अब भाभी को भी बताना जरूरी था डॉक्टर कैंसर का इफेक्ट बता रहे हैं ।और बताया गया था।
पहले लिवर में कैंसर बताकर ट्रांसप्लांट करवाया अब चेस्ट में ही कैंसर बता रहे हैं। भाभी का यह कह भी रो-रोकर हाल बुरा था। मैं और बच्चे समझा रहे थे। क्यों रो रही है।
मम्मी कुछ हुआ नहीं है ।अभी तो आश बची है। अभी रोके क्यों अपनी हालत पतली किए जा रही हो?
डॉक्टर सुधीर ने लिवर ट्रांसप्लांट सही नहीं किया। इस दाग को मिटाने के लिए अब यह लोग- कैंसर का बहाना कर रहे हैं ।
बस संही था। बात पते की थी।
यह डॉक्टर इतने दिनों तक कर क्या रहे थे? 3 महीने हो गए थे ।इतने दिनों तक उनके ऑब्जरवेशन में था गोपाल। फिर भी उन्हें पता नहीं चल पाया था ?कि मामला क्या है?
भाभी और बच्चे पढ़े लिखे तो थे। मगर डॉक्टर के आगे सभी अनपढ़ हो जाते हैं। सारी पढ़ाई लिखाई धरी की धरी रह जाती है।
क्या कि इस वक्त परिवार का किसी भी सदस्य की जिंदगी का सवाल सामने आ खड़ा होता है ।
अपने परिवार के सदस्य को बचाने के लिए आदमी हर वह काम करता जाता है। जो डॉक्टर कहता है। फिर भी जब जिंदगी नहीं बच पाती।
लाखों खर्च ने के बाद भी जिंदगी नहीं बच पाती तब क्या कहें ?डॉक्टर भगवान तो नहीं है, ना! ऊपर बैठा सुपर नेचुरल पावर जो है उसी के हाथ में है,, वही कर्ताधर्ता है।
उसकी इच्छा के बगैर कोई पत्ता भी नहीं हिल पाता है। क्या !नहीं ,वही है गॉडफादर वही है। सुपर नेचुरल पावर ।वही है मास्टरमाइंड। उसी के नेटवर्क से हम जुड़े हैं ।उसी के नेटवर्क में है हम ।उससे जुदा हो ही नहीं सकते।
उसका सेटेलाइट सभी पर पैनी नजर रख रहा है ।उसी ने इस धरती में समय देकर भेजा है। बस समय खत्म होते ही ऊपर खींच लेता है। जिस जिस्म में उसने नेटवर्क कार्यन्वयन कर रखा है। पूरा होते ही खत्म ।कोई रिचार्ज नहीं.. कोई रिचार्ज नहीं ।नेटवर्क खत्म तो कोई रिचार्ज नहीं कर सकता।
डॉक्टरों को मेडिकल प्रोफेशनल को ,हम रिचार्ज करने वाले एजेंट समझकर उन पर विश्वास करते हैं ।मगर ऐसा नहीं है ।रिचार्ज खत्म वैलिडिटी खत्म। अब यह शरीर आदमी चाहता है कि इस शरीर को जल्द से जल्द खत्म करना। जिस शरीर को बचाने के लिए इतना सारा जतन किया -सिम कार्ड के निकलते उस शरीर को आदमी मिट्टी में मिलाने के लिए, उसी के परिवार वाले उसे शमशान ले जाते हैं।
इंसान !इंसान क्या है!?
कुछ भी तो नहीं है। सिर्फ मिट्टी के खिलौने है।
माटी का पुतला है। कनेक्शन खत्म, पुतला मृत।
यह तेरा -यह मेरा ,किस लिए ?
जाना तो सभी को श्मशान के रास्ते से ।श्मशान नहीं भी गए ,तो मिट्टी में यह तो मिलना है ।
फिर घमंड क्यों!?
कुछ घमंड गोपाल में भी था।
कुछ प्रतिकार गोपाल में भी था ।कुछ हिंसा गोपाल में भी था। यहां बयान करूं ना करो तो बेहतर रहेगा ।
सालों से बिछड़ा मेरा दोस्त -शायद अंतिम अवस्था में जाते-जाते ऐसा हुआ था ।लोग तो अंतिम अवस्था में जाते-जाते भगवान के करीब हो जाते हैं ।फिर उसके बातों में प्रतिवाद था। मैंने महसूस किया था। इसलिए मैं यहां लिख रहा हूं ।किस बात से मुझे इस बात का एहसास हुआ इस बात को भी मैं बयां ना करूं तो अच्छा ही रहेगा।
भाभी का रोना रुकना रहा था ।जो मुझसे उसका रोना सहाना जा रहा था।
मैंने भाभी से कहा था -अलवर राजस्थान में दिल्ली से तिजारा जाने वाले रास्ते में, एक जगह पड़ता है ।जहां बाबा कमलनाथ आश्रम है ।जहां कैंसर की दवा देते हैं ।शायद उस दवा से वह ठीक हो जाए!?
क्योंकि अक्सर आदमी हर वह कोशिश करना चाहता है। जिससे मरीज की जान बच जाए। जिससे अपने रिश्तेदार की जान बची रहे।
भाभी ने पूछा था- क्या खर्चा लगेगा?
मैं- वही आने जाने में जो खर्चा लगेगा! दवा तो फ्री में होगा ।उसके साथ मिक्स करने के लिए जो सामान मिलेगा ।उसका शायद पैसे लेंगे। शायद डेढ़ हजार के करीब ।वह जगह कहां पर है ।मुझे एक अंकल जी हैं उनसे पूछना पड़ेगा।
भाभी सुबकते हुए बोली -खर्चे का फिक्र मत करो, अंकल जी से पूछ लो ।कहां कैसे जाना होगा। और दवा लेते आओ। शायद उस दवा से कुछ असर पडे..और ठीक हों।
मैंने लेटे हुए गोपाल का वीडियो बनाया था। विवेक ने मुझे रिपोर्ट की कॉपी व्हाट्सएप कर दिया था। अगले ही दिन मैं अंकल से एड्रेस लेकर चल पड़ा था।
तिजारा पार करने के बाद एक कस्बा सा पड़ता था। भड़ौसी। अंकल जी ने मुझे बताया था ।कि दिल्ली धौला कुआं से अलवर जाने वाले रास्ते में जाना है। और कंडक्टर को बता देना कि कैंसर की दवा लेने जाना है ।उसे पता होगा और वह सही जगह पर उतार देगा।
और सच में कंडक्टर को पता था। मैं सुबह नाश्ता किए बगैर चल पड़ा था ।यह सोच दिल में लिए कि, यहां बाबा कमलनाथ आश्रम में लोगों का कैंसर से राहत मिलता है ।और शायद गोपाल को भी राहत मिलेगी।
कमलनाथ आश्रम में जो पंडित जी थी, मैंने उनसे मरीज की कंडीशन बयान किया था। उन्होंने कहा था -कि अगर दवाखाने में सक्षम है तो 30 दिन के अंदर उठकर चलने लगेगा मरीज।
मगर अफसोस!
एक दिन भी ऐसा ना गुजरा ।की दवा पूरा खिलाया हो ।मगर फिर भी सानू और विवेक लगे रहे हैं
सानू ने मुझे दो-तीन बार कहा बाबा बहुत कष्ट भोग रहे हैं ।उस समय सानू का कहने का अर्थ मैं नहीं समझ पाया। मगर अभी समझ रहा हूं।
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