वेंटीलेशन के लिए सभी डॉक्टर जोर देने लगे।
अगर कुछ होता है तो ,हम जिम्मेदार नहीं है। अब अंतिम अवस्था में भी वेंटिलेशन के अंदर डालकर ।पैसा अशूली का घिनौना खेल खेला जाने वाला था।
जिस डॉक्टर ने लिवर ट्रांसप्लांट किया था- उसका फोन स्विच ऑफ आ रहा था। वह आउट ऑफ स्टेशन चला गया था। कुछ और डॉक्टर जो थे वह जूनियर थे।
एक वरिष्ठ डॉक्टर ने मुझे चेतावनी दी थी।
वरिष्ठ डॉक्टर जिस ने मुझे कहा था - भेंटीलेशन बस आर्टिफिशियल सांसों का चलना। मगर यह कोई कोई सलूशन नहीं है। बस वक्त का खेल है। कब खत्म हो जाए।
भाभी-!
रो रो कर बुरा हाल था।
हर दूसरे क्षणों बेहोश हो जा रही थी। क्या कर दिया डॉक्टर सुधीर ने -नहीं बचा पाता तो ,क्यों कर ऐसा ।
मीडिया को बुलाओ ।डॉक्टर को घेरो।
विवेक ..डॉक्टर सुधीर को छोड़ना नहीं। इसे मीडिया के सामने लाओ।
गोपाल!
गोपाल के चेहरे में भाव न थे।
सभी मिले मैं भी मिला।
मुझे उसने अपने पास 5 मिनट से ज्यादा खड़ा होने नहीं दिया।
घड़ी की ओर इशारा किया। मैं समझ गया था।
मेरा उसके पास ठहरना उसे बुरा लग रहा था। शायद ,अब उसके सोचने समझने की शक्ति भी क्षिण हो गई थी ।
उसके दिमाग में बस सिर्फ मौत का इंतजार था। सोचना समझना गुस्सा प्यार कुछ नहीं था उसके पास।
शायद वह कह रहा था वक्त कम है ।
किसी और को भेजो ।
सानू से मैं मिलना चाहता हूं ।
मैं विवेक को भेजने के लिए बाहर निकला। मगर विवेक ने सानू को भेजा ।
सानू कल से मिली न थी।
सानू धड़कते दिल से अंदर गई ।
8:10 मिनट में वह बाहर निकली। फफक- फफक कर रोने लगी।
मैं सानू! सानू! प्लीज..।
मैं -उसे कंधा पकड़ कर समझाने की कोशिश की !फिर सोचा जो गुबार है इसे निकलने दो। सानू को देख मेरी आंखें भर-भरा आ रही थी। मैं समझ नहीं पा रहा था।
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