तभी दामाद जी इंटरनेट पर लिवर स्पेशलिस्ट तलाश करने लगे।
तलाश करके उन्होंने बताया कि गंगाराम में एक डॉक्टर है- डॉक्टर सुधीर! जो लिवर ट्रांसप्लांट के माहीर स्पेशलिस्ट है ।फिर एक आद बार जमाई, फिर हमने भी यह डॉक्टर से वीडियो कॉलिंग की।
डॉक्टर ने वीडियो पर ही डोनर को चलने के लिए कहा। और उनके चलने फिरने की स्थिति देखकर, डॉक्टर ने फाइनल किया ,कि यह डोनेशन दे सकती है। चलते फिरते देखा फिर बोला आप गंगाराम में रिफर करके ट्रांसप्लांट के लिए आ सकते हैं।
फिर क्या था आयल इंडिया के लेबर यूनियन से बातें की गई । यूनियन के थ्रू से उन्हें पता चला पहले हम दिल्ली अपोलो में भेजा करते थे। मगर अभी आपोलो और ऑयल इंडिया के बीच में कुछ तार टूटे हुए हैं ।अब आयल इंडिया लिमिटेड के पेशेंट को दिल्ली गंगाराम में भेजा जाता है।
फिर एक बार डॉक्टर सुधीर से वीडियो कॉलिंग हुई। और कॉलिंग के बाद हम गंगाराम में एडमिट होने के लिए 4 टिकट बुक करा कर दिल्ली आ पहुंचे।
विवेक तो फ्री था ही। सानू को छुट्टी की जरूरत थी- सानू ने कई सालों से छुट्टी ली नहीं थी। उसको पापा की बीमारी की बात
कहकर छुट्टी 2 महीने की मिल गई ।और डिग बॉय से हमने दिल्ली की तैयारी कर ली।
मगर दिल्ली पहुंचते-पहुंचते डॉक्टर सुधीर से कांटेक्ट छूट गया। उन्होंने फोन पिकअप नहीं किया। फिर हमें मजबूरन डॉक्टर आफ मेडिसिन से संपर्क करना पड़ा। और गंगाराम में एडमिट हो गए ।आते ही यहां पास में धर्मशाला में कमरा बुक करा लिया। और बच्चों ने मुझे यहां एडमिट कर दिया।
अभी तुम्हारी तबीयत कैसी है? कैसा फील कर रहे हो ?क्या दवाएंतुम पर असर कर रही है?
यहां आने के बाद भी पेट से पानी निकाला है। टेस्ट के लिए ब्लड सैंपल तथा टूल्स पेशाब सब कुछ ले गए हैं ।और देखते हैं क्या डिसीजन होता है।
गोपाल को देखकर मुझे लगता था ।इसे शुगर भी होगा ।तो मैंने पूछ ही लिया -शुगर भी है?
शुगर तो इतना था नहीं। शुगर था भी तो मैं कंट्रोल कर लेता था। मगर यहां पड़े -पड़े शुगर बढ़ गया ।यहां पड़े पड़े डेली इंसुलिन लेना पड़ रहा है। शुगर नॉर्मल करने के लिए।
मुझे अजीब सा लगा रोज इंसुलिन पड़ रहा है तुम्हें!?
हां रोज दो बार इंसुलिन का डाज दिया जा रहा है। शरीर को शुगर से नारमल कराना होगा। तब कहीं जाकर ऑपरेशन की बात सोची जा सकती है। हम ऑपरेशन के लिए आए हैं। सर्जन से अभी बात नहीं हुई है।
क्या..!?
हां सर्जन से किसी तरह का कांटेक्ट नहीं हो पाई है। डिपार्टमेंट आप मेडिसन ही सब कुछ देख रहा है।
मैं जब गोपाल से मिला था। तब अस्पताल में भर्ती हुए दूसरा दिन था।
मैं उससे मुलाकात के लिए गया था। वह बीमार था ।सोया पड़ा था ।मैंने उसे बुलाया। वह हल्की सी नींद से जागा। हल्की सी मुस्कान आंखों में कुछ नमी छलक आई थी ।उसके उसके आंखों में ।
मैं.. मैं रो ही देता-उस की दयनीय स्थिति देखकर। मगर मैंने खुद को संभाला ।
वह मुस्कुराता बोला --देख रहे हो वह थका सा था। जैसे जिंदगी की रेस में घोड़े की तरह दौड़ते दौड़ते थका हुआ। जिंदगी के इस पड़ाव में कुछ ठहरा हुआ था।
जैसे पहाड़ों से जलधारा हल्की सी जलधारा बहते बहते मट मैली हो गई हो। मिट्टी को बहा लेकर कहीं जमा हो गई हो।
हूं..!?
