मौत!?
मौत की ओर हर इंसान सरक रहा है।
हर इंसान का अगला कदम मौत की ओर होता है ।इंसान और मौत का गहरा रिश्ता है। एक न एक दिन उसकी आगोश में समाना ही है।
मगर इंसान को इस धरती पर परमेश्वर ने जीने के लिए भेजा है। कुछ समय का सॉफ्टवेयर उसके नाम से परमेश्वर ने बना दिया है।
बस उसका साथ सॉफ्टवेयर तब तक ठीक चलता है- जब तक हार्डवेयर खराब ना हो! खराबी न बताने लगे।
हार्डवेयर का लेखा-जोखा भी परमेश्वर ही बनाता है। और ठीक होना ना होना भी परमेश्वर के सुपर कंप्यूटर में सेव होता है।
सुपर कंप्यूटर में लिखी गई अवधि में ही इंसान को धरती में रखा जाता है ।फिर पंचातत्व का शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाता है।
इंसान को पता हो चला है, कि शरीर पंचतत्व से बना है। मगर अफसोस! इन पंच तत्वों को मिलाकर इंसान किसी इंसान को बना या बिगाड़ नहीं सकता।
इंसान ना ही पंचतत्व की कंबीनेशन को समझ सकता है। मगर फॉर्म करना इंसानी साइंस के बस में नहीं है ।या गुड तत्व ग्रेट सिक्रेट इंसान खोल कर रख नहीं सकता।
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रात बहुत हो गई थी। मैंने विवेक को एकाध बार कहा भी था। सानू को रात को जल्दी रिलीज कर दिया करो ।8:00 से 9:00 के बीच।
में देखता था अक्सर सानू काअस्पताल से 10:00 के बाद निकलना होता। दिल्ली यो भी लड़कियों के लिए सेफ नहीं है। फिर ओल्ड राजेंद्र नगर ।यूं ही बदनाम है। पैसे वालों के रहने के बावजूद। कुछ गलत लोगों का भी सड़कों में आना जाना रहता था । दिन का वक्त या शाम का वक्त सेब माना जा सकता था। मगर रात के 9:00 बजे के बाद दुकानें बंद हो जाया करते थे।
लोगों का चाहल पहल कम हो जाता फिर लड़कियों के लिए यह सेव न था।
कई बार मैं अपने कमरे में रहता - सोचता यह ठीक नहीं है ।भाभी और विवेक को भी आगाह कर चुका था ।मगर परिस्थिति के हाथों का हर इंसान गुलाम है ।विवेक रात भर सो न पाता। पल-पल डॉक्टरों का आना-जाना नर्सों का आना जाना।
फिर इन्हीं कारणों से पापा के पास रहता मगर रात भर नींद खुलती रहती। 1:00 से 2:00 के बीच सानू और भाभी चली जाती। गोपाल के पास ।फिर विवेक फ्लैट में आकर नित्य क्रिया से फारिग होकर र खाना खाकर सो जाता।
मरीजों के पास सिर्फ एक ही बंदा ठहर सकता था। इसलिए भाभी जल्दी आ जाती ।फिर सानू देर रात तक रुक जाती ।कई बार 11:12 तक भी रुक जाती। मुझे खलता। क्योंकि दिल्ली ही ऐसी जगह है। जहां निर्भया जैसी कांड का दाग लिए हुए बैठा है ।पूरे विश्व में इस घटना को लेकर शर्मसार है।
मेरा दिल सानू के लिए डर से धड़कता था। रहता कई बार मैं भी भूल जाता। कि अब विवेक जाएगा फिर सानू प्लेट में लौट आएगी। सानू सेल्फ डिपेंड थी ।इसलिए भी बिंदास थी। मगर उसका यह बिंदास रवैया वह भी रात के 10:00 बजे के बाद अस्पताल से निकलना मुझे पसंद नहीं था ।
भाभी को इस बारे में बता चुका था। कि विवेक को फ्लैट से जल्दी भेजा करें ।सानू को जल्दी वहां से छोड़कर। मगर शुक्र उस ऊपर वाले की सॉफ्टवेयर की उसने सॉफ्टवेयर में कोई ऐसी अप्रत्याशित घटना को शुमार नहीं किया था। तो पापा की रखवाली करते करते उसके जिंदगी से दो चार हो सकती थी।
उस रात में भाभी के पास ही था। 10:30 से कुछ ज्यादा हुआ जा रहा था ।विवेक निकला तो मैं बोला था। बेटा मैं भी चलता हूं ।तेरे साथ रात ज्यादा हो रही है ।सानू को साथ लेकर मैं लौट आऊंगा ।मैं ऊपर नहीं जाऊंगा। मैं इमरजेंसी गेट में हूं -शानू को बताना।
हम साथ निकले। विवेक अस्पताल के इमरजेंसी गेट से अंदर चला गया था। गेट के अंदर जाते ही लिफ्ट था। और उसी लीफ्ट से वह 13 68 नम्बर कमरे में पहुंचा जाता । पांच मिनट भी नहीं लगता ।
तभी एजेंसी से ट्राली में सफेद कफन में लिपटा ट्रॉली पर एक लाश लाकर एंबुलेंस में लादा गया ।मेरा दिमाग उसे देखकर चकरा सा गया था ।
मुझे गोपाल का ख्याल आया। मुझे पता था। यही होना था। उसका भी। मुझे उसमें जिंदगी तो दिख ही नहीं रही थी।
हे!भगवान ,मैं इमरजेंसी के सीड़ी पर बैठ गया था ।
लाश के रिश्तेदार रो-पीट रहे थे।
लूट लिया ,सारा लूट लिया ।जब बचाना न था तो फिर ऑपरेशन क्यों किया? हार्ट सर्जरी क्यों कि ?
