धीरे -धीरे मौत के साए गोपाल पर हावी होते गए थे। मौत अपने नाखूनों को तेज कर के लंबे-लंबे राक्षसी दांत बाय गोपाल की ओर बढ़ रही थी।
हम मूकदर्शक बने देखने के अलावा और कुछ भी नहीं कर सकते थे।
डॉक्टरों का जो फोर्स था- वह लगभग नाकाम साबित हो चुका था ।
जब तक इंसान की मौत ना हो जाए- तब तक डॉक्टर को नाकामयाब नहीं बता सकते थे। हम भी आश लिए डॉक्टर की ओर देख रहे थे।
मगर अब गोपाल का आत्म बल टूट चुका था। उसकी आंखों में अब वह लाली नहीं थी। होंटो में मुस्कान नहीं थी। सदा लड़ते रहने की जज्बात भी खत्म से हो गए थे। अब यूं लगने लगा था- वह आने वाली मौत का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था।
आंखों की नमी भी खत्म सी हो गई थी।
पत्थराई हुई आंखों से कभी सानू को देखता कभी भाभी को। जिसने उसे बचाने के लालसा लिए, अपना कलेजा दान किया था ।60% मगर वह कुछ काम नहीं आया। अब और कोई बीमारी की जिक्र कर रहे हैं -यह डॉक्टर लोग।
उसके शरीर के सारी गतिविधियां भी खत्म हो चली थी। वह सिर्फ सिर और हाथ हिला सकता था।कब बिस्तर में गंदगी हो गई। पता भी नहीं चल पा रहा था। डॉक्टर ने चेस्ट से पानी निकालने की प्रक्रिया कम होने की बात बताई थी।
फिर से आईसीयू में ट्रांसफर करना था। परिवार की टेंशन और दुख बढ़ती जा गई थी। भाभी सांसो को देखती। अब सांस लेते वक्त सिर्फ गले का हिस्सा हिलता था।
सीना ऊपर नीचे नहीं हो रहा था।
भाभी बोलती -ठीक से सांस लीजिए ना !
आप कैसे ले रहे हैं ?सिना तो हिल नहीं रहा।
मैंने भी महसूस किया था। सच में अब सीने में सांसो का कोई दबाव नहीं था ।ऑक्सीजन तो हटाया न था ।
वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया फिर रातो रात आईसीयू में ट्रांसफर किया गया।
अब लास्ट स्टेज है -वेंटिलेशन में डालना पड़ेगा।
आईसीयू में भी कुछ काम नहीं हो रहा था। शरीर के सारे आर्गन डैमेज हो चुके थे ।
बचा कुछ न था।
गंगा राम जैसे अस्पताल में मरीज को हर वक्त देखने जाने के लिए मना था ।
मगर डॉक्टरों ने डिक्लेअर किया था -आज रात 10:00 बजे तक उसके बाद वेंटिलेशन में डालना पड़ेगा।
यानी !?
आर्टिफिशियल सांसे ,आर्टिफिशियल हरकतें। वेंटिलेशन से .01 एक परसेंट ही वापस आते हैं।
विवेक ने सानू और हमने फैसला लिया कि वेंटिलेशन में नहीं डाला जाएगा।
हर वक्त परिवार के दिमाग में टेंशन था ।
कब किस वक्त बुरा खबर उनको सुनने को मिलेगा।
आश की जो लौ थी। वह कब की बुझ चुकी थी। अब बस इंतजार था कि कब लौ की बिल्कुल बुझ जाने की खबर मिले!!
राजू!
छोटा भाई ने भी फोन किया था ।वह पहुंच रहा है।
हीरा !गोपाल का जेठान (बीवी का भैया )और एक और बड़े भैया आने वाले थे! फोन आया था।
भाभी बार-बार रो-रोकर फेन्ट होती जा रही थी।
सानू भी रोए रात जा रही थी।
विवेक का होश ठिकाने में नहीं था।
मैं झूठा आश्वासन दे रहा था ।
अभी कुछ हुआ नहीं है ।जिंदगी की लौ अभी भी बाकी है ।आश की किरण अभी भी दिख रही है। आप रो क्यों रहे!?
मगर..!?
यह आश्वासन बस क्षणिक था ।इस आश्वासन से मैं भी अस्वस्त तो नहीं हो सकता था। सबको पता था।
मैं सानू के बाल से सवारता कह राहा था ।
जो कुदरत ने लिख रखा है। उसे कोई टाल नहीं सकता ।उसे होना ही है। मौत कभी किसी का उम्र नहीं पूछती ।
और तुम मेरी ब्रेव बच्ची हो ।यू तुम्हें हारना नहीं है। तुम हार गई तो मम्मी को कौन संभालेगा? तेरा छोटा भाई ..विवेक को कौन संभालेगा? तुम्हें बोल्ड बनना है।
अब कुछ नहीं हो सकता था।।
रात होने से पहले राजू पहुंच गया था।
और उसी रात-हीराबाई भी पहुंच गया था!
हीरा से पहले -बड़े भैया पहुंच गए थे!
डॉक्टर कब का डिक्लेअर कर चुका था ।जो मिलना चाहते हैं -आ जाए! क्योंकि ,अब बस अंतिम घड़ी है।
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