मैं बोला तुमसे मिलने की बहुत इच्छा थी ।मगर ऐसी हालत में मिलोगे! मैं सोच भी नहीं सकता था! तुमने अपने आपको ऐसा क्या कर दिया-
कि तुम ऐसी स्थिति में पहुंच गए?
उसने मेरी ओर हाथ बढ़ाया ।मेरे हाथ को हाथ में लिया वह मुस्काता बोला -मैं सेना !बचूं गा नहीं ।सभी कोशिश कर रहे हैं ।मुझे पता है। मुझे बचाने के लिए। मैं चाहता हूं की वे कोशिश करें। बाद में उनके दिल में मलाल ना हो, कि हमने कोशिश भी नहीं की कोशिश करते तो और कुछ दिन बाकी जिंदा रह जाते।
मैं बेपरवाह सा होता हुआ, उसे तसल्ली देता हुआ बोला-- क्या कहते हो!?
बचोगे भी और कई साल जिंदा भी रहोगे ।मैं तो सोच रहा था -डिगबोई की धरती; डिगबोई के पृष्ठभूमि पर ,एक डॉक्यूमेंट्री बनाऊंगा! दोनों दोस्त मिलकर एक डॉक्यूमेंट्री बनाएंगे! इसके लिए तुम्हारा सहयोग चाहिए मुझे।
मुस्काता बोला -तुम सोचते हो ,मैं यहां से बच कर चला जाऊंगा ?नहीं!
क्या हुआ है तुम्हें !लिवर ?लिवर ट्रांसप्लांट के बाद बिल्कुल ठीक हो जाओगे !देखो !मुझे देखो !तुम से दो चार पांच साल छोटा हूंगा मगर देखो शरीर देखो -मोटा नहीं हूं मैं !मैं मैं बीमार भी नहीं हूं! छींक आने से पहले 50 बार मुझे पूछती है -आऊं या ना आऊं मैं तुम्हें अपनी तरह बनाउंगा बीमार मुक्त तुम अस्पताल से निकलो तो सही।
वह मुस्काया होठों होठों में ।और जैसे मेरे बातों में ही व सकून ढूंढ रहा हो। और मुझ में खुद को ढूंढ रहा हो।
बहुत लंबे समय के बाद ,मिले हो करीब 25 साल का वक्फा हुआ है। इतने वफ्फें में तुम न बदले ।वैसा ही चेहरा। हां !कुछ दुबले हुए हो।
कॉलेज के समय में भी मेरा वेट कितना रहता था ?62-63 किलोग्राम !अभी भी उतना ही है। कमर अभी भी 29- 30 इंच ।कभी भजन को बढ़ने नहीं देता मैं। खाना पीना रहना उठना बैठना सब कुछ परफेक्ट है। मैं खुद को मेंटेन रखता हूं।
जो मुझे देखता बोला दिखता तो है। बाल कुछ हल्के हो गए हैं ।बालों में कुछ हल्की सफेदी आ गई है।
बाल भी नहीं झड़ते चिकनगुनिया हुआ था- और दवा लेते लेते यह शुगर में कन्वर्ट हो गया। शुगर बढ़ने लगा ।फिर शुगर की ऐसी की तैसी। मैं रोज दो-दो घंटे योग में लगा गया ।फिर क्या था। शुगर मेंटेन जो डिसबैलेंस था ठीक हो गया।
अच्छा!
वह बोला- शुगर तो मेरा भी है! मैं कंट्रोल कर लेता था। मगर यहां आकर पडते ही शुगर बढ़ने लगा। दवाओं का डोज इतना हैवी होता है। कि शुगर बहुत बढ़ता जाता है ।मेडिसिन वाले डेली सुबह शाम इंसुलिन लगाते है।
मैं- शुगर तो तुम्हारा ठीक करा दूंगा; मगर यहां से पहले निकलो तो सही!
तुम मेरे साथ रहोगे एक महीना पूरा-मैं बोला। मेरी तरह खाना पीना सोना उठना करना होगा।
वह मुझे बच्चों सी आंखों से देखता हुआ पूछा- क्या खाते हो तुम!?
वही जो तुम खाते हो। मगर समय और तरीका अलग है।
अच्छा..!?
