थूक पर थूक।
आदमी थुक पे थुक ता रहे , 4 मिनट में खा कार से खाकर निकलता रह। तो स्वस्थ हो कैसे पाएगा। खाना पचाने के लिए जो इंसान की जरूरत है ।वह तो निकला जा रहा है ।हर वक्त ।आदमी खाना कैसे पचा आएगा ।कैसे? हर दूसरे मिनट में ककार के साथ थूक।
मैं गोपाल को सलाह दे रहा था-- थोड़ा कोशिश करो कि थुको कम ।फिर खाना भी पचेगा। वरना खाना पचेगा नहीं ।स्वास्थ्य सुधरेगा नहीं।
डॉक्टरों ने चेस्ट का एक्सरे करवाया ।दो दो बार ।
कुछ नहीं है !बस थोड़ा सा यह धूंध देख रही है। यह कफ है यह निकल जाए तो बस ठीक हो जाएगा।
गोपाल आत्मविश्वास के साथ पूछता- मैं ठीक हो जाऊंगा ना डॉक्टर?
अब हिलने ढूंढने लग गया था ।दबाई के जोर से ।बाजू पकड़ के 2 लोग उठाते तो खड़ा हो जाता ।
फिर चलाने लगते ।
घरेलू माहौल में रहूंगा तो ठीक हो जाऊंगा ।मुझे रिलीफ दे दो ।
डॉक्टरों ने सलाह किया -और गोपाल को रिलीव दे दी !
हर दूसरे दिन चेकअप करवाना होगा। पेशाब की नली लगा लगी थी ।और कुछ नहीं था ।हर रोज दो बार ब्लड शुगर टेस्ट करवाना था। ब्लड शुगर फिर पेशाब कितना आया उसे बोतल में भर भर डेली लैब में भेजना था।
डॉक्टर को अपडेट बताना था।
अब गोपाल राजेंद्र नगर के फ्लैट में आ गया था। उसे घरेलू माहौल मिलने लगा था। हम उसे खड़ा करवाते ।बाजू पकड़ के 20 -30 कदम चलाने लगे।
एक दिन भाभी ने कहा -बाबू देसी चिकन लेते आना।
मैं सोच में पड़ गया था। कि देसी चिकन लाने के लिए बहुत दूर जाना पड़ता।
जनकपुरी में देसी चिकन तो मिलने से रहा। फिर उस वक्त मैं गाजीपुर में पहुंचा।
देसी चिकन मिलेगा ?
गाजीपुर मुर्गी मंडी ,करोल बाग से गाजीपुर।
मंडी देसी चिकन के चक्कर में। मगर अफसोस देसी चिकन न था।
मगर यह क्या है?
यह मुर्गा है ।देसी भी नहीं है विदेशी भी नहीं है। बीच का है बीच का है ।
क्या मतलब ?
देसी के बदले आप इसे ले जा सकते हैं।
अच्छा !टेस्ट ?
सेमसेम ।
चलो मुझे चिकन देसी लाने के लिए गोपाल ने पैसे दे रखे थे।
कहा सब कुछ तैयार कर देना किचन में कुर्सी लगा देना। मैं बनाकर खिलाऊंगा।
और सच में बनाने लग गया।
गोपाल को बहुत शौक था। खाने-पीने का। स्पेशल बनाने का। खुद बनाकर लोगों को खिलाने का।
सच में हम खुश थे। अब बंदा किचन तक आने की हिम्मत कर सकता है।
मतलब रिकवरी धीरे-धीरे हो रहा है ।
खुद के लिए बायल दो पीस कर ली ।हमारे लिए फ्राईड बनाया ।
खास मसाला ना पडा था। मगर मुझे अच्छा लगा। हम सब ने इंजॉय किया।
कई दिनों के बाद मैंने भाभी के चेहरे में हल्की सी मुश्कान देखी ।
भाभी ने कहा- ऐसा ही है! घर में भी ऐसा ही करते हैं ।कुछ भी स्पेशल बनाना हो ।तो मुझे हटा कर खुद लग जाते हैं ।
ओल्ड राजेंद्र नगर में टू रूम सेट किराए पर ले रखा था ।मैं रात को वहीं ठहर जाता। ऐसे भी दिल्ली में मैं अकेला रह रहा था। जनकपुरी में मुझे खुद ही बना कर खाना पड़ता था। यहां मुझे बना बनाया गोपाल के हाथ के मिल रहा था।
बच्चे भी खुश थे। की 8 तारीख तक का टू रूम सेट का करार था ।अगर ठीक-ठाक रहा तो अगले हफ्ते फ्लाइट बुक कर के चले चलेंगे।
मैं भी खुश था ।कि अब जिंदगी मूल धारा पर बहने लगेगी।
मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था।
क्योंकि जो भी थोड़ा बहुत जोर था। उसे ब्लड चढ़ा चढ़ाया गया था। फिर दवाओं का दौर जारी किया गया था। जिससे कि उसके इम्यून सिस्टम को बूस्टप्प मिले।
अचानक दूसरे दिन से फिर गोपाल के पेट में दर्द शुरू होना जारी हो गया था।
मैं सोच रहा था- ज्यादा खाने की वजह से ऐसा हो रहा था ।
मगर बच्चों ने बताया था ।खाना बहुत कम खा पा रहे थे। इसीलिए रिकवरी के लिए बार-बार खाना देना जरूरी था।
अस्पताल के न्यूट्रिशन ने भी हर दो घंटे बाद प्रोटीन डाइट ,फ्रूट, मिल्क आदि डाइट के लिए बोला था। और न्यूट्रिशन के मुताबिक इन खानों से उसके शरीर में ताकत आना चाहिए था।
मगर!