सभी रो धोर रहे थे।कुछ खामोशी से लाश को लाने के लिए फिर रोतों को संभालने में लगे थे।
रोती औरतों में मुझे भाभी नजर आ रही थी। मुझे सानू नजर आ रही थी ।और विवेक का हालत अपने बाल नोच नोच के खराब हुआ जा रहा था ।
उसका बिलखना ।उसका बाल नोचना। मुझसे बर्दाश्त हो नहीं रहा था। मेरी आंखें बर बस बरस रही थी।
एंबुलेंस मे लाश लाद लिया गया था। लाखों खर्च ने के बाद भी ,जिंदगी ना बचने का गम कुछ अधेड़ से देखते लोगों को था।
कुछ लोग एंबुलेंस में ही सवार हो गए ।कुछ लोग कार में ।गाड़ी आगे निकल गई। एंबुलेंस भी आगे निकल गया था। अब गेट के पास सिर्फ सन्नाटा था ।मैं सीढ़ियों में बैठा आशु पोंछ रहा था। तभी मेरा मोबाइल बजा। मैंने मोबाइल पर देखा। सानू का कॉल था। सानू-- काका! कहां हो आप?
मैं- इमरजेंसी के गेट के पास ही खड़ा हूं!
सानू ने उधर से फोन डिस्कनेक्ट कर दिया। आधे से भी कम मिनट में वह मुझे इमरजेंसी के गेट से निकलती दिखी थी। प्यारी सी गुड़िया! प्यारी सी !
उसके चेहरे में मायूसी का जाल बिछा हुआ था?
मैं उठा ,शानू पास आती बोली- चलिए काका!
हम दोनों फ्लैट की ओर चल पड़े। अस्पताल का गेट पार करके आगे बढ़ते सानू आंखें नम करती बोली- बाबा को डॉक्टर ने कैंसर डिक्लेअर किया है!
मैं -क्या-क्या कैंसर?
सानू -हां!
मैं -कब.. कब कहा डॉक्टर ने? मां को पता है?
सानू -विवेक को पता है। मां को अभी पता नहीं है।
मैं -बताना तो पड़ेगा। पता चल भी जाएगा।
मैं सोच में पड़ गया था ।अब यह कैंसर कहां से आ गया।
मैं -डॉक्टर तो बोल रहा था। लिवर में कैंसर है। इसलिए उसे काटकर अलग कर दिया गया था ।और अब शरीर के किस हिस्से में कैंसर बता रहा है!?
सोनू- डॉक्टर बता रहा है कि, छाती में कैंसर फैल गया है।
मैं छाती में कभी गोपाल को फेफड़े में इंफक्शन होने के बाद
ट्यूबरक्लोसिस होने के बाद तो पता था। मगर अब कैंसर हुआ भी छाती में ,छाती के किस आर्गन में?
सोनू -अभी डिक्लेअर नहीं है! वायप्सी के लिए डॉक्टर ने कहा है ।फिर पता चल जाएगी वास्तव में क्या मामला है!?
मैं सन्न रह गया था!
मुझे समझ में नहीं आ रहा था। क्या कहूं या ना कहूं।
सानू खामोश थी ।इस बात को लेकर वह ज्यादा डिस्टर्ब हो गई थी।
मेरे भी मन मेरा भी मन विचलित हो चला था। सानू इस बात को लेकर कुछ ज्यादा ही डिस्टर्ब थी ।
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