विवेक फ्लैट में चला गया था।
मैं गोपाल के पास घर गया था। गोपाल की स्थिति अभी भी ठीक नहीं थी।हर मिनट में उसकी खकार निकलती और थुक निकलता ।
मैंने पेट के बारे में पूछा बताया- हल्का सा दर्द है !अभी दर्द काम है।
और शुगर!?
गोपाल ने बताया शुगर लेटा लेटा बढ़ जाता है।
मैंने उससे पूछा था -क्या तुम चियर पर बैठना चाहोगे?
उसने मुझे बोला- मैं खुद तो उठ नहीं पाऊंगा तुम्हें उठाना ही पड़ेगा !उठाकर बिठा सकते हो तो बिठा दो।
मैंने कहा तुम्हें भी खुद कोशिश करनी होगी। इस तरह कैसे तुम कैसे ठीक हो पाओगे?
हो मुझे देख कर मुस्कुराया ,बोला अब ठीक होना किसे है ?मैं ठीक नहीं हो सकता।
तुम्हारे बच्चे सभी ,भाभी सभी कोशिश कर रहे हैं। कि तुम ठीक हो जाओ ।और तुम हो कि हार मान कर बैठ गये।
कहते वक्त उसकी आंखों में आशु थे।
दर्द भरी जिंदगी ।दर्द भरा ऑपरेशन सब कुछ सहा नहीं जाता ।सेना साहा नहीं जाता। मैं सोचता हूं कि बस मुझे अब चला जाना चाहिए।
कुछ दर्द तो मेरी आंखों में भी छलक आए थे। आंसू बनके ।मगर फिर मैंने मुंह को दूसरी और मोड़कर आंसुओं को पी गया ।उसे देखा बोला- हार गए तुम!?
फिर हल्की सी मुस्कान होटो पे लाते हुए बोला- हारा तो नहीं। तुम लोग जो साथ में हो।
तुम्हारी वजह से भाभी ने अपना कलेजा निकाल कर दिया है।
इसलिए कि तुम इस तरीके से हार जाओ!?
वह बोला -मुझे लगता है कि ए बेकार में मेरे पीछे पड़े हैं। यह शरीर और साथ नहीं देने वाला।
जीना मरना तुम्हारे हाथ में थोड़ी है। ऊपर वाले के हाथ में है। तुम चाह कर भी मर नहीं सकते। तुम चाह कर भी जी नहीं सकते!
सब खेल ऊपर वाले के हाथ में है। रचा रचाया खेल ।हम तो बस उसके कठपुतली तो है। जिधर नचायगा उधर नाच लेंगे ।जब बुलाएगा चल देंगे।
मैं हंसी करता हुआ बोला -लगता है अब तुम दार्शनिक बन गए हो।
मैं बोला चलो तुम कोशिश करो अपने आप उठने की।
उसने कोशिश की। बिस्तर पर उठ कर बैठ गया ।
मैं बोला -बहुत हिम्मत है तुम में। अब मरने की बात करता हो।
वह बोला हिम्मत तो है मगर हिम्मत के मुताबिक शरीर में ताकत तो नहीं है ना ।शरीर में जान नहीं रह गई देखो शरीर में चर्बी नहीं है। बस हड्डी ही हड्डी है ।चमड़े के नीचे मांग ही नहीं नहीं नहीं है।
मैं बोला कोई बात नहीं वह भी आ जाएगा। चलो अभी मैं तुम्हें उठाके चियर पर बिठता हूं। पैर नीचे कर लो।मैंने उससे पैर नीचे करवाया।
उसी वक्त एक नर्स खूबसूरत सी नर्स अंदर आ गई ।गोपाल को देख कर मुस्कुराती । बोली-- कैसे हो आप!?
मैं बोला -नर्स इन को उठा के चेयर पर रखना है!
नर्स सामने आ गई। उसने बेड पर लटका हुआ पेशाब की थैली उठाली और बाजू से पकड़ लिया। बोलि- आप इस साइट से पकड़ लो इनको थोड़ा चलाते हैं।
दूसरी ओर से बाजू मैंने पकड़ ली। एक और से उसे नर्स ने थाम रखा था ।हमने उसे कमरे में ही तीन चार चक्कर लगवाए ।फिर वह बोला- बस थक गया।
वह बोली दिन में कई बार इस तरीके से उनको उठा कर चलाना है ।कम से कम तीन बार तो चलाना ही है ।वरना इनकी पैर ऐसे ही पड़े पड़े जाम हो जाएंगे ।देखिए सूजन कितनी आ रखी है ।पैर में सारा ठीक हो जाएगा चलने पर।
थोड़ा बहुत चलने पर गोपाल के चेहरे में भी मुस्कान आ गई थी ।उसे भी ऐसा लगा था जैसे अंदर से आत्मा बल , आत्मशक्ति बढ़ गई हो।
थोड़ा उठ कर बैठने और चलने पर उसकी थुक निकलने वाली प्रवृत्ति थोड़ी देर के लिए कम हो गई थी।
नर्स बीपी चेक करना चाहती थी । उसने बीपी चेक किया ।फिर उसका शुगर भी टेस्ट किया। उसके बाद उसने ड्राज़ में से कुछ गोलियां निकाली ।गिनती में गोलियां कम से कम 28 गोलियां थी।
नर्स ने कुछ गोलियां कूटनी में डालकर कूट दिया ।और उसे पानी में घोलकर गोपाल को पिला दिया।
कुछ गोलियां ड्रेस पर रखते हुए वह बोली- खाना खाने के बाद इनको यह गोलियां देनी है।
नर्स बाहर निकल गई थी। अब कमरे में मैं और गोपाल ही रह गए थे ।और विराट सा सन्नाटा।
मैंने गोपाल को पूछा -तुमने कभी मेडिटेशन की है?
