मैं अभी अपने काम से शाहबाद ( बादली दिल्ली )के पास था। अचानक फोन आया भतीजी -दीपांजलि का! जिसे हम सभी घर में प्यार से सानू बुलाते थे। अभी फिलहाल तो बड़ी हो गई है ।मगर हमारे लिए तो वह फिर भी बच्ची है।
उसने फोन करके पूछा-" काका आप कहां हो? ,जल्दी यहां पहुंच सकते हो?"
पहुंच सकते हो!? का अर्थ था- जल्दी पहुंचो। और मुझे पहुंचना ही था। सोनू का फोन सुनकर मेरे दिमाग में भी घंटियां सी बजने लगी थी।
मामला सीरियस होता जा रहा था। शायद इसीलिए सानू फोन कर रही थी। वह भी घंटे भर में पहुंचने की बात कर रही थी।
इसका अर्थ -बादली से मुझे करोल बाग पहुंचने में समय लगना था -डेढ़ घंटे से भी ज्यादा। बादली दिल्ली की पश्चिमी छोर पर था।
मैं चल पड़ा था ।मगर रास्ते में ही सानू का तीन बार फोन आ गया। आधे घंटे फिर 15 मिनट बताता, जब मैं पटेल नगर पहुंचा , तो सानू ने बताया कि -आप मां के पास पहुंचो। मां फ्लेट में अकेली है।
जब मैं ओल्ड राजेंद्र नगर में लिए हुए फ्लैट में पहुंचा ।तो भाभी ने ही दरवाजा खोला। मुझे देखते ही वह फफक पड़ीं।
मैं यूं तो समझता था ।फिर भी पूछा -"क्या हुआ है आपको !क्यों रो रहे हो ?"अभी कुछ हुआ थोड़ी है ।कि आप रोने बैठ जाओ। रोइए मत डॉक्टर ने कहा है - ऊपर वाले पर भरोसा रखो! सब ठीक होगा ।
भाभी बोली -अब ऑपरेशन हुए तीसरे महीने हुए ;डॉक्टर कह रहे हैं कि भगवान पर भरोसा रखो ।सब ठीक होगा, हमारे हाथ में कुछ नहीं है ।जब सब कुछ भगवान के हाथ में छोड़ना था ।तो आप्रेशन क्यों किया, लिवर ट्रांसप्लांट क्यों किया ।पहले एक इंसान की जिंदगी खतरे में थी ।अब ऑपरेट करके दो इंसानों की जिंदगी खतरे में डाला दी। दो इंसानी जिंदगी बीमार हो गई।
भाभी रोते-रोते बोलने लगी थी।
मैं भी भाभी को टालने के लिए आश्वासन देता हुआ बोला- अभी हुआ कुछ नहीं है ,अभी ठीक होने की संभावनाएं है, बहुत है ।
मगर भाभी मेरे कहने पर भी चुप नहीं हुई वह रोती रही ,मैं बोलता रहा।
लिवर ट्रांसप्लांट के पहले जिसका शुगर 400 से पार था ।उसको दो- दो बार इंसुलिन का डोज देकर उस को कंट्रोल करने की कोशिश की गई। हाई पावर दवाएं दी गई ।
तीन तीन वक्त शुगर टेस्ट कराया गया। फिर इंसुलिन इंजेक्ट करते करते किसी तरह उसे कभी- 100 से नीचे किया जाता ।फिर बढ़ जाता। फिर इंसुलिन- खाना खाने से पहले। खाना खाने के बाद। रात को इंसुलिन।
शुगर के मरीज को इसी तरह ऑपरेशन के लिए तैयार किया गया था। क्या इस तरह से, इंसुलिन के बल पर ,शरीर का शुगर कम करके किसी शुगर पेशेंट का कलेजा ट्रांसप्लांट करवाना ,क्या उस पेशेंट को मौत के मुंह पे खड़ा करन के बराबर नहीं था?
शुगर बढ़ता क्यों नहीं!?
पेट में पानी भर रहा था।
8 दिन में 15 लीटर पानी निकाला गया था। पेसेंट अस्पताल में भर्ती होने से पहले अपने पैरों पर चलकर डिगबोई से यहां- यह सोचकर आया ,कि मैं दिल्ली गंगाराम में जाकर ठीक हो जाऊंगा ।
फिर चलता -फिरता दौड़ता ,इंसान बनूंगा। फिर डिगबोई आसाम की गलियों में - में मैं घूमता हुआ, बच्चों के साथ हंसी ठिठोली करता हुआ, नाती पोतों को खिलाता हुआ, सानू की शादी करने की सोच रहा था।
सानू से कह दिया था -अगर तुम्हें कोई लड़का पसंद है, तो बता दो।जात पात कोई मायने नहीं रखता। बस तुम्हारी खुशी हमें चाहिए।
मगर सानू की शादी,
प्रश्नों के घेरे में यह जिंदगी थी
एक तरफ मौत एक तरफ अंधेरी थी।
जवाबों के तलाश में सवालात ले आया था।
और उसके जीवन में सवालातों का पिटारा भर गया था।
सानू एक होनहार बच्ची थी। गाड फियरिंग, माता-पिता की हर बात को सर आंखों पर लेने वाली ।
पापा की खुशी के लिए ,उनकी जिंदगी के लिए- मन्नतें मांगती। कई सजदे किए। प्रसाद चढ़ाया। मंदिर मस्जिद दरगाह गुरुद्वारा सभी जगह उसने पापा के जिंदगी के लिए सजदे किए।
मगर भगवान भी देखता है, गुंजाइश कितनी है ।
जब गंगाराम के कसाईओं को पता था -यह मौत का केस है ।मगर ऑपरेशन करके कलेजे से रुपए की गड्डिया निकलवाना था। निकाल लिया ।
गौहाटी और डिब्रुगढ़ मेडिकल कॉलेज से कहा गया था। कि अब लिवर ट्रांसप्लांट के बगैर इन्हें बचाया नहीं जा सकता ।मगर आसाम के उस डॉक्टर ने यह नहीं सोचा कि वह एक शुगर का पेशेंट है ।
यह थायराइड का भी पेशेंट है।
शुगर उच्चतम स्तर पर था।
थायराइड भी कम न था।
मौत की जरूरत पूरी करने का काम कसाईयों ने किया ।
मौत को बांटने वाले ऑपरेशन के नाम में, छाती चीर कर रुपए की गड्डियां निकालने वाले, कर डाला अपनी मनमानी ।और छाती चीर कर रुपए निकाल लिए।
फिर क्या रह गया था!?
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