एपीसोड 18 - जीवन &आएशा का सच की ओर सफ़र
पिछड़े एपिसोड में हमने देखा था की कैसे अरुण जी आलोक का यानी की आएशा के पापा का वफादार होता है, वो आलोक को कुछ खिला पिलाकर बीमार करता जा रहा है, इसकी वजह से आलोक अपने घर से ही काम संभाल रहे होते है, जिसका फायदा अरुण उठाता है, क्योंकि आलोक ने अपने पावर ऑफ अटॉर्नी अरुण के नाम की होती है, पर अरुण को धोखा दे रहा है आलोक और आएशा को, महज पैसा या और कुछ वजह है इसके पीछे।
उधर जीवन को जाने अंजाने एक इंसान मिलता है, जो की इंस्पेक्टर खान होते है, जीवन के दादाजी के दोस्त, जो उस हादसे के समय वहा पर होते है, बाद में अचानक से गायब होते है, को आज लौटे है, पर उनकी हालत कुछ ठीक नहीं होती।
जीवन जान जाता है की आएशा उसे जो बता रही थी वो कुछ हद तक सही था जिस हादसे के बारे में आएशा बता रही थी, वो जीवन के दादाजी ने भी देखा था, और उसकी वजह से आज तक इंस्पेक्टर खान गायब थे, उसे कुछ तो शक हो रहा था, वाकई में ये हादसा था या फिर कोई साजिश।
अब जीवन भी सोचने पर मजबूर होता है, फिलहाल उसकी प्रायोरिटी खान चाचा को ठीक करना होता है, क्योंकि जीवन के दादाजी भी उतना ही जानते थे जितना पेपर में उस वक्त छपकर आया था, इंस्पैक्टर खान बहुत ही होनहार ऑफिसर था उस वक्त का, जोरों शोरो से तलाश जारी थी, उनके साथ एक और उनसे बड़ा ऑफिसर था, जिनकी उस हादसे में मौत हो गई थी।
आप भी जानना चाहते है ना कौन था वो ऑफिसर जिसकी मौत उस हादसे में हुई थी, को खान के सीनियर थे, और उसके अच्छे दोस्त भी, वो ऑफिसर थे आएशा के हमारे आएशा के पापा, पर एक क्रिमिनल को उन्होंने धर दबोचा था, और उससे उम्रकैद की शिक्षा हुई थी, कहते है उसकी बेटे ने ये आग लगाई थी, जिसमें आएशा के पापा की मौत हो गई थी।
बस आगे क्या हुई इसके बारे में कोई नहीं जानता, पर वो गुंडा बहुत ही ताकतवर था इसलिए उस वक्त जगह जगह दंगे हो गए थे,और उसने शहर के कुछ हिस्सों में अपने लोगो को जात धर्म के आधार पर झगड़ा कर आगे लगाई थी, पर उसके साथ बहुत बड़े पोलिटिशियन भी थे, इसलिए किसीको कुछ नही हो पाया, उल्टा वो गुंडा भी जेल से भाग गया, बाद में उसका क्या हुवा पता नही।
एक हवालदार भी था जो एक छोटी सी बच्ची को बचाते गोली लगागे मारा गया था, दादाजी बिल्कुल उसे ऐसी ही कहानी सुना रहे थे जैसी की कुछ दिन पहले जीवन को आएशा ने सुनाई थी।
महज उसमें फरक इतना था की आएशा ने बताया था की जिसने गोली मारी वो कौन था और जैसी गोली लगी वो भी कौन था, पर ये सब तो सुनी सुनाई बाते थी, वो खान चाचा के मुंह से ये सब सुनाना चाहती है।
खान चाचा धीरे धीरे करके रिकवर हो रहे थे, जीवन ने उनकी अपने ही घर में रखा था। अब थोड़ा थोड़ा वो संभल गए थे, और दादाजी को भी पहचानने लगे थे। हालाकि घर में से किसीको नहीं जानते थे, और याद आने का जरिया वो फोटो जो आएशा ने देखा था, वो फ्रेम टूटने के कारण रिपेयर करने गया था।
जीवन के पापा भी घर पर नहीं थे, जीवन के मां के मायके में जीवन के पापा और मम्मी गए थे, दादाजी और दादी दोनो के साथ जानवी भी थे घर में। कुछ याद आने का जरिया ही नहीं था।
जीवन अब हर दिन आएशा का मंदिर में ही रहके इंतजार कर रहा था, क्योंकि वही मिली थी आएशा जीवन को। मंदिर में मिली थी तो वो सोच रहा था की वो जरूर आएगी मंदिर, और फिर उसके पापाजी भी इस शहर में ना थे,तो पूजा का काम भी तो जीवन ही करता था।
जैसा कि मैंने पहले बताया था की गणपति जी आए होए थे रोज सुबह और शाम को आरती होती रहती है, सुबह की आरती तो जीवन कर पाता था पर शाम के आरती के लिए जीवन नही आ पता था, तो उसके दादाजी शंकर आकर आरती कर लिया करते थे।
सुबह सुबह ही मिली थी आएशा पर सवाल ये था की दो तीन दिन से आएशा क्यू ही गायब थी और कहा गायब थी वो, क्या वो फिर से बिना तालाश किए सच की क्या लंदन चली गई थी, जैसा कि मैंने बताया था की उसके पापा आजकल ठीक नही रहते थे।