फिर से पेट दर्द हो रहा था ।
अचानक सुबह के समय अस्पताल में फिर से एडमिट करवाना था।
तब तक फिर से पेट में पानी भरने लग गया था।
लिवर स्पेशलिस्ट ने कहा था- कि लिवर ट्रांसप्लांट के बाद पेट में पानी भरने की समस्या से निजात मिल जाएगी ।मगर फिर से पेट में पानी भरना शुरू हो गया था ।
फिर चार लीटर पानी निकाला गया था। या पानी बारंबार क्यों भर रही थी। वजह क्या था?
जमाई राजा के डिगबोई से दिल्ली आने की खबर मिली थी ।परिवार खुश थे।
कि अंजलि के पति बड़े बेटी के पति दिल्ली पहुंच रहे थे ।फोन किया था 12:00 बजे की फ्लाइट थी। 4:00 बजे तक राजेंद्रनगर उनका पहुंच जाना था ।पहुंच भी गए थे। डॉक्टर से डिस्कस करना था।
जमाई साहब एक अफसर थे। उनको डॉक्टर से बातें करने की तमीज थी। भाभी ने बताया मगर उनका आना मात्रा आना ही रह गया था।
उनका कंपनी की तरफ से फरीदाबाद में पांच दिन का सेमिनार था। सुबह 8:00 बजे से लेकर शाम 8:00 बजे तक लगातार पांच दिन का सेमिनार ।फिर पांच दिन के बाद वापसी का भी टिकट था।
मैं ही था जो इस वक्त दिल्ली में फ्री था।
फ्री का मतलब फ्री नहीं था ।मेरी अपनी इच्छा से की जाने वाला काम था ।मैं इस वक्त पॉकेट नोबेल में अपनी नावेल डेडली वुमन के लिए लिख रहा था। मैं जिस किसी भी समय उनके पास पहुंच जाता। अभी मेरा भी घर से आए ज्यादा दिन न गुजरे थे। कि मुझे टेंशन होने लगा था ।मैं उस वक्त बिल्कुल पैन्नीलेश हुआ जा रहा था।
मेरे पास अभी कोई जमा पूंजी नहीं थी ।
मगर बात जमाई साहब की थी ।वह आए तो खुशी की एक हल्की लहर सब में दौड़ गई थी। उनका आना ऑपरेशन के तुरंत बाद भी हुआ था। यह दूसरी बार थी। वह यहां आए थे। गोपाल के एडमिट होने के बाद।
मेरी कोई गिनती नहीं थी !
मैं यूं भी गिनती के आदमी में नहीं था।
मुझे समझ थी। मगर मेरा दिल थोड़ा सेंटीमेंटल था। जिसका जेब फटा होता है। जिगर बड़ा होता है ।यही हाल था।
मेरा आना ना आना सिर्फ गोपाल के लिए महत्वपूर्ण था ।औरों के लिए नहीं ।सानू विवेक और भाभी के लिए।
और मैं खुद को कभी समझ नहीं पाता था। जब रुक ना होता तो भी नहीं रुकता। और कभी न रुकने की जरूरत होती तो भी रुक जाता।
गोपाल के पेट के दर्द बढ़ जाने के कारण रात को ही ले जाकर उसको एडमिट कर लिया था। अब लीवर का सही ट्रांसप्लांट हो गया था। तो फिर पेट दर्द क्यों हो रही थी ।पानी फिर क्यों जमा हो रहा था ।
उस दिन रात को फ्लैट में ठहर गया था ।सानू और भाभी के साथ ।दूसरे दिन मैंने सोच लिया था ।कि आज दिन भर गोपाल के साथ रह जाएगा ।मैंने विवेक को भेज दिया था ।विवेक 11:00 बजे के करीब प्लेट में लौट गया था। मैं गोपाल के पास रह गया था।
मेरे गोपाल के पास ठहरने पर गोपाल के चेहरे में मुझे अजीब से भाव नजर आ गए थे। मैं नहीं चाहता कि ऐसे भाव को मैं वर्णन करूं। शायद.. यह मेरी गलतफहमी हो।
मैं अक्सर दूसरों के बारे में सोचता ।अपने बारे में नहीं।यही मेरी जिंदगी की बहुत बड़ी कमजोरी रही।
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