हां !खाने में मैं प्रयोग करता रहता हूं। अपने आप पर ही।
जब जीने के लिए खाना सीख जाओगे -तब सब कुछ ठीक हो जाएगा !खाने के लिए मत जियो !और मस्ती के लिए ना खाओ !खाना है सिर्फ जीने के लिए।
चलो सब ठीक है ।क्या मैं बच जाऊंगा!?
क्यों नहीं? तुम लड़ सकते हो! तुम मे आत्मविश्वास है। समझ हाथ है।आत्म विश्वास ही आदमी को जिंदा रखता है। तो आत्मविश्वास ही ना हो तो आदमी जीते जी भी मर जाता है।
वह जैसे क्रंदन करता हुआ सा बोला-- अंतिम अवस्था में कोई आत्मविश्वास काम नहीं करता! मृत्यु सैया में पड़ा हुआ इंसान किस आत्मा विश्वास से जीत पाएगा ?जब उसके आर्गन काम ही नहीं करेंगे तो!?
मैं पूछा -ट्रांसप्लांट के लिए बात होगई ?
वह बोला-- अभी नहीं! यहां हम आए तो मेडिसिन डिपार्टमेंट से कांटेक्ट हुआ !और एडमिट होना भी उन्हीं के अंडर में पड़ा। फिर अब यह बताएंगे कि क्या करना है। पेट का पानी निकाला गया है ।वेस्ट टेस्ट के लिए भेजा गया है ।और सारे टेस्ट के लिए भी ले गए हैं। जब जब तक मेडिसिन वाला डिक्लेअर करेगा कि क्या करना है ।
अगर आप रेट करना है तो मेडिसिन से सर्जरी में ट्रांसफर करना होगा।
गेटकीपर आकर मुझे बोला - मुलाकात का समय नहीं है साहब !अब बाहर आ जाइए ।मैं उसी गेटकिपर से रिक्वेस्ट कर के अंदर घुसा था।
मुलाकात का समय 4:00 से 6:00 का था। मैं 1:00 बजे पहुंचा था। और मैं बाहर से आया हूं- थोड़ी बस देख लूं ।कहकर रिक्वेस्ट करके घुसा था ।अब वही गेटकिर बोल गया था -कि आप बाहर आ जाओ ।
मैं कुछ देर और रुकना चाहता था ।उससे बातें करना चाहता था। मगर गार्ड के कहने पर बाहर आ गया था। गार्ड बोला था- 4:00 से 6:00 के बीच आ जाइएगा।
मैं -ठीक है कहता हुआ बाहर निकला था।
विवेक को मैंने फोन किया। विवेक मुझसे पहली बार मुलाकात कर रहा था। विवेक गोपाल का बेटा था। मुझे देखते ही पहचान गया था -पूछा आप सेना का का होना?
मैंने पूछा -तुम विवेक हो ना!?
उसने हां में सिर हिलाया। मैंने फिर पूछा --मम्मी और तुम कहां ठहरे हुए हो?
वह मुझसे बोला- चलिए होटल चलते हैं। वहां मुझे धर्मशाला की उस कमरे में ले गया -जहां मम्मी और भतीजी सोनू भी थी !कई लंबे अरसे के बाद हम रूबरू मिले थे !कई साल पहले जब मैं आईसीआईसीआई बैंक में था ।तब फोन से बात हुई थी। दो-तीन बार गोपाल और उसकी पत्नी से फिर तारतम्य टूट गया था। फोन खराब तो नंबर भी खराब।
खैर ।और समय होता तो खुद खुश मिलता। मगर यह नाजुक स्थिति थी ।गोपाल (पराशर) अस्पताल में भर्ती था ।और होटल के धर्मशाला के कमरे में बच्चे ठहरे हुए थे ।अभी गोपाल के कई टेस्ट चल रहे थे ।
भाभी ने बाहर से चाय मंगवाया। दोपहर का समय था ।बाहर से रोटी मगवाई गई थी। तो विवेक और मुझे भाभी ने रोटी निकाल कर दिया ।यहां बनाने का सिस्टम तो था नहीं- इसलिए बाहर से ही मंगवाना पड़ता था।
कई बात वही दोराई गई- जो गोपाल से मेरे साथ हुई थी।
मैं खामोशी से उन बातों को सुनता रहा हूं।
बहती हुई निश्चल नदी अचानक फ्रिज हो गई थी ।उड़ते हुए पंछी आसमान में ही कहीं अटक से गए थे ।आदमी चलते चलते रुक गया था। कायनात ने कुछ ना कुछ करना था। मौत का कारण तो बनाना था।
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