर जिंदगी रह गई।
इंतजार में सारा जीवन काट दे,
क्या ये मुमकिन है,
जो भी है,
वो तो बस अभी का एक पल है।
वो हैरान, एकटक मेरी ओर देखते ही रह गए।