गोपाल की जिद तेज हो गई थी।
मुझे जाना है -घर जाना है!
डॉक्टर सुधीर- मगर अभी आप ठीक हुए नहीं है ;जनाब !बस 15 दिन बाद हम आपको चलने लायक कर देंगे ,फिर आप घर चले जाना।
गोपाल- घर का मतलब यहां जहां बच्चे ठहरे हैं। वहां भेज दो ।वही रहूंगा। कुछ दिन बच्चों के साथ रहूंगा ।अगर कुछ तकलीफ हो जाती है तो वापस आ लूंगा।
डॉक्टर सुधीर ने समझाया -अभी 15 दिन और रुकना पड़ेगा आपको, 15 दिन बाद हम आपको चलते हुए विदा करेंगे।
मगर गोपाल को अपने रियास में जाना था तो जाना ही था। गोपाल मुझे बताता ,मुझे मालूम है- अब मैं घर में रहूंगा तो ,जल्दी रिकवरी होगी! वह आजादी की हवा लेना चाहता था। मगर अब उसे आजादी की हवा मयस्सर होने वाली न थी।
फिर भी गोपाल की कोशिश जारी थी।
गोपाल के जिद करने पर डॉक्टर ने विवेक को बोला, कि तुम्हारे पापा को ले जाओ। डेली रिपोर्ट तो भेजते रहना पड़ेगा। साथ में हर दूसरे दिन चेकअप के लिए आना पड़ेगा। ऑपरेशन और बिल 3000000 से थोड़ा ऊपर का वह बना चुके थे।
मोटा आसामी था।उसके जीत को मानना डॉक्टरों की मजबूरी थी।
मगर डॉक्टरों को पता था। यह मरीज फिर एडमिट होगा। डेली बढ़ता शुगर लेवल, और पेट में भरता हुआ पानी ।
हम परेशान थे ।कि पानी क्यों भरा जाता है। ऑपरेशन के बाद पेट में पानी ना भरने की बात लिवर स्पेशलिस्ट ने बताया था ।मगर उसकी बातें सही ना हो रही थी
मगर अस्पताल से मरीज के कहने पर रिलीज किया गया था। अस्पताल से घर में राजेंद्र नगर किराए के मकान पर, विवेक और बच्चों ने ले आए थे ।उस वक्त मैं भी उपस्थित था।
गोपाल अपने फ्लैट में आकर खुश तो था ।मगर अभी वह क्योर हुआ न था। क्योंकि की क्योर होना तो शायद उस के नसीब में अब लिखा न था ।क्यों यही बात गोपाल को भी पता शायद चलसा गया था। इसलिए वह ज्यादा से ज्यादा वक्त बच्चों के साथ बिताना चाहता था।
मगर अक्सर परिवार में गिले शिकवे होते रहते हैं। मियां बीवी में खुशी और तकरार होता रहता है ।जहां तकरार नहीं होता वहां प्यार भी होता है ।मजा नहीं होता। ऐसा ही था।
उसकी बीवी को गिला रहाता था ।कि जिंदगी में मैंने इतनी परेशानियां झेली ।उसकी टॉर्चर सही। मगर यह इंसान अब भी जबकि मैंने अपना पेट फाड़कर कलेजा तक डोनेट कर दिया फिर भी वही तकरार वही.. पुराने अफसाने।
जिंदगी झंड बना कर रख दी थी।
रोज दारू और दारू । रात भर सेवा करवाना। रात भर पैर दबावाना ।एक पल भी झपकी लेने देता नहीं था यह इंसान।
फिर भी मैंने इस इंसान के लिए अपना कलेजा डोनेट करने की ठानी। कुछ अच्छा हो जाए। अस्पताल से आने के बाद दारू छूट जाए। जिंदगी फिर से मुख्यधारा में बहने लग जाए।
मगर जिंदगी को मौका मिल गया था- शिकायत का ।मौत को मौका मिल गया था। रोशनदान में खड़े होकर मुस्कुराने का।
बस उस एक दिन की बात है ।
रात के करीब 8:30 हो रहे थे ।कई दिनों से मेरी दिनचर्या बिगड़ सी गई थी।
मेरा 4:30 बजे उठना फिर योगा करना सब कुछ खत्म हो गया था।
शाम का वक्त था 8:30 बजने वाले थे। मैं निकलने लगा तो भाभी बोली - खाना खाते जाइएगा !
मैं बोला- लेट हो जाएगी ;मैं निकल रहा हूं!
भाभी का चेहरा उतर सा गया, मगर आप बिन खाए निकल गए तो यह हमारा जीना हराम कर देंगे। रात भर टेंटें करते रहेंगे। बोलेंगे -तुम लोग उसे खाना खिला कर नहीं भेज सकते थे। भूखा चला गया।
फिर मजबूरन मुझे उनके पास खाना खाने के लिए रुकना पड़ा। खाना खाकर निकलते निकलते करीब 9:45 का समय हो गया था।
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