डॉक्टरों की मीटिंग बैठी हुई थी मेडिसिन से सर्जिकल मे ले जाते वक्त डॉक्टरों की खींचातानी के बीच में दश दिन गुजर गए थे। डॉक्टर शुगर कंट्रोल के लिए इंसुलिन चढ़ाते खाना वही देते जो साधारण व्यक्ति को खिलाया जाता।
उसे दिनभर खिलाया जाता। हर दूसरे घंटे खाना डॉक्टरों की मीटिंग। उसका ब्लड सैंपल हर रोज दिन में दो बार निकालते। इंसान की वजन 47 किलोग्राम रह गई थी। जबकि वह हाइट के किसी भी साधरण व्यक्ति का वजन 60 से 63 किलो के बीच रहना चाहिए था।मैं मेडिसिन के बारे में कुछ भी नालेज नहीं रखता था।
मगर- बच्चों को पापा को दवा देते- देते जानकारी हासिल हो गई थी। उन्हें पता यह चला था।
कि जो दवा असम में रिफर करके दिया जाता था। हॉर्समे जो तत्व थे वही यहां भी दी जाती थी।
खैर।
उन्हें तो किसी तरह पापा ठीक ठाक चाहिए था ।सब कुछ टेस्ट और जांच हो चुकी थी। पता चला लीवर खराब होता जा रहा है। डॉक्टरों का एक ग्रुप यही कहता लिवर लास्ट पोजीशन में है।
इसे निकालना जरूरी है।
मगर कुछ डॉक्टरों का कुछ और मानना था। ऑपरेशन सफल करवाने के लिए शुगर कंट्रोल होना जरूरी था।
शुगर कंट्रोल नहीं होगा तो ऑपरेट करना इंसानी जिंदगी से खेलने के बराबर होगा ।वरिष्ठ डॉक्टर -जिस पेशेंट के लिए हम डिस्कस कर रहे हैं !उस शख्सियत का लीवर ट्रांसप्लांट किया गया तो उसकी उम्र क्या रह जाएगी?
हमारे पास आया है तो लिवर ट्रांसप्लांट के लिए ।उसकी पत्नी लीवर डोनेटर है ।
सब कुछ ठीक है। अगर लिवर ट्रांसप्लांट हम करते हैं ।तो भी इंसान 2 महीने से ज्यादा जिंदा नहीं रहेगा।
इस लिवर ट्रांसप्लांट में डॉक्टर !डोनर का भी जीवन खतरे में होगा, सिविल आल्सो इन डेंजर।
लिवर स्पेशलिस्ट- फिर ऑपरेशन का क्या मायने रह जाना है ।अस्पताल की बदनामी। हमारे प्रोफशन की बदनामी ।
सुधीर बोल - पेशेंट आया है सिर्फ हमारे लिए। यहां अपने जीवित रहने की ईरादे से नहीं। हमें हमारे अस्पताल को हमारे जैसे डॉक्टर को संपन्न बनाने आया है ।उसके जेब से तो एक कौड़ी खर्च नहीं होना है ।सारा खर्च आयल इंडिया कर रही है। अगर हम ऑपरेट नहीं करते तब भी मरेगा। ऑपरेशन करते हैं जब भी मरेगा।
ऐसे पेशेंट हमारे लिए फ्रूटफुल होते हैं। एक अच्छा खासा रकम दे जाते हैं।
जो यह समझते हैं -कि डॉक्टर ही भगवान है। वह कुछ दौलत का हिस्सा डॉक्टरों को दे जाते हैं।
सिर्फ डॉक्टरों को नहीं -अस्पताल के बारे में सोचो ।
अस्पताल के कर्मचारियों के बारे में सोचो। अस्पताल के लिए भी हमारी जिम्मेदारी है।
फिर यह अच्छा मौका है।
अस्पताल में ऐसे दो चार परसेंट आते रहेंगे। और हम कौन होते हैं। उसे मना करने वाले।
अस्पताल अस्पताल के स्टाफ सबकी रोजगार जुड़ी हुई है।
डॉक्टर सुधीर -मगर यह गलत होगा! ऑपरेशन के बाद भी इंसान मुश्किल से 2 महीने जिंदा रहेगा ।
वरिष्ठ डॉक्टर- अगर हम पेशेंट के परिवार को यह बता देंगे कि ऑपरेशन के बाद भी मरीज सिर्फ 2 महीने का मेहमान है। तो वो ऑपरेशन से मुकर नहीं जाएंगे। वह यही कहेंगे कि वो ऑपरेशन करवाएंगें। दो-चार महीना और जीवित रखें ।
और क्या भरोसा- ऑपरेशन के बाद भगवान की मर्जी से वह कुछ महिने और जिंदा रहे। यह तो है नहीं कि 2 महीने की डेडलाइन है ।नहीं इंसान के अंदर की आत्मविश्वास भी कुछ चीज होती है ।जो उसे बनाए रखता है।
उसका शरीर का सारा सिस्टम खराब हो चुका है ।फिर आप्रेशन के बाद दवाओं के जोर से उसे मुश्किल से दो या ढाई महीना रखा सकते हैं। और मौत तो सभी की निश्चित है। यह आया है कुछ दे जाने के लिए ।आया है फिर लेने से इनकार क्यों!?
डॉक्टर सुधीर लिवर स्पेशलिस्ट- मगर इतना बड़ा रिस्क !?
आपको कुछ नहीं करना है ।बस ट्रांसप्लांट करना है।
यह जिंदा तो रहने वाला पेशेंट है नहीं!
मगर डोनर का क्या!?
डोनर ,थोड़ी दिन दुखी रहेगी। फिर ठीक होगी। जिंदगी भर के लिए हमारी पेशेंट बनेगी। हम डॉक्टर नहीं व्यापारी है ।सिर्फ प्रोफेशनल है। प्रोफेशन है ।हमारे हाथ में आया हुआ दौलत को लात कम से कम अस्पताल नहीं मार सकता।
जो जाते-जाते दे रहा है -उसे अस्वीकार करके क्या मिलना ।जिंदगी और मौत हमारे हाथ में नहीं है ।
मगर पैसा कमाना पैसे निकलवा ना तो हमारे हाथ में है ना?
किसी जिंदा इंसान का पेट चीर कर पैसे निकालना !
किसी जिंदा इंसान को -और लंबी जिंदगी का लालच देकर ,उसको उसके पल्ले से लाखों निकलवाना।
एक इंजीनियर जो होता है- वह परफेक्ट होता है !
मगर एक डॉक्टर जिंदगी भर प्रैक्टिशनर क्यों होता है ।इसलिए कि डॉक्टर कभी परफेक्ट हो ही नहीं सकता।
डॉक्टर मानव शरीर के ऊपर प्रयोग करता है। दवाओं का प्रयोग और उसे उसके दर्द को क्योर नहीं करता। दबाता है ।सप्रेस करता है। बीमारियां वही की वही रहती है ।बस उससे होने वाले इफेक्ट्स को कम करता है। यही है एक एलोपैथी डॉक्टर का काम।
अगर डॉक्टर विमार को खत्म कर दे तो उसकी आमदनी बंद हो जाती है ।जो इंसान जिंदगी भर के लिए उसका कस्टमर बन सकता था ।उसे खत्म कर देता है। फिर व्यापार कैसा!?
एक एलोपैथी डॉक्टर मरीज को अपना कस्टमर बनाए रखता है। डॉक्टर आदमी को जिंदगी भर बीमार रखता है ।डॉक्टर कभी किसी का भला कर ही नहीं सकता ।
डॉक्टर एक बीमारी को सबप्रेस करके दूसरी बीमारी पैदा करता है। यही नीति है ।यही एलोपैथी की नीति है ।वरना बड़े-बड़े अस्पताल बंद हो जाएं। तो बड़ी बड़ी यूनिवर्सिटी में ताला लग जाएं। डॉक्टर भगवान बन जाएं।
फिर उसे तो मंदिर में बैठना चाहिए। एक डॉक्टर किसी का जीभ देखने का सौ से लेकर उपर कुछ भी ले सकता है। फिर भी उसकी पैसे की भूख खत्म नहीं होती ।
कभी इसी जी करता है।
कभी अल्ट्रासाउंड करवाता है ।
कभी एक्सरे करवाता है ।
सब साधन है फिर भी इंसान ठीक होता नहीं। एक बार आदमी एलोपैथी दवा के चक्कर चक्कर में फंस जाए- तो फिर वह दवाई का गुलाम बन जाता है।
ड्रग एडिक्ट बन जाता है ।
तब तक के लिए जब तक मौत के हवाले ना हो जाए ।जब तक अंतिम सांस ना ले ले ।
अंतिम सांस लेने के बाद भी डॉक्टर छोड़ता कहां है ?
वेंटिलेशन का बहाना बनाकर आर्टिफिशियल सांसे चलवा कर, लाखों का व्यापार करता है। मरीज के रिश्तेदार खिड़की से बाहर दूर से देख कर ही खुश रहते हैं कि सांसे चल रही है। बंदा या बंदी जिंदा है।
नहीं !
मगर वह मर चुका होता है। वेंटीलेशन में जाने के बाद 99 पॉइंट 99 लोग मर जाते हैं।
मात्र .01% लोग जिंदा रहते हैं। फिर भी डॉक्टर के ऊपर इंसान विश्वास करता है। अपनी सबसे कीमती चीज जिंदगी डॉक्टर के हवाले करता है ।मगर डॉक्टर क्या करता है।
प्रयोग ,टेस्ट, मरीज को पैसे कमाने का जरिया। मरीज एक इंसान ना होकर एक बकरा होता है। बकरा! जिसको डॉक्टर कहलाने वाले लोग हलाल करते हैं ।
इस सिलसिले में उसकी जान क्यों ना चली जाए। उन्हें मरीज के जिंदगी से बस इतना लेना होता है -कि कब तक उसमें से जूस निकाला जा सके! उससे पैसा ऐंठा जा सके।
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