सानू अपने पापा की कैंसर होने की बात को लेकर ज्यादा डिक्लेअर डिस्टर्ब हो गई थी।
मैं महसूस कर रहा था ।उसकी आवाज में थर्रा हट थी। जब वह मुझसे इस बारे में बात कर रही थी।
मैंने पूछा- किस स्टेज में है?
सोनू - अभी कुछ भी क्लियर नहीं है। वायोप्सी के बाद वह सारा कुछ बता देंगे।
इतने दिन से लीवर का इलाज चल रहा था। लिवर ट्रांसप्लांट हो रहा था ।तब इनको पता नहीं चल पाया था !कि मरीज को कैंसर भी है?
कैंसर एक ऐसी बीमारी है। जो अक्सर पहले पता चल जाए तो उसका इलाज हो सकता है। लेकिन लास्ट स्टेज में जाकर इसका कोई इलाज नहीं हो सकता ।मरीज को जल्द से जल्द मरना ही होता है।
मैं सोच में पड़ गया था। मेरे दिमाग में कुछ उमड-घुमड़ रहे थे ।मेरे एक अंसा अंकल जी थे- जिनको गले का कैंसर हुआ था! वह एक बाबा के पास पहुंचे थे । भंडोसी राजस्थान अलवर रोड पर -तिजारा पार करने के बाद।
जो आयुर्वेदिक दवा देते थे। कैंसर के इलाज के लिए। किसी भी शरीर के हिस्से में कैंसर हो।
फ्री ऑफ कॉस्ट। बस जाने आने का खर्चा जो लगता था। वह जो भी दवा कुछ भी देते थे। उसमें मिक्स करने के लिए कुछ आयुर्वेदिक औषधियां बताते थे ।जिसे खरीदने का चार्ज लगता था।
सानू- क्या मरीज को तो ले जाने की जरूरत नहीं है?
मैं- नहीं सारा रिपोर्ट मेरे मोबाइल में व्हाट्सएप कर देना। और उसी को दिखाकर मैं बात कर लूंगा।
सानू- क्या खर्चा लेता है वह?
मैं- दवा फ्री होता है ।जो दवा देता है। उसके साथ मिक्स करने के लिए औषधियां जो लेनी पड़ती है। उसी की पैसे लगते हैं। और आने जाने का जो खर्च लगेगा वही।
सानू- फिर भी?
मैं -यही पंन्द्रह सोलह सौ लगेगा शायद।
घबराओ मत। सब ठीक-ठाक होगा ।
मेरे अंकल जी थे- दिल्ली के। उन्ही की दवा लेकर ठीक-ठाक है। बिंदास रह रहे हैं ।उनसे एड्रेस कल पूछ लूंगा। परसों -नर्सों यहीं से निकल जाऊंगा !सुबह सुबह।
सानू चिंतित थी। मायूस थी। मगर इतनी घबराई हुई नहीं थी। उसके अंदर एक प्रकार का कॉन्फिडेंस था।
डॉक्टरों ने इतने दिन तक तो लूट खसोट कर ली। अब जाकर बता रहा है कि कैंसर है। वह भी चेस्ट में।
प्लेट में पहुंचने से पहले सोनू ने खुद को संभाल लिया था। बातों को छुपाने के लिए। बोली थी -पापा को पता नहीं होना चाहिए कि डॉक्टर ने उन्हें कैंसर बताया है।
सानू बोली थी- हमें मां को भी अभी नहीं बताना है! मां को भी धक्का लगेगा ।लिवर ट्रांसप्लांट के बाद अपनी कमियों को छुपाने के लिए। कैंसर की बात बता रहे हैं।
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