मेडिटेशन ..ध्यान?
तुम लेटे-लेटे ध्यान कर सकते हो। अंतर्मुखी हो सकते हो ।और कैसे होना है ।मैं तुम्हें बताता हूं।
मैंने उसे मेडिटेशन के बारे में कुछ जिक्र किया। और किस तरीके से अंतर्मुखी हुआ जाता है ।उस बात का भी जिक्र किया।
मुझे उससे अंतर्मुखी होना बताते हुए अच्छा लग रहा था।
मगर मुझे यह पता नहीं था कि उसे अच्छा लग रहा था या नहीं ।शायद वह यूं भी दर्द से तड़प रहा था। इरिटेट हो रहा था ।हर 15 मिनट में नर्स डॉक्टर या कंपाउंडर आ जाता।
दिन भर उसे दवा घोट घोट कर पिलाया जाता। फिर इंजेक्शन लगाया जाता। हर 10 मिनट 15 मिनट के अंतराल में कोई ना कोई नर्स चक्कर लगा जाती।
यह हालात उसके ऑपरेशन के बाद दश बारह दिन बात की थी ।जो मैं बयां कर रहा हूं।
जब ऑपरेशन हुआ था ।तब भी उसे बाजू पकड़कर बाथरूम ले जाते । उससे अभी नाजुक स्थिति में था। पेट में फिर से पानी भरना शुरू हो चुका था ।आज ही 3 लीटर पानी फिर से निकाला गया था। पेट बिल्कुल सिकुड़ सा गया था ।पेट में पानी भरने की वजह से पेट भारी भारी हो जाता। फिर पानी निकालने के बाद पेट हल्का होता ।
शरीर के सारे अंग में सूजन थी ।पैर सूज हुए थे। पांव को दबाने के लिए वह कहता तो दबाने पर उंगलियां अंदर तक धस जाया करती।
गोपाल की हौसला अफजाई के लिए मैं उससे कहता- यू आर द ब्रेव मैन ।विश्वास रखो। आत्मविश्वास ही है जो अब तुम्हें जीने की शक्ति देगी ।जीवन में अगर आत्मविश्वास का ह्रास हो जाए तो फिर मानव मृत्यु के करीब पहुंच जाता है। मगर आत्मविश्वास से इंसान लवरेज हो तो मरता -मरता इंसान भी जी जाता है।
साइंस के पास आत्मा नहीं है ।साइंस के पास सिर्फ शरीर है। शरीर में दी जाने वाला दवा है। आत्मा को अभी तक किसी साईन्स छू नहीं सका है ।आत्मविश्वास आदमी अपने अंदर से ही पैदा करता है ।वह कोई बाहर से आने वाली वस्तु नहीं है । आत्म मनुष्य के शरीर का वह अदृश्य शक्ति है ।जो शरीर के हर हिस्से को जीवित रखने में मदद करता है।
डॉक्टरों के हाथ खड़े कर देने के बाद -इंसान जीता है !तो सिर्फ अपने अंदर की आत्मा बल के ऊपर।
आदमी इस शरीर रूपी किराए के मकान में कितने पल कितने छण तक रहना है। वह रेंट एग्रीमेंट ऊपर से बनाकर लाया होता है ।आदमी का शरीर आत्मा का किराए का मकान है ।किराए के इस मकान का आदमी घमंड करता है ।जबकि उसे तो छोड़कर दूसरे मकान में मुसे जाना ही है ।वो टाइम
एक्सचेंज या एक्सटेंशन नहीं होता ।टाइम जो एग्रीमेंट में ऊपर से लिखवा लाता है।
परिवर्तन
परिवर्तनशील दुनिया है। परिवर्तन होना कुदरत का एक नायाब खेल है। पुराने चले जाते हैं ।नए आते हैं ।पेड़ के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं। फिर नए आते हैं ।पत्तों का आगमन होता ।ऋतु परिवर्तन होता है ।आना जाना लगा रहता है।
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