आएशा की आंटी जैनी की मॉम थोड़ी बीमार थी तो घर में बाकी कोई नही रहते थे, तो आएशा वहा रुककर जैनी की मॉम का खयाल रखते थे, वैसे घर में बहुत सारे लोग थे पर सब इन दिनों अपने अपने काम में बिजी थे और चाहकर भी वो छूटी नही ले पा रहे थे, वैसे उनकी तबियत काफी खराब थी, तो सुबह और रात को कोई ना कोई होता था,पर दोपहर को कोई ना रहता था तो आएशा ही उनका खयाल रखती थी, जैसा आएशा के वक्त उन्होंने रखा था।
इधर जीवन और उधर आयशा दोनो की ही कोशिश जारी थी, एक दिन जब जीवन को वक्त मिला वो खान चाचा के घर पर गया, घर का दरवाजा बंद था, पर उसने किसी तरह वो दरवाजा खोल दिया।क्या कुछ मिलेगा उसे इस कमरे में, जिससे वो सब जान पाए।
उसकी तलाश जारी थी जितनी अब आएशा के लिए जरूरी था उतना ही जीवन के लिए भी जरूरी था, आएशा के बारे में वो बहुत कुछ तो नही जानता था पर इतना जानता था की लंदन से आई है, उसने ही बताया था, पर किस कारण आई थी ये उस दिन जीवन को पता चला था।
अगर जीवन और उसके पापा का ये पुनर्जन्म था तो आस पास के लोग कैसे नहीं जानते थे, क्योंकि जीवन तो यहां कुछ साल पहले ही मनाली से आया था, उसका पूरा बचपन मनाली में ही गुजरा था।
इसलिए जीवन को बचपन में। किसीने नहीं देखा था और जीवन के पापा तो अब पूरी तरह से बदल चुके थे जैसा उस तस्वीर में दिखते थे वैसे तोबाब बिल्कुल नही दिखते थे।
जीवन के घर पे जो उसके जानवी के दोस्त से रहते उनको तो इस हादसे के बारे में पता ही नही तो उनका तो दोनो को पहचानने का सवाल ही नहीं उठाता था, और अहमद और आएशा के पिछड़े जन्म के पापा को दादाजी कहा ही देखा था, सिर्फ खान चाचा से सुना था।
तब कहा ही आज के जैसा सब कुछ टेलीकास्ट होता था, टीवी तो गिने चुने घरों में होता था और पेपर खरीदे उतने भी पैसे नहीं होते थे, फिर जीवन दादाजी जाने भी तो कैसे, क्योंकि इस हादसे के काफी सालों बाद वो वहा रहने आए थे।
फिर भी खान इस केस की गुंहेगारो की तलाश कर रहे थे, और वही दादाजी को बताते थे, फिर दिनानाथ यानी अपने बेटे के साथ कुछ सालो तक वो फिर मनाली में ही रहते थे, वही पर जीवन और जानवी का जन्म और बचपन गया, फिर लगभग पांच छह साल पहले वो यहा लौटे, इससे पहले मंदिरकी जिम्मेदारी जीवन के दादाजी के भाई अकेले ही संभाल रहे थे।
जीवन के दादाजी के भाई ने शादी नहीं की थी, और ये मंदिर और वो मंदिर के पास वो फूलो की दुकान दादाजी के भाई की थी, जो अब जीवन के पापा और दादाजी मिलकर देखते है।
गणपति बाप्पा को साए हुई पांच छह दिन हो चुके थे, सारी तरफ खुशी का माहौल था,आकाश अपने काम सिलसिले में शहरी बाहर था, और आयशा को समझाके गया था जब तक वो ना आए वो कोई छानबीन ना करे।
धीरे धीरे करके जैनी की मॉम की तबियत में सुधार हो रहा था, आएशा की मेहनत रंग आ रही थी, घर में भी गणपति जी की स्थापना हो चुकी थी, सुबह शाम आरती हो रही थी,जैसे की आएशा अपने घर में कावेरी जो के साथ मिलकर किया करती थी।
भला ऐसे माहौल में जैनी की मॉम कैसे ज्यादा दिनों तक बीमार रह सकती थी, फिर अपने बेटी की शादी भी तो करनी थी जल्दी जल्दी में तैयारिया करनी थी। फिर आएशा की फ़िक्र कर कर वो बीमार हो चुकी थी।
एक शाम जब जीवन अपने क्लाइंट के साथ बीच पर गया था, मुंबई का जूहू बीच पर गया था, क्योंकि इस दिन उन्हे घूमने के लिए होटल की ओर से जो टूरिस्ट गाइड रखा हुवा था वो किसी कारण ना आया था, तो आकाश को पर्सनली जाना पड़ा था उनके साथ, क्योंकि उनकी कोई शिकायत ना आए, क्योंकि वो क्लाइंट वीआईपी थे।
तो हर बार उनको क्या चाहिए क्या नहीं इस बात का पर्सनाली खयाल रखना पड़ता था, जब वो बीच पर था वहा वो अकेली ही बैठी आएशा को देखता है, आपको तो पता है ना आएशा को तो आदत है जब भी वो परेशान होती है, ऐसे ही लहरों के पास बैठ जाती है या उन्हे निहारती रहती है, आज भी किनारे पर बैठकर वो यूंही लहरों को महसूस कर पा रही थी।
जैसे वो क्लाइंट एंजॉय करते है,जीवन आएशा के पास चला जाता है, क्या यह से आएशा और जीवन का नया सफ़र शुरु होगा देखते है अगले एपिसोड में
" दो चेहरे प्यार या धोखा।"