पल- पल हर एक घड़ी गोपाल की जिंदगी की डोर ढीली पड़ती जा रही थी। गोपाल की आंखें सफेद सी बढ़ती जा रही थी ।आंखों में होने वाली लाली खत्म थी। जिस्म यूं भी पहले दिन से सुजता हुआ जा रहा था ।वह कभी ठीक हो कि नहीं दिया।
गोपाल मुझसे कहता- भाई! पैर दबादो।
इतनी पैरों को तो मैंने अपने पिता की भी नहीं दवाई होगी।
मगर मैं यह आश से करता रहा। कि शायद पैर दबाने से उसके दर्द में कुछ आराम होता। उसके पैर में उंगलियां धस्ती जाती, सुझा हुआ पाव बिल्कुल काली पढ़ती हुई चमड़ी ,और चमड़ी के लेयर मे भी आता हुआ पतलापन।
गोपाल ने विवेक से बोला- मुझे घर ले चलो!
विवेक -मगर ,बाबा कैसे? आप तो बैठ भी नहीं पा रहे हैं ।अगर बैठ भी पातें, फिर यह लोग आपको बैठने के लायक भी बना दे ,तो चलेंगे ।
गोपाल ने मुझे पता करने को कहा व्हीलचेयर के बारे में ।
पता करने पर व्हीलचेयर 8000 से लेकर 50000 तक का मिल जाता है ।शायद गोपाल ने यह आईडिया लगाया हो व्हीलचेयर में चला जाऊंगा। उसने अपने आप में हिम्मत को बटोरा था। मगर उसकी हिम्मत के मुताबिक अभी बैठ नहीं पा रहा था।
खाना नली से अंदर जा रहा था।
हाथों की नसें गायब सी होने लगी थी ।डॉक्टर ने गले की नशे से ब्लड और गुलकोज को अंदर कर रहा था। सांसे ऑक्सीजन के सहारे चल रहा था।
डॉक्टर कहता- हम ऑक्सीजन तो सिर्फ इसलिए दे रहे हैं। कि आपके अंदर की एम्यूनिटी फीलिंग को मजबूत करें ।आपको ऑक्सीजन की जरूरत नहीं है।
क्या सच में ही ऐसा था?
डॉक्टर अब सिर्फ मरीज और मरीज के रिश्तेदारों को बरगलाने की कोशिश कर रहे थे। अब उन्हें किसी चीज पर ,बाहरी चीज पर उनके ठीक ना होने का इल्जामात थोपना था।
डॉक्टर साहब अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की फिराक में थे ।
ऐसा तब होता है। जब डॉक्टर जब यह समझ लेता है। कि अब इस मरीज को अब भगवान भरोसे के लिए छोड़ना है।
सबसे बड़ा डॉक्टर ऊपर बैठा है। सबसे बड़ा सर्जन ऊपर बैठा है। उससे बड़ा कोई नहीं। जो डॉक्टर खुद को भगवान समझने लगते हैं। वह अपना पल्ला झाड़ते हुए यह कहते हैं। कि अब सब कुछ भगवान भरोसे है। सब कुछ भगवान भरोसे। सब कुछ भगवान के ऊपर छोड़ देते हैं।
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मैं उस वक्त दिल्ली के पहले सिरे पर था।
सोनू ने फोन किया मुझे -काका !आप कहां हो?
सानू का मुझ पर फोन जाना। और मेरी लोकेशन पता करना, ही मेरे दिल को दहलाने के लिए काफी था।
मैंने महसूस किया- सानू के वाक्य स्थिर थे। थोड़ी घबराहट मेरी कम सी हुई। मैं बोला- बोलो बाबा?
सानू बोली- आप कितने देर में यहां पहुंच जाएंगे!?
मैं बोला -एक- सवा घंटे में।
शानू स्थिर स्वर में बोली-ठीक है काका !आप आ जाइए! सानू से बात होते ही मैं बस स्टैंड पर पहुंच चुका था। मैं बस में सवार हुआ ।सानू का फोन फिर आया- काका आप कहां पहुंचे?
