तुम्हें पाने की ख़्वाहिश तो ना थी,
पर तुमसे बिछड़ जाने का गम जरूर था।
तुम्हारे पास आने की ख़ुशी तो ना थी,
पर तुम्हारे दूर जाने का दर्द जरूर था।
तुम तो कहते थे, खास है हम तुम्हारे लिए,
तोहफ़ा है, उस कुदरत का हम तुम्हारे लिए।
तुम्हें पाकर हमने सब पा लिया था,
सपनों का एक महल बना लिया था।
टूटे सपनों के तिनकों को अब हम कैसे जोड़े,
तुम्हारे लौट आने की आस को कैसे छोड़ें।
तुम्हें जाना ही था तो क्यों उम्मीद जगाई,
क्यों हमें दी तुमने ऐसी रुसवाई।