वह दिन था और आज का दिन है- शुरुआत कहां से करूं !मैं वहा-पोह में था ।मैं चाहता था हर क्रियाकलाप का एक वीडियो चित्रण करूं। मगर फिर सोचा कि मेरे दोस्त को लगेगा कि यह मेरी जिंदगी की घटनाक्रम को एक व्यापार बनाना चाहता है। यह सोच कर मैं चुप रहा। क्योंकि मेरी चुप्पी से शायद उनको जिस सिलसिले में अचानक आना पड़ा था ।वह सफल हो और मैं ही नहीं सभी सगे संबंधी लोग यही चाहते थे ।कि दिल्ली का अभियान एक सफल अभियान साबित हो ।इसी बात को लक्ष्य करके बाद में थोड़े से पीछे हटने को मैं मजबूर हुआ।
जीवन बहुत कीमती है। जिसे हम जितना भी रुपए देकर खरीद नहीं सकते ।खरीदा नहीं जा सकता ।अगर जिंदगी खरीदा जा सकता तो- इस दुनिया में सिर्फ अमीर ही जी रहे होते । अमीरी गरीबी का जीवन से खूब रिश्ता है मगर मौत मौत का कोई रिश्ता नहीं है ।मौत सिर्फ मौत है ।मौत के पास रूपए पैसे का कोई मोल नहीं है।
मौत का काम है जिंदगी को तबाह करके मौत का हार पहना के अपने साथ ले जाना।
खैर..! मौत का अपना जज्बा है। उसके पास किसी रूपए पैसे का मोल नहीं है ।इंसानी बनाई गई हर चीज उसके लिए कोई मायने नहीं रखता।
अमीरी गरीबी छोटा बड़ा कोई भी उसके लिए मायने नहीं रखता। वह कभी यह नहीं सोचता यह -अमीर है इसे मैं नहीं ले जाऊंगा यह गरीब है इसको मैं ले जाऊंगा। यह बूढ़ा है ।इसको ले जाऊंगा। यह बच्चा इसे छोड़ जाऊंगा ।वह तो सिर्फ ऊपर वाले क्या हुकुम का गुलाम है। जो उसको आदेश होता है। वही वह करता है।
खैर शुरुआती दौर में तो मौत की बात होनी ही नहीं चाहिए थी। यहां मौत की बात तब आनी है। जब आदमी जिंदगी से अलविदा कह देता है ।हार जाता है ।जिंदगी से हार की कहानी है ।मगर इस हार में छुपी है एक मिस्ट्री ।जिसने जिंदगी हारी है। उसे अपने हार का पता था। उसे पता था-" मैं मुझे हारना है" मैं हारूगा मगर जीत का स्वांग रचाता रहा ।इसलिए कि उसे चाहने वालों को तसल्ली हो।हमने कई कोशिश की मगर बचा नहीं पाए। ऐसा वह चाहता था।
ऐसा वह चाहता था। हारने वाला खिलाड़ी चाहता था। कि उन्हें यह महसूस होने न दे कि -हमने कोशिश नहीं कि !चाहने वालों ने उसे जान देकर भी जान बचाने की कोशिश करते रहे। मगर जान की कोई कीमत नहीं ।जाते हुए जान को कोई भी जान नहीं बचा सकता। कोई जान ,कोई दौलत ,कोई पैसा ,कोई इबादत ,कोई दुआ, कोई भी नहीं बचा सकता। जाना है तो जाना है ।मौत आती है ले जाती है। पूछती कुछ भी नहीं । मिस्ट्री की शरुआत करते हैं --