मैं समझ चुका था- कुछ इमरजेंसी है! मैं बोला। अभी मैं चल चुका हूं बाबा!
सानू फिर बोली- ठीक है काका! आप आराम से आइए ,घबराइए नहीं। ठीक है!
मैं आराम से बस के सीट पर पसर गया था। आंखें मुदली। गोपाल का चेहरा मेरी आंखों के आगे घूमने लगा। कल ही तो मैं गोपाल से मिला था। उसी के पास था, तीन-चार घंटे।
गोपाल बोला था- सेना !मुझे यहां से ले चलो!
कहां ?कहां जाओगे!?
यह लोग मुझे जान से मार डालेंगे- मुझे जीने नहीं देंगे! मैं जीना चाहता हूं ?उसकी आवाज में थरथराहट सी थी! कंपन थी! डर था। मैं अपने बच्चों के लिए जीना चाहता हूं।
क्या..!?
हां !यह लोग मुझे मारने की फिराक में है।
ऐसा नहीं है। ऐसा क्यों सोच रहे हो।डॉक्टर तो मरीज को बचाने की फिराक में रहते हैं।
वह कातर शब्दों में बोला ।नहीं यह मुझे मार डालेंगे। मुझे बचा लो। यहां से ले चलो। मुझे अपने घर ले चलो। डिगबोई ले चलो।
मैं बोला -कौन मना कर रहा है! प्लीज चलेंगे कुछ उठने बैठने लायक बन जाओगे तो!
वह रोता सा बोला -अब क्या उठ बैठ पाऊंगा मैं!?
मगर यहां से कैसे ले जाएंगे !?डॉ इस हालत में छुट्टी नहीं देगा!
गोपाल कातर शब्दों में बोला -अब मेरे में कुछ नहीं बचा ।अब यह लोग मुझे मारने की फिराक में है। मार डालेंगे मुझे ।ले चलो घर में जाकर आराम से मरूंगा ।तसल्ली से मारूंगा।
मैं उससे ताकत देता हुआ सा बोला- क्या बात कर रहे हो? ब्रैव मैन हार जाओगे तो बच्चों का क्या होगा?
गोपाल बोलो- अब मैं हार गया हूं! मैं जीना चाहता था। मगर डॉक्टर जीने नहीं देना चाहते। वह मुझे मारना चाहते हैं ।कुछ ऐसी ही बातें हो रही थी।
मैं मरना नहीं चाहता। सानू की शादी करवानी है ।विवेक को नौकरी लगवानी है। विवेक की भी शादी करवानी है। फिर आराम से चैन की मौत मरूंगा। चैन से सो जाऊंगा।
मैं बोला पता है- दोनों मिलकर डिगबोई को लेकर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनानी है! एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म !जिसमें हीरो हीरोइन कुछ नहीं होते !बस कैमरामैन बोलता जाता है। कैमरा घूमता रहता है ।घटनाचक्र सूट होता रहता है। या फिर शूटिंग की जाती है। मुझे ले चलो। विवेक से बात करो ।तुम भी साथ चलना।
तभी मेरी तंद्रा भंग हुई ,जब मेरे फोन की घंटी बजी। मैंने जेब से मोबाइल निकाल कर देखा- सानू का फोन था ।बोली- काका! आप मां के पास जाइए, घर ठीक है।
मैं बोला- बेटा! बस ओल्ड राजेंद्र नगर पहुंच गया हूं। अगले 10 मिनट में भाभी के पास पहुंच जाऊंगा ठीक है।
सोनू बोली-मैं और विवेक बाबा के पास है। फ्लैट में मां अकेली है। आप मां के पास ही ठहरिए।
मैं अगले 10 मिनट में सनातन धर्म मंदिर के पास पहुंच गया था। मैं बस से उतर कर आनन फानन में भाभी के पास पहुंचा था। मैंने कुंडी खटकाया तो भाभी ने ही दरवाजा खोला। भाभी का चेहरा मुरझाया हुआ था। दुखी चेहरा देखकर मुझे बिल्कुल किसी अनहोनी की आशंका सी हुई।
भाभी के साथ वाले कमरे में, मैं भी बैठ गया।
गोपाल को गोपाल को लेकर डॉक्टर की कही गई बातों को लेकर हम दोनों में बातें छिड़ने लगी ।
भाभी बोलने लगी- डॉक्टर ने हमें धोखा किया है !डॉक्टर ने ऑपरेशन सही नहीं करा है। अभी तक पेट का पानी भरना कम हुआ नहीं है। डॉक्टर बता रहे हैं- पेट का पानी ही सीने में उभर कर आ रहा है!
मगर पेट का पानी सीने में कैसे आ सकता है!? डॉक्टर हमसे कुछ छुपा रहा है ।अपने असफल ऑपरेशन को छुपाने के लिए- बातें इधर-उधर घुमा रहा है।
या उन्हें पता ही था -मरीज ठीक होने का नहीं! फिर भी उसे अस्पताल में एडमिट करा कर उसका पेट चीर दिया। उसकी बीवी का भी पेट चीरकर लीवर प्रत्यारोपण किया। मगर क्या हासिल हुआ!?
हासिल तो नहीं हुआ। अस्पताल को ।डॉक्टरों को दौलत के भूखे -चोर ;खूनी, आतंकवादी तो सीधे लेते हैं। इस तरीके से किसी इंसान को ठीक होने का झांसा देकर पेट चीर कर उससे पैसा वसूल करना !?
यह डॉक्टरों का ही काम है। कोई ऑब्जेक्शन नहीं ।आदमी ,मरीज, मरीज का परिवार खुशी खुशी देता है।
और मरीज को वे पैदल ही मौत के मुंह में ले जाते हैं। पता है ,या होना ही है फिर भी।
इंसान भी अंधविश्वासी होता है ।कुछ को छोड़कर ,डॉक्टर सभी डॉक्टर ऐसे कदाचित नहीं होते।
कुछ डॉक्टर कुछ बड़े अस्पतालों में डॉक्टर और अस्पताल अथॉरिटी की मिलीभगत में काम होता है ।वरना डॉक्टर बर्खास्त किया जाता है। बड़े अस्पताल से जुड़ कर करोड़ों कमाने की लालच में, लोग में हुए इंसानी जिंदगी को सिर्फ प्रयोग की वस्तु समझकर ऐसा करते हैं।
डॉक्टर जिसको समाज के प्रति सहानुभूति होनी चाहिए ,नहीं होता। वह सिर्फ आने वाले चार्जेस पर नजर ध्यान केंद्रित करते हैं ।
आगे क्या होगा क्या नहीं होगा ।उसे भगवान के ऊपर छोड़ने की बात करते हैं। मासूम जिंदगी से खेलते हैं ।
और दौलत बटोरते हैं।
क्या खाते हैं?
वह लोग सोने की बिस्किट ,चांदी के चावल, हीरे जवाहरात की सब्जियां?
अरे खाना तो वही दो रोटी है ।मिलना इसी धरती में खाक बनकर ही तो है।
न दौलत ले जाएगा न हिरे जवाहरात। सब यहीं धरी की धरी रह जाएगी।
फिर डॉक्टरी जैसे पेसे को ऐसे लोग ऐसे अस्पताल शर्मसार क्यों करते हैं? अस्पताल को कसाईबाड़ा बना देते हैं।
मानवता को ताक पर रख देते हैं!
इनके दिल में किसी के प्रति न दया होता है। ना प्यार ।दौलत.. सिर्फ दौलत ..दौलत के सिवाय यह किसी के सगे नहीं